सद्गुरु: आख़िर ये नौबत क्यों आई कि आज हमें मिट्टी को बचाने की बात करने की ज़रूरत पड़ रही है? ऐसी स्थिति कैसे पैदा हुई? जाने अनजाने हम सब इस विनाश के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस स्थिति को बदलने का एक ही तरीक़ा है कि हम सब समाधान का हिस्सा बनें।
सद्गुरुमर रही मिट्टी की हालात के बारे में बात करते हुए बता रहेहैंकिहमें अभी कदम उठाने की ज़रूरतक्यों है, कैसे हम में से हर कोई इस समस्या के समाधान में भागीदार बन सकता है, और अभी तक कितनी सफलता हासिल हुई है? काठमांडू में 2 सितम्बर 2022 को ‘मिट्टी बचाओ’ अभियान के एक कार्यक्रम में ‘सद्गुरु’ से बातचीत का एक अंश।
सद्गुरु: आख़िर ये नौबत क्यों आई कि आज हमें मिट्टी को बचाने की बात करने की ज़रूरत पड़ रही है? ऐसी स्थिति कैसे पैदा हुई? जाने अनजाने हम सब इस विनाश के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस स्थिति को बदलने का एक ही तरीक़ा है कि हम सब समाधान का हिस्सा बनें।
यह एक इंसान, एक सरकार, या एक मंत्रालय के बस की बात नहीं है। इसे इंसानियत का मक़सद बनाने की ज़रूरत है, क्योंकि हम अपने अस्तित्व के आधार को ही नष्ट कर रहे हैं। अपनी संस्कृति में हमने मिट्टी को हमेशा माँ का दर्ज़ा दिया है। जब हम माँ कहते हैं तब हम जीवन के स्रोत के बारे में बात कर रहे होते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ दशकों से हमने मिट्टी के साथ एक संसाधन की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया है। मिट्टी जीवन का स्रोत है, कोई संसाधन नहीं जिसका हम इस्तेमाल करते हैं ।
लेकिन हमने ऐसा ही किया है। जब आप उस चीज़ को बाहर ढूँढेंगे, जो आपके अंदर है, तो आप सब कुछ नष्ट कर देंगे। खुशहाली की तलाश में हमने जो हालात पैदा किए हैं उसने हमारे जीवन के आधार को ही ख़तरे में डाल दिया है। अगर आपके बच्चे हैं, तो उनको खुद से बेहतर जीवन देने की चाहत आपके अंदर से आएगी। लेकिन ऐसे नेक इरादे से, देखिए हम कैसा संसार बना रहे हैं!
कहा जा रहा है कि 2045 तक हमारे पास 40 प्रतिशत कम भोजन होगा। अगर खाने की कमी होती है तो हमारे बच्चे अच्छा जीवन नहीं जी पाएँगे, आप उन्हें चाहे कितना भी धन-दौलत, शिक्षा, या और कुछ भी दे दें। ये गम्भीर हालात दिन प्रतिदिन तेज़ी से बिगड़ते जा रहे हैं। अनुमान है कि 2032 तक लगभग 3.5 अरब लोग पानी की कमी से जूझ रहे होंगे। इसका मतलब है हर दिन पीने का पानी मिलना भी एक चुनौती होगी। यह डराने के लिए कोई दार्शनिक बात नहीं कही जा रही है – ऐसा बेहद ज़िम्मेदार वैज्ञानिकों का कहना है।
सौभाग्यवश पिछले कुछ महीनों में मिट्टी हमारी बातचीत का हिस्सा बन गई है। बहुत से देशों ने अपनी खुद की नीतियाँ बनानी शुरू कर दी हैं। अमेरिका ने मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए 8.5 अरब डालर का निवेश किया है, जो कि एक बहुत बड़ा और सराहनीय कदम है। इंग्लैंड ने मिट्टी को सुरक्षित रखने वाली फ़सलों की सब्सिडी में 1.3 अरब डालर का निवेश किया है। जर्मनी ने मिट्टी को पुनर्जीवित करने की ऐसी ही प्रक्रिया में 4.5 अरब डालर का निवेश किया है।
यूरोपियन संघ ने मिट्टी योजना के लिए परामर्श प्रक्रिया को अपनाया है क्योंकि ऐसे बहुत से देश हैं जिनका समर्थन ज़रूरी है। हमारे साथ कैरेबियन राष्ट्र बहुत सक्रिय रहे हैं। गुयाना ने हमें 100 वर्ग किलोमीटर का भूभाग दिया हैं जहाँ वो चाहते हैं कि हम उन्हें करके दिखाएं कि इसे कैसे संभव किया जा सकता है। भारत ने देश भर में 13 नदी क्षेत्रों में मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए 19 हज़ार करोड़ का निवेश किया है, जो कि भारत के कृषि भूभाग का 67 प्रतिशत हिस्सा होगा। यह एक बहुत बड़ा कदम है। चीन अपनी खुद की नीति बनाने की प्रक्रिया में है।
तो, दुनिया इस सिलसिले में प्रतिक्रिया दे रही है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि एक प्रजातांत्रिक देश में आप भी एक नेता हैं। यह बहुत ज़रूरी है कि आप यह न सोचें कि यह कोई और करने वाला है। देश चलाना एक बहुत ही मुश्किल काम है। इस धरती पर ज़्यादातर सरकारें ऐसी चीज़ें करने की कोशिश कर रही हैं जो 5 सालों के अंदर परिणाम देंगी। क्योंकि किसी भी देश की 60 प्रतिशत युवा जनसंख्या ने पहले कभी एक साथ यह नहीं कहा है कि, ‘हम देश के भविष्य के लिए चिंतित हैं। हम अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हैं।’
ऐसी बात को कभी ज़ाहिर नहीं किया गया है। सभी लोग इतना ही चाहते हैं, ‘मेरी गैस की कीमत 5 रूपए कम कर दो। मुझे आयकर में 1 प्रतिशत की छूट दे दो।’ लेकिन देश की दीर्घकालीन भलाई के बारे में कोई बात नहीं कर रहा। अब समय आ गया है कि किसी भी देश के समझदार नागरिक खड़े हों और देश की दीर्घकालीन भलाई के लिए आवाज़ उठाएं। यह बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो यह नहीं होने वाला।
अगर आप चाहते हैं की सरकारें देश के दीर्घकालीन भविष्य के लिए निवेश करें, तो आपको आवाज़ उठानी होगी। आपकी ज़िम्मेदारी बस वोट देने तक नहीं है - आपकी ज़िम्मेदारी आवाज़ उठाने की भी है। और आज सौभाग्यवश तकनीक और सोशल मीडिया की वजह से आप घर बैठे ही अपनी आवाज़ उठा सकते हैं। आपको इसके लिए सड़क पर जाकर खड़े होने की ज़रूरत नहीं है।
अगर आपके दिल में प्रेम और ज़िम्मेदारी की थोड़ी भी भावना है, तो आपके फोन की ताकत भी बहुत ज़्यादा है। अगर आप सही मायने में प्रतिबद्ध हैं, तो आप सारी दुनिया तक पहुँच सकते हैं। अगर आप सब एकजुट हो जाते हैं, तो आपको कोई नहीं रोक सकता।
यह कोई विरोध प्रदर्शन नहीं है, यह आंदोलन भी नहीं है, यह हमारे गुस्से का प्रदर्शन या किसी पर इलज़ाम लगाना भी नहीं है। हम सब ने जाने अनजाने यह नुक़सान किया है। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, हम बस 1.6 अरब लोग थे, आज हम 8 अरब तक पहुँच गए हैं। हम इतने लोगों को रसायनों और उर्वरकों की वजह से ही खिला पाने में सक्षम हुए हैं। लेकिन साथ ही, हमने अपनी मिट्टी को बुरी तरह आहत कर दिया है। समय आ गया है कि एक पीढ़ी के तौर पर हम पीछे मुड़कर चीज़ों को ठीक करें।
पीछे मुड़ने का मतलब उर्वरकों और रसायनों के इस्तेमाल पर कठोरता से रोक लगा देना नहीं है। अगर आप जैविक पदार्थों को बढ़ाते हैं, तो उर्वरकों के इस्तेमाल की ज़रूरत खुद ही कम हो जाएगी। हमें तब तक धैर्य रखना होगा। आप सब को खुद को मिट्टी के बारे में जागरूक करना होगा। आप जहां भी जाते हैं, कम से कम 2 -5 मिनट तक, आपको मिट्टी के बारे में कुछ जागरूकता बढ़ाने के लिए बोलना होगा।
लोगों के समर्थन के बिना, यह संभव नहीं है। कृपया इसे संभव बनाएं। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2032 तक, खाने और पानी की कमी के कारण, 1.3 अरब लोग विस्थापित होंगे। जबरन विस्थापित होना इंसानों के लिए अनचाहा कष्ट ला सकता है, खासतौर से औरतों और बच्चों के लिए। कृपया इंसानियत को एक बार फिर उस दिशा में न ले जाएं। किसी भी देश के दीर्घकालीन भविष्य के लिए, उस देश की ज़रूरत का खाना वहीं पैदा होना बहुत ज़रूरी है।
आप भी मिट्टी ही हैं - चलती फिरती मिट्टी। यह एक छोटा सा जीवन है। इसमें इतना झमेला- बस इसलिए क्योंकि हम अपने अस्तित्व की वजह भूल गए हैं। ज़्यादातर इंसान इस बारे में जागरूक नहीं हैं कि हम में से कोई भी यहाँ हमेशा के लिए नहीं है। यह शरीर मिट्टी में ही मिल जाएगा। अगर आप इंसान हैं, तो यह आपका सौभाग्य है कि जागरूक होकर आप अपने साथ सब कुछ कर सकते हैं। इसी वजह से मिट्टी बचाओ अभियान को ‘जागरूक धरती’ के बैनर के तहत रखा गया है।
इस वक्त इंसान अपनी खुद की बुद्धिमता के कारण कष्ट में हैं। बुद्धिमता इकलौता समाधान है, लेकिन हमने इसे समस्या में बदल दिया है, क्योंकि हम जागरूक नहीं हैं। अगर आप अपने हाथ में तेज़ धार वाली कोई वस्तु रखते हैं, तो आपको उसे संभालना आना चाहिए। अगर आप जागरूक नहीं हैं, तो यह बहुत खतरनाक हो सकता है।
जागरूक इंसान बनाए बिना, जागरूक धरती संभव ही नहीं है। जागरूक धरती के बिना, किसी चीज़ का कोई समाधान संभव नहीं है, क्योंकि हम हर चीज़ को मुसीबत में बदलने की योग्यता रखते हैं। इसलिए, आइए जागरूक धरती बनाते हैं।
एक पीढ़ी के रूप में, हमारे सामने मिट्टी के लुप्त हो जाने की चुनौती है, लेकिन हमारे पास यह अवसर भी है कि हम एक पीढ़ी के रूप में आपदा तक पहुँचकर भी पीछे मुड़ सकते हैं। हम ऐसी पीढ़ी नहीं बनना चाहते जो आपदा तक पहुँचने के बाद मातम मनाए। यह समय है कि हम सब एकजुट होकर इस परिस्थिति को बदलें। और यह कोई राकेट विज्ञान नहीं है, न ही इसमें बहुत खर्चा करने की ज़रूरत है। इसके लिए बस सही दिशा चाहिए और अडिग प्रतिबद्धता। इसके लिए बस इतनी ही ज़रूरत है। आइए इसे संभव बनाएं।