जीवन के प्रश्न

स्वदेश सेवा के लिए विदेश जाना कितना उचित है?

प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) बॉम्बे में एक सत्र के दौरान, सद्‌गुरु भारतीय युवाओं के विदेशों में रहने और काम करने की इच्छा के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे हैं। इस संदर्भ में, सद्‌गुरु उन अहम समस्याओं की ओर इशारा कर रहे हैं जिन्हें सुधारकर देश को ज्यादा आकर्षक और रहने योग्य बनाया जा सकता है।

प्रश्नकर्ता: सद्‌गुरु, मैं पंजाब का रहने वाला हूँ और वहाँ का हर काबिल आदमी एक ही सपना देखता है - कनाडा जाने का। उनका एक ही मकसद होता है, ‘हम वहाँ जाएंगे, डॉलर कमाएंगे, यहाँ पैसे भेजेंगे और एक गाँव गोद ले लेंगे, सड़कें, अस्पताल और स्कूल बनवाएंगे।’ फिर मैं सैनिकों, किसानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षकों को देखता हूँ जो जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। मुझे कौन सा मार्ग अपनाना चाहिए?

सद्‌गुरु: मैं यह नहीं कह रहा कि आपको विदेश नहीं जाना चाहिए। अगर आपको लगता है कि आप वहाँ कुछ बेहतर सीख सकते हैं, यहाँ के मुकाबले कुछ ज्यादा कौशल हासिल कर सकते हैं या अगर आप वहाँ काम करने भी जा रहे हैं तो ठीक है। लेकिन डॉलर कमाने और फिर वापस आकर अपना गाँव बनाने के बारे में मत सोचिए। वह लंबी योजना है। हमें इस देश में डॉलर की जरूरत नहीं है, हमें भ्रष्टाचार न करने वाले स्पष्ट, फ़ोकस्ड और समर्पित लोगों की जरूरत है। हमारे पास इसी की कमी है।

एक दूसरे से लड़ने में ऊर्जा बर्बाद करना बंद करें

हमें वाकई बाहर से पैसे लाने की जरूरत नहीं है। बात बस इतनी सी है कि हम लगातार कई तरह से एक दूसरे के खिलाफ काम करने में जुटे हुए हैं। हमारी ऊर्जा हर समय एक दूसरे पर चीजें फेंकने में खर्च होती है। बस शाम को एक अंग्रेजी समाचार चैनल खोल कर देखिए कि लगातार एक-दूसरे के खिलाफ बकवास करते हुए कितनी ऊर्जा बर्बाद होती है। और हम इन तर्कों में धीरे-धीरे सभ्यता की सारी भावना खोते जा रहे हैं।

एक-दूसरे के साथ गाली-गलौज करना कोई बहस नहीं है। बहस का मतलब है, किसी चीज़ की खोज के लिए एक के बजाय दो दिमागों का इस्तेमाल करना।

हर स्तर पर ईमानदारी हो

एक तरफ़ तो लोग इतनी ऊर्जा बर्बाद करते हैं, दूसरी तरफ़ बहुत से लोगों को पता ही नहीं होता कि निष्ठा और ईमानदारी क्या है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारा देश किसी नैतिक संहिता से नहीं चलता। किसी ने हमें यह नहीं सिखाया, ‘तुम्हें यह या वह नहीं करना चाहिए।’ इस संस्कृति में, हमने हर पीढ़ी में लगातार मानव चेतना को जगाकर खुद को संभाला।

नैतिकताओं को कोई भी विकृत कर सकता है, लेकिन जब आपके अंदर चेतना जाग्रत होती है, तो आप जो हैं, उसकी एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति होती है। यही प्रक्रिया रही है। लेकिन समय के साथ, मानव चेतना को जगाने की यह व्यवस्था काफी हद तक ढह गई है।

हमें इस देश में डॉलर की जरूरत नहीं है, हमें भ्रष्टाचार न करने वाले स्पष्ट, फ़ोकस्ड और समर्पित लोगों की जरूरत है।

अगर आप किसी कौशल, शिक्षा, ज्ञान या पेशा जो यहाँ उपलब्ध नहीं है, उसके लिए विदेश जा रहे हैं, तो ठीक है। लेकिन अगर आप वहाँ डॉलर कमाने और उन्हें यहाँ भेजने के लिए जा रहे हैं, तो कृपया इस तरह अपना जीवन बर्बाद मत कीजिए। अगर आपके पास निष्ठा और ईमानदारी है तो यहीं करने के लिए बहुत कुछ है। मैं ईमानदारी पर ज़ोर इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि भारत में यह एक चीज़ दुर्लभ हो गई है।

चाहे राजनीति हो या कोई प्रोफेशन, यहाँ तक कि आध्यात्मिकता भी, दुर्भाग्य से एक चीज़ जो अभी भारत में सबसे कम है, वह है निष्ठा और सच्चाई। अगर आपको लगता है कि आपके पास सच्चाई है तो कृपया भारत में रहिए, हम नहीं चाहते कि एक और शख्स यहाँ से भाग निकले।