वे कहते हैं कि वे एक जंगली भैंसा हैं
जो दौड़ रहे हैं - मिट्टी को बचाने के लिए
मैं भी ऐसी ही भैंस हूँ
और बस दौड़ रही हूँ उनकी तरफ।
‘इधर नहीं, उधर!’ वे कहते हैं
जानती हूँ, पर मैं सुन नहीं सकती
हो सकती हैं वहाँ चट्टानें और पेड़ भी
ठीक मेरे रास्ते में
लेकिन मैं कैसे जान पाऊँगी?
आप देखिए, बंद हैं मेरी आँखें
मैं बस सुन रही हूँ अपने दिल की
हो सकता है टकरा जाऊँ मैं किसी पहाड़ से
या गिर जाऊँ किसी चोटी से।
हो सकता है मैं गायब हो जाऊँ
क्या पता इस धरती से ही
लेकिन कम से कम मरूँगी
एक खुश भैंस की तरह
क्योंकि मैं दौड़ रही हूँ उनकी तरफ।
—मौसमी सेन शर्मा, ईशा स्वयंसेवी, म्यूनिख, जर्मनी