दासिमय्या एक बहुत अच्छे बुनकर थे। एक बार उन्होंने सुंदर बुनाई वाला एक बहुत बड़ा पगड़ी का कपड़ा बुना, जिसे बुनने में उन्हें महीनों लग गए। फिर वे उसे बाजार ले गए। वो कपड़ा इतना बड़ा और इतना सुन्दर था कि किसी ने उसकी कीमत भी नहीं पूछी – सभी को लगा कि ये बहुत महँगा होगा। वो अपना कपड़ा नहीं बेच पाए। फिर वो अपने सुन्दर कपड़े के साथ वापस आ रहे थे। रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा आदमी बैठा मिला – वो आदमी काँप रहा था। उसने दासिमय्या की और देख कर कहा – “मैं काँप रहा हूँ। क्या तुम मुझे वो कपड़ा दे सकते हो?” दासिमय्याने वो कपड़ा उसे दे दिया। उस आदमी ने वो कपड़ा खोला और उस कपड़े के कई टुकड़े कर दिए। एक टुकड़ा उसने अपने सिर पर बाँधा, दूसरा अपनी छाती पर, दो छोटे टुकड़े अपने पैरों पर, और दो टुकड़े अपने हाथों पर। उसने कपड़े के कई टुकड़े कर दिए और उन्हें पहनकर बैठा गया। दासिमय्या बस देखते रहे।
फिर क्या हुआ? ...आईये, पूरी कहानी सुनते हैं सद्गुरु से।