फीचर स्टोरी

नाग – आख़िर क्यों हर सभ्यता का हिस्सा रहा है?

सद्‌गुरु पहली बार बता रहे हैं - नए प्राण-प्रतिष्ठित नाग-स्थान के ख़ास मुख्य गुणों के बारे में और ये भी बता रहे हैं कि कैसे वो न केवल किसी का जीवन बेहतर कर सकते हैं बल्कि जीवन-अवधि को भी बढ़ा सकते हैं। इसका सीधा सम्बन्ध उन तीन पहलुओं से है जिसके लिए हर इंसान जाने-अनजाने कोशिश करता है। पेश है बैंगलुरू ईशा योग केंद्र में नाग प्रतिष्ठा के दौरान सद्‌गुरु के संवाद का अंश:

नाग एक जीवंत देवता हैं। कोई भी इसे जीवन के भीतरी और बाहरी दोनों ही पहलुओं को समझने, अनुभव करने और जानने के लिए एक साधन की तरह इस्तेमाल कर सकता है। चूंकि मानवीय क्षमताएं सीमित हैं, हम जो देख, सुन, समझ या ग्रहण कर सकते हैं उसकी सीमाएं हैं। और एक मनुष्य में हमेशा ही इन सीमाओं से परे जाने की इच्छा होती है। ये पूरी नाग संस्कृति इसी इच्छा से जन्मी है। ये एक धर्म या स्थान की बात नहीं है। पूरी दुनिया में एक भी सभ्यता ऐसी नहीं है जिसने जीवन के गहरे आयामों तक पहुँचने के लिए नागों का इस्तेमाल न किया हो।

आपके लिए एक बेहतरीन जीवन क्या है?

आप ये तांबे या कांसे का नाग अपनी जीवन-अवधि को बढ़ाने के लिए अर्पित कर रहे हैं। क्योंकि जीवन एक तरह की लीज़ (पट्टा) है। आप लीज़ पर हैं, आपका शरीर लीज़ पर है। आपके पति, पत्नी, बच्चे, घर, ज़मीन, बैंक अकाउंट, सारी चीज़ें लीज़ पर हैं। आम तौर पर लोगों के लिए एक बेहतरीन जिंदगी का अर्थ होता है पति, पत्नी, बच्चे, घर, पैसा आदि हो, दिन में कई बार खाते हों, थोड़ी बहुत बीमारियाँ भी हों, जैसे थोड़ा सा ब्लड प्रेशर, मधुमेह (डाइबीटीज़) आदि हो – तो यही उनका बेहतरीन जीवन है। आपको फिर से सोचने की ज़रूरत है कि आख़िर बेहतरीन जीवन क्या है? 

यदि आपका जीवन कुछ और लम्बा हो जाए तो आप उसके साथ क्या करेंगे? क्या आप थोड़े और कपड़े, जूते, कुछ और गाड़ियाँ और ज़मीन खरीदेंगे? क्या आप थोड़ा और खाना खाएंगे? या फिर आज के दौर के हिसाब से क्या आप नई पत्नी या पति लाएँगे? नाग तक पहुँचने का एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है जीवन प्रक्रिया को बहुत आसान बनाना। सिर्फ अपने जीवन स्तर को बढ़ा लेने का मतलब बेहतरीन जीवन नहीं होता। हो सकता है आप महल में रह रहे हों, पर तब भी वही मूर्खतापूर्ण चीज़ें कर रहे होंगे।

नाग एक जीवंत देवता हैं। कोई भी इसे जीवन के भीतरी और बाहरी दोनों ही पहलुओं को समझने, अनुभव करने और जानने के लिए एक साधन की तरह इस्तेमाल कर सकता है।

आप इसे जीवन कह सकते हैं, लेकिन दरअसल ये समय है। समय एक छोटी सी अभिव्यक्ति है- काल-हीन अनंत अंतरिक्ष की। समय बस बीता जा रहा है, आप चाहे बैठें, खड़े रहें या सो जाएँ। ये निश्चित तौर पर आपके जीवन की सबसे कीमती वस्तु है। तो सवाल वही है कि यदि आपको थोड़ा और समय मिल जाता है तो आप इसके साथ क्या करेंगे? क्योंकि अगर आप वही मूर्खतापूर्ण चीज़ें हमेशा करने वाले हैं तो आपके जीवन में गहन आयामों को लाने का क्या अर्थ है? हमारे जीवन के तीन मुख्य पहलू हैं ।

जीवन के तीन आतंरिक लक्ष्य

1: माधुर्य

एक है जीवन का माधुर्य। यानी अगर आप सिर्फ़ एक जगह स्थिर बैठे हैं, तो जीवन का आपका अनुभव सुखद है। हो सकता है आप भीगे हुए हों, आपको ठण्ड लग रही हो, आपके पैर में कोई तकलीफ़ हो, आपकी पीठ में दर्द हो या कोई छोटा सा कंकड़ आपको नीचे से चुभ रहा हो, लेकिन एक जीवन के तौर पर आप अपने भीतर से सुखद हैं। ये आपका काम है, आपकी ज़िम्मेदारी है। यदि आप अपने सुखद होने या न होने को कंकड़ों पर छोड़ते हैं, लोगों पर छोड़ते हैं, या दूसरी चीज़ों पर छोड़ते हैं तो आप जीवन के खत्म होने से पहले ही ख़त्म हो जाएंगे। अगर आपने किसी भी बाहरी चीज़ को इजाज़त दे दी कि वह तय करे कि आप अपने भीतर कैसे होंगे तो समझिए आपका जीवन ख़त्म है। 

जीवन का सुखद होना सौ फ़ीसदी आपके ऊपर है। आपके चारों और ऐसे लोग हो सकते हैं जो अप्रिय स्थिति पैदा करते हों – वे एक तरह से आपके लिए गुणवत्ता नियंत्रक (क्वालिटी कंट्रोल) का काम करते हैं। वे ये जाँच रहे हैं कि आपका जीवन सच में सुखद है या नहीं। तो सुखद होना पूरी तरह से आपकी ज़िम्मेदारी है। मान लीजिए आप हर समय बस खुश हैं। जब आप जीवन के हर क्षण में ख़ुश होंगे तो आपको जीवित रहना मूर्खतापूर्ण लगेगा। ‘मैं खुश हूँ, लेकिन अब इसका क्या करूँ?’ मतलब अब आप परेशानियाँ ढूँढते हैं। आप करने के लिए कुछ मुश्किल काम खोजने लगते हैं।

2: गहनता

दरअसल आप मुश्किलें नहीं खोज रहे हैं। आप कुछ गहन चाहते हैं। जब कुछ प्रगाढ़, कुछ गहरा, घटित नहीं होता तो आप बस खुद को किसी तरह खोदते रहते हैं। इसके लिए हो सकता है आप शादी कर लें, कोई नया कारोबार शुरू कर लें – कुछ भी करके आपको किसी भी तरह ख़ुद को थोड़ा-थोड़ा कोंचते रहना है। दुर्भाग्य से दर्द हमेशा ही इंसान को गहनता का अनुभव कराता है। कुछ ही लोग अपने भीतर शांति, प्रेम, और ख़ुशी और परमानन्द की गहनता को जान पाते हैं। उनके जीवन में शांति, ख़ुशी, प्रेम आता जाता रहता है, लेकिन उनका दर्द गहन होता है।

जब शांति का बहुत गहन अनुभव आपके भीतर है तो आपको किसी और चीज़ की ज़रूरत ही नहीं होती।

मान लीजिए मैं आपको एक पिन चुभा दूँ – ये एकदम आपकी वास्तविकता तक पहुंचेगा। यही दर्द का स्वभाव है। दुर्भाग्य से अधिकतर मनुष्य दर्द को गहनता समझते हैं। नहीं – गहनता सुख में भी हो सकती है, परमानंद में भी हो सकती है, प्रेम में भी हो सकती है, और सबसे बढ़कर शांति में भी हो सकती है। जब शांति का बहुत गहन अनुभव आपके भीतर है तो आपको किसी और चीज़ की ज़रूरत ही नहीं होती। अधिकतर लोग सबसे गहरी शांति तब महसूस करते हैं जब वे मर जाते हैं।

3: प्रभावशीलता

गहनता को कुछ सलाह, मदद और पहुँच की ज़रूरत होती है। पहुँच को पाने के लिए आपको किसी की ज़रूरत होती है, नहीं तो हो सकता है गहनता घटित न हो। लेकिन सुखद होना पूरी तरह से आपके ऊपर है। जब जीवन की बात आती है तो हम सभी को एक न एक चीज़ करनी होती है। जब हम कुछ करते हैं तो उसे प्रभावशाली बनाना चाहते हैं। एक इंसान के तौर पर आप इसमें कुछ नहीं कर सकते। यदि आप अपने भीतर गहनता का अनुभव किए बिना प्रभावी होने का प्रयास करते हैं, तो आप मूर्खतापूर्ण चीज़ें करने लगते हैं, जैसे युद्ध करना, किसी को मारना। यदि आपके भीतर कोई गहन अनुभव नहीं होगा तो प्रभावशाली होने के लिए आप हर तरह  के पागलपन करेंगे। कभी-कभी आप ऐसे जोखिम भरे काम करेंगे जो आपकी या दूसरों की जान ले सकता है। बिना गहन अनुभव के प्रभावशाली बनने की कोशिश, दुनिया को, लोगों के जीवन को और आस-पास के दूसरे जीवों को नुकसान पहुंचाएगी।

दुनिया भर में नागपूजा

बहुत ही गहन और प्रभावशाली व्यक्ति का एक उदाहरण है - सम्राट अशोक। बौद्ध बन जाने के बाद वे शाक्यमुनि बुद्ध को भौतिक रूप में देखना चाहते थे, जो पहले ही दुनिया से जा चुके थे। इसके लिए उन्होंने एक नाग देवता महाकालो से प्रार्थना की। उन्होंने एक नाग को सिंहासन पर राजा की तरह बैठाया। कहा जाता है उसके बाद उन्हें बुद्ध का साक्षात् अनुभव प्राप्त हुआ। उन्होंने एक नाग को अपने मनचाहे अनुभव पाने के लिए इस्तेमाल किया। वैदिक सस्कृति में नाग और सूर्य की पूजा जुड़ी हुई हैं।

सौभाग्य से दुनिया के इस हिस्से में ख़ास तौर से भारत में हमने अभी भी नाग-संस्कृति को जीवित रखा है ।

मिस्र में एक नाग देवता हुए जिन्हें मेहेन कहा जाता था, जिसका अर्थ है ‘कुंडली मारे हुए।’ बीच में सिर और चारों ओर कुंडली ये सौर मंडल का प्रतीक है। क्योंकि वो अब भी कुंडली के आकार में है, इसका अर्थ है कि सौर मंडल अब भी अपने बीजभूत निर्माण की अवस्था में है। सौर मंडल के बनने के बाद ग्रहों ने सृष्टि का मलबा साफ़ किया और अपनी कक्षाएं प्राप्त कीं। लेकिन इस अवस्था में आने से पहले ये ग्रह कुंडली के आकार (सर्पिलाकार) में थे केंद्र से बाहर की और फैलते हुए। मेहेन इसी का प्रतीक है, कुंडली मारे हुए नाग देवता मेहेन और सूर्य देवता एक दूसरे से सम्बंधित हैं।

यूरोप में कई मेडुसा मंदिर हैं। वे धर्मयुद्ध (क्रुसेड) के दौरान व्यवस्थित तरीके से नष्ट किए गए। इस्ताम्बुल, तुर्की, में एक बड़ी मस्ज़िद है जो मुस्लिम हमलों से पहले बड़ा गिरिजाघर था, जिसे मस्ज़िद में बदल दिया गया। उसके नीचे बैसिलिका टंकी है जिससे पूरे शहर में ताज़े पानी की आपूर्ति होती थी। ये एक बहुत बड़ी संरचना है जिसमें चारों ओर पुलों के सहारे आप चल भी सकते हैं। यहाँ एक दुर्भाग्यशाली बात आप ये देखते है कि यहाँ मेडुसा के सिर को आधार की तरह इस्तेमाल किया गया है। मेडुसा के सिर को जानबूझकर उल्टा रखा गया है, क्योंकि यदि उसे सही तरीके से रखा जाता तो लोग उसकी पूजा करने लगते। मेडुसा के बाल नागों की तरह हैं और ये बहुत हद तक यूरोप की तांत्रिक संस्कृति का हिस्सा है।

[1] हागिया सोफिया

[2] 6वीं शताब्दी में रोमन सम्राट जस्टिनियन द्वारा हागिया सोफिया के साथ निर्मित

कई शताब्दियों के बाद डायनों का संहार (विच हंट) शुरू हुआ। ऐसा माना जाता है कि 150 से 200 सालों में लगभग साठ लाख स्त्रियों का नरसंहार हुआ, जो उस समय की जनसँख्या का बहुत बड़ा हिस्सा था। कई स्त्रियाँ इसलिए मार डाली गईं क्योंकि उनके पास कुछ संभावनाएं थीं। उनके पास देखने, जानने और भविष्यवाणी करने की शक्ति थी। अगर लोग शक्ति अर्जित करके चीज़ें देखने लग जाएँ तो आप उस एक बड़े भगवान के नाम पर कारोबार नहीं कर सकते, जिसके पास कथित तौर पर अकेले सारी शक्तियां हैं।

सौभाग्य से दुनिया के इस हिस्से में, मुख्यतः भारत में हमने अभी भी नाग संस्कृति को जीवित रखा है। लेकिन नाग को इस तरह प्राण-प्रतिष्ठित किए हुए लगभग 800 साल से अधिक हो गए, इसलिए आप सभी जो यहाँ मौजूद हैं और इसका हिस्सा बन रहे हैं, ये अद्भुत है।