कुछ भी संयोग नहीं होता, खासतौर पर जब बात सद्गुरु द्वारा प्राण प्रतिष्ठित स्थानों और ऊर्जा रूपों की हो। यहाँ सद्गुरु ईशा योग सेंटर, बेंगलुरु के प्रतिष्ठित नाग-स्वरूप के प्रतीक पर रोशनी डाल रहे हैं, और बता रहे हैं कि नाग के अलग-अलग पहलू क्या दर्शाते हैं।
सदगुरु: नाग के साथ, 112 काल सर्प हैं। योग में, ‘नाग’ और ‘काल’ एक ही अर्थ में लिए जाते हैं। सवाल है कि नाग और समय का एक अर्थ क्यों होगा? समय जिसे हम अपने अनुभव में जानते हैं – सेकंड, मिनट, घंटा, दिन, महीना, साल, दशक, शताब्दि और सहस्त्राब्दी के रूप में – वह मूल रूप से अनंत आकाश का ही नतीजा है जिसकी प्रकृति समयहीन है।
इसलिए योग में काल और नाग का एक ही अर्थ है। नाग या साँप समय को दर्शाते हैं। हमारी समय की समझ सौर-मंडल की संरचना पर निर्भर है। अगर धरती एक बार घूमती है, हम उसे एक दिन कहते हैं। जब चन्द्रमा धरती की परिक्रमा पूरी करता है, हम उसे एक महीना कहते हैं। अगर धरती सूर्य की परिक्रमा करती है, तो हम उसे एक साल कहते हैं। समय की हमारी समझ और बोध सूर्य के चारों तरफ़ ग्रहों की गति पर निर्भर है। या कह सकते हैं कि सौर मंडल हमारी असली घड़ी है। बाक़ी सभी घड़ियाँ बस उसकी नक़ल हैं।

सौर-मंडल हमारी घड़ी कैसे बन गया? आज वैज्ञानिक इसे जिस तरीके से समझाने की कोशिश कर रहे हैं वो भाग्यवश वैसा ही है जैसा योग में समय का बोध होता है। योग में समय का जो बोध है वह सूर्य से कुंडली के रूप में बाहर की तरफ़ फैलती ग्रहों की व्यवस्था से जुड़ा है। आप में से वो लोग जो स्पंदा हॉल गए हैं, उन्होंने देखा होगा कि वहां द्वार पर कुंडली अवस्था में बना हुआ नाग है जिसका सर बीच में है। यह सौर मंडल के निर्माण की प्रक्रिया का प्रतीक है। सूर्य मस्तक है, बाकी सब उसके आस-पास रचा हुआ है।

Image credit: NASA
इसी तरह आज का विज्ञान सौर मंडल की रचना के बारे में नेब्यूला या गैस और छोटे कणों के विशाल बादलों के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से घनीभूत होने की बात करता है। फिर धीरे-धीरे वो हिस्से ठोस बन गए, और सिर्फ वो ग्रह जिन्होंने सफलतापूर्वक अपना परिक्रमा पथ ढूंढ लिया और अपना रास्ता बना लिया वो अभी भी मौजूद हैं। बाकी सब बिखर गए या भस्म हो गए। आमतौर पर इसी सिद्धांत को माना जाता है – सौर-मंडल के निर्माण को लेकर। यानी यह एक तरह से एक कुंडली को फैलाते हुए नाग जैसा है जिसका सर मध्य में है।
शायद आपने एक अनंत नाम के साँप के बारे में सुना होगा। अनंत मतलब जो अंत-हीन है, जिसका कोई अंत नहीं है। तो एक साँप है जो अनंतकाल को दर्शाता है। इसलिए काल-सर्प अनंत के एक चिह्न के रूप में है, जो नित्यता को दर्शाता है। एक और साँप भी है जिसे शेष नाग कहते हैं।

जब सृष्टि ख़त्म होगी, जब आकाशगंगाएं नष्ट हो जाएँगी, तब सबके नष्ट होने के बाद जो रह जाएगा - वो शेष है। अगर आपने हिंदी भाषा में गणित सीखी है, तब आप समझ पाएँगे की शेष का मतलब होता है बचा हुआ भाग। तो शेष नाग वह है जो पिछले निर्माण से बचा हुआ है।
वो जो बचा हुआ है वो अगले निर्माण का आधार है, क्योंकि उसके पास वह जानकारी है जो अगले निर्माण के लिए चाहिए। जब हम निर्माण की बात करते हैं, तो हमारा मतलब सिर्फ ब्रह्मांड, आकाशगंगा, या ग्रहों से नहीं है - हमारा मतलब है हर चीज़। जिस भी चीज़ का निर्माण हुआ है वो एक समय ख़त्म होती है। उसके बाद जो कुछ जो बच जाता है, वो अगले निर्माण का आधार बनता है। योग विज्ञान के अनुसार, यह 84वां निर्माण है ।
हम इस संख्या तक यह देखकर नहीं पहुँचे हैं कि आकाशगंगाओं और सौर-मंडल में क्या हो रहा है। हमने अपने भीतर देखा है। अपने भीतर झाँककर हम देख सकते हैं कि 84 निर्माणों के अभिलेख मौजूद हैं। हमारे अंदर वो शेष हैं जो हमें याद दिलाते हैं कि 84 निर्माण हो चुके हैं।
और कितने निर्माण हो सकते हैं? 112 तक। उसके बाद निर्माण भौतिक रूप में नहीं होगा बल्कि ऊर्जा रूप में होगा। यह कहने का यही मतलब है कि 112 चक्र ही हैं जो भौतिक रूप ले सकते हैं, बाकी सब ऊपर या शरीर के परे हैं, जिसका मतलब है वो भौतिक प्रकृति से परे हैं। जब भविष्य के निर्माणों की बात आती है, हम सालों, शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों, या लाखों सालों की बात नहीं कर रहे। यह शायद कई अरब साल हैं। जब हम 112 भौतिक निर्माण पूरे कर लेंगे, फिर निर्माण पूरी तरह ऊर्जा के रूप में होगा। सब कुछ ऊर्जा प्रक्रिया से काम करेगा, भौतिक उपस्थिति से नहीं।
इसलिए नाग के ये दो महत्वपूर्ण पहलू हैं - एक काल, उसी में अनंत है। दूसरा है शेष। नाग का तीसरा पहलू भी है जिसे कारकोटक कहते हैं - उसकी बात फिर कभी करेंगे।