दुनिया के अलग-अलग इलाक़े में घूमना हो या अपने कार्यक्रमों में एकदम सही समय पर पहुँचना हो, सद्गुरु अपने जीवन की लगाम अपने हाथों में रखते हैं। वे बता रहे हैं कि वे गाड़ी ख़ुद से चलाना क्यों पसंद करते हैं और कैसे ये चीजें जीवन को पूर्णता में जीने में मददगार हो सकती हैं। वे इस भ्रम को भी दूर कर रहे हैं कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति को विनम्र और निष्क्रिय होना चाहिए।
प्रश्नकर्ता: सद्गुरु मैंने आपको हमेशा गाड़ी में चालक की सीट पर देखा है। जब आपके पास करने के लिए इतना सारा काम है, तो सुरक्षित पहुँचने के लिए आप ख़ुद गाड़ी चलाने के बजाय एक ड्राइवर क्यों नही रख लेते?
सद्गुरु: दिक़्क़त ये है कि मुझे शायद ही कोई ऐसा ड्राइवर दिखता है जो मुझसे अच्छी गाड़ी चलाता हो। आम तौर पर दुनिया भर में लगभग सभी जगह मैं खुद ही गाड़ी चलाता हूँ। लोग अक्सर पूछते हैं, ‘एक देश में बाईं तरफ गाड़ी चलाई जाती है तो दूसरे देश में दाईं, तो इससे आप कभी भ्रमित नहीं होते?’ समस्या क्या है? क्या मैं दायाँ-बायाँ नहीं जानता? इस तरह की समस्या लोगों के साथ होती है क्योंकि वे अपने जीवन को पहले से तय पैटर्न के अनुसार चलाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि आप पैटर्न पहले से तय करते हैं तो कुछ चीज़ें अपने आप मशीनी तरीक़े से घटित होने लगती हैं।
लेकिन हमारा जीवन छोटा है। यहाँ तक कि अगर हम 100 साल भी जीते हैं तो मानवीय क्षमता के पूरी तरह प्रकट होने के लिए यह बहुत छोटा है। ये बहुत ज़रूरी है कि जहाँ तक संभव हो आप अपने जीवन का हर आयाम खुद से तय करें, यहाँ तक कि जिन्हें ‘अनैच्छिक’ कहा जाता है वह भी। योग का अर्थ है बहुत सारी अनैच्छिक चीज़ों को अपनी इच्छा से चलाना। ये योगी होने का गौरव है। तो विचार ये है कि जीवन को जितना हो सके उतनी गहनता से जीएँ और अनुभव करें क्योंकि यह एक बहुत छोटी घटना है।
यदि आप बहुत खुश और परमानन्द में हैं तो 100 साल 10 दिनों की तरह निकल जाएँगे। लेकिन यदि आप परेशान हैं तो एक-एक दिन 100 सालों की तरह बीतेगा। केवल परेशान लोगों की ज़िन्दगी ही लम्बी होती है। यदि आप खुश हैं तो इससे पहले कि आप जान पाएँ कि हुआ क्या है, ये बीत जाएगा।
ये बहुत ज़रूरी है कि जहाँ तक संभव हो आप अपने जीवन का हर आयाम खुद से तय करें, यहाँ तक कि जिन्हें ‘अनैच्छिक’ कहा जाता है वह भी।
बहुत सारी चीज़ें हैं जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। एक बार कुछ ऐसे ही हालात से सामना हुआ था जब मैं चेन्नई में एक कांफ्रेंस के लिए जा रहा था। वह किसी दूसरे की कार थी और उनका ड्राइवर उसे चला रहा था। मैं नहीं कहना चाहता था कि मैं चलाऊंगा, इसलिए मैं पिछली सीट पर बैठ गया। लेकिन वह ड्राइवर धीमी गति से चल रहा था, शायद उसे डर था कि कहीं इतनी महंगी गाड़ी में खरोंच न आ जाए।
इन 40 सालों में मैं एक भी कार्यक्रम में देर से नहीं पहुंचा हूँ। लेकिन उस समय वक्त गुजरता जा रहा था और वह इंसान अपनी ही रफ़्तार से चलाए जा रहा था। जैसे ही ट्रैफिक सिग्नल आया, मैं गाड़ी से उतर पड़ा, ड्राइवर का दरवाज़ा खोला और उससे पीछे बैठने को कहा। और फिर मैंने खुद गाड़ी चलाई।
मुंबई धमाके के बाद हर होटल में सुरक्षा व्यवस्था होती है। सुरक्षा कर्मियों में से अधिकांश यह भी नहीं जानते कि वे ढूंढ क्या रहे हैं। वे चारों और देखते हैं एक आइना दिखाते हैं और जाने देते हैं। मेरे सामने एक कार अंदर गई और इससे पहले कि गेट बंद होता मैंने तेज़ी से अपनी कार अंदर घुसा दी। सुरक्षा कर्मचारी पागलों की तरह सीटी बजाने लगे और इधर-उधर भागने लगे। मैंने होटल के पोर्टिको में जाकर गाड़ी रोकी और कांफ्रेंस में भागा। मैं ठीक ऐन वक्त पर पहुँच गया था और फिर एक डेढ़ घंटे तक मैंने बोला।
जब मैं होटल में अन्दर भाग रहा था तो मैंने देखा कि कुछ पत्रकार वहाँ खड़े थे। जब मैं लौटा तो वे वहीं इंतज़ार कर रहे थे। वे बोले, ‘प्राचीन समय में योगी पैदल चलते थे अब आप अपनी गाड़ी खुद चलाते हैं!’ मैंने उत्तर दिया, ‘प्राचीन समय में हर कोई पैदल चलता था तो योगी दूसरे लोगों से थोड़ा बेहतर पैदल चलते थे। अब हर कोई गाड़ी चलाता है तो योगी उनसे बेहतर गाड़ी चलाते हैं।’
ऐसे सवाल उठते हैं क्योंकि पिछले 200-300 सालों में हमने कुछ ऐसी छवि बना रखी है कि आध्यात्मिकता एक तरह की अक्षमता है। बस यदि एक विशेष तरीके से बैठते हैं तो क्या आप आध्यात्मिक हो जाते हैं? अगर आप इस देश के इतिहास को देखें तो आप पाएंगे कि वे लोग जिन्हें आप पूजते हैं चाहे वे राम हों, कृष्ण हों, शिव हों, साधु हों या संत हों – वे सभी युद्ध तक के लिए तैयार थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उन दिनों युद्ध जीवन का हिस्सा था। ध्यान रखिए, आध्यात्मिकता किसी तरह की अक्षमता नहीं है, बल्कि ये सबसे ऊँचे दर्जे की क्षमता है जो एक मानव पा सकता है।