जब हम नदी की ओर जा रहे थे, तो एक व्यक्ति सारंगी बजा रहा था और गा रहा था। वह अपनी देहाती आवाज के चरम पर गाते हुए और अपनी ही धुन पर नाचते हुए कुछ देर हमारे लिए बजाता रहा। उसने शिव और हमारे गुरु की स्तुति में गीत गाए। जब जाने का समय हुआ, तो सारंगीवाला सद्गुरु के चरणों में गिर पड़ा और कहा, ‘आपके लिए गाकर, मैं अपने दुखों से मुक्त हो गया हूँ।’ उसने सद्गुरु में शिव को देखा। जब आखिरकार हम वहाँ से चले तो हर किसी ने सद्गुरु और उनकी भव्य सुंदरता के आगे सिर झुकाया। हमें ऐसा लगा मानो इस जगह की ऊर्जा सद्गुरु को पकड़कर रखने की कोशिश कर रही है, और हमें अतीत की दुखद पकड़ से बाहर निकालने के लिए सारंगीवाले की धुन और नाव की सवारी की जरूरत थी।
हम देर शाम भोपाल लौटे। हल्के नाश्ते के बाद, हम शहर में एक ड्राइव के लिए गए और अंत में शाम की सब्जी मंडी में सैर की। हल्की बूंदाबांदी हो रही थी और हमने भीगने की सारी हिचकिचाहट छोड़ दी। अपने गुरु को एक बच्चे की मासूमियत और जिज्ञासा के साथ बाजार में घूमते देखकर खुशी हो रही थी, वे हमें समझा रहे थे कि आलू उनके पैतृक शहर चिक्कबल्लापुर से आए थे। हमारे लिए यह एक ऐसा अनुभव था जिसे हम कभी नहीं भूल पाएंगे।
हमें अगली सुबह भोपाल से निकलना था। लेकिन हमारी उड़ान 5 घंटे से ज्यादा देर हो गई। हम वापस शहर में गए और शहर के बीचों-बीच मौजूद एक बड़ी झील में नाव की सवारी की। हमने नाविक से कहा कि वह हमें एक छोटे से टापू पर ले चले। वहाँ हम शाह अली शाह बाबा की समाधि पर पहुँचे। वह एक तपस्वी थे, जो एक लंबे समय तक उस छोटे टापू पर पाए जाने वाले कंदमूल को खाकर रहे थे। हमें बताया गया कि सभी धर्मों के लोग वहां अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।
नाव की सवारी और सुबह की ठंडी हवा और नाव पर किए गए ध्यान ने हमारे हौसले बुलंद कर दिए। उस यात्रा से पहले तक, भोपाल हमेशा गैस त्रासदी की भयानक तस्वीरों के लिए हमें याद आता था। लेकिन अब भोपाल मेरे दिल में गहरी श्रद्धा के साथ एक दर्द ले आता है।
- भारती देवी