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आदियोगी शिव और योग का इतिहास

पन्द्रह हज़ार साल से भी कुछ समय पहले, पहले योगी, आदियोगी, ने सप्त ऋषियों को योग विज्ञान में दीक्षित किया।

योग का इतिहास : आदियोगी शिव - पहले योग गुरु


पंद्रह हज़ार वर्ष से भी अधिक समय पूर्व, सभी धर्मों से भी बहुत पहले, पहले योगी, आदियोगी हिमालय में प्रकट हुए।
वे परमानंद में मग्न हो कर नाचने लगते या फिर शांत भाव से स्थिर हो कर बैठ जाते। उस अवस्था में उनकी आँखों से बहते आँसूं ही उनके जीवित होने का एकमात्र लक्ष्ण थे। यह तो साफ़ था कि वह एक ऐसा अनुभव पा रहे थे, जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था। लोग दिलचस्पी लेते हुए उनके आसपास जमा होने लगे किंतु उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया इसलिए धीरे-धीरे भीड़ छँटने लगी। वहाँ सिर्फ 7 गंभीर साधक ही बचे रहे। उन्होंने विनती की, ”कृपया, हम जानना चाहते हैं कि आप क्या जानते हैं?“ उनके आग्रह को देखते हुए, आदियोगी ने उन्हें आरंभिक साधना की दीक्षा दी। उन्होंने पूरे चौरासी वर्षों तक पूरी एकाग्रता से साधना की, और इस दौरान आदियोगी ने उन पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। फिर, दक्षिणायन के प्रारंभ के समय, आदियोगी ने पाया कि वे ज्ञान पुँज की तरह जगमगा रहे थे। पूरे अट्ठाईस दिन तक उनका निरीक्षण करने के बाद, पूर्ण चंद्रमा की रात को उन्होंने अपने आपको प्रथम गुरु या आदि गुरु के रूप में बदल दिया। इस रात को हम आज गुरु पूर्णिमा के नाम से जानते हैं। कांति सरोवर के तट पर, आदियोगी ने अपने पहले सात शिष्यों को योग विज्ञान का प्रतिपादन आरंभ किया। वही सात शिष्य सप्त ऋषि के नाम से जाने जाते हैं।

उन्होंने ऐसे 112 उपाय प्रस्तुत किए, जिनके माध्यम से मनुष्य अपनी सीमाओं से परे जा कर, अपनी अधिकतम संभावना तक पहुँच सकते हैं। आदियोगी ने व्यक्तिगत रूपांतरण के साधन दिए क्योंकि यही संसार के रूपांतरण का एकमात्र उपाय है। उनका बुनियादी संदेश है, "अंदर की ओर मुड़ना" ही मनुष्यों के कल्याण और मुक्ति का इकलौता साधन है।’ अब समय आ गया है कि हम मनुष्य के कल्याण के लिए चेतना संबंधी तकनीकों के साथ काम करें।

एक ऐतिहासिक प्रसंग

“आदियोगी का अस्तित्व सभी धर्मों से पहले का है। उनके उपायों और साधनों की सर्वव्यापकता का उत्सव मनाने के लिए ही, यह 112 फीट ऊँचाई का अद्भुत मुख बनाया गया है।”– सद्गुरु



सद्गुरु आपको इतिहास के उस एक पल का साक्षी बनने का निमंत्रण देते हैं जिसमें ईशा योग केंद्र में आदियोगी की एक अनूठी प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। 112 फीट ऊँचाई की यह अद्भुत और विशाल प्रतिमा उन 112 तरीकों या उपायों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनके बल पर मनुष्य अपनी परम प्रकृति तक जा सकता है। इस महाशिवरात्रि पर, आप आदियोगी को कुछ अर्पित करने का दुर्लभ अवसर पाएँगे। ऐसा करने से, आप उनकी कृपा और एक नए आयाम को उपलब्ध हो जाएंगे। इस दिन, सद्गुरु संसार के सामने, आदियोगी के साथ अपने आत्मीय संबंध को प्रकट करेंगे। आएँ और इस अनंत की कृपा में मग्न हो जाएँ।

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