क्या आप अपने बच्चों के व्यवहार से परेशान हैं लेकिन उन्हें इस बात की कोई परवाह ही नहीं? आइए जानते हैं सद्गुरु से एक ऐसा तरीक़ा जिससे आप सचमुच अपने बच्चों के साथ अच्छे सम्बन्ध बना सकते हैं।
प्रश्नकर्ता: मुझे किसी को सलाह देना पसंद नहीं कि उसे क्या करना चाहिए। यहाँ तक कि अपने बच्चों, अपने पति, या अपने परिवार के सदस्यों को भी। क्योंकि मैं उन्हें भी अपने जैसा एक जीवन मानती हूँ, और एक जीवन के रूप में उनका आदर करती हूँ। लेकिन दिक्कत ये है कि जब तक मैं कुछ बोलूँ न, कोई काम होता ही नहीं, यहाँ तक कि बुनियादी काम भी नहीं। मुझे क्या करना चाहिए?
बिन माँगे सलाह देना बंद कर दीजिए
सद्गुरु: स्थितियों को संभालना जीवन का एक पहलू है। लेकिन आपको लगातार कोई ये बताता रहे कि आपको क्या करना चाहिए तो आप एक दिन उनसे थक जाएंगे चाहे वह इंसान कोई भी हो। हो सकता है वे आपके माता-पिता हों, उनके प्रति आपके मन में बहुत प्रेम और सम्मान की भावना हो सकती है, फिर भी अगर वे लगातार सलाह देते रहेंगे तो आपको चिढ़ होने लगेगी। आपके बच्चे भी ऐसा ही करेंगे। ज़रा याद कीजिए जब आप 14-17 वर्ष के थे - आपको अपने माता-पिता के सलाह देने पर कैसा लगता था। आपके बच्चे भी आज वैसा ही अनुभव करते हैं।
तो क्या इसका मतलब है कि किसी को किसी से कुछ नहीं कहना चाहिए? नहीं, हम बात-चीत की शुरुआत कर सकते हैं। परिवार, समाज की मूल इकाई है – सबसे पहली साझेदारी यहीं से शुरू होती है। यहाँ से शुरू करते हुए समाज में हम कई तरह की साझेदारियां करते हैं - एक राष्ट्र बनाने के लिए, वैश्विक परिस्थितियाँ बनाने के लिए। हर साझेदारी एक तरह का विवाह ही है। देशों के बीच विवाह, समुदायों के बीच विवाह, कारोबारों के बीच विवाह।
अपनी भूमिका पर फिर से विचार कीजिए
विवाह का अर्थ है साथ होना। लेकिन आज हमने विवाह को कुछ और ही बना दिया है जो इस प्रकार के हालात पैदा करता है जहाँ कोई आपकी नहीं सुनता। विवाह के बाद आपको एक आदमी की पत्नी नहीं, उसका सबसे अच्छा दोस्त बनना चाहिए। अपने बच्चे के लिए भी आपको महज़ एक माँ नहीं बनना चाहिए। माँ-बाप एक तरह से बॉस की तरह लगते हैं – इसलिए कोई उन्हें पसंद नहीं करता।
आपको अपने बच्चे का सबसे अच्छा दोस्त बनना चाहिए और आपके पास इसके लिए कई मौके होते हैं। जब वह शिशु था तब से वह आपकी ओर ही देख रहा है। तो अगर आप ऐसे इंसान के साथ दोस्ती नहीं कर सकते तो आप अपने जीवन में किसके साथ दोस्ती कर सकते हैं। अगर आप एक ऐसे व्यक्ति के साथ एक गहरी मित्रता का संबंध नहीं बना सकते जो एक समय अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए भी आप पर निर्भर था, तो समझिए आपने उसे खो दिया। आपने उसे खो दिया क्योंकि आप एक बॉस की तरह व्यवहार करने लगे।
धौंस मत दिखाइए
आपमें ऐसी क्या योग्यता है कि आप अपने बच्चे के बॉस बन जाएँ? केवल एक योग्यता कि आप उनसे कुछ वर्ष पहले इस धरती पर आए। यही संस्कृति हर जगह है। स्कूल में कुछ मूर्ख आप पर धौंस दिखाना चाहते हैं, क्योंकि वे आपसे कुछ साल पहले उस स्कूल में आ गए थे। तो धौंस मत दिखाइए। अधिकतर माता-पिता ये जानते भी नहीं कि वे धौंस दिखा रहे हैं क्योंकि उनका अनुभव भी अपने माता-पिता के साथ ऐसा ही रहा है - हमेशा परामर्श देते रहने का।

एक बेहतर संबंध बनाइए
आपको एक गहरी दोस्ती करने की जरूरत है। अगर मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बात सुनें और उस पर अमल करें तो मेरे संबंध आपके साथ ऐसे ही होने चाहिए। उस तरह की मित्रता के बिना, अगर मैं ख़ुद को आपसे ऊपर रखकर आपको आज्ञा दूँ, ‘मेरी बात सुनो,’ तो जब मैं वहाँ हूँ तो आप दिखावा करेंगे कि आप सुन रहे हैं लेकिन मेरे वहाँ से जाते ही आप कुछ और करने लगेंगे। अधिकतर बच्चे क्या ऐसा ही नहीं करते। माता-पिता की मौजूदगी में उनका व्यवहार एक तरह का होता है, लेकिन उनके हटते ही वे अलग तरह से पेश आते हैं। क्यों? क्योंकि आप धौंस दिखाते हैं। एक धौंसिये के सामने सभी आज्ञाकारी होने का ढोंग करते है क्योंकि वे ‘बड़े’ हैं।
इन रिश्तों को हमेशा के लिए मत समझिए क्योंकि कोई भी रिश्ता सदा के लिए नहीं होता, आपको हमेशा उसका पालन-पोषण करना होता है। आपको रोज उसकी देख-रेख करनी होती है - तभी कोई संबंध बना रह पाता है। नहीं तो आपकी पत्नी, आपका पति, शारीरिक तौर पर तो आपके साथ एक घर में होंगे, वे कई वजहों से आपके पास रह सकते हैं, लेकिन वे सही मायने में आपके साथ नहीं होंगे। यही संतान के लिए भी लागू होता है। तो माता, पिता, पत्नी या पति का पद मत लीजिए।
उनके सबसे अच्छे मित्र बनिए
अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे आपकी बात सुनें तो आपकी उनके साथ ऐसी दोस्ती होनी चाहिए कि वे जो कुछ भी कहना चाहते हैं वो सबसे पहले आप से कहें क्योंकि आप उनके सबसे गहरे मित्र हैं। और आपके पास ऐसा करने के अवसर होते हैं क्योंकि वे 8 -10 वर्ष का होने तक तो पूरी तरह आपकी पकड़ में होते हैं। इसलिए आपको माता-पिता की तरह बर्ताव करने की जगह ऐसा गहरा सम्बन्ध बनाना चाहिए। क्योंकि जैसा मैंने कहा आपके पास केवल एक योग्यता है और वो यह कि आप उनसे पहले इस दुनिया में आए हैं।
कोई बात नहीं अगर वे आपसे छोटे हैं। लेकिन सहृदय और मित्रवत होना जरूर मदद करता है। अगर आप अपने आस-पास के लोगों के साथ इतने गहरे संबंध बनाएं, चाहे वो आपका परिवार हो या कोई और, अगर आप उनकी परवाह करते हैं और आपसे जो भी बन पड़े आप उनके लिए करने के लिए तत्पर होते हैं, अगर वे ऐसा देखते और महसूस करते हैं कि आप उनसे ज्यादा होशियार हैं, तो वे निश्चित रूप से अपनी हर मुश्किल को सुलझाने आपके पास आएंगे। नहीं तो वे अपने स्तर पर ही कुछ करेंगे, वो भी ठीक है।
अपनी धारणाओं को हटाएं
आप उनसे ज्यादा स्मार्ट हैं या वे आपसे ज्यादा स्मार्ट हैं - ये उनका विचार है। आप इसे वहीं पर छोड़ दीजिए। आप किसी से ख़ुद के ज्यादा स्मार्ट होने की धारणा नहीं बना सकते। ये रिश्तों को बर्बाद कर देता है। अगर वे देखेंगे कि आप उनसे ज्यादा स्मार्ट हैं तो वे आपके पास ख़ुद ही आएंगे। तो ऐसा मत सोचिए कि सबको आपकी बात सुननी चाहिए। किसी को आपकी बातें सुनने की ज़रूरत नहीं है। आपको ख़ुद को ऐसा बनाना चाहिए कि आपकी कही बातें सुनने लायक लगें। आप चाहे जो भी हों, दुनिया में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसमे सबको आपकी बातें सुननी पड़ें। अगर आप निरर्थक बात करेंगे, चाहे वे केवल दो शब्द ही क्यों न हो, तो आपकी कोई नहीं सुनेगा।

तो कहाँ से शुरू करें?
ख़ास तौर पर वे लोग जो आपके आस-पास हर दिन मौजूद हैं - आपका पति, आपकी पत्नी, आपके बच्चे, वे सब आपको हर वक़्त देखते रहते हैं। वे देख रहे होते हैं कि आप जो कहते हैं और जो करते हैं उसमे कितनी समानता है। आपके बच्चे आपकी बातें बिलकुल नहीं सुन रहे हैं, बल्कि वे आपको ग़ौर से देखते आ रहे हैं- बचपन से ही। वे आपको आपसे बेहतर जानते हैं। क्योंकि उन्होंने एक समय अपना सारा ध्यान आप पर लगा रखा था। उन्होंने देखा है कि आप कैसे खड़े होते हैं, कैसे बैठते हैं, आप कैसे चिढ़ जाते हैं - वे सब कुछ जानते हैं।
आप ख़ुद नहीं जानते होंगे, आपका मनोचिकित्सक नहीं जानता होगा, लेकिन आपके बच्चे ठीक जानते हैं कि आपकी क्या कमजोरियां हैं और इसलिए वे जब चाहते हैं उन पर ऊँगली धर देते हैं। क्योंकि उन्होंने आपको बाकी लोगों से ज्यादा नजदीक से देखा है। क्या आपने ग़ौर किया कि जब आपका बच्चा बहुत छोटा था, तब वह आपको कैसे देखता था, जैसे आप ही उसके लिए सब कुछ हैं। उन्होंने आप पर उतनी बारीकी से ध्यान दिया है। इसलिए उन्हें अपनी बातों से या सलाह से मूर्ख बनाने की कोशिश मत कीजिए। अगर आप चाहते हैं कि परिस्थितियां बदले, तो आप देखिए कि आप ख़ुद में क्या बदलाव ला सकते हैं और वो बदलाव लाइए। आप देखेंगे कि इसे हृदय की गहराई से सराहा जाएगा।