जागरूक जीवन

एक माँ और एक सैनिक की भूमिका में कैसे बनाएँ संतुलन?

दुनिया की उन सभी माताओं के लिए, जिनके ऊपर परिवार का ध्यान रखने और उनके भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी है, सद्‌गुरु यहाँ बहुमूल्य अंतदृष्टि दे रहे हैं कि कैसे अपने अंदर पुरुष-गुण और स्त्री-गुण का संतुलन बैठाया जाए जिससे ज़रूरत पड़ने पर एक स्नेहमयी माता और एक सैनिक, दोनों की भूमिका निभाई जा सके। जीवन-यापन की होड़ में न फंसकर कैसे सबको समाहित करने के भाव को अपनाएं यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

प्रश्नकर्ता: मैं पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी हूँ, और चार बच्चों की अकेली माँ हूँ। पूरे जीवन मुझे अपने छोटे भाई-बहनों की देख-रेख करनी पड़ी, और अब मैं चार बेटियों को पाल रही हूँ। मैं उनके लिए एक मार्गदर्शक और एक सैनिक होने का दवाब महसूस करती हूँ, और मुझे डर है कि कहीं मैं इस दबाव से टूट ना जाऊँ। आप किसी मेरे जैसे के लिए क्या सुझाव देंगे?

सद्‌गुरु:  दुर्भाग्य से, हमने अभी तक ऐसी दुनिया नहीं बनाई है जहाँ हम सेनाओं और सैनिकों के बिना रह सकें। ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम इनके आगे सिर झुकाते हैं क्योंकि ये लोग सुनिश्चित करते हैं कि देश और उसकी सीमाएं सुरक्षित रहें और आक्रमण से बची रहें। लेकिन ऐसा क्यों है कि कोई हमेशा दूसरे पर आक्रमण करना चाहता है? क्योंकि वे भी सैनिक हैं। जब आप एक सैनिक होते हैं तो आपको दोनों के लिए तैयार रहना होगा - सुरक्षा और आक्रमण। 

लेकिन जब आप एक सैनिक हैं, तो एक तरीके से आप एक माँ होने की सुंदरता को नष्ट कर रही हैं, बस इसलिए क्योंकि आपको कुछ चीज़ें करनी ही पड़ती हैं। चार बच्चों की देख-रेख और पालन पोषण करना अपने आप में एक पूर्णकालिक काम (फ़ुलटाइम जॉब) है। लेकिन अगर आप इसे एक सैनिक की तरह करते हैं, तो आप और सैनिक ही पैदा करेंगे। ज़्यादा सैनिक मतलब ज़्यादा युद्ध। क्या हम इसलिए बच्चे पैदा करते हैं कि वो सैनिक बनें और दूसरे सैनिकों को मारें, या उस प्रक्रिया में ख़ुद मर जाएँ? क्या हम यह चाहते हैं? 

लेकिन हम दुनिया भर में यही कर रहे हैं। लोग एक खेल को ख़ुशी से क्यों नहीं खेल सकते? जब वो खेलते भी हैं, तो इसे युद्ध की तरह लड़ते हैं। चाहे वे टेनिस रैकेट या कोई और चीज इस्तेमाल कर रहे होंगे, लेकिन सही मायने में वो तलवार चलाना चाहते हैं। इसलिए, इसे एक सैनिक की तरह न देखें, एक माँ होना बहुत क़ीमती चीज़ है।

मातृत्व, प्रकृति का नारी को यह अनुभव देने का तरीक़ा है कि कोई दूसरा वास्तव में आपका हिस्सा बन सकता है। नर और नारी दोनों ही समावेश की भावना का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन पुरुष को वहाँ पहुँचने के लिए अपनी सीमाओं को तोड़ना पड़ता है। एक स्त्री के लिए एक सरल प्रक्रिया उसे उस जगह ले जाती है जहाँ अचानक से एक दूसरा जीवन आपका हिस्सा बन जाता है। जब एक जीवन आपका हिस्सा बन सकता है, तो दूसरा जीवन भी आपका हिस्सा बन सकता है। अगर आप चार की माँ हो सकती हैं, तो आप पूरी दुनिया की भी माँ हो सकती हैं।

मातृत्व, प्रकृति का नारी को यह अनुभव देने का तरीक़ा है कि कोई दूसरा वास्तव में आपका हिस्सा बन सकता है।

दुनिया के लिए माँ होने के बजाए क्या आप एक सैनिक होना चाहेंगी? यह अपने पद से गिरना होगा। दुनिया की माँ होने का मतलब है समावेश, सब को खुद में शामिल करना। एक सैनिक होने का मतलब है विजय पाना। क्या आप दूसरे द्वारा जीत लिया जाना चाहेंगे या दूसरे में शामिल हो जाना? हर इंसान, हर प्राणी, हर जीवन दूसरे में शामिल होना चाहता है, दूसरे द्वारा जीता जाना नहीं। लेकिन हम जीतने की होड़ में लग गए हैं।  

प्राचीन समय से ही बहुत ज़्यादा सैनिक हुए हैं। आप किसी को भी मार देते हैं जो आपकी तरफ़ का नहीं है। यह दुनिया की नीति रही है क्योंकि हम हमेशा जीवन-रक्षा की होड़ में रहे हैं। पुरुष-गुण की ज़िम्मेदारी जीवन-रक्षण की रही है, लेकिन सभ्यता नारी-गुण से ही होगी। जब मैं पुरुष-गुण और स्त्री-गुण की बात करता हूँ, मैं स्त्री और पुरुष के बारे में नहीं कह रहा होता हूँ। चूँकि एक पुरुष और एक स्त्री साथ आए इसलिए आप यहाँ हैं।

क्या एक स्त्री होने का मतलब यह है कि आपके अंदर आपके पिता नहीं हैं? वो हैं। क्या पुरुष होने का मतलब यह है कि आपके अंदर आपकी माता नहीं हैं? वो हैं। जब आपके अंदर पुरुष-गुण और स्त्री-गुण पूरी तरह संतुलन में होंगे, केवल तभी आप जीवन-रक्षा का ध्यान भी रख सकते हैं और सभ्यता की शक्ति भी बन सकते हैं। अगली पीढ़ी को सभ्यता चाहिए, केवल जीवन-यापन के साधन नहीं।

यह समय हर इंसान को अपने भीतर पुरुष-गुण और स्त्री-गुण बराबर अनुपात में स्थापित करने का है जिससे कि आप एक स्नेह करने वाली माँ बन सकें, और ज़रूरत पड़ने पर एक सैनिक भी बन सकें।

हालाँकि इस धरती पर अभी भी बहुत सी समस्याएँ हैं, जिसमें जीवन-रक्षा भी शामिल है, अगली पीढ़ी को सभ्यता भी चाहिए क्योंकि इंसानियत के इतिहास में जीवन-यापन की प्रक्रिया पहले किसी भी समय से कहीं ज़्यादा व्यवस्थित है। एक हज़ार साल पहले क्या विदेशों से भारत में ईशा योग सेंटर पहुंचना संभव था?

पुरुषों के लिए शायद यह यात्रा करना आसान होता, लेकिन स्त्रियों के लिए यह कई कारणों से संभव नहीं हो सकता था। लेकिन आज यह संभव है। यह एक बहुत बड़ी छलांग है। तकनीक ने पुरुष और नारी दोनों के लिए ही खेल का मैदान समान कर दिया है। यह समय हर इंसान को अपने भीतर पुरुष-गुण और स्त्री-गुण बराबर अनुपात में स्थापित करने का है, जिससे कि आप एक स्नेह करने वाली माँ बन सकें और ज़रूरत पड़ने पर एक सैनिक भी बन सकें। लेकिन आप अपने सैनिक के भाव में ही फँसे न रहें क्योंकि इससे आप हर समय झगड़ते रहेंगे।