चर्चा में

सद्‌गुरु के साथ ‘मिट्टी बचाओ’- यात्रा के कुछ अनुभव

मिट्टी के विलुप्त होने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सद्‌गुरु अकेले मोटरसाइकिल की सवारी पर 100 दिनों तक 30,000 किलोमीटर की यात्रा पर हैं, ताकि नागरिकों का समर्थन जुटाकर मिट्टी को फिर से जीवित करने के लिए सरकारी नीतियों में बदलाव ला सकें। यह अभियान पूरे यूरोप, अफ्रीका और मध्य पूर्व के लोगों और सरकारी प्रतिनिधियों के दिलो-दिमाग में पहले ही अपनी जड़ें जमा चुका है। सद्‌गुरु के साथ यात्रा करने वाले स्वयंसेवकों से सीधे मिट्टी बचाओ अभियान के परदे के पीछे की दुर्लभ झलकियाँ देखते हैं।

सद्‌गुरु जहाँ भी जाते हैं, वहाँ लोगों की प्रतिक्रिया अद्भुत होती है

‘मिट्टी बचाओ’ अभियान के समर्थन में लोगों की आवाज़ दुनिया भर में जबरदस्त तरीके से बढ़ती जा रही है, जैसे-जैसे सद्‌गुरु लोगों को मिट्टी की सेहत की अहमियत के बारे में जागरूक करते हुए इस अभियान पर मोटरसाइकिल की सवारी करते हुए देशों और महाद्वीपों की यात्रा पर आगे बढ़ रहे हैं।

एक स्वयंसेवी, नेटली जो सद्‌गुरु के पीछे चलने वाली छोटी सी सपोर्ट टीम का हिस्सा हैं, साझा करते हुए कहती हैं, ‘लोगों की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व और दिल को छू लेने वाली रही है। हर जमावड़ा बड़ा होता जाता है, और जिस तरह से अलग-अलग धर्मों, मतों, जाति और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोग उत्साह दिखाते हैं, वह बहुत आनंदित करने वाला होता है। कई बार, बस भीड़ को और सामने होने वाली घटनाओं को देखकर मेरी आंखों में खुशी और उल्लास के आँसू आ गए। किसी दूसरी भीड़ को देखकर मुझे ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ था।’

कैमरे की नज़र से – साझी ज़मीन की खोज

कैमरामैन के साथ-साथ पायलट कार के ड्राइवर की दोहरी भूमिका को एक जैसे उत्साह से संभालने वाले जस्टिन को अभियान के लिए लगातार बढ़ते समर्थन और लोगों के दिलोदिमाग पर इसके जबरदस्त असर को करीब से और व्यक्तिगत रूप से देखने का मौका मिला। वह कहते हैं, ‘इन क्षणों, भावनाओं और लोगों के उत्साह को कैमरे में कैद करने में सक्षम होना एक शानदार अनुभव रहा है। उनमें से अधिकांश लोग सद्‌गुरु को पहली बार देख रहे हैं और मिट्टी बचाओ अभियान को लेकर उत्सुक हैं।

‘अलग-अलग देशों में जब आप लोगों के चेहरे देखते हैं, तो उनके भाव एक जैसे देखने को मिलते हैं। लोग वास्तव में इस अभियान को लेकर उत्साहित हैं और कुछ करना चाहते हैं। वे इस सरल और शक्तिशाली संदेश से प्रभावित होते हैं। कैमरे के पीछे रहना और इन भावों को लेंस के जरिए देखना एक अद्भुत अनुभव है।’

पायलट कार के चालक के तौर पर जस्टिन का दिन जल्दी शुरू हो जाता है। वह सबसे पहले कार का निरीक्षण करते हैं कि दिन की यात्रा के लिए सब कुछ ठीक-ठाक है या नहीं। फिर वह नक्शा देखते हैं, मौसम की रिपोर्ट पर एक नज़र डालते हैं और दूसरे टीम सदस्यों के साथ दिन के रूट पर चर्चा करते हैं ताकि यह पक्का हो सके कि कोई रास्ता न भटके और वे समय पर पहुँच पाएं।

सबसे गंभीर मामलों को भी कैसे उत्सवपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता है

ला ला ले ला ले ला ले…. सेव सॉयल गीत पूरे यूरोप और मध्य पूर्व की कई जगहों पर गूँज रहा है और सद्‌गुरु मिट्टी को बचाने की जरूरत को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। हालांकि यह यात्रा लंबी और मुश्किल है फिर भी उन्होंने अपनी तेज़ रफ्तार बनाए रखी है और हर कार्यक्रम और बैठक के लिए समय पर पहुँचने की भरपूर कोशिश करते हैं।

रास्ते की कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन सद्‌गुरु सभी बाधाओं को पार करते हैं। सपोर्ट टीम के एक सदस्य क्रिस्टोफर कहते हैं, ‘जब हम स्विट्जरलैंड से पेरिस जा रहे थे, तो हमें बारिश और 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार वाली तेज़ हवा का सामना करना पड़ा। सिर्फ़ 15-20 मीटर तक की दूरी दिखाई दे रही थी, हमने अपनी हेज़र्ड लाइट्स जला लीं और हमें अपनी रफ्तार धीमी करनी पड़ी। यह आश्चर्यजनक है कि कैसे सद्‌गुरु मिट्टी बचाओ अभियान के लिए अपना जीवन दाँव पर लगा रहे हैं। वह वास्तव में इसे अपने लिए नहीं कर रहे – हम सबके लिए कर रहे हैं, हम सब की जरूरत के लिए, आने वाली पीढ़ियों के लिए। इसीलिए उन्होंने इस यात्रा के बारे में सोचा, निश्चित रूप से यह कोई जॉय–राइड (मज़े के लिए की जा रही यात्रा) नहीं है।’

छोटी टीम के बड़े हौसले

मिट्टी के संकट के बारे में जागरूकता तेजी से बढ़ती जा रही है, जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों के लोग साथ आ रहे हैं और ‘भूमित्र’ (अर्थ-बडीज) बन रहे हैं। उनका उत्साह सेव सॉयल स्वयंसेवकों के छोटे, मगर जोशीले समूह के बराबर है, जो सद्‌गुरु के साथ उनकी 30,000 किलोमीटर की यात्रा पर हैं। सद्‌गुरु की तरह, भोजन, नींद और शारीरिक सुविधाएं उनके लिए प्राथमिकता नहीं है। रास्ते में आने वाली मुश्किलों के बावजूद उनका फोकस और जोश ऊँचा है।

सेव सॉयल से जुड़े इवेंट्स और इंटरव्यू के लॉजिस्टिक्स और संगठनात्मक पहलुओं का प्रबंधन करने वाली टीम, अपनी विशाल जिम्मेदारियों के आगे बहुत छोटी लगती है। लेकिन कृपा और टीम-वर्क सपने को साकार कर देते हैं।

सपोर्ट टीम के एक सदस्य, के, साझा करते हैं, ‘हम वास्तव में काफी छोटी टीम हैं जहाँ हर कोई हर चीज कर रहा है, और हम अपनी क्षमता को खींचकर और बढ़ाने की कोशिश करते हैं। हम उस काम के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं जो हम कर रहे हैं, लेकिन हर किसी के साथ काम करने में सक्षम होना सम्मान की बात है। मैंने कभी इतने ईमानदार और अच्छे दिल वाले लोगों के साथ काम नहीं किया है जो चीज़ों को इस अभियान के अनुकूल बनाने पर इतना ध्यान दे रहे हैं। यह मेरे लिए सीखने की एक सकारात्मक प्रक्रिया रही है।’

सद्‌गुरु और उनकी टीम को लोगों का जबरदस्त प्यार मिला है। वे जहाँ भी जाते हैं, जैसे बेलग्रेड, सर्बिया, हर जगह एक जैसे दृश्य होते हैं, जैसा कि के ने महसूस किया, ‘कुछ ही घंटों के भीतर, शहर में हर किसी को मिट्टी बचाओ अभियान के बारे में पता चल गया। जब सद्‌गुरु एक गली में चल रहे थे, तो लोग उनके पास आकर उनसे बात कर रहे थे। यह वाकई शानदार है।’

कोविड के खिलाफ बचाव उपायों के रूप में ‘बायो बबल’

इस यात्रा में शामिल सेव सॉयल स्वयंसेवकों को अलग-अलग ‘बायो-बबल’ में बांटा गया है ताकि अगर किसी में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई पड़ें, तो उस व्यक्ति या टीम को दूसरी टीमों से अलग किया जा सके। ये बायो बबल टीमें यात्रा के बीच में होने वाले सभी कार्यक्रमों और संवादों के लिए आयोजकों की भूमिका निभाती हैं।

के साझा करते हैं, ‘हम यात्रा के बीच में कार्यक्रमों और वार्ता का आयोजन कर रहे हैं। सद्‌गुरु के साथ यात्रा करने और उन्हें काम करते हुए देखना बहुत आनंददायक है। इसमें बहुत सारी तैयारी लगती है, लेकिन बायो-बबल में रहने का मज़ा भी है। हमारी बायो-बबल व्यवस्था काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सद्‌गुरु के साथ करीब से बातचीत करते हैं, जो मिट्टी बचाओ अभियान की अगुआई कर रहे हैं। हम कठोर दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, और सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने पर या समर्थकों से बात करते समय भी हम मास्क पहनते हैं।’

बारिश में गाने और यात्रा के बीच खेल का आनंद

सेव सॉयल समर्थकों को एक साथ लाना और खराब मौसम तथा इलाके में ड्राइव करना भी जोशीले स्वयंसेवकों का आनंद कम नहीं कर पाया है।  

सद्‌गुरु के पीछे चल रही एक कार को ड्राइव करने वाले क्रिस्टोफर साझा करते हैं, ‘बारिश और तेज़ हवा के बीच ड्राइव करते समय, जब मुश्किल होने लगती है, तो हम सद्‌गुरु को गाते हुए सुन सकते हैं। ये मेरे लिए सबसे अद्भुत और यादगार पल हैं कि मुश्किल क्षणों में भी प्रेरित हुआ जा सकता है और आनंद का अनुभव किया जा सकता है। जब सद्‌गुरु ने ब्रेक लेने का फैसला किया तो हम उनके साथ फ्रिस्बी भी खेल पाए। हमने साथ में फुटबॉल भी खेला। साथ मिलकर खेलना और मज़ाक करना वाकई मज़ेदार था।’

टीम के सदस्य सद्‌गुरु को अपनी प्रेरणा के रूप में देखते हैं क्योंकि वे बेफिक्र लगते हैं और चुनौतियों का आसानी से सामना करते हैं। क्रिस्टोफर कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता कि उन्हें कहाँ से ऊर्जा मिलती है, भले ही वह रात में सिर्फ तीन घंटे सो रहे हों।’

पहियों पर सत्संग

सद्‌गुरु के साथ यात्रा करना और उत्साही सेव सॉयल समर्थकों, ईशा साधकों तथा सद्‌गुरु के अनुयायियों से मिलना स्वयंसेवकों के लिए न सिर्फ एक प्रेरक अनुभव रहा है बल्कि आत्म-खोज, साधना और सत्संग का भी एक अवसर रहा है। 

कम्युनिकेशंस और मोटरसाइकिल मेंटेनेंस के प्रभारी स्वयंसेवक, कन्नन बताते हैं, ‘मेरी एक खास भूमिका थी – सद्‌गुरु को सुनना। मैं और क्या चाह सकता था? मैं हर समय यह हेडफोन पहने रहता था और ज्यादा बोलता नहीं था। सद्‌गुरु के पूछने पर मैं जरूरी जानकारी उन्हें देता था। बाकी का समय मेरे लिए एक तरह की साधना थी, मैं मौन था, सिर्फ सद्‌गुरु और उनके हेलमेट में बहती हवा को सुनता हुआ। मैं उनके नज़रिए और एक मोटरसाइकिल चालक के रूप में उनके अनुभव को महसूस कर सकता था। यह मेरे लिए बहुत खूबसूरत, जादुई और अविश्वसनीय है। यह एक तरह से पहिये पर चलता हुआ सत्संग है।’

बाकियों के लिए भी, इस यात्रा ने विकास और रूपांतरण के अमूल्य सबक दिए हैं। क्रिस्टोफर ने कहा, ‘कार चलाने के लंबे घंटों और रास्ते में कई सार्वजनिक कार्यक्रमों के कारण कुछ दिन बेहद मुश्किल थे। जब हम सोफिया से बुखारेस्ट गए, हमारे पास ढेर सारे सार्वजनिक कार्यक्रम थे, मौसम भयानक था, कई जगहों पर बर्फबारी हो रही थी, और मैं बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था। मेरा धैर्य खत्म होता जा रहा था। और हमेशा की तरह सद्‌गुरु को सबसे पहले इसके बारे में पता चल गया। वह मेरे पास आए और मुझसे धैर्य और शांति रखने को कहा।’

सद्‌गुरु: समर्पण और लगन के मूर्तिमान रूप

किसी भी तरह के मौसम में, एक देश से दूसरे देश तक मोटरसाइकिल चलाते हुए सद्‌गुरु की अथक प्रतिबद्धता स्वयंसेवकों और आम लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। नेटेली कई स्वयंसेवकों और समर्थकों की भावनाओं को दोहराती हैं, जब वह कहती हैं, ‘मोटरसाइकिल की सवारी करते समय, सद्‌गुरु को तेज़ हवा के झोंकों, कठोर मौसम, बारिश और बर्फ जैसी चीज़ों का सामना करना पड़ता है।’ फिर भी, जब वह कार्यक्रम स्थलों और सार्वजनिक सभाओं में पहुँचते हैं, तो ऊर्जा से भरे होते हैं, भूमित्रों के साथ नाचते हैं, सेव सॉयल गीत गाते हैं और सभी को प्रेरणा देते हैं।

वह आगे कहती हैं, ‘दिन भर की सवारी के बाद, वह अभी भी वीडियो और जूम कॉल और मीटिंग निपटाने में लगे हैं, जिनमें से कुछ रात भर चलते रहते हैं। विश्वास नहीं होता कि वह एक साथ कितनी चीजें संभाल सकते हैं। सबसे कठिन समस्याएं उन्हें बताई जाती हैं और उनके पास हमेशा समाधान निकल आता है। मैंने किसी और को इतनी सारी चीजों को एक साथ गरिमापूर्वक और सहजता से संभालते हुए नहीं देखा। हर क्षण, वह हमें अपनी सीमाओं और पहचानों को तोड़ने और अपनी क्षमता के चरम पर पहुँचने के लिए प्रेरित करते हैं। मेरे लिए, यह यात्रा बहुत प्रेरणादायक है।’ 


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