सद्गुरु: हज़ारों साल पहले, सुनीरा नाम के एक योगी थे जो आज के नेपाल में मौजूद पहाड़ों में रहते थे। कहते हैं कि सुनीरा सप्तऋषियों के ठीक बाद वाली पीढ़ी के थे। उन्होंने देखा कि मानव चेतना को विकसित किया जा सकता है, अगर हम एक संपूर्ण मनुष्य पैदा कर सकें जो हर तरह के लोगों को आध्यात्मिक प्रक्रिया सिखा सके।
वह शिव की परंपरा के थे। तो उनका सपना था, एक जीवित शिव – दुनिया के लिए एक संपूर्ण, बहुआयामी गुरु का निर्माण करना। वह एक ऐसे जीव का निर्माण करना चाहते थे, जो हर संभव रूप में मानव चेतना और मानव शरीर की खोजबीन कर सके, ठीक शिव की तरह।
बहुत से महत्वाकांक्षी योगियों ने सुनीरा के शुरू किए गए प्रोजेक्ट का बीड़ा उठाया और एक संपूर्ण गुरु के ऊर्जा शरीर को फिर से बनाने की कोशिश की जो मानव चेतना को रूपांतरित कर सके।
सुनीरा ने उस तरह के प्राणी के लिए ऊर्जा शरीर का निर्माण शुरू किया, और फिर वह उस पर एक भौतिक शरीर का निर्माण करके उसे दुनिया में खुला छोड़ देना चाहते थे। इस प्राणी का जीवनकाल कुछ सौ सालों का होना था जिससे उसके पास पूरी दुनिया को रूपांतरित करने का काफी समय होता। सुनीरा ने यह प्रोजेक्ट शुरू तो किया लेकिन उसे पूरा किए बिना उनकी मृत्यु हो गई।
दुनिया को रूपांतरित कर सकने वाले एक संपूर्ण प्राणी का विचार
इन हज़ारों सालों में, यहाँ-वहाँ, बहुत से महत्वाकांक्षी योगियों ने सुनीरा के शुरू किए गए प्रोजेक्ट का बीड़ा उठाया और एक संपूर्ण गुरु के ऊर्जा शरीर को फिर से बनाने की कोशिश की जो मानव चेतना को रूपांतरित कर सके। उसका नाम मैत्रेय रखा गया, जिसका अर्थ होता है ‘दोस्त।’ यह मानव जाति का सच्चा दोस्त होने वाला था जो मानव जाति को बदलने वाला था – जगत-गुरु।
योगिक परंपरा में यह विचार हमेशा से रहा है, लेकिन पिछली शताब्दी में, इसका पता चला जब थियोसोफिस्ट एनी बेसेंट, चार्ल्स लीडबीटर और मदाम ब्लावत्स्की ने इस प्रोजेक्ट को अपनाया। उन्होंने खूब सारा तांत्रिक ज्ञान इकट्ठा किया और एक आधुनिक तरीके से इस प्राणी को खोजने की कोशिश की। उनके पास ज्ञान था, लेकिन काबिलियत नहीं थी।
एक गौरवशाली लेकिन असंभव परियोजना
साथ-साथ, पिछले कुछ हज़ार सालों में कुछ योगी ऐसे भी हुए जो सुनीरा के गौरवशाली लेकिन काफी असंभव से दिखने वाले प्रोजेक्ट से परिचित थे। उन्होंने ऐसी ही संभावना निर्मित करने के लिए ऐसी ही शक्ति पर काम करना शुरू किया, लेकिन उसकी बिल्कुल अलग समझ के साथ। वे एक संपूर्ण प्राणी बनाना चाहते थे लेकिन मानव रूप में नहीं, क्योंकि मानव-प्रणाली में क्षमताएं हैं लेकिन उसे धारण करने के लिए सीमा की जरूरी अखंडता नहीं है।
अलग-अलग जगहों पर ध्यानलिंग बनाने की कई कोशिशें हुई हैं। पिछले 2000-3000 सालों में कई सारी परियोजनाएं शुरू की गईं और किसी न किसी समस्या के कारण बीच में छोड़ दी गईं।
भोजपुर में लिंग की दुखद विफलता
भोजपुर में करीब एक हजार साल पहले एक ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करने की कोशिश की गई। उस परियोजना के लिए एक स्थानीय राजा ने सहयोग और धन दिया और एक शानदार मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। उनके पास एक भव्य योजना और एक सुंदर जगह थी, लेकिन कुछ समस्याओं के कारण वे उसे आधा ही बना पाए। उस समय कोई ड्राइंग बोर्ड नहीं थे, इसलिए उन्होंने एक पत्थर को समतल किया और वास्तुशिल्प संबंधी सारे ब्यौरों के साथ मंदिर की एक व्यापक योजना उकेरी।
एक योगी ने यह पूरी प्रक्रिया शुरू की। करीब दो सालों में, उसने 14 असाधारण रूप से सिद्ध लोगों – 7 पुरुषों और 7 स्त्रियों को तैयार किया और उन्होंने तीन से ज्यादा सालों तक लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की कोशिश की। लिंग करीब-करीब 95 फीसदी तैयार हो चुका था, लेकिन फिर एक हमला हुआ। हमलावरों ने इन लोगों को अजीब स्थितियों में पाया, और उन्होंने हमला कर दिया।
आत्मज्ञान के उपकरणों के निर्माण के लिए ऐसी संरचनाओं को बनाना कई योगियों की आकांक्षा रही है।
हमले में योगी का बायाँ पांव कट गया। शरीर में इस क्षति के कारण वह काम को आगे नहीं बढ़ा सकते थे इसलिए उन्होंने काम को पूरा करने के लिए लिंग में विलीन होने का फैसला किया। उन्होंने दूसरे योगी को ऊर्जा लॉक करने के लिए प्रशिक्षित किया और अपना शरीर छोड़कर लिंग में विलीन हो गए। लेकिन दूसरे योगी, जिन्हें यह करना था, इस स्थिति से इतने अभिभूत हो गए कि वह लॉक नहीं कर सके और लिंग टूट गया। अब भी आप लिंग में एक सीधी दरार देख सकते हैं। पुरातत्व विभाग ने चूना पत्थर से दरार को भर दिया है, लेकिन वह चटका हुआ है।
आत्मज्ञान के उपकरणों के निर्माण के लिए ऐसी संरचनाओं को बनाना कई योगियों की आकांक्षा रही है, सिर्फ शिक्षाएँ और क्रियाओं का ज्ञान देने के लिए नहीं, बल्कि एक जीवंत साधन देने के लिए जो लोगों को प्रभावित और रूपांतरित कर सके।
ध्यानलिंग की प्राणप्रतिष्ठा की जिम्मेदारी सद्गुरु को कैसे मिली
ऐसी इच्छा रखने वाले एक योगी ने मुझे इस काम के लिए चुना। उनसे मेरी शारीरिक नजदीकी सिर्फ कुछ मिनट के लिए थी। उन कुछ क्षणों में, उस बहुत ही चालाक व्यक्ति ने अपनी परियोजना के लिए मुझे दास बना लिया। मैंने फिर सब कुछ उनके लिए किया क्योंकि वह मेरे गुरु का सपना था और ध्यानलिंग की स्थापना उनका ध्येय था। यह मेरे गुरु की इच्छा और कृपा है।
मैं उस पागलपन के बारे में आपको कुछ बताना चाहता हूँ, जिससे मैं होकर गुज़रा हूँ। मैंने दो जीवन-काल तक बहुत गहन और हृदयविदारक साधना की। इन दो जन्मों में, लोगों ने मुझे शिव-योगी कहा। जरूरत पड़ने पर मेरे गुरु प्रकट हुए, उन्होंने मुझे अपनी छड़ी से छुआ, और जो कुछ आत्मज्ञान पाने की जरूरत थी, वह मिल गया। एक इंसान जो कुछ हो सकता है, मैं उसके चरम पर था।
सद्गुरु श्री ब्रह्मा: समाज के समर्थन से वंचित एक सिद्ध पुरुष
शिव-योगी के नाम से मशहूर इस व्यक्ति ने उस मिशन को पूरा करने की कोशिश की जो उसे सौंपा गया था, लेकिन वह सफल नहीं रहा। वह फिर सद्गुरु श्री ब्रह्मा के रूप में वापस आए, पुरजोर कोशिश की, करीब-करीब सफल भी हो गए लेकिन वह समाज में जरूरी प्रतिष्ठा हासिल नहीं कर पाए क्योंकि वह जो थे, उसकी तीव्रता को आम सामाजिक परिस्थितियों में नहीं समझा जा सकता था।
उन्होंने कुछ लोगों को तैयार किया और पहाड़ पर जाने का फैसला किया। उन्होंने खुद पड़ताल की, कि वह आख़िर असफल क्यों हुए? वह जानते थे कि उनमें क्षमता की कमी नहीं थी – बस वह जरूरी सामाजिक समर्थन हासिल नहीं कर पाए। उनके पहाड़ पर जाने से पहले, उनके कुछ शिष्य पहाड़ की तलहटी में एकत्रित हुए और बोले, ‘अब क्या करना है?’ वह बोले, ‘इवन तिरपी वरुवन’ जिसका मतलब है ‘यह फिर वापस आएगा।’ और फिर वह आखिरी बार पहाड़ पर चले गए।
उन्होंने सातों चक्रों से अपना शरीर छोड़ा। आप सेवेंथ हिल पर इस जबरदस्त ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।
उन्होंने एक दुर्लभ चीज़ की – उन्होंने एक साथ सातों चक्रों से अपना शरीर छोड़ा। वह सिर्फ यह जांच रहे थे कि उनमें पर्याप्त क्षमता है या नहीं। तो उन्होंने सातों चक्रों से अपना शरीर छोड़ा। आप सेवेंथ हिल पर इस जबरदस्त ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं। यह कहीं और पाई जाने वाली किसी भी चीज़ से बहुत अलग है। इसके साथ, उन्हें पता चल गया कि समस्या यह थी कि वे हालात को ठीक से नहीं संभाल पाए थे।
चरम सफलता का नुस्खा – सब को साथ लाना
इस बार हमने हर चीज़ की इस हद तक योजना बनाई थी कि यह तक तय कर लिया गया कि जिन कुछ लोगों की मुझे जरूरत थी, वे कैसे और कहाँ पैदा होंगे। सब कुछ योजना में था और उसी के अनुसार हुआ।
मैंने प्राणप्रतिष्ठा के लिए जरूरी लोगों को सही स्थानों पर पहुंचाया ताकि सही समय पर सब कुछ साथ आए। उसके बावजूद, इस जीवन में सब कुछ साथ लाने, लोगों को साथ लाने, उन्हें अपना अतीत याद दिलाने और वहाँ तक लाने में 18 सालों की तैयारी लगी। ये बातें सुनने में परीकथा जैसी लग सकती हैं, लेकिन हमारे लिए यह एक जीवंत हकीकत है।
प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया में साढ़े तीन साल लगे। वह बहुत तीव्र प्रक्रिया थी। उसके साक्षी लोगों के लिए उनका जीवन फिर कभी पहले जैसा नहीं रह जाएगा। उन्होंने ऐसी चीज़ें देखीं, जिनकी उन्होंने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। और वे अब भी विश्वास नहीं कर सकते कि यह वास्तव में उनकी मौजूदगी में घटित हुआ था।
ध्यानलिंग एक जीवित गुरु की तरह है।
योगी सुनीरा ने जीवन भर कोशिश की और अपने जीवन के अंतिम समय में, जब एक संपूर्ण प्राणी बनाने का यह सपना अधूरा रह गया, उन्होंने एक भविष्यवाणी की कि, ‘अब से बहुत समय बाद, यह काम पूरा होगा और स्पंदित होगा, यहाँ नहीं बल्कि दक्षिण की हरी पहाड़ियों में।’ हमारे पहाड़ हरे हैं और हम दक्षिण में हैं। सुनीरा की भविष्यवाणी सच हो गई है लेकिन उस तरह नहीं, जैसा उन्होंने सोचा होगा।
ध्यानलिंग एक जीवित गुरु की तरह है। एक आध्यात्मिक साधक के जीवन में एक गुरु की भूमिका सिर्फ शिक्षा और मार्गदर्शन देना नहीं है। सबसे मूलभूत चीज़ कि एक आध्यात्मिक साधक गुरु को क्यों खोजता है, वह इसलिए कि एक गुरु उसकी ऊर्जा को एक अलग आयाम में प्रज्वलित कर सकता है। एक आध्यात्मिक साधक के जीवन में एक गुरु की भूमिका का वह पहलू ध्यानलिंग द्वारा पूरा किया गया है। जब कोई व्यक्ति ध्यानलिंग के दायरे में होता है, वह अपने भीतर मुक्ति के आध्यात्मिक बीज के रोपे जाने से बच नहीं सकता।