21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आ रहा है! क्या आप अपने दोस्तों और परिवार में इस बात का प्रचार करने के लिए तैयार हैं? अगर आप स्पष्ट रूप से समझना चाहते हैं कि योग वास्तव में क्या है तो सद्गुरु की परिभाषा पेश है, जो उन्होंने पॉडकास्टर, अल्टीमेट फाइटिंग चैंपियनशिप (यूएफसी) कलर कमेंटेटर और कॉमेडियन रोगन के साथ बातचीत में बताई।
यह उनके बेहद सफल पॉडकास्ट ‘द जो रोगन एक्सपीरियंस’ पर उनके संवाद का एक अंश है जिसमें उन्होंने स्वर्ग से लेकर मिट्टी तक के विषयों पर चर्चा की।
जो रोगन: चलिए पहले योग पर बात करते हैं।
सद्गुरु: अमेरिका का ‘योग’ मुझे डराता है क्योंकि यहाँ योग का मतलब है कि आपको एक बचे हुए नूडल की तरह टेढ़ा-मेढ़ा दिखना चाहिए। योग शब्द का अर्थ है - ‘मेल।’ हम मिट्टी की बात कर रहे हैं। आप मिट्टी की एक उपज मात्र हैं। शायद आपको इसका एहसास नहीं है क्योंकि आप एक कुर्सी पर बैठे हैं, आपने जूते पहने हुए हैं और आप इधर-उधर घूम सकते हैं। लेकिन अगर आपको पेड़ की तरह बनाया जाता, तो आप साफ-साफ समझते कि आप मिट्टी का एक हिस्सा हैं।
अधिकांश लोग तभी यह समझेंगे कि वे मिट्टी का हिस्सा हैं, जब आप उन्हें दफना देंगे। दरअसल आप उसका एक हिस्सा हैं, लेकिन इस तरह उसका अनुभव नहीं कर रहे। यह सिर्फ मिट्टी के बारे में सच नहीं है – यह पूरी सृष्टि, खुद ब्रह्मांड के बारे में भी सच है। आज, आधुनिक विज्ञान ने यह समझ लिया है कि जब आप यहाँ बैठे हैं, आपके शरीर का हर सब-एटॉमिक कण वास्तव में बाकी हर चीज़ के साथ संचार कर रहा है। लेकिन अधिकांश लोगों को इसका अनुभव नहीं होता।
जब मैं 25 साल का था, तो मुझे एक ऐसा अनुभव हुआ, जहाँ अचानक मेरे शरीर की हर कोशिका से परमानंद टपक रहा था। मैं एक चट्टान पर बैठा था और बस इस तरह का अनुभव फूट पड़ा। मेरे वयस्क जीवन में पहली बार, मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। जब मैं उससे बाहर आया, तो जिसे मैं 10-15 मिनट समझ रहा था, वह असल में 4½ घंटे थे, मेरी कमीज़ आँसुओं से भीगी हुई थी।
मैंने सोचा, ‘मुझे क्या हो रहा है? क्या मुझे चक्कर आ रहे हैं?’ मैं दुनिया में हर चीज़ को लेकर शंकालु था। मेरे पास परिवार, समाज, धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था, हर चीज़ को लेकर सवाल थे।
जो रोगन: तो आपके ख्याल से क्या हो रहा था?
सद्गुरु: मैंने अपने करीबी दोस्तों से बात की, ‘अरे, मेरे साथ कुछ हो रहा है। मैं आनंद से भर गया हूँ।’
वे बोले, ‘तुम्हें क्या हो रहा है, यार? तुमने क्या पिया था? कौन सी गोली खाई थी?’
फिर मुझे पता चल गया कि मेरे अनुभव का कोई संदर्भ नहीं था। फिर मैंने एकांत में ज्यादा से ज्यादा समय बिताना शुरू किया। और मैंने महसूस किया कि अगर मैं सिर्फ अपने मन से पूरी तरह हाथ हटा लेता हूँ, तो मेरे शरीर की हर कोशिका आनंद से भर जाती है। मैंने अपने भीतर अच्छी तरह समझ लिया कि ऐसा कैसे करना है। फिर मैंने बैठकर एक योजना बनाई। ‘मैं ढाई साल में पूरी दुनिया को परमानंद से भर दूंगा।’ और आज चालीस साल बाद मैं यहाँ हूँ।
मुझे यह समझने में समय लगा कि चाहे आप लोगों को बेहतरीन चीज़ की पेशकश करें, वे बस उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाते रहेंगे लेकिन उन्हें बात समझ में नहीं आएगी क्योंकि वे किसी और चीज़ में बहुत गहरे डूबे हुए हैं। उन्हें एहसास नहीं होता कि दिल की हर धड़कन के साथ जीवन फिसल रहा है। लोग इस बारे में जागरूक नहीं होते कि हर दिन उनका समय निकल रहा है और उन्हें उसका पूरा लाभ उठाना है।
अगर आप सचेतन होंगे कि आपका समय निकल रहा है, तो आप खुद को यथासंभव बेहतरीन रूप में रखेंगे। आपके पास किसी से झगड़ा करने का समय नहीं होगा, आपके पास किसी दूसरे के साथ या खुद के साथ बुरी चीज़ें करने का समय नहीं होगा। आप अपने साथ बेहतरीन चीज़ें करेंगे। और स्वाभाविक रूप से, जब आप बहुत अच्छा महसूस करते हैं, तो आप अपने आस-पास हर किसी के साथ अच्छी चीज़ें करते हैं।
एक आनंदित व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हर किसी के लिए सुखद होता है। जब आप बुरा महसूस करते हैं, तो आप दूसरे लोगों के साथ भी बुरा व्यवहार करते हैं। तो मैंने तय किया कि हमें किसी न किसी तरह इस प्रक्रिया को लोगों के साथ साझा करना चाहिए और मैंने साधन बनाने शुरू किए। मैं बारह साल की उम्र से एक सरल योग का अभ्यास करता रहा था।
जो रोगन: तो, लगभग यही समय था, जब आपको चीजों की प्रकृति के बारे में अहसास हो रहे थे। वे सब एक तरह से एक साथ आए, जैसे कि यह एक बहुत ही दैवीय मेल हो।
सद्गुरु: जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो यह सब एक तय योजना की तरह लगता है। उस समय बस सारी अद्भुत घटनाएं हो रही थीं।
जो रोगन: हाँ। यह एक ऐसी चीज है जो कभी-कभी होती है, है न? जब आप सही रास्ते पर होते हैं, तो आश्चर्यजनक घटनाएं होती हैं।
सद्गुरु: योग का एक पहलू है, अपने शरीर को बाकी की सृष्टि के साथ ज्यामितीय रूप से मेल में लाना। यदि आप ज्यामितीय रूप से तालमेल में हैं, तो अचानक आपका अनुभव एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि सार्वभौमिक होने का होता है।
अभी आपमें और जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं, उनमें क्या अंतर है? सिर्फ संवेदना ही है जो आपको बताती हैं कि ‘यह मैं हूँ’ और ‘वह मैं नहीं हूँ।’ तो दरअसल, जिसे आप ‘मैं’ बुलाते हैं, वह संवेदनाओं की एक निश्चित सीमा है।
अगर आप कुछ जोरदार या तीव्र करते हैं, तो अचानक आपके संवेदना की सीमाएं टूट जाती हैं और आप कुछ अधिक अनुभव करते हैं। इंद्रियों की सीमा को तोड़ना ही योग है। अगर आप अपने संवेदी शरीर को इस कमरे जितना फैला सकते हैं, तो आप इस कमरे में मौजूद हर चीज़ को ख़ुद के रूप में अनुभव करेंगे।
अगर आप खुद को उल्लासमय बनाते हैं, तो खुशी या आनंद के कारण संवेदी शरीर का विस्तार होता है। अगर आप अपने शरीर का विस्तार इस तरह से करते हैं कि यह ब्रह्मांड जितना बड़ा हो जाए, तो आप पूरे ब्रह्मांड को ‘मैं’ के रूप में अनुभव करेंगे। यही योग है। मोड़ना, मुड़ना, सांस रोकना, ये सभी चीजें शरीर को इस तरह से ढीला करने के लिए हैं कि आपका भौतिक शरीर और आपका संवेदी शरीर एक-दूसरे से चिपका न रहे और संवेदी शरीर का विस्तार हो सके।
दरअसल भौतिक शरीर, संवेदी शरीर के लिए एक मचान की तरह काम करता है जो जीवन का अनुभव देता है। अगर आपका संवेदी शरीर फैलता है तो आप इस पूरे कमरे या भवन या शहर को अपने रूप में अनुभव करेंगे। यही योग का मकसद है। एक बार जब आप किसी व्यक्ति या किसी चीज को अपने हिस्से के रूप में अनुभव करते हैं तो किसी को भी आपको कोई नैतिकता सिखाने की जरूरत नहीं होती। जिसे आप खुद के रूप में अनुभव करते हैं, उससे आपका कोई टकराव नहीं होता। यही योग का अर्थ है। कई प्रणालियां हैं, वास्तव में 112 तकनीकें हैं जिनसे उसे पाया जा सकता है।
जो रोगन: आपकी किताब जो मैं पढ़ रहा था, उसमें आपने अलग-अलग तरह के योग की बात की है और आपने उन सब को साथ लाने के बारे में एक बहुत मज़ेदार कहानी सुनाई थी। योग के अलग-अलग प्रकार क्या हैं?
सद्गुरु: आप अपने शरीर को इस्तेमाल करके योग कर सकते हैं – यह कर्म योग है। कर्म का अर्थ है, कार्य या गतिविधि – आप अस्तित्व के साथ एक होने के लिए गतिविधि का इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर आप अस्तित्व के साथ एक होने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं, तो इसे ज्ञान योग कहते हैं, यानी बुद्धिमत्ता का योग। अगर आप इस मकसद को पाने के लिए अपनी भावना का इस्तेमाल करते हैं, तो इसे भक्ति योग यानी भक्ति या भावना का योग कहते हैं। और अगर आप इसके लिए अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं, तो इसे क्रिया योग कहते हैं, अपनी ऊर्जा को शुद्ध करने और उसे विस्तार देने का विज्ञान और तकनीक।
आपके पास एक शरीर है, एक मन है, आपके पास भावनाएं हैं और आपके भीतर जीवन ऊर्जा है। यही चार वास्तविकताएं हैं, बाकी सब कल्पना है। आप सिर्फ उन्हीं के साथ काम कर सकते हैं, जो आपके पास मौजूद हैं। हम सब इन्हीं चार चीज़ों – शरीर, मन, भावना और ऊर्जा का एक मेल हैं। बस इतनी बात है कि एक व्यक्ति में शरीर प्रबल हो सकता है, दूसरे व्यक्ति में मन प्रबल हो सकता है, किसी और व्यक्ति में भावना प्रबल हो सकती है।
अलग-अलग इंसानों में इन्हीं चार तत्वों का अलग-अलग मेल होता है। उसी के अनुसार, योग को मिलाना पड़ता है। इसीलिए, पूर्वी संस्कृतियों में एक जीवित गुरु का इतना महत्व होता है जो आपको देखकर सही मिश्रण बनाता है।
जो रोगन: इसीलिए उन्हें गुरु की जरूरत होती है?
सद्गुरु: देखिए, गुरु शब्द आज अमेरिका में बस एक चार वर्णों वाला शब्द है।
जो रोगन: हाँ, क्योंकि बहुत से नकली गुरु हैं, है न?
सद्गुरु: इसीलिए, मैं सद्गुरु हूँ – इसमें आठ वर्ण हैं।
जो रोगन: योग कैसे शुरू हुआ? आपके विचार में उसका मूल क्या है? यह तो जाहिर है कि उसका अभ्यास करना लोगों के लिए बहुत लाभदायक है। लेकिन उसकी शुरुआत कैसे हुई?
सद्गुरु: दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो योग नहीं है। इस अर्थ में, दुनिया में कोई चीज़ ऐसी नहीं है जो बाकी हर चीज़ के साथ एक नहीं है, सिवाय मानव मन के। मिट्टी के संदर्भ में भी हम यही बात कर रहे हैं। इस पृथ्वी पर, इस सौर मंडल में और इस ब्रह्मांड में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो आपस में जुड़ा हुआ न हो। तो सब कुछ योग में है। सवाल सिर्फ यह है कि आपको इसका अहसास है या नहीं।
अगर आपको इस बात का अहसास हो जाता है, अगर आप इसका अनुभव कर लेते हैं, फिर हम आपको योगी बुलाते हैं। योगी का अर्थ ऐसा व्यक्ति नहीं है जो शरीर को मोड़ता-मरोड़ता है। योगी का अर्थ है वह व्यक्ति जो अभी मेल का अनुभव कर रहा है। हालांकि आप एक व्यक्ति हैं, लेकिन आपका अनुभव आपकी व्यक्तिगत प्रकृति से परे चला गया है। आप अपने अस्तित्व की सार्वभौमिकता का अनुभव कर रहे हैं।