
यह तो आप जान ही गए हैं कि नाग प्रतिष्ठा एक भव्य घटना थी जिसमें भाग लेने वाले इस गूढ़ प्रक्रिया में पूरी तरह से डूब गए थे। लेकिन क्या आपउन असाधारण प्रयासों के बारे में जानते हैं, जो इस कार्यक्रम को सुव्यवस्थित तरीक़े से आयोजित करने में लगे थे? इस लेख में हम नाग-प्रतिष्ठा के आयोजन के पीछे की कुछ झलकियां पेश कर रहे हैं।
सद्गुरु ने अपने बचपन के कुछ वर्ष चिक्कबल्लपुर में अपने ननिहाल में बिताए थे। उसके बाद भी वे लगभग 17 वर्ष की उम्र तक हर साल गर्मियों में अपने भाई-बहनों के साथ मौज-मस्ती करने वहाँ जाते थे। पिछले कुछ दशकों में उन्होंने अपने कार्य की वजह से दुनिया के कोने-कोने में यात्राएं की। लेकिन जैसा नियति ने लिखा था, कुछ साल पहले ईशा फाउंडेशन ने चिक्कबल्लपुर में कुछ ज़मीन खरीदी और यहाँ 'ईशा लीडरशिप अकादमी’ स्थापित करने की बातें चलने लगीं।
उस समय शायद केवल सद्गुरु को पता था कि इस स्थान में एक सम्पूर्ण 'ईशा योग केंद्र’ में तब्दील होने की संभावना है। नाग प्रतिष्ठा के दौरान सद्गुरु ने इस केंद्र के लिए कुछ बड़े स्तर की योजनाएं साझा कीं जिसमे केवल नाग, 112 फ़ीट आदियोगी और योगेश्वर लिंग ही नहीं बल्कि आदियोगी आलयम, लिंग भैरवी, 8 बड़े प्रोग्राम हॉल के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल है।
आज जब ये केंद्र अभी नवजात स्थिति में है, इसको जल्दी से जल्दी तैयार करने और मानव रूपांतरण के लिए एक पवित्र क्षेत्र के निर्माण का सौभाग्य और जिम्मेदारी ख़ासतौर पर बैंगलोर के स्वयंसेवकों को प्राप्त होगी। नाग प्रतिष्ठा में भाग लेने वाले लोग उन चुनिंदा लोगों में से हैं, जिन्हें इस अद्भुत स्थान की झलक सबसे पहले मिली।
नंदी हिल्स के घुमावदार रास्ते, नीला आकाश, ऊंची-नीची पहाड़ियां और भरपूर हरियाली के लुभावने नज़ारों के बीच से ईशा योग केंद्र, बैंगलोर तक का सफर सचमुच बहुत अद्भुत है। प्रकृति की गोद में पहाड़ियों के बीच स्थित ईशा योग केंद्र को आप दूर से देख नहीं पाएंगे। जब अचानक 9 फ़ीट ऊँची एक ही चट्टान से बनी भव्य नाग प्रतिमा आपको सामने दिखाई देगी, केवल तभी जान पाएंगे कि आप इस स्थान पर पहुँच गए हैं।
9 अक्टूबर को संपन्न हुई यह नाग-प्रतिष्ठा किसी ऐतिहासिक महान घटना से कम नहीं थी। ये पिछले 800 वर्षों के बाद होने वाली पहली नाग-प्रतिष्ठा थी। सबको सम्मिलित कर जिस स्तर पर ये कार्य किया गया ये अपने आप में अद्वितीय था। हर उस इंसान के लिए जिसे आध्यात्मिकता की चाह थी, सद्गुरु ने उसके लिए अनुभव का द्वार खोल दिया।
अगले साढ़े तीन घंटे के लिए सद्गुरु का निर्देश था, ‘चाहे जो हो, आप बैठे रहेंगे,’ और जैसा कहा गया था वैसा ही हुआ। बारिश की बौछारें भी इस भव्य घटना में भाग लेने वालों के उनके निश्चय को हिला नहीं पाईं। अधिकतर सहभागी बारिश में सराबोर अपनी आँखें बंदकर, पूरी तरह इस प्रक्रिया में डूबे हुए थे। भाग लेनेवालों में से एक ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, ‘सद्गुरु के इस गूढ़ स्वरुप को देखने का अनुभव अपने आप में बेहद शक्तिशाली और प्रचंड था। और सबसे बड़ी बात कि इस प्रतिष्ठा में भाग लेना ही एक बहुत बड़ा सौभाग्य है।’
2 साल पहले सद्गुरु ने सबसे पहले स्वयंसेवकों के एक क़रीबी समूह से ये साझा करते हुए बताया था कि नाग प्रतिष्ठा का स्थान बेंगलोर ईशा केंद्र में होना चाहिए। उसके बाद, भिन्न-भिन्न विभागों के स्वयंसेवकों ने अथक रूप से प्रत्येक बारीकी पर तैयारी करने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया जिससे इस कार्यक्रम को सफलता पूर्वक संपन्न किया जा सका।
जैसा कि सारे ईशा के कार्यक्रमों में होता आ रहा है, सद्गुरु की कृपा और सबकी आगे बढ़कर काम करने की पद्धति से नाग प्रतिष्ठा का कार्यक्रम एक जबरदस्त सफलता थी। लेकिन इस रोमांचक रात्रि को अंजाम देने के पीछे की तैयारियॉं और सबके योगदान की तरफ एक नज़र डालना ज़रूरी है।
एक ही चट्टान से बनी यह भव्य नाग प्रतिमा 9 फ़ीट x 5 फ़ीट x 4 फ़ीट और करीब 37 टन की है। ऐसी प्रतिमा को बनाने के लिए किया जाने वाला कार्य जैसे कि सटीक पत्थर की खोज और उसे हासिल करना, काटना, ढुलाई और फिर चट्टान से प्रतिमा को तराशना - अक्सर बहुत लम्बा काम होता है। लेकिन ईशा फाउंडेशन के निर्माण दल के पास इस असाधारण कार्य को करने के लिए केवल 3 महीने थे।
आप इसे संयोग कहें या कृपा, तिरुपुर में जिस पत्थर की खदान में वे दौरा करने पहुंचे वहां इस माप की चट्टान पहले से ही मौजूद थी। उन्होंने तुरंत फोटो लेकर सद्गुरु को भेजा। उनकी स्वीकृति मिलते ही फ़ौरन निर्माण दल ने इस चट्टान को स्थापति (मंदिर के पत्थरों को तराशने वाले) के पास भेज दिया।
18 कारीगरों के साथ पत्थर तराशने का काम करीबन 90 दिनों तक चला। उनमें से एक ने साझा करते हुए बताया, ‘ये यकीनन मुश्किल था लेकिन हम सब पूरी तरह लगे हुए थे। जब सद्गुरु ने इसके बारे में हमें समझाया तब हम इस काम में पूरी तरह से डूब गए। बिना कोई परेशानी महसूस किए हमने खुद को भूलकर अपने आप को इस काम में झोंक दिया।’
पत्थर तराशने के पश्चात् प्रतिमा को तिरुपुर से बेंगलोर एक हैवी ड्यूटी ट्रक में पहुंचाने से पहले इसे एक लाल वस्त्र से ढंका गया और पुष्प-माला से सुसज्जित किया गया। प्रतिमा की ढुलाई नगाड़ों के साथ बड़े ही धूम-धाम से हुई, पास से गुज़रने वाले भी नाच रहे थे। महिलाओं ने बैंगलोर में नाग प्रतिमा का स्वागत उसकी पूजा करके किया।
दूसरी आपातकालीन स्थिति, जहां तुरंत ध्यान दिया जाना ज़रूरी था, वो था नाग प्रतिमा स्थापित करने के स्थान के आस-पास का ऊबड़-खाबड़ मैदान। शुरू में पहाड़ी के ऊबड़-खाबड़ मैदान में आराम से बैठना भी बड़ा मुश्किल था। एक बार फिर ईशा का निर्माण दल बचाव के लिए आगे आया। निर्माण दल ने ये सुनिश्चित किया कि पूरा मैदान ठीक से समतल हो जिससे 16000 भाग लेनेवाले लोग कार्यक्रम के दौरान ठीक से बैठ सकें। पूर्वी द्वार का रास्ता भी 1 सप्ताह में चौड़ा करके ठीक किया गया जिससे ईशा योग केंद्र तक पहुंचना सुविधापूर्ण हो जाए। कोई भी कार्य इतना कठिन नहीं था कि ईशा के निर्माण दल को रोक सके।
प्रतिष्ठा के 2 महीने पहले अक्षय दल (आश्रम रसोई) ने उस स्थान पर काम कर रहे स्वयंसेवकों और बाक़ी लोगों की भोजन व्यवस्था के लिए एक अस्थायी रसोई की व्यवस्था की थी। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन कार्यक्रम के 1 हफ्ता पहले 2 अक्टूबर को ज़ोरदार बारिश से रसोई के कुछ हिस्से में पानी भर गया।
जब अक्षय दल के संयोजक स्वामी देवबाहू 4 अक्टूबर को आए तब किसी समय की सुव्यवस्थित रसोई ज़मीन का एक जलमग्न टुकड़ा बन चुकी थी। हँसते हुए वे बताते हैं, ‘मैं उस स्थान पर पहुंचा लेकिन मेरा अक्षय वहां नहीं था। सौभाग्यवश कुछ लोगों की उदारता से हमने सारे सामान को 4 किमी दूर स्थित एक कल्याण-मंडप में पहुंचाया। लेकिन वहाँ बिजली और पानी की कमी की वजह से भोजन पकाना मुश्किल हो रहा था। क्योंकि हम एक दूर स्थित जगह से काम कर रहे थे, इसलिए रोज आने वाले लोगों की संख्या का अनुमान लगाना भी कठिन हो रहा था।
काफी मुश्किलों का सामना करते हुए भी अक्षय दल ने ये सुनिश्चित किया कि आनेवाले लोगों को ठीक-ठाक भोजन मिलता रहे और वे ऊर्जावान बने रहें। कार्यक्रम के दिन तक रसोई सुव्यवस्थित तरीक़े से काम करने लगी थी और लोगों को सांबर-सादम और मीठे पोंगल का स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन मिला।
‘सुबह से शाम तक बिना किसी रुकावट के तक़रीबन 18000 भाग लेने वाले और स्वयंसेवकों का भोजन हमने तैयार किया। जैसे ही भोजन समाप्त होने लगता हम और चावल भिजवा देते,’ स्वामी आनंदित मुद्रा में बताते हैं। भोजन की इतनी बड़ी मांग को देखते हुए ये अनुमान लगाया जा सकता है कि भोजन कितना स्वादिष्ट होगा। जब भी रसोई में कोई मुश्किल आती, स्वामी जल्द ही उसका कुछ हल खोज लेते थे।
कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद, अक्षय दल के सदस्य रात में रसोईघर में बीते दिनों के कुछ रोचक किस्से और हँसी-मज़ाक़ कर रहे थे। हंसते-हंसते लोट-पोट होते हुए स्वामीजी ने एक किस्सा याद करते हुए बताया, ‘घंटों तक सारे रसोइए संजीवनी कंजी के पैकेट खोजने में लगे थे जो रातों-रात कहीं गायब हो गए थे। बाद में पता चला कि एक रसोइए ने रात में सोने के लिए इन पैकेट्स को नीचे बिछाकर बिस्तर को थोड़ा आरामदायक बनाने की कोशिश की थी।’
प्रोग्राम प्रबंधन के लिए करीब 35 दल - जैसे कि नामांकन, स्थल की तैयारी, बैठक, पार्किंग, साइन बोर्ड्स, आगमन, ध्वनि, रोशनी, यातायात और प्रसाधन शामिल थे। 600-700 स्वयंसेवकों को 7 भागों में और 5 दलों में विभाजित किया गया था। सबके साथ मिलकर कार्य की प्रगति, रुकावटों और सुझाव पर विचार-विमर्श के लिए साप्ताहिक सभाएं होती थीं। 2 महीने की तैयारी के दौरान करीब-करीब 350 स्वयंसेवक गाँव के विवाह-स्थलों और आसपास के होटलों में रहे जिससे कि बैंगलोर से आने-जाने के 2 घंटे बच सकें। कार्यक्रम के दिन लगभग 1200 स्वयंसेवक उस स्थल पर मौजूद थे।
विभिन्न विभागों के दल और स्वयंसेवकों ने ये सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी कि कार्यक्रम बिना किसी रुकावट के संपन्न हो। लेकिन सबको जो कार्य सौंपे गए थे वे किसी चुनौती से कम नहीं थे। स्वामी प्रबोध कहते हैं, ‘कार्यक्रम आयोजित करना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब हमने इस स्थान को पहली बार देखा, हम लोग बेचैन हो गए थे। पहले तो हमें यही समझ नहीं आया कि भाग लेनेवाले यहाँ बैठेंगे कैसे, क्योंकि पूरा इलाका ऊबड़-खाबड़ और पहाड़ी था। लगातार हो रही बारिश इस स्थिति को और मुश्किल बना रही थी।
एक बार इस इलाके को समतल करने के बाद प्रोग्राम दल ने बैठक वाले स्थान को बंद कर दिया जिससे गाड़ियों की आवा-जाही और पावों के निशानों से ये जगह फिर से ख़राब न हो। लेकिन लगातार बारिश ने लाल-मिट्टी को रेत जैसा बना दिया था जिससे बिना फिसले चारों तरफ घूमना बहुत मुश्किल हो गया था। ‘हम रोज मौसम विभाग से मौसम की पूर्वसूचना के लिए संपर्क में थे,’ स्वामी बताते हैं।
‘बारिश की वजह से हम ये नहीं जानते थे कि सारी व्यवस्था समय पर पूरी हो पाएगी या नहीं। लेकिन सद्गुरु की कृपा से सब कुछ ठीक हुआ। वो आगे बताते हैं, ‘हालाँकि हम जानते हैं कि सद्गुरु की कृपा हमारे साथ सदैव है, इसका मतलब ये नहीं कि हम ढीले पड़ जाएं। हमेशा जिस कार्य की आवश्यकता हो उसे करना ही चाहिए।’
जैसे ही अंतिम सत्र ख़त्म होने को था, करीब 16000 भाग लेने वाले लोगों की भीड़ नाग प्रतिमा के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी। प्रोग्राम दल ने तत्काल बैरिकेड्स लगाकर इतने विशाल जनसमूह को सुरक्षित और सुचालित किया। लाल मिट्टी की कीचड़ भी उत्साही भक्तजनों के लिए कोई रुकावट नहीं थी। केवल 1.5 घंटे के समय में हर किसी को नाग प्रतिमा के नज़दीक से दर्शन हो गए और वे सब वापस जाने के लिए रवाना हो गए।
इसी बीच कुछ स्वयंसेवक तकिये, कुर्सियां, लेखन सामग्री इत्यादि इकठ्ठा करने में लग गए जबकि कुछ लोग भोजन के पैकेट्स बाँटने और पार्किंग से गाड़ियों के निकलवाने में मदद करने लगे। रात के कुछ पहर बीतने तक हर कार्यकर्ता सौंपे हुए काम में लगा रहा।
10 अक्टूबर को सुबह 5:30 बजे गुरु पूजा के पश्चात प्रतिमा को जन सामान्य के लिए विधिवत खोल दिया गया। लेकिन श्रद्धालुओं के आगमन से पहले मंदिर के पूरे प्रांगण को अच्छी तरह साफ़ करना ज़रूरी था – ख़ास तौर पर मिट्टी और कीचड़ के पांवों के निशान जो लोगों ने दर्शन के दौरान छोड़ दिए थे। मंदिर के दल और ब्रह्मचारियों ने इस काम को अपने हाथों में ले लिया। स्थान पर पानी की कमी की वजह से उन्होंने पानी का एक ट्रेक्टर मंगवाया जिसे नाग प्रतिमा के समीप ही पार्क कर दिया गया और पूरे प्रांगण को बाल्टियां भर-भर के पानी से धोया गया।
फ़िलहाल नाग-स्थल सुबह 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक सप्ताह के सातों दिन दर्शन के लिए खुला रहता है। यहाँ रोज सुबह 6:20, दोपहर 12:20 और संध्या 6:20 बजे आरती होती है। रोज़ सुबह नाग को हाथों से बनी पुष्प-माला से सुशोभित किया जाता है। श्रद्धालु फल, फूल, मिष्ठान, धूप और कपूर इत्यादि नाग को भेंट कर सकते हैं।
नाग का पवित्र स्थल ईशा योग केंद्र, बैंगलोर में स्थापित है जो कि चिक्कबल्लापुर जिले के नंदी हिल्स इलाके में स्थित है और बेंगलुरु से 65 किमी उत्तर दिशा में, और केम्पेगौडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, बेंगलुरु से 45 किमी दूर है। बैंगलोर शहर से चिक्कबल्लपुर जाने के लिए बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। कर्नाटक स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन ने भी हाल ही में चिक्कबल्लापुर और ईशा योग केंद्र (सप्ताहांत में) और ईशा जंक्शन (सप्ताह के बाक़ी दिन) के बीच बस सेवा शुरू की है।