क्या आप हठ योग के नियमित अभ्यास के लिए प्रेरणा की तलाश में हैं? पारम्परिक योगासनों के उन लाभों के बारे में सद्गुरु बता रहे हैं, जो सामान्य व्यायाम और कसरत से कही ज़्यादा हैं, जिनके बारे में जानकर आप निश्चित तौर पर नियमित योग-अभ्यास के लिए प्रेरित होंगे। जानिए कैसे हठ-योग आपकी जागरूकता बढ़ाता है, शरीर और मन में बेहतर संतुलन लाता है, और आपके परम कल्याण के लिए आपको सक्षम बनाता है।
प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सद्गुरु, क्या आप योगासनों के पीछे छिपे विज्ञान के बारे में कुछ बता सकते हैं ?
सद्गुरु: 'आसन' शब्द का अर्थ है ‘मुद्रा’ यानी शरीर को किसी ख़ास स्थिति में स्थिर रखना। शरीर की प्रत्येक मुद्रा एक आसन ही है। मानव शरीर की गहन और विस्तृत पड़ताल के बाद हमने 84 तरह के योगासन बनाए जिनकी मदद से आप अपने मन और शरीर को अपनी ख़ुशहाली के लिए एक बेहतर संभावना में बदल सकते हैं। इन आसनों की मदद से आपका शरीर एक बाधा नहीं बल्कि आपकी वृद्धि और विकास के लिए एक सीढ़ी बन जाएगा।
जब आप हठ योग करने की कोशिश करते हैं तो आपके शरीर की सीमाएं ही आपके लिए सबसे बड़ी रुकावट बन जाती हैं। इंसान जो कुछ भी करना चाहता है, यह उस सब पर लागू होता है। ये आपके हर काम में सीढ़ी बनने की जगह आपकी सबसे बड़ी रुकावट बन जाते हैं, क्योंकि आपने अपने मन और शरीर को पूरा नहीं खोजा और जाना है।
अगर मैं आपसे सुबह अपने शरीर को खींचने के लिए कहूँ तो आप आराम करना चाहते हैं। अगर आप किसी आसन में बैठे हों और हम आपसे उसे और खिंचाव के साथ बेहतर तरीके से करने के लिए कहें तो आप ये नहीं करना चाहते। लेकिन अगर हम आपसे बिना हिले-डुले स्थिर बैठने के लिए कहें तो आपका शरीर खिंचाव चाहता है। फिर शरीर को भोजन, नींद और मल त्यागने की ज़रूरत होती है – इस तरह इसकी कई ज़रूरतें होती हैं।
आपके भौतिक तंत्र में अंकित जानकारी के अनुसार आपके शरीर में तरह-तरह की बाध्यताएँ लगातार पैदा होती रहती हैं। ये जानकारियां, जिन्हें कार्मिक शरीर कहा जाता है, ये तय करती हैं कि आप किस हद तक अपनी शारीरिक ज़रूरतों की वजह से बाध्य होते हैं और आप अपने अंदर स्वाभाविक रूप से कितने मुक्त और आनंदित रहते हैं।
हठ योग में हमें इस बात से कोई दिलचस्पी नहीं होती कि हमारे पिता या परदादा कौन थे, हमने उनसे किस प्रकार के कार्मिक और आनुवंशिक गुण प्राप्त किए हैं और हमने अपने अब तक के जीवन में क्या कुछ ग्रहण किया है। इस क्षण तक हमारे जीवन में क्या कुछ हुआ इससे कोई मतलब नहीं है - अपने जीवन की डोर अब अपने हाथ में थामने का हमने निश्चय किया है।
भारतीय परंपरा में अगर आप योग का अभ्यास करते हैं तो कोई ज्योतिषी आपके लिए भविष्यवाणी करना नहीं चाहेगा क्योंकि वे जानते हैं कि आपने अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में ले ली है। योगासन का यही मतलब है - अपने जीवन की ज़िम्मेदारी अपने हाथों में लेना। आप अपने शरीर और मन को अपने जीवन में एक सम्भावना के रूप में बदल रहे हैं।
वह प्रत्येक मुद्रा जिसमें आपका शरीर कुछ समय के लिए रहता है, आपके शरीर में ख़ास तरह की शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, रासायनिक और ऊर्जा के स्तर में बदलाव लाती है। दूसरी तरफ़, किसी भी ख़ास भावनात्मक और मानसिक दशा में या चेतना के अलग-अलग स्तरों पर आपका शरीर स्वाभाविक तौर पर एक विशेष मुद्रा में रहना चाहता है।
अगर आप ग़ुस्से में हैं तो आप एक तरह से बैठते हैं, अगर शांत हैं तो आप दूसरी तरह से बैठते हैं। अगर आप बेचैन हैं तो एक अलग तरह से बैठते हैं, अगर आप अपने भीतर से शांत हैं तो अलग तरह से बैठते हैं। इसी तरह विभिन्न स्तर की चेतना जो आप अनुभव करते हैं, आपका शरीर उसी अनुसार कुछ ख़ास तरह की मुद्रा में आने की कोशिश करता है। आसनों का विज्ञान इसी पर आधारित है।
सचेतन होकर अपने शरीर को किसी विशेष मुद्रा में कुछ समय के लिए स्थिर रखकर आप अपनी चेतना को बढ़ा सकते हैं। आप अपने सोचने का ढंग, अपनी भावनाएं, अनुभव और जीवन की समझ को अपने बैठने के तरीके से बदल सकते हैं। अपने शरीर को एक बाध्यकारी स्थिति से निकालकर जागरूक स्थिति में लाना ही योगासन है। जब आपका शरीर एक बाध्यकारी अवस्था में होता है तो आप कुछ विशेष मुद्राओं में नहीं जाना चाहते। जब ये जागरूक अवस्था में है केवल तभी आप उन मुद्राओं में कुछ देर रहकर उनका लाभ उठा सकते हैं।
अपने शरीर को रूपांतरित करने और उसमें अंकित बुनियादी जानकारियों को बदलने के लिए, जिसकी वजह से शरीर कुछ ख़ास बाध्यकारी पैटर्न में उलझा रहता है, दृढ संकल्प, प्रबलता और एक तरह का हठ चाहिए। इसका मतलब है कि आप बाध्यताओं के चक्र में फँसने के लिए तैयार नहीं हैं, बल्कि आप जैसे आगे बढ़ना चाहते हैं, वैसे ही आगे बढ़ते हैं।
'ह' और 'ठ' शब्द सूर्य और चन्द्रमा को दर्शाते हैं। अर्थात् हठ का मतलब है - सूर्य और चन्द्रमा, दोनों में संतुलन। अगर आपके शरीर के ये दो आयाम संतुलन में हैं तो स्वाभाविक रूप से आपका शरीर आपके अस्तित्व के लिए एक अनुकूल स्थान बन जाता है। अगर आप अपने आसपास की जगह को ख़राब कर दें तो आप किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं लेकिन अगर आप अपने शरीर को अंदर से ख़राब कर दें तो आप अपनी मृत्यु तक कहीं और नहीं जा सकते। आप जब तक जीवित हैं, ये शरीर ही आपका एकमात्र निवास स्थान है।
वातावरण का अनुकूल होना ज़रूरी है न कि बाध्यकारी होना। अगर आपका घर बहुत ही बाध्यकारी जगह है तो आप वहाँ घुटन महसूस करेंगे। हरेक स्थिति और वातावरण एक ख़ास मक़सद के लिए तैयार किया जाता है। आपने घर एक ख़ास मक़सद के लिए बनाया है, आश्रम एक अलग मक़सद के लिए बनाया गया है। एक कारोबार या उद्योग का कुछ अलग उद्देश्य होता है। हर जगह का वातावरण ऐसा होना चाहिए जो उसके बनाने के पीछे के मक़सद को पूरा करे।
आपको ये निश्चित करना है कि आपके शरीर को किन उद्देश्यों को पूरा करना है और हम उसके अनुसार आपके लिए सटीक योग बताएँगे। अगर आपके लिए एक खुशहाल जीवन का मतलब दूसरों से हमेशा एक कदम आगे रहना है तो हम एक तरह का योग करेंगे। अगर आप अपनी तुलना दूसरों से नहीं करते, बल्कि अपने कामकाज के क्षेत्र में आप अपनी सम्पूर्ण क्षमता का उपयोग करना चाहते हैं तो आप कुछ अलग तरह का योग करेंगे। अगर आप सृष्टि के परम स्रोत में विलीन हो जाना चाहते हैं तो एक अलग तरह का योग करना होगा। हम कई तरह से योग का अभ्यास कर सकते हैं।
84 मूलभूत योगासन हमारे शरीर को एक मार्ग बनाने के 84 तरीके हैं। दरअसल हर किसी को पूरे 84 योगासन करने की कोई ज़रूरत नहीं है - एक आसन ही काफी है। वे लोग जो हठ योग को अपनी मुक्ति के लिए अपनाते हैं - आमतौर पर केवल एक योगासन की ही साधना करते हैं। एक तार्किक मन के लिए यह समझना मुश्किल होगा कि कोई क्यों अपना पूरा जीवन एक ख़ास मुद्रा में बैठने की कोशिश में लगा देता है।
अगर आप स्थिर होकर बैठना या किसी विशेष मुद्रा में स्थिर रहना सीख जाएँ तो इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ जानने लायक है वह सब आप अपने भीतर जान जाएंगे। इसे आसन सिद्धि कहते हैं। अगर आप एक आसन स्थिर होकर ढाई घंटे तक लगा सकें तो हम कहते हैं कि आपने आसन सिद्धि हासिल कर ली है।
आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि यह कैसे संभव है कि बस एक आसन में रहकर जो भी जानने लायक़ है, सब जान लिया जाए? यह आपके पास किसी टेलीविज़न के होने जैसा है। देखा जाए तो एक टेलीविज़न कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्ज़ों से भरा केवल एक डब्बा है, लेकिन ये डब्बा ख़ुद में एक पूरी दुनिया समेट लेता है, केवल इसलिए क्योंकि यहाँ एक रिसीवर है। अगर आप इस रिसीवर को ठीक तरह से व्यवस्थित करें तो इस टेलीविज़न नामक डब्बे में पूरी दुनिया देखी जा सकती है। अगर रिसीवर ठीक न हो तो यही उपकरण कुछ नहीं कर सकता। यही बात इंसानों पर भी लागू होती है।
एक इंसान जो कुछ भी बनता है वह उसके बोध की वजह से है। आप अभी जो कुछ भी हैं, वह अब तक के अपने बोध की वजह से हैं और आगे भी आप चीजों को उस तरह से ग्रहण करेंगे, जैसा आपका बोध होगा, उसी से तय होगा कि आप कैसे होंगे। योग का पूरा सिस्टम आपके बोध की क्षमता को बढ़ाने के लिए है।
अगर आप कोई आसन बिल्कुल उसकी सही सीध में (अलाइनमेंट) में स्थित होकर लगाते हैं तो ये एक तरह से ब्रह्मांड के अलाइनमेंट के साथ मेल में होगा। 84 आसन 84 अलाइनमेंट्स को दर्शाते हैं क्योंकि यह सृष्टि जिसे हम जानते हैं, वह 84वीं रचना है। इन 84 रचनाओं की याद्दाश्त हमारे शरीर में झलकती है। हम उस याद्दाश्त को मुक्त और सक्रिय करना चाहते हैं।
अगर कोई इन 84 योगासनों की साधना करे या फिर एक आसन की सिद्धि प्राप्त करके बाकी 83 आसनों तक उस एक आसन के ज़रिए पहुंचे तो इस ब्रह्मांड में अब तक जो कुछ भी हुआ है, वो सब कुछ वह जान सकता है क्योंकि उन सारी घटनाओं की यादें उसके सिस्टम में कोडेड है। अगर यह स्मृति किसी के मानवीय तंत्र के बाहर के आयाम को स्पर्श करती है तो यह मुक्त और सक्रिय हो सकती है।
योगासन ब्रह्मांड के साथ संपर्क बनाने का एक बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है। योग का मतलब है मिलन। मिलन मतलब दो का एक हो जाना। बुनियादी तौर पर सृष्टि में केवल 2 ही हैं - आप और बाकी की सृष्टि। आप बाकी की सृष्टि में अलग-अलग इकाइयों की पहचान कर सकते हैं लेकिन वास्तव में केवल 2 ही हैं - आप और बाकी की सृष्टि क्योंकि अनुभव के केवल दो ही आयाम हैं - आतंरिक और बाहरी अनुभव।
योग का मतलब है भीतरी और बाहरी आयामों का मिलन, आपका और संपूर्ण सृष्टि का मिलन, आपका और दूसरे का मिलन। जब कहीं ‘आप’ और ‘दूसरा’ नहीं रह जाता, जब केवल ‘आप’ और ‘आप’ ही रह जाते हैं, उसे योग कहते हैं। इस परम योग तक पहुँचने के लिए योगासन एक भौतिक उपाय है क्योंकि हमारे लिए भौतिक शरीर के साथ काम करना सरल है।
अगर आप अपने मन के ज़रिए इस मिलन तक पहुंचने की कोशिश करेंगे तो यह कई तरह के भ्रम पैदा करेगा लेकिन जब शरीर की बात आती है तो आप समझ जाएंगे कि ये ठीक से हो रहा है या नहीं, ये सहयोग कर रहा है या नहीं। अगर आप अपने मन पर दबाव डालेंगे तो यह आपको कई तरह की चीजों पर आपको यक़ीन दिला देगा और अगले ही दिन आपको गड्ढे में गिरा देगा। शरीर इससे कहीं ज़्यादा भरोसेमंद है। अगर आप इसके साथ समझदारी से काम करें तो योगासन आपको निश्चित रूप से परम योग तक पहुंचा सकता है।
जब परम के साथ अलाइनमेंट नहीं हो, तो योग साधना से आपका भीतरी अलाइनमेंट ठीक हो सकता है, जिससे आपके अंदर स्वास्थ्य, ख़ुशी, आनंद और सबसे बढ़कर संतुलन के रसायन सक्रिय होंगे। हमारे आधुनिक समाज ने संतुलन के महत्व को नज़रअंदाज़ किया है और वे इसकी भारी क़ीमत चुका रहे हैं। कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप कितने बुद्धिमान, कुशल, शिक्षित और योग्य हैं, अगर आपमें ज़रूरी संतुलन नहीं होगा तो आप सफल नहीं होंगे। संतुलन के अभाव में आप जीवन में ज़्यादा दूर तक नहीं जा पाएंगे।
किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण संतुलन है। अगर आपमें ऐसा संतुलन है जो बाहरी परिस्थितियों से डगमगाता नहीं है, केवल तभी आप अपनी योग्यता और बुद्धि को अपने अनुकूल इस्तेमाल कर सकते हैं। नहीं तो सबसे अद्भुत गुण भी जरूरी संतुलन के अभाव में बेकार चला जाता है। हठ योग यही संतुलन लाता है।