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निर्वाण षटकम् : इस शाश्वत मंत्र में ऐसा क्या है जो बनाता है इसे इतना शक्तिशाली? 

निर्वाण षटकम् मंत्र में कुछ ऐसा रहस्यमय है जो सुनने वाले को विस्मित कर देता है। अगर इस मंत्र की प्रतिध्वनि ने आपको भी सम्मोहित कर दिया है तो आइए जानिए सद्‌गुरु से इसके गहरे महत्व के बारे में : 

सद्‌गुरु: संगीत का मतलब है कुछ सुरीले ढंग से सजाई हुई ध्वनियाँ। अगर आप ध्वनियों को ज्यामितीय तरीक़े से सजाते हैं तो ये एक मंत्र बन जाता है। अगर आप ज्यामिति के साथ थोड़ा समझौता करके उसमें सौंदर्य डाल दें तो ये संगीत बन जाता है।  

निर्वाण का मतलब है, ‘ये नहीं, वो नहीं।’ अगर हम कहते हैं कि ‘आप ये हैं’ इसका मतलब है कि आप एक विशेष तरह के व्यक्ति हैं। ‘आप वो हैं’-इसका मतलब है आप दूसरे विशेष प्रकार के व्यक्ति हैं। सारी आध्यात्मिक क्रियाओं का मक़सद है ‘आप क्या हैं’ - इसकी परिभाषा को मिटाना। क्योंकि परिभाषा में सीमित हो जाना एक तरह की कैद है। ये कहना कि ‘मैं ऐसा हूँ’- ये एक तरह की सीमा है।

असीमता की ओर

योग का मतलब है अपने व्यक्तित्व की सीमाओं को मिटाना। इसका मतलब है आप जो हैं उसके निश्चित ढाँचे को मिटा देना-एक आकारहीन, प्रकारहीन और असीमित प्राणी बन जाना। इसके लिए आपको ख़ुद को कई तरीक़ों से इस्तेमाल करना होगा। निर्वाण षटकम् किसी भी तरह की परिभाषा से परे जाने के बारे में है। ये बहुत ही गूढ़ मंत्र है। इसे श्री आदिशंकराचार्य ने 1200 साल पहले लिखा और लयबद्ध किया था। 

इस ध्वनि को सुनना या इसका जाप करना महत्वपूर्ण है। अगर मैं कोई शब्द बोलता हूँ तो आपके दिमाग़ में उससे जुड़ा एक अर्थ उभरता है। ध्वनि का अपने आप में कोई अर्थ नहीं होता। ये तो बस हमें सिखाया गया है कि किसी विशेष ध्वनि का कुछ ख़ास अर्थ होता है। ये एक तरह से आपके और हमारे बीच की आपसी समझ है। लेकिन वास्तविकता में ध्वनि का कोई मतलब नहीं है। 

ध्वनि में ज्यामिति को खोजना

अगर मैं ‘पेड़’ कहूँ तो इस ध्वनि की गूँज और पेड़ की आकृति के बीच कोई संबंध नहीं है। ये केवल एक शब्द है। अगर किसी को अंग्रेज़ी नहीं आती हो और वो ‘ट्री’ शब्द सुने तो उसे समझ नहीं आएगा कि ये क्या है।

अगर आप इस ध्वनि की ज्यामिति का बार-बार उच्चारण करते रहे तो धीरे-धीरे ये आपको शरीर और मन दोनों से कुछ दूर ले जाएगा।

तो भाषा कुछ लोगों के बीच की एक साज़िश है। लेकिन जब निर्वाण षटकम् की बात आती है तो आप उसके अर्थ और दर्शन को समझने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन ये महत्वपूर्ण नहीं है। अगर आप इस ध्वनि की ज्यामिति का बार-बार उच्चारण करते रहे तो धीरे-धीरे ये आपको शरीर और मन दोनों से कुछ दूर ले जाएगा। शरीर और मन नामक इन दो उपकरणों ने आपके जीवन के अनुभव को एक तरह से विकृत कर दिया है। लेकिन इस शरीर, इस मन, इस धरती के बिना यहाँ हमारा अस्तित्व मुमकिन ही नहीं है। 

स्वयं को मुक्त कीजिए

आप इस धरती के बिना नहीं रह सकते, लेकिन अगर आपको इस धरती में गाड़ दिया जाए तो जो आपका पोषण करने वाला है वही आपका बैरी बन जाएगा। अगर आप इस धरती पर चल पाते हैं तो ये आपके लिए खूबसूरत अनुभव है लेकिन अगर आप उसमें धंस जाएं तो बात कुछ और हो जाएगी। यही बात शरीर पर भी लागू होती है। जब तक आप इस शरीर में जीते हैं तब तक ये अद्भुत है लेकिन अगर आप इस शरीर के साथ अटक गए तो हालत कुछ और होगी। अगर आप अपने मन के साथ अटक गए तो आप एक मनोरोगी बन जाएँगे। 

निर्वाण षटकम् के पीछे बहुत ही गूढ़ अर्थ है। आसान शब्दों में कहें तो इसका मतलब है ‘मैं ये नहीं हूँ, मैं वो भी नहीं हूँ।’ निर्वाण मतलब वो जिसका कोई आकार नहीं हैं, करीब-करीब अस्तित्वहीन। क्योंकि अस्तित्व की आपकी समझ भौतिक तक सीमित है। प्रत्येक भौतिक वस्तु की एक नाप, आकार और प्रकार होता है। इसी को आप सृष्टि कहते हैं। चाहे वो आप स्वयं हों, एक पेड़ हो, ग्रह हो, सूर्य, चंद्र, आकाशगंगा हो, आप सिर्फ़ सृष्टि के कुछ कणों को देखते हैं। आपने अभी तक वो नहीं देखा जिसका भौतिक स्वरूप नहीं है। जिसका भौतिक स्वरूप नहीं है वो आपकी समझ में सृष्टि का हिस्सा नहीं है। तो निर्वाण का मतलब है इसके और उसके परे। ये एक नकारात्मक शब्द है। निर्वाण हमारी परंपरा में पहले से है लेकिन गौतम बुद्ध ने इसे मशहूर कर दिया।

निर्वाण, मुक्ति, मोक्ष - सब एक ही है?

पूर्वी संस्कृति के योगी प्रायः सकारात्मक भाषा का प्रयोग करते हैं। तो उन्होंने इसे मुक्ति या मोक्ष कहा - जिसका मतलब है ‘आजादी’। वास्तव में ये एक ही चीज है। आपको मुक्ति चाहिए या अस्तित्वहीनता चाहिए? 

लोगों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने ‘मुक्ति’ शब्द का प्रयोग किया। जब लोग पहली बार आते थे तो वे कहते कि हम आपको मुक्त कर देंगे। गौतम बुद्ध ने शुरूआत में कहा ‘हम आपको मिटा देंगे’। ये एक नकारात्मक तरीका नहीं था। अगर हम सारी सीमाएँ मिटा दें तो आप वहाँ होकर भी नहीं होंगे।

आप और आपके शरीर के बीच थोड़ी दूरी, आप और आपके मन के बीच थोड़ी दूरी, एक संभावना पैदा करेगी कि आप अभौतिक का अनुभव कर सकें।

ये ध्यान की तरह है। और अगर आपको ध्यान का गहरा अनुभव न हो तो कम से कम नींद में आप वहाँ होते हैं और नहीं भी होते हैं। क्योंकि आप उस अवस्था में रोज जाते हैं इसलिए आपको कोई परेशानी नहीं होती। लेकिन अगर आप 2 दिन न सोएं तो तीसरे दिन आपका हाल बुरा हो जाएगा।

ये नहीं, वो भी नहीं

तो निर्वाण बहुत महत्वपूर्ण है – अगर आप यहाँ न इस रूप में, न उस रूप में रहना चाहते हैं। हो सकता है आप में से कुछ लोगों को ये असंभव लगे, लेकिन ये मंत्र आप सीख सकते हैं।

सबसे बढ़कर, इसकी ध्वनियाँ कुछ ऐसी हैं कि निर्वाण षटकम् को लगातार सुनते रहने से धीरे-धीरे आपमें और भौतिक में कुछ दूरी पैदा हो जाएगी। आपमें जो भी भौतिक है वो सब इकट्ठा किया हुआ है। आप और आपके शरीर के बीच थोड़ी दूरी, आप और आपके मन के बीच थोड़ी दूरी, एक संभावना पैदा करेगी कि आप अभौतिक का अनुभव कर सकें। 

एक बार आपने अभौतिक को स्पर्श कर लिया तो आपके अस्तित्व को असीम के एक पहलू का बोध हो जाता है। ये मेरी कामना और आशीर्वाद है कि आपमें से प्रत्येक मनुष्य को इसका अनुभव हो। यहाँ इस मानव रूप में आने के बाद, आपको भौतिकता के परे क्या है इसे ज्ञात किए बिना नहीं जाना चाहिए।