धरती माँ

माँ हो या धरती माँ – किसी का प्रेम बिना शर्त नहीं होता

जब हम धरती को अपनी माँ कहकर बुलाते हैं तो हम उसके शोषण को कैसे स्वीकार कर सकते हैं? मशहूर गायिका नीति मोहन ने एक माँ के नज़रिए से जब ये सवाल पूछा तब सद्‌गुरु ने एक मजेदार कहानी और वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि के ज़रिए जीवन के दिलचस्प चक्र और पृथ्वी पर मिट्टी को बचाने की ज़रूरत पर प्रकाश डाला।

नीति मोहन: सद्‌गुरु, जब से मैं माँ बनी हूँ मुझे लगता है कि मैं धरती माँ के साथ, बहुत सारी चीज़ों के साथ, जीवन के साथ, सहज-बोध से जुड़ पा रही हूँ। साथ ही एक माँ के रूप में मुझे ख़ुद से बहुत सारी उम्मीदें हैं और धरती माँ से भी बहुत सारी उम्मीदें हैं। हम उनका इस्तेमाल किए जा रहे हैं और फिर भी ये सोचते हैं कि वे हमें बिना शर्त प्यार देती रहेंगी।

लेकिन मैं एक माँ के रूप में कहीं न कहीं खुद को ख़ाली पाती हूँ और मुझे विश्वास है धरती माँ को भी यह ख़ालीपन महसूस होता होगा। मैं इस बारे में आपके विचार जानना चाहती हूँ।

प्रेम और सीमाएं

सद्‌गुरु: न तो हमारी माँ का हमारे लिए प्रेम, और न ही धरती माँ की हमारे लिए करुणा शर्त-रहित है। हाँ दूसरे रिश्तों की अपेक्षा इस रिश्ते में बहुत ही कम शर्तें हैं पर शर्ते तब भी हैं। कुछ भी शर्त-रहित नहीं है। हम ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते कि हमारा जो मन आएगा वो हम करेंगे फिर भी ये धरती या हमारी माँ हमारी देखभाल करती रहेगी। हमारी माँ और धरती माँ दोनों की ही सीमाएं हैं। यदि हम जीवन को और उसके सूक्ष्म पहलुओं को महत्व देते हैं तो हमें इस सीमा को पार नहीं करना चाहिए।

न तो हमारी माँ का हमारे लिए प्रेम, और न ही धरती माँ की हमारे लिए करुणा शर्त-रहित है।

जब हम यहाँ बैठते हैं तो हम अपने आप में पूर्ण हैं। जब हम बड़े और ताकतवर हो जाते हैं तो ऐसा लग सकता है कि हमें किसी की ज़रूरत नहीं है, लेकिन हम दूसरे इंसान से जन्मे हैं। हो सकता है कि अब ये कल्पना करना बहुत कठिन हो कि तब हम कितने बेबस थे। यदि हमारी माँ ने उस समय हमें फेंक दिया होता तो हम ख़त्म हो गए होते। आज हम अपने पैरों पर खड़े हैं और कई चीज़ें करने में सक्षम हैं लेकिन इसके पीछे वही आधार है जिसने हमें यहाँ तक पहुँचाया है जहां हम आज हैं। ये आपकी माँ के लिए भी है, मिट्टी के लिए भी और धरती के लिए भी। अब चाहे आप अंतरिक्ष में उड़ान भर रहे हैं लेकिन अन्तरिक्ष यान को तैयार करने का सामान इस धरती से ही निकाला गया है।

वैज्ञानिकों की ईश्वर को चुनौती

मैं आपको एक चुटकुला सुनाता हूँ। सन् 2060 में एक दिन वैज्ञानिकों ने ईश्वर से मिलने का समय माँगा। उन्हें समय मिल गया और वे वहां गए और ईश्वर से बोले, ‘हे बुजुर्ग आदमी, आपने बहुत अच्छी प्रकृति बनाई और सारे काम किए। लेकिन जो कुछ भी आपने किया है अब हम भी उसे कर सकते हैं। तो अब आपके रिटायर होने का समय आ गया है।’

ईश्वर ने उन्हें देखा और कहा ‘ओह! क्या सचमुच ऐसा है? ऐसा तुम क्या कर सकते हो?’

वैज्ञानिकों ने कुछ मिट्टी खोदी, एक बच्चे का आकार बनाया और कुछ चीज़ें कीं और कुछ ही मिनटों में बच्चा  जिंदा हो गया।

ईश्वर ने देखा और कहा, ‘बहुत अच्छा किया है। लेकिन सबसे पहले अपनी खुद की मिट्टी तो लाओ।’

पृथ्वी पर जीवन का स्रोत

मिट्टी सबसे जादुई पदार्थ है, न केवल पृथ्वी पर बल्कि पूरे ब्रह्मांड में। इससे ही कीट-पतंगे, पेड़, पशु, पक्षी और मनुष्य बने हैं। ये ब्रह्मांड की एक मात्र जगह है जिसमें यदि आप मृत्यु बोते हैं तो इसमें से जीवन उगेगा। यदि आप कुछ मरा हुआ दफनाएंगे तो उसके पास ही जीवन को उगते देखेंगे।

ये जो हमारा शरीर है ये वही मिट्टी है जिस पर हम चल रहे हैं। यहाँ तक कि यदि आप जीवन में कुछ भी महत्वपूर्ण या पर्यावरण के लिए बेहतर नहीं करते, आप फिर भी एक काम पर्यावरण के अनुकूल कर सकते हैं - जब मरते हैं तो शरीर को वापस इस मिट्टी में डाल दें। आपको इसे अंतरिक्ष में या किसी धातु के डब्बे में नहीं छोड़ देना चाहिए। ये शरीर मिट्टी से ही आया है और इसे वापस मिट्टी में ही चले जाना चाहिए।

ये कोई दर्शन नहीं है - इस धरती पर जीवन एक कार्बन-चक्र है। जलवायु के लिए ऑनलाइन काम करने वाले कुछ योद्धा कार्बन को विष समझ रहे हैं। जबकि मैं और आप, एक पेड़ – सारा जीवन कार्बन से ही बना है। जीवन को घटित होने के लिए कार्बन-चक्र ज़रूरी है।

मिट्टी सबसे जादुई पदार्थ है, न केवल पृथ्वी पर बल्कि पूरे ब्रह्मांड में।

इस धरती पर कार्बन का स्रोत क्या है? वो क्या है जो इस चक्र को शुरू करता है और इसे बनाए रखता है? वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि करीब 3 अरब साल पहले एक कोशिकीय जीवन पनपा और धीरे-धीरे शैवाल, कवक आदि में बदला। फिर कोई बैक्टीरिया सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके ऊर्जा, भोजन और जीवन बनाने वाला इस धरती का पहला जीवन बना।

यहीं से प्रकाश-संश्लेषण या फोटोसिंथेसिस की शुरुआत हुई। ये प्रक्रिया आस-पास से कार्बन लेकर इसे कार्बन शर्करा में बदल देती है। ये सूक्ष्म जीवन के बीच सतत और जटिल लेन-देन प्रक्रिया का निर्माण करती है। इस ग्रह पर मिट्टी की ऊपरी 15-20 इंच की परत किसी भी दूरसंचार या स्टॉक एक्सचेंज से कहीं ज्यादा जटिल और गूढ़ है।

जीवन का कार्बन चक्र

आज ये जानी हुई बात है कि आप पेट के माइक्रोबायोम (सूक्ष्म-जीव) की मदद के बिना खाए गए भोजन को पचा नहीं सकते हैं। आपके शरीर का मात्र 40% ही आपके माता पिता से प्राप्त आनुवंशिक है, बाकि लगभग 60% सूक्ष्म-जीव कोशिकाएं हैं। हमारा जीवन मिट्टी में हो रही घटनाओं का परिणाम है। इस कार्बन श्रृंखला में हम मात्र एक कड़ी हैं और मिट्टी एक मजबूत कड़ी है। यदि आप एक कड़ी तोड़ते हैं श्रृंखला टूट जाएगी। यही है जो अभी मिट्टी के साथ हो रहा है।

हमारा जीवन मिट्टी में हो रही घटनाओं का परिणाम है।

हमने जब मिट्टी के बारे में बात करनी शुरू की थी उससे पहले अधिकाँश लोग इस बात से बेखबर थे। चाहे वो ‘प्रोजेक्ट ग्रीन हैंड्स’ रहा हो, ‘रैली फॉर रिवर्स’ रहा हो या ‘कावेरी कॉलिंग’ हो, ये सब मिट्टी के बारे में ही थे। हम पानी के बारे में पहले बात इसलिए कर रहे थे क्योंकि आप उससे आसानी से जुड़ सकते हैं।

उदाहरण के लिए ईशा योग केंद्र के पास नदी अब भी बह रही है, जबकि दो-ढाई महीने से बारिश नहीं हुई है। ये कैसे संभव है? इस पर्वत पर कोई ग्लेशियर भी नहीं है जो धीरे-धीरे पिघल रहा हो। पानी कहाँ से आ रहा है? ऐसा इसलिए है क्योंकि पर्वत के ऊपर की मिट्टी में 60-70% जैविक तत्व हैं। ये पूरे साल के लिए पानी को सोखने और धीरे-धीरे उसे छोड़ने के लिए मिट्टी को सक्षम बनाते हैं।

अभी कदम उठाना बेहद आवश्यक है

हमारे देश में खेती की मिट्टी की स्थिति ऐसी है कि 62% मिट्टी में 0.5% से भी कम जैविक तत्व हैं। इसका अर्थ ये है कि हमारी खेती वाली ज़मीन रेगिस्तान बनने की कगार पर है। यहाँ तक कि दक्षिण यूरोप में यह लगभग 1.2% है और उत्तरी यूरोप में ये 2% है। अमेरिका में ऐसा अनुमान लगाया गया है कि लगभग 50% ऊपरी मिट्टी ख़त्म हो चुकी है।

हमारी खेती वाली ज़मीन रेगिस्तान बनने की कगार पर है।

हमारे भोजन में 1920 से अब तक पोषक तत्व 70-90% कम हो गए हैं। मिट्टी की ये हालत कोई मज़ाक नहीं है और न ही ये बहुत दूर की बात है। अगर हम अभी 10-15 सालों में सही चीज़ें करते हैं तो हम इस हालत को काफ़ी हद तक बदल सकते हैं।

ये इस पीढ़ी के लिए एक चुनौती, ज़िम्मेदारी और सौभाग्य है कि हम हालात को सच में पलट सकते हैं। अभी पृथ्वी पर हर साल औसतन 27000 माइक्रोब्स (सूक्ष्मजीवों) की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। इस दर से 30-40 सालों में हम एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाएँगे जहाँ अगर हम मिट्टी को पुनर्जीवित करने का प्रयास करेंगे तो ये 150 – 200 साल लेगा। अभी हम समय के बहुत निर्णायक पड़ाव पर हैं, यदि हम अभी कदम उठाते हैं तो 15-20 सालों में हम एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। हम इसे और नहीं टाल सकते। इसे अभी ही करना होगा।