सद्गुरु: शिव के कई रूप हैं जो मानव मन की कल्पना और कल्पनाओं के परे हर संभावनाओं को समाहित किए हुए है। कुछ उग्र और भयंकर हैं। कुछ गूढ़ हैं। अन्य सुन्दर और आकर्षक हैं। शिशु समान भोलेनाथ से उग्र कालभैरव तक, सुन्दर सोमसुन्दर से भयंकर अघोरी तक- शिव इनसे अछूते रहते हुए भी,हर संभावना को समाहित करते हैं। इन सबमें से पाँच रूप प्रमुख हैं।
शिव के पाँच आधारभूत रूप
योग योग योगेश्वराय
भूत भूत भूतेश्वराय
काल काल कालेश्वराय
शिवशिव सर्वेश्वराय
शंभो शंभो महादेवाय
सद्गुरु : योग के रास्ते पर होने का मतलब है के आप जीवन के उस पड़ाव पहुँच चुके हैं जहाँ आपने भौतिक होने की सीमा को महसूस किया है, आपने भौतिक के परे जाने की ज़रूरत महसूस की है - आप इस विशाल ब्रह्माण्ड को भी सीमित महसूस कर रहे है। आपको यह ज्ञान है की अगर एक छोटी सीमा आप को रोक सकती है तो समय आने पर बड़ी सीमा भी आपको रोक सकती है। ऐसा अनुभव करने के लिए आपको ब्रम्हांड को पार करने की जरूरत नहीं है। यहीं बैठे बैठे अगर यह सीमा आपको रोकती है तो आप ब्रह्माण्ड पार कर लेने पर भी, वो सीमा कुछ समय बाद आपको रोकेगी - प्रश्न केवल आपके उतनी दूर तक जा पाने की योग्यता का है। जब आपकी यात्रा करने की योग्यता बेहतर होगी तो किसी भी प्रकार की सीमा आपके लिए रुकावट की तरह होगी। एक बार आपने इस तृष्णा को अनुभव कर लिया जो भौतिक सृष्टि पर विजय प्राप्त करके भी संतुष्ट नहीं हो सकती है, - तब योग। योग का मतलब है भौतिकता की सीमाओं के पार जाना। आपका प्रयत्न केवल अस्तित्व की भौतिकता पर विजय प्राप्त करना नहीं,बल्कि इसकी सीमाओं को तोड़ कर उस आयाम को छूना जो भौतिकता से परे है। आप सीमित और असीम को जोड़ना चाहते हैं। आप सीमित को अस्तित्व के असीम स्वभाव में विलीन कर देना चाहते हैं - तो योगेश्वर।
भौतिक सृष्टि, हम जो कुछ भी देखते, सुनते, सूंघते, स्वाद लेते और स्पर्श करते हैं- यह पूरा शरीर, ग्रह, अंतरिक्ष, ब्रम्हांड- सब कुछ पाँच तत्वों का केवल एक खेल है सिर्फ़ पाँच तत्वों ने क्या भव्य शरारत रूपी सृष्टि का निर्माण किया है। केवल पाँच तत्वों के साथ जिन्हें आप एक हाथ में गिन सकते हैं, कितनी चीज़ों का निर्माण किया है। सृष्टि इससे अधिक करुणामय नहीं हो सकती थी। अगर यहाँ पाँच मिलियन सामग्रियाँ होती तो आप भटक गये होते।
इन पाँच तत्वों पर विजय हासिल करना, जिन्हें पंच भूत कहते हैं, ही सब कुछ है - हर चीज़ आपका स्वस्थ, आप का कल्याण, संसार में आपकी शक्ति, और जो आप चाहें उसका निर्माण करने की क्षमता। और आप जो चाहें उसे बना सकने की क्षमता। जाने-अनजाने में, सजगता या अचेनता में, कुछ एक लोगों ने इन विभिन्न तत्वों पर कुछ स्तर तक नियंत्रण या अधिकार पाया है। उन्होंने किस हद तक विजय हासिल की है ये उनके शरीर की प्रकृति, उनके मन की प्रकृति, उनके कार्यों की प्रकृति, कितनी सफलता से और अधिक वे इसे कर पाते हैं, वो निर्धारित होता है। भूतेश्वर का मतलब है वो जिसने पंच भूतों पर विजय प्राप्त कर ली है और वह अपने भाग्य को खुद निर्धारित करता है , कम से कम भौतिक रूप में।
काल - समय। फ़र्क़ नहीं पड़ता अगर आपने पंच तत्व पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है, आप सृष्टि के साथ एक हो गए हैं और आपने विलय को समझ लिया है — जब तक आप यहाँ है समय निरंतर चल रहा है। समय को साधना, अपने-आप में एक अलग आयाम है। काल का मतलब सिर्फ़ समय नहीं होता इसका मतलब अंधकार भी होता है। । समय प्रकाश नहीं हो सकता क्योंकि प्रकाश समय में गति करता है। प्रकाश समय का गुलाम है। प्रकाश एक ऐसा तत्व है, जिसका एक आदि और अंत है। समय वैसा तत्व नहीं है हिंदू जीवनशैली के अनुसार, वे समय को विभिन्न छह आयामों के साथ समझते आए हैं। एक चीज जो आपको समझने की ज़रूरत है वह यह के आप का समय निकल रहा है। तमिल में मृत्यु के लिए शब्द है “क़लाम आयितंग” - समय समाप्त हो चुका है।
“वो गुज़र गया” - पूर्व में अंग्रेज़ी भाषा में हम इस तरह की अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते आए हैं। किसी दवा या किसी और वस्तु की तरह इंसान की भी एक्सपायरी डेट होती है। आप यह सोच सकते हैं के अलग-अलग स्थानो पर आ-ज़ा रहे हैं। पर जहाँ तक इस शरीर का सवाल है - बिना एक पल गवाए, यह सिर्फ़ कब्र की ओर ही जा रहा है। आप इसे थोड़ा धीमा ज़रूर कर सकते हैं पर इसकी दिशा नहीं बदल सकते। जैसे आप बड़े हो रहे हैं आप जान पाएँगे के धरती आपको वापिस खिंचने की कोशिश कर रही है। जीवन का एक चक्र पूरा हुआ।
समय जीवन का एक विशेष आयाम है - यह अन्य तीन आयामों के साथ मेल नहीं खाता। और ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं में से, यह सबसे अधिक भटकाने वाला है। आप इसे बाँध नहीं सकते, क्योंकि यह है ही नहीं। अस्तित्व के जितने भी रूप आप जानते हैं , यह उन मे से किसी भी रूप में नहीं है। यह सृष्टि का सबसे शक्तिशाली आयाम है, जो सारे ब्रह्माण्ड को एक साथ थामे रखता है। इसी वजह से आधुनिक भौतिक-विज्ञान समझ नहीं पा रहा है कि गुरुत्वाकर्षण कैसे काम करता है , क्योंकि गुरुत्वाकर्षण है ही नहीं। यह समय है जो सब कुछ थामे हुए है।
शिव का अर्थ है, ‘जो है ही नहीं, जो विलीन हो गया।’ जो अस्तित्व रहित है वही सबका आधार है , और यह असीम सर्वेश्वर है। शंभो केवल एक मार्ग और एक कुँजी है। अगर आप इसका इस तरह से उच्चार कर सकते हैं के आपका शरीर फट पड़े, तो यह एक द्वार बन जाएगा। अगर आप सब पहलुओं पर महारत हासिल कर वहाँ पहुँचना चाहते हैं तो यह काफ़ी समय लेगा। अगर आप सिर्फ़ द्वार का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो आप सभी पहलुओं से पार पा सकते हैं, महारत से नहीं बल्कि चालाकी से द्वार में घुस कर।
जब मैं छोटा था, तो मैसूर के चिड़ियाघर में मेरे कुछ दोस्त थे। रविवार की सुबह का मतलब था कि मेरी जेब में पॉकेट मनी के दो रुपए होते। मैं मछली मार्केट के उस हिस्से में जाता, जहाँ वे आधी सड़ी मछलियाँ रखते थे। कई बार मुझे दो रुपए में दो-तीन किलो मछली मिल जाती थी। मैं उन्हें एक प्लास्टिक के थैले में डाल कर मैसूर के चिड़ियाघर में ले जाता। मेरे पास ज़्यादा पैसे नहीं होते थे। उन दिनों चिड़ियाघर का टिकट एक रुपया था; यह वहाँ जाने का सीधा रास्ता था। वहाँ लगभग दो फीट ऊँचा बैरियर था, अगर आप रेंग सकते तो यह फ़्री था। मुझे रेंग कर जाने में कोई परेशानी नहीं थी। मैं घुटनों के बल होते हुए निकल जाता और सारा दिन अपने दोस्तों को सड़ी मछलियाँ खिलाता।
अगर आप सीधा जाना चाहते हैं तो, यह एक मुश्किल रास्ता है - बहुत काम करने की ज़रूरत है। अगर आप रेंग कर जाना चाहते हैं तो आसान रास्ते हैं। जो रेंग सकते हैं उनको किसी चीज पर महारत हासिल करने की चिंता नहीं होनी चाहिए। जब तक आप ज़िंदा हो - जीवित रहो। जब मृत्यु हो जाए, जाओ और अनंत को छू
साधारण चीज़ों पर भी महारत पाने में भी अपनी ही एक सुदंरता है। उदाहरण के लिए, एक गेंद को लात मारना , यह एक बच्चा भी कर सकता है। पर जब इस पर कोई महारत पा लेता है तो इसमें एक ऐसी सुंदरता आ जाती के आधी दुनिया बैठ कर इसे देखती है। अगर आप महारत को समझना और इसका आनंद लेना चाहते है तो काम करना होगा । परंतु अगर आप रेंग सकते हैं तो यह इतना साधारण है के बस शम्भु ।
शिव हमेशा से ही एक शक्तिशाली हस्ती के रूप में देखे गए हैं और साथ ही, एक ऐसे रूप में जो दुनियाँ की ऊँच-नीच से अनजान हो। इसलिए, शिव का एक रूप भोलेनाथ कहलाता है क्योंकि वो बाल सुलभ है। भोलेनाथ का मतलब है एक सीधा-साधा या एक अनजान भी। आप पाएँगे कि बहुत समझदार लोग बड़ी आसानी से धोखा खा जाते हैं क्योंकि वे बेकार की चोजों में अपना दिमाग नहीं लगाते हैं। एक बहुत निम्न स्तरीय बुद्धि जो कि धूर्त और चालाक हो, दुनिया में आसानी से एक समझदार व्यक्ति को पीछे छोड़ सकती है। वो पैसा और समाज के मामले में कोई मायने रख सकता है पर जीवन के मामले में उसका कोई महत्व नहीं है।
जब हम समझदारी की बात करते हैं, तब हम केवल चतुर बनने की बात नहीं कर रहे हैं। जो आयाम जीवन घटित होने देते हैं उनके पूरे प्रवाह में होने की बात कर रहे हैं। शिव भी ऐसे ही हैं। ऐसा नहीं है कि वो बेवकूफ हैं, लेकिन वो अपनी समझदारी का उपयोग ऐसे बेकार तरीकों में नहीं करते।
नटेश या नटराज, नृत्य के देवता के रूप में शिव, शिव का एक अत्यंत महत्वपूर्ण रूप है। जब मैंने स्वीटजरलैंड में सर्न का दौरा किया, जो कि एक भौतिक प्रयोगशाला है जहाँ अणु- विघटन का कार्य होता है, वहाँ मैंने द्वार के सामने नटराज की प्रतिमा देखी, क्योंकि उन्होंने ये जान लिया था कि वे जो कुछ कर रहे हैं उससे मिलता जुलता मानव संस्कृति में कुछ और है ही नहीं।
नटराज रूप उल्लास और सृजन का नृत्य प्रस्तुत करता है, जो कि अनंत निश्चलता में से अपने आप ही रचित हुआ है। चिदंबरम मंदिर में खड़े नटराज बहुत प्रतीकात्मक हैं, क्योंकि आप जिसे चिदंबरम कहते हैं वो केवल पूर्ण निश्चलता है। यही चीज़ इस मंदिर के रूप में प्रतिष्ठापित है। शास्त्रीय कलाएँ मनुष्यों में इस संपूर्ण स्थिरता को लाने के लिए हैं। स्थिरता के बिना, असली कला नहीं आ सकती है।
आमतौर पर, शिव को पूर्ण पुरूष कहा जाता है, लेकिन अर्धनारीश्वर रूप में, उनका आधा भाग एक पूर्ण विकसित नारी है। ये इसे बताता है कि जब आंतरिक पौरूष और स्त्रैण मिलते हैं तो आप एक सतत परमानंद की स्थिति में होते हैं। अगर आप ये बाहरी रूप से करने का प्रयास करते हैं तो ये कभी नहीं टिकेगा और उसके साथ आने वाली सारी परेशानियां एक चलते रहने वाला नाटक है। पौरुष और स्त्रैण का मतलब आदमी और औरत नहीं हैं। ये विशिष्ठ गुण हैं। वास्तव में ये दो लोगों के मिलन की चाह नहीं है बल्कि जीवन के दो आयामों के मिलने की चाहना है- बाहरी साथ ही साथ आंतरिक रूप में। अगर आपके इसे भीतर प्राप्त कर लिया है तो बाहर यह अपनी इच्छानुरूप 100% होयेगा। नहीं तो, बाहरी एक भयानक बाध्यता रहेगी।
यह प्रतीक ये दिखाने के लिए है कि अगर आप पूर्ण विकसित हो जाते हैं और अपनी परम संभावना को पा लेते हैं, तो आप आधे पुरुष और आधी स्त्री- एक नपुंसक नहीं, बल्कि एक पूर्ण विकसित पुरुष और एक पूर्ण विकसित स्त्री होंगे। तभी आप एक पूर्ण विकसित मनुष्य बन पाएँगे।
कालभैरव शिव का विनाशक रूप है- जब वो समय का नाश करने के अंदाज़ में चले गए थे। भौतिक वास्तविकता समय की सीमा में ही निवास करती है। अगर मैं आपके समय का अंत कर दूं, हर चीज़ समाप्त हो जाएगी।
शिव “ भैरवी यातना” निर्मित करने के लिए यथा अनुरूप वेष धारण कर कालभैरव बन गए।” यातना” यानी परम पीड़ा। जब मृत्यु का क्षण आता है, कई जन्म तीव्र तीक्ष्णता के साथ सक्रीय हो जाते हैं, जितना भी कष्ट और पीड़ा आपको भोगना है, वो एक क्षण में हो जाता है। उसके बाद, आपमें अतीत का कुछ भी शेष नहीं रह जाता है। अपने’ सॉफ़टवेयर’ को नष्ट करना तकलीफदेह है। लेकिन ऐसा मृत्यु के क्षण ऐसा होता है, इसलिए आपके पास कोई उपाय नहीं रहता है। वे इसे ज्यादा से ज्यादा संक्षिप्त बनाने की कोशिश करते हैं, यातना को तुरंत समाप्त होना है। ऐसा तभी होगा जब हम इसे बहुत तीक्ष्ण बना दें। अगर यह हल्का है तो यह लंबे समय तक चलता रहेगा
योग परंपरा में शिव को ईश्वर के रूप में नहीं पूजा जाता है। वे आदियोगी यानी प्रथम योगी और आदिगुरु यानी पहले गुरु हैं, जिनसे योग विज्ञान की शुरुआत हुई। दक्षिणायन की पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा है। इसी समय आदियोगी ने उनके पहले सात शिष्यों, सप्त ऋषियों में इस विज्ञान का संचार प्रारंभ किया।
यह सभी धर्मों से पहले की बात है। लोगों द्वारा मानवता को क्षतिग्रस्त करने वाले तरीके बनाने के पहले ही मानवीय चेतना के उत्थान के सबसे महत्वपूर्ण साधनों का ज्ञान और प्रचार हो चुका था। उनकी संरचना अविश्वसनीय है। यह प्रश्न बेकार है कि उस दौर के लोग क्या वाकई इतने कार्यकुशल थे, क्योंकि यह विज्ञान किसी विशेष सभ्यता या विचारधारा से नहीं आया है। यह आंतरिक जागृति से उत्पन्न हुआ है। यह स्वयं अदियोगी के उद्गार हैं। आप आज भी इनमें से एक भी चीज़ बदल नहीं सकते हैं क्योंकि जो कुछ भी बताने लायक था उसे उन्होंने बड़ी सुन्दरता और बुद्धिमानी के साथ कह दिया है। आप अपना संपूर्ण जीवन केवल उसका अर्थ समझ पाने में बिता सकते हैं।
शिव हमेशा त्रयंबक के रूप में संबोधित किए गए हैं क्योंकि उनका तीसरा नेत्र है। तीसरे नेत्र का मतलब माथे पर दरार होना नहीं है। इसका केवल यह अर्थ है कि उनका ज्ञान अपनी चरम संभावना तक पहुंच चुका है। तृतीय नेत्र ज्ञान का नेत्र है। दो भौतिक आँखे केवल इन्द्रिय अंग हैं। वे मन को हर तरह की बकवास से भर देते हैं क्योंकि आप जो देखते हैं वो सत्य नहीं है। आप इस व्यक्ति या उस व्यक्ति को देखते हैं और उसके बारे में कुछ सोचते हैं, लेकिन आप उसमें खुद शिव को नहीं देख पाते हैं। इसलिए, एक और नेत्र, एक अधिक गहराई से देखनेवाले नेत्र का खुलना जरूरी है।
आपका कोई भी विचार या तर्क ज्ञान आपके दिमाग में स्पष्टता नहीं ला सकता। आपके तर्कों पर आधारित स्पष्टता को कोई भी काट सकता है; कठिन परिस्थितियाँ इसे कभी भी डगमगा सकती हैं। आपके पास अंतर्दृष्टि होने पर ही पूर्ण स्पष्टता आ सकती है।
हम जिसे शिव कहते हैं वो चरम अनुभूति का ही मूर्त रूप हैं। ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि को इसी संदर्भ में मनाया जाता है। यह सबके लिए , अपनी अनुभूति को कम से कम थोड़ा और गहराई से जानने का एक अवसर है। शिव और योग इसी के बारे में है। यह कोई धर्म नहीं है; यह अंतरिक विकास का विज्ञान है।