साधानापाद

अशांति से स्थिरता की यात्रा – एक सफल डिज़ाइनर जिसने सबकुछ छोड़ दिया

फ़ातिमा रनपुरा, साधनापाद 2022 की एक प्रतिभागी और एक लोकप्रिय फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफ़ॉर्म की भूतपूर्व उपप्रमुख, अपने बचपन से अभी तक की खोजी यात्रा के बारे में बता रही हैं:

फ़ातिमा मुंबई में एक बोहरा मुस्लिम दंपति के घर जन्मीं। दोस्त बनाने की कोई ज़रूरत महसूस न होने के कारण उन्होंने अपना अधिकांश बचपन अकेले ही बिताया। जिन चीजों में उनकी उम्र की लड़कियाँ खोई रहती थीं उन्हें फातिमा ने बचकानी समझकर ख़ारिज कर दिया। बल्कि उन्होंने किताबें पढ़ने और पत्रिकाओं में लेख लिखने में दिलचस्पी दिखाई। फ़ातिमा ऐसे परिवार से आती थीं जहां हर किसी में रचनात्मकता, डिज़ाइन और सौंदर्य-बोध का स्वाभाविक गुण है। ये गुण कई तरीकों से अभिव्यक्त हुए।

वो याद करती हैं, ‘मेरी गर्मी की छुट्टियाँ कुछ न कुछ बनाते हुए बीतती थीं – बैग्स, कपड़े, घर सजाने का सामान आदि। हमने कभी भी बने बनाए कपड़े नहीं खरीदे।’ यहाँ तक कि अभी भी जब वे साधानापाद के लिए सात महीनों के लिए ईशा योग केंद्र आईं, तब उनके लिए एक योग मैट, एक योग मैट बैग और एक लंबी पट्टी वाला बैग (स्लिंग बैग) भी उनकी माँ ने ख़ुद ही सिलकर दिया।

ज्वलंत प्रश्न

अपने हाई स्कूल के पूरे वर्षों में फातिमा हमेशा आगे रहीं चाहे वो पढ़ाई हो या छात्र नेतृत्व। कई चीज़ों को वे हमेशा जानने को उत्सुक थीं और उनके पास ऐसे कई प्रश्न थे जो बच्चों के मन में विरले ही आते हैं। जैसे मृत्यु कैसी होती है? हम यहाँ क्यों हैं? हमें अपनी ज़िन्दगी में क्या करना है? उनके माता पिता धार्मिक नहीं थे और उन्होंने अपनी बेटी पर कोई विश्वास और सिद्धांत नहीं थोपे। परिणामतः उनके ये प्रश्न हाई स्कूल के बाद भी बने रहे और इसी कारण उन्होंने स्नातक के लिए कला संकाय को चुना क्योंकि उसमें दर्शनशास्त्र एक विषय था।

लेकिन दर्शनशास्त्र भी उनकी आध्यात्मिक प्यास को मिटाने में असफल रहा। फिर भी उन्हें अपना विषय पसंद आया और धीरे-धीरे उन्होंने यूजर एक्सपीरियंस डिज़ाइन में अपना करियर बनाने का निश्चय किया क्योंकि उसके लिए जिन चीज़ों की अच्छी समझ की ज़रूरत थी वो उनमें जन्मजात थीं – डिज़ाइन, रचनात्मकता, मानव मनोविज्ञान और व्यापार विश्लेषण।

राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान अहमदाबाद से स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रैजूएशन) पूरा करने के बाद उन्होंने UX डिज़ाइन में सफल करियर बनाया और ‘ड्रीम 11’ जैसे फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लैटफॉर्म में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्य किया।

सद्‌गुरु

2014 में फातिमा अपने कॉलेज के एक पुराने खास दोस्त से मिलीं, जिसमें उन्होंने काफी अंतर महसूस किया। वो बताती हैं, ‘वो लड़का कक्षा में बहुत शोर-शराबा करने वालों में से था। हमेशा ऐसा लगता था कि वो अपने आप को संभाल नहीं पाता था। लेकिन अब उसकी ऊर्जा ने दूसरा रूप ले लिया था। जब फ़ातिमा ने उससे पूछा कि उसे क्या हुआ है तब उस दोस्त ने उन्हें इनर इंजीनियरिंग का ब्रोशर दे दिया। तब उन्होंने पहली बार सद्‌गुरु और ईशा का नाम सुना लेकिन दोबारा सोचे बिना उन्होंने मुंबई में सद्‌गुरु से इनिशिएशन पाने के लिए इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम में साइन–इन कर दिया।

ईशांगा 7% - कृपा का अनुबंध (बॉंड)

तीन महीने तक शाम्भवी महामुद्रा क्रिया का अभ्यास करने के बाद फातिमा ने भाव स्पंदन प्रोग्राम के लिए रजिस्ट्रेशन करवा तो लिया लेकिन वे उसके लिए तैयार नहीं थीं। फातिमा हँसते हुए बताती हैं, ‘मैं बहुत डरी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि क्या हो रहा है। मैं बस उस कमरे से बाहर भाग आना चाहती थी।’ 

हालाँकि उनका भाव स्पंदन प्रोग्राम का अनुभव बहुत अच्छा नहीं था लेकिन प्रोग्राम के दौरान उन्होंने एक ऐसे मौके के बारे में सुना जो उनकी ज़िन्दगी को अकल्पनीय तौर पर बदल देगा: ईशांगा 7% - जो भी आप करते हैं उसमें कृपा को अनुभव करने के लिए सद्‌गुरु के द्वारा दी गई एक गहरी साझेदारी, जिसमें आप अपनी आय का 7% या अधिक ईशा के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में देते हैं।

हालाँकि फ़ातिमा ने हर क्षेत्र में बेहतर किया, चाहे वो पढ़ाई हो, करियर हो या निजी जीवन, फिर भी उन्हें हमेशा लगता था कि कुछ कमी है या वो जो कर रही हैं वो काफ़ी नहीं है। 

‘मैं जो कर रही हूँ क्या उससे दुनिया की मदद हो रही है,’ ऐसे विचार उन्हें हमेशा परेशान करते रहे। उनका 7% ईशांगा बनने का कारण बिलकुल सीधा था, ‘यदि मैं कुछ और नहीं कर सकती तो कम से कम सद्‌गुरु के कामों में योगदान तो दे ही सकती हूँ। मुझे पता है इससे कुछ सार्थक होगा।’ 7% ईशांगा के बारे में उनका अनुभव पूछने पर वे कहती हैं, ‘मैं इसे शब्दों में नहीं बता सकती। इसके बाद मेरा जीवन एक अलग गति से चलने लगा। जिस तरह से चीज़ें होने लगी थीं, मैं विश्वास नहीं कर पा रही थी। जैसे हर चीज़ का ख्याल रखा जा रहा हो।’

अनिश्चितता का स्वागत

2015 में फातिमा ने ईशा फाउंडेशन के ई–मीडिया विभाग के साथ रिमोट वोलेन्टीअरिंग शुरू की। हर सप्ताह के अंत में वे अपने व्यस्त कार्यक्रमों में से ईशा के विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम करने का समय निकाल लेतीं। जैसे-जैसे ईशा से उनका नाता गहरा हुआ ईशा योग केंद्र कोयम्बटूर में उनका आना-जाना बढ़ने लगा। कुछ साल पहले उनकी एक यात्रा के दौरान सद्‌गुरु ने साधानापद कार्यक्रम की घोषणा की। और तब से वे इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए तड़प रही थीं, लेकिन घर का क़र्ज़ और बाकी कठिनाइयों ने उनकी योजना को टाल दिया था।

आख़िरकार साधानापद 2022 के लिए उनकी सहभागिता पक्की होने के बाद फातिमा और उनके पति जीवन के इस अद्भुत अवसर का लाभ उठाकर अपने भीतरी रूपांतरण के लिए तैयार थे। उन्होंने वाइस प्रेसिडेंट के पद से इस्तीफ़ा दिया और उनके पति ने अपने व्यापार को छोड़ दिया कि कुछ बेहतर पा सकें। इस दंपति ने अपना घर छोड़ दिया, अपनी प्यारी बिल्लियों को रिश्तेदारों के यहाँ छोड़ा और अनिश्चितता को गले लगा आगे बढ़ गए। अब वापस लौटने का उनका कोई इरादा नहीं, उनके भविष्य के कोई योजना नहीं, पर ये किसी भी तरह से उनके लिए रुकावट नहीं है।

उन्हें विश्वास है कि जागरुक रहकर लगातार साधना करने से और कार्यक्रम की दिनचर्या को अपनाकर उन्हें उनकी राह मिल जाएगी। और वे तरक़्क़ी कर रही हैं! कार्यक्रम के दूसरे महीने में उन्होंने शक्ति चलन क्रिया सीख ली और शून्य की दीक्षा ले ली, जिसे वे ‘गेम चेंजर’ की तरह बताती हैं क्योंकि यह उनके भीतरी आयाम तक पहुँचने के साथ ही उनके ऊर्जा स्तर को भी बढ़ा रहा है।

वे ख़ुश होकर बताती हैं, ‘हर सुबह साधना पूरी करने के बाद मैं ध्यानलिंग में जाती हूँ और जब बाहर निकलती हूँ तो हर चीज़ को देखते हुए मुझे परम प्रसन्नता का अनुभव होता है मैं चाह कर भी किसी से बात नहीं कर पाती।’

कुछ भी होने की ज़रूरत नहीं

कुछ और अधिक  की उत्कट इच्छा ने फातिमा को अधिकांश जीवन परेशान किया हालाँकि उनके पास लगभग वो सब था जिसकी दूसरे लोग इच्छा करते हैं – एक सफल करियर, एक बहुत अच्छा साथी, एक सहयोगी परिवार लेकिन कहीं गहराई में वे खुश नहीं थीं, कुछ कमी है, कुछ और होना चाहिए,’ उनके मन में हमेशा यही चलता रहता था। साधनापद के माध्यम से वे उस कुछ और अधिक को अनुभव करना चाहती थीं। खैर उनकी वो तीव्र इच्छा पूरी हो गई है लेकिन उस तरह से नहीं जैसा उन्होंने सोच रखा था। 

कार्यक्रम में शामिल होने के बाद उन्होंने ईशा फॉरेस्ट फ्लावर में स्वामी पतंग की साझा की हुई बात पढ़ी जिसमें सद्‌गुरु ने स्वामी से पूछा था (जब स्वामी ईशा योग कार्यक्रम के प्रबंध के अच्छे न होने से दुखी थे), ‘क्या आप कुछ न होने पर भी खुश नहीं हो सकते?’ सद्‌गुरु की इस पैनी बात ने उनके अस्तित्व को छुआ। फातिमा की आँखें भर जाती हैं, यह बताते हुए, ‘तब मुझे ये अहसास हुआ कि सब कुछ बढ़िया है, कुछ भी होने की ज़रुरत नहीं है।’

उन्होंने ई-मीडिया विभाग में अपनी सेवा जारी रखी है और प्रतिदिन एक खुश और जागरुक दुनिया में अपने योगदान से पूर्णता का अनुभव करती हैं। 

कौन सी चीज आपको अपनी मंजिल तक पहुंचाती है

जब उनसे पूछा गया कि क्या आपके पास हमारे पाठकों और साधनापद के अन्य साथियों के लिए कोई सन्देश है तो फातिमा ने तुरंत उत्तर दिया, ‘साधनापद हमारे लिए उपलब्ध कराया गया एक कमाल का अवसर है। आपको बस दिनचर्या का पालन करना है। एक बैठक में स्वामी हर्षा ने कहा था, ‘ये एक रेल की तरह है, आप बस उस पर चढ़ जाते हैं और ये आपको आपकी मंजिल तक ले जाती है।’ तो बस दिनचर्या का पालन कीजिए और आप बिलकुल व्यवस्थित कर दिए जाएंगे।