क्या आप परम मुक्ति की खोज में हैं? सद्गुरु बताते हैं कि मोक्ष यानी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति केवल तभी संभव है जब हमने जीवन के सम्पूर्ण विस्तार को देख और अनुभव कर लिया हो और अब हम वास्तव में उन सबसे मुक्ति चाहते हैं। जानिए कि पतंजलि के योग-सूत्र की सही समझ और हमारा दृढ निश्चय जीवन मुक्ति पाने में कैसे हमारी मदद कर सकता है।
प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, मुझे मोक्ष कैसे मिल सकता है?
सद्गुरु: मोक्ष का अर्थ है परम मुक्ति - जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति। क्या आप इस चक्र से मुक्त होना चाहते हैं? परम मुक्ति की चाह होने के लिए ज़रूरी है कि आपने पर्याप्त रूप से जीवन देखा हो, जीवन के सारे उतार-चढ़ाव आपने देखे हों। अगर आपने जीवन का सम्पूर्ण विस्तार देखा और अनुभव किया है तो उसके बाद चाहत पैदा होती है कि जीवन और मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए मुक्ति चाहिए, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
तो सवाल है कि परम मुक्ति पाएँ कैसे? अगर आपने एक बार मेरे साथ बैठने की भूल कर दी, तो मोक्ष का बीज आपमें रोप दिया जाता है। और फिर चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं, ये आपको उसी दिशा में निरंतर धकेलते रहता है। आपको सेहत, शांति, सफलता और खुशहाली दिलाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। आपका शरीर और मन यदि ठीक तरह से काम करें तो ये चीजें उसका स्वाभाविक परिणाम हो सकती हैं, लेकिन मेरा मक़सद ये नहीं है।
मेरा उद्देश्य आपको परम तक पहुंचाने का है। जब ये घटित होना शुरू हो जाता है तो बाकी सारे काम भी स्वाभाविक रूप से बेहतर होने लगते हैं। ये केवल ऊपरी लाभ हैं जिनका इस्तेमाल हम मार्केटिंग के लिए करते हैं, क्योंकि लोगों को आजकल यही सब चाहिए। वे इस बात को नहीं समझते कि जीवन में सब कुछ परफ़ेक्ट होने के बावजूद भी वे असंतुष्ट रहेंगे। उन्हें इस समझ तक पहुँचने के लिए जीवन की अनेक विविधताओं से गुजरने की ज़रूरत है।
पतंजलि ने लगभग 200 योग-सूत्र लिखे हैं। जीवन के बारे में जो कुछ भी कहा जा सकता है, वह योग-सूत्र में अभिव्यक्त है। लेकिन उन्हें इस तरह से लिखा गया है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति योग-सूत्र को कभी नहीं समझ सकता। कई लोगों ने योग-सूत्र की अपनी समझ के अनुसार व्याख्या की है।
विद्वान कभी योग-सूत्र नहीं समझ सकते क्योंकि योग-सूत्र अध्ययन के लिए नहीं हैं। योग-सूत्र इसलिए बनाए गए हैं कि आप धीरे-धीरे उन्हें अपने भीतर उतार सकें। आपको पूरे योग-सूत्र का अध्ययन करने की ज़रूरत नहीं है, बस केवल एक को पढ़कर आप पूरे जीवन उसकी साधना कीजिए। यह एक सूत्र (फार्मूला) है। आपको इसे हक़ीक़त में बदलने के लिए पूरा जीवन लग सकता है।
योग-सूत्र जैसी अद्भुत महत्व की किताब एक आधे वाक्य से शुरू होती है – ‘और अब, योग,’ इसका क्या अर्थ है? आपने ख़ुद को पूर्ण करने के लिए हर चीज से कोशिश कर ली- संपत्ति, पैसा, सेक्स, ड्रग्स और जो कुछ भी संभव था। इन चीजों ने आपको सुख, मज़ा, संतुष्टि तो दिया लेकिन फिर भी पूर्णता हासिल नहीं हुई और आपको महसूस हुआ कि कुछ भी वास्तव में काम नहीं करता। एक बार आपने ये जान लिया, उसके बाद ‘और अब, योग।’
अगर आपको अभी भी लगता है कि एक नई गाड़ी या एक नया साथी ढूँढ लेने से सब कुछ ठीक हो जाएगा तो अभी योग के लिए आपका समय नहीं हुआ है। जब आपने सब कुछ जांच-परख लिया और आपने जान लिया कि कुछ भी वास्तव में काम नहीं करता, तो ‘और अब, योग।’ क्या आपको इस बात का एहसास हो गया है? नहीं तो ये सारी बकवास कि योग से आपका पीठदर्द और सिरदर्द ठीक हो जाएगा, इससे आपकी याद्दाश्त और एकाग्रता मज़बूत होगी, इससे आप बेहतर कार्य कर पाएंगे और तनावमुक्त रहेंगे - ये सब केवल मार्केटिंग है।
प्रश्नकर्ता: अगर किसी कारणवश मैं इस जन्म में मोक्ष प्राप्त न कर सकूँ तो क्या आप अगले जन्म में इस रास्ते पर आगे बढ़ने में मेरी मदद करेंगे?
सद्गुरु: मैंने पहले ही बता दिया है, अगले जन्म में मैं नहीं आने वाला हूँ। अगर आप स्कूल में, मान लीजिए तीसरी कक्षा में होते और आप अगले साल के लिए सोचते, ‘अगर अगले साल भी मैं इसी कक्षा में रहूँ तो क्या आप मेरी क्लास-टीचर बनेंगी?’ तो टीचर चाहे जो भी हो, उनका काम बेकार जाएगा। आपको अपने मन में ये स्पष्ट करना होगा कि यह जीवन अनमोल है। इस कल्पना को भूल जाइए कि कोई दूसरा जन्म या स्वर्ग होता है।
अभी आपके पास यह जीवन है। इसे सबसे ऊँचे शिखर तक कैसे ले जाएँ? ब्रह्माण्ड में ख़ुद आपको छोड़कर ऐसा कुछ नहीं जो आपको रोक पाए। केवल आपके इरादे में कमी ही आपको रोक सकती है। इस मामले में हम आने वाले सालों में सामाजिक स्तर पर जागरूकता फ़ैलाने वाले हैं।
हमारी टीम ज़रूरी सॉफ्टवेयर, आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर आदि तैयार करने में जुटी हुई है। हम इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम को दुनिया भर में उपलब्ध कराने वाले हैं। ‘जागरूक धरती अभियान’ की तरफ ये हमारा महत्वपूर्ण कदम होगा। जब मैं पूरी धरती को जागरूक बनाने के लिए सोच रहा हूँ तो आपको अपना मन बना लेना चाहिए कि कोई दूसरा मौका नहीं है – जो है बस यही है।
गौतम बुद्ध ने 8 वर्ष तक कठोर साधना की। उन्होंने कई दिनों या महीनों तक भोजन नहीं किया और उनका शरीर काफी कमजोर हो गया। एक पूर्णिमा की रात जिसे अब बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, वे किसी पेड़ के नीचे बैठ गए। उन्हें बहुत ज्ञान था लेकिन उन्हें पता था कि वे अभी भी मुक्त नहीं हुए हैं। वे यह ठानकर पेड़ के नीचे बैठ गए कि या तो आत्मज्ञान हासिल करेंगे या इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे। उसके बाद आत्मज्ञान प्राप्त करने में उन्हें बस कुछ क्षण लगे। तो इसमें इतना समय क्यों लगता है – ऐसा केवल पक्के इरादे का न होने के कारण होता है।
कई बार अच्छे इरादे लेकर भी हमें झूठ बोलना पड़ता है। जैसे कि अगर कोई मरने वाला हो और उसे ये डर लग रहा हो कि मरने के बाद वो कहाँ जाएगा तो लोग उससे कहते हैं, ‘चिंता मत करो, तुम मरकर स्वर्ग में भगवान के पास जाओगे।’ इसी आधार पर लोग कई दूसरी कहानियां लेकर आए और इस तस्वीर में और रंग डाला। किसी मुश्किल में पड़े इंसान को या फिर किसी बच्चे को आप जो कहते हैं जरूरी नहीं कि वह दूसरों के लिए भी सही हो।
अगर कोई मुश्किल में, पीड़ा में या दुखी हो तो आप उसे दिलासा देने के लिए जो बातें कहते हैं, हो सकता है वह सत्य न हो। इसके पीछे आपका इरादा उन्हें शांत करने का होता है, क्योंकि उन्हें उस समय सांत्वना की ज़रूरत होती है, किसी ज्ञान की नहीं। आप किसी बच्चे से या किसी दुखी व्यक्ति से मीठी-मीठी बातें करते हैं क्योंकि उन्हें इसकी ज़रूरत है। बाकी लोगों के लिए ये जरूरी है कि आप उनकी आंखें खोलें। अगर आपको उनके सर पर ठोकर भी मारनी पड़े तो आपको वो भी करना पड़ेगा।
गौतम जब पक्के इरादे के साथ बैठ गए तो उन्हें बस कुछ पल लगे आत्मज्ञान प्राप्त करने में। इसके पहले उन्होंने 8 साल व्यर्थ गँवा दिए क्योंकि उन्होंने इसे एक मार्ग समझा। मार्ग का मतलब है कि कुछ दूरी है और आपको नहीं पता कि ये दूरी कितनी लम्बी है। शून्य की ओर जाने वाला मार्ग एक अंतहीन मार्ग है। यह एक भीतरी मार्ग है। आपके अस्तित्व और आपके बीच में कैसी दूरी?
अगर दूरी है तो समय, प्रयास और ईंधन की आवश्यकता है। अगर कोई दूरी नहीं है तो आपको केवल भीतर मुड़कर देखना है। आपको लगता है कि जीवन कहीं और है। एक बार आप समझ जाएँ कि जीवन यहीं है - आपके भीतर, तो काम हो गया। तो क्यों आत्मज्ञान प्राप्त नहीं होता? क्योंकि यह आपकी सबसे पहली प्राथमिकता नहीं है। ‘मुझे भी आत्मज्ञान चाहिए सद्गुरु, लेकिन आज मेरा जन्मदिन है। मैं कल आत्मज्ञानी बनूँगा।’
आप अपने जीवन को कैसे चलाते हैं, यह उस समय की ज़रूरतों के अनुसार तय होना चाहिए, लेकिन इन ज़रूरतों को आपकी प्राथमिकताएं तय नहीं करनी चाहिए। एक बार आपने अपनी बुनियादी प्राथमिकता तय कर ली, उसके बाद आप समय की ज़रूरतों के अनुसार बाकी काम कर सकते हैं। इस संस्कृति में हमारे महानतम गुरु चुपचाप किसी गुफा में या किसी निर्जन स्थान पर नहीं बैठे थे, वे युद्धक्षेत्र में थे।
एक आध्यात्मिक व्यक्ति एक युद्ध में भाग क्यों लेगा? क्योंकि उस समय की वही आवश्यकता थी। अगर उनके पास कोई विकल्प होता तो वे ऐसा नहीं करते। लेकिन जब कोई विकल्प नहीं था तब उन्होंने ऐसा किया और अपनी पूरी शिद्दत से किया, जैसे कि करना चाहिए था। तो ये आपके कार्यों से हासिल नहीं होगा, आपके इरादों और इच्छाशक्ति से होगा। अगर आपका इरादा पक्का है तो आपको अगले जन्म के बारे में सोचने की क्या ज़रूरत है?