सद्गुरु पंचतत्वों में सबसे मायावी आकाश-तत्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर कर रहे हैं।
प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, क्या आकाश सृष्टि का भौतिक हिस्सा है, जिसे शिव ने बनाया है? और सृष्टि का अस्तित्व खत्म होने पर क्या आकाश भी गायब हो जाएगा?
सद्गुरु: शिव को हमेशा से संहारक बताया गया है, इसलिए सृष्टि की रचना के लिए उन्हें दोष मत दीजिए। सारी ‘परेशानियाँ’ सृष्टि के कारण हैं। सब कुछ विनाश के साथ समाप्त होता है। तो, आपका मूल प्रश्न है, ‘क्या आकाश भौतिक है?’ आकाश सृष्टि के तत्वों में से एक है, इसलिए इसे भौतिक ही होना है। यह भौतिकता का अंतिम छोर है।
पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश – ये स्थूल से सूक्ष्म होते जाते हैं। आकाश एक तरह से भौतिक की अंतिम सीमा है। या इसे देखने का एक दूसरा तरीका है कि आकाश बाकी चार तत्वों का आधार है। आकाश से ही बाकी चार तत्व आए हैं। एक प्रकार से यही महत्वपूर्ण तत्व है। यह बेशक भौतिक है, लेकिन उस तरह से नहीं जैसा आप सामान्य रूप से भौतिक का अनुभव करते हैं। जो कुछ भी भौतिक है, उसमें आकाश तत्व होता है वरना पंचतत्वों के खेल के बिना कोई भौतिकता नहीं हो सकती।
भौतिक के निर्माण में आकाश की भागीदारी हर पदार्थ में, हर व्यक्ति में और एक जीवन से दूसरे जीवन में अलग-अलग हो सकती है। हरेक पदार्थ में, पांचों तत्व अलग-अलग अनुपात में मौजूद होते हैं, या कहें उनकी भागीदारी का स्तर अलग-अलग स्तर होता है। यही बात हर एक पदार्थ को दूसरे से अलग बनाती है। यह आकाश पर भी लागू होता है। किसी पदार्थ या व्यक्ति में आकाश की भागीदारी का स्तर बहुत अनूठा हो सकता है। आकाश तत्व भी दूसरे तत्वों की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में अलग-अलग होता है।
अगर हम यह देखने लगें कि किसी पदार्थ या व्यक्ति में आकाश की भागीदारी का स्तर क्या है और इसे कैसे मापा जाए तो लोग अनावश्यक रूप से जजमेंटल हो जाएंगे। अगर वह आपके भीतर अनुभव के स्तर पर जीवंत नहीं है, तो बौद्धिक रूप से यह कहना कि एक व्यक्ति का आकाश दूसरे व्यक्ति के आकाश से थोड़ा बेहतर है, और उसके आधार पर यह मान लेना कि एक इंसान दूसरे इंसान से थोड़ा बेहतर है, इस तरह की कोई राय कायम कर लेना बहुत गलत होगा। इसलिए इसकी गहराई में जाने की जरूरत नहीं है।
प्रश्नकर्ता: क्या ब्रह्मांड में ऐसे भी स्थान हैं, जहाँ आकाश नहीं होता, सिर्फ खाली स्थान होता है? क्या उसी को हम शिव कहते हैं?
सद्गुरु: हाँ। जैसे-जैसे आकाश दूर जाता है, वह ज्यादा सूक्ष्म होता जाता है। बेशक ऐसे स्थान हैं, जहाँ आकाश नहीं है। आकाश सर्व-व्यापी नहीं है, लेकिन वह एक विशाल स्थान घेरता है। मानव अनुभव में हमें लगता है कि वह हर जगह है। लेकिन ऐसा नहीं है - अंतरिक्ष के एक बड़े हिस्से में आकाश नहीं है। वास्तव में, अंतरिक्ष के एक बड़े हिस्से में पांच तत्वों में से कोई भी तत्व मौजूद नहीं है।
वैज्ञानिक कह रहे हैं कि कोबरा और दूसरे सांपों में किसी न किसी तरह की इंफ्रारेड दृष्टि होती है। इसका मतलब है कि वे जीवन के सूक्ष्म आयामों का बोध कर सकते हैं। एक कोबरा दिन में आकाश से परे देख सकता है। हम सब दिन में आकाश को देख पाते हैं। आप इसे रात में नहीं देख सकते - इसलिए आप तारे देख पाते हैं। एक तरह से कोबरा दिन में भी तारों को देख सकता है क्योंकि उसकी दृष्टि आकाश को भेद सकती है।
आकाश एक ख़ास तत्व का एक जाल है जो एक तरीके से प्रकाश को अपवर्तित (रिफ्रैक्ट) करता है और हमारे चारों तरफ एक छलावा बुनता है। आकाश जिस तरह से प्रकाश [1] को अपवर्तित करता है, उसी वजह से आसमान नीला दिखता है। कोई चीज़ प्रकाश को अपवर्तित करे, इसके लिए उसकी प्रकृति भौतिक होनी चाहिए। अगर वह भौतिक न हो तो कोई अपवर्तन नहीं होता। अपवर्तन का मतलब है कि प्रकाश का एक निश्चित विचलन हो रहा है।
तो आकाश से परे खाली स्थान, क्या वे खाली हैं? नहीं, ब्रह्मांड में खाली जगह जैसी कोई चीज़ नहीं है। यह एकदम गलत धारणा है। अगर आप आकाश रहित खाली जगह को शिव कहना चाहते हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि "शिव" का अर्थ है, वह जो नहीं है। हम भौतिकता से परे एक आयाम को शि-व कह रहे हैं, क्योंकि जो भौतिकता से परे है, स्वाभाविक रूप से इसका अर्थ है कि उस जगह पाँच तत्वों की कोई मौजूदगी नहीं है।