जागरूक जीवन

नवरात्रि का अवसर : सरस्वती, दुर्गा और लक्ष्मी में कौन कितनी महत्वपूर्ण? 

नवरात्रि तीन देवियों - लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के रूप में दिव्य स्त्री-शक्ति का उत्सव मनाने का समय है। सद्‌गुरु यहाँ बता रहे हैं कि ये तीनों किन-किन गुणों को दर्शाते हैं, और ये भी समझा रहे हैं कि एक सम्पूर्ण जीवन जीने के लिए आपका ध्यान किस पर होना चाहिए। 

प्रश्नकर्ता: सद्‌गुरु, देवी लक्ष्मी हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं?

सद्‌गुरु: लक्ष्मी धन-संपत्ति और ख़ुशहाली का प्रतीक हैं। यदि एक इंसान ख़ुशहाल है तो धनवान होना या न होना एक चुनाव होना चाहिए। हमने ख़ुशहाली को धन से कुछ ज़्यादा ही जोड़ रखा है। इससे हम ये मानने लगे हैं कि यदि हमारे पास धन होगा तभी हम अच्छे से होंगे। ऐसा नहीं है, क्योंकि भारत में जिसे धन माना जाता है हो सकता है दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में उसे धन न माना जाए। संपत्ति उससे एक तरह की तुलना है, जिसके पास हमसे कुछ कम है। 

चलिए हम अपने जीवन को इस तरह नहीं तौलते कि हमारे पास क्या है और हमने इस दुनिया से क्या लिया है। आइए हम जीवन और जीवन के मूल्य को ख़ुशहाली से तौलें जो केवल हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर नहीं करता, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि हम अपने भीतर कितने शांत, ख़ुश और आनंदित हैं।

यदि आप शांत, ख़ुश और आनंदित हैं तो बाक़ी चीज़ें – जैसे हमारे पास कितनी धन-संपत्ति है, हम कितना इस्तेमाल करते हैं और हम क्या काम करते हैं, ये सब चीज़ें समय तय कर देगा। हमारे पास आज जीवन में जो कुछ है वो सब केवल हमारा किया हुआ नहीं है – वो उस समय का परिणाम है जिसमें हम रह रहे हैं। यदि आप यहाँ हज़ार साल पहले होते तो क्या आपके पास कार होती? बिलकुल नहीं। तो ये मत सोचिए कि जो कुछ आपके पास है वो आपका किया हुआ है। कुछ हद तक ये हमारी कोशिश का नतीजा हो सकता है लेकिन बड़े रूप में ये हमारे समय का परिणाम होता है।

लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती और उनके गुण

प्रश्नकर्ता: लेकिन सद्‌गुरु हम बहुत कुछ पाना चाहते हैं, जैसे धन-संपत्ति, ज्ञान और शक्ति। तो हमारे जीवन में लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के महत्व का क्या क्रम होना चाहिए?

सद्‌गुरु: क्रम की बात करें तो निश्चित रूप से पहले सरस्वती, फिर दुर्गा और फिर लक्ष्मी आनी चाहिए। सबसे पहले ज्ञान, विनम्रता, अपने आस-पास हर किसी की देखभाल की भावना, फिर शक्ति और फिर धन का क्रम आना चाहिए। नहीं तो यदि आपके पास धन है और ज्ञान नहीं है, दूसरों के लिए फ़िक्र नहीं है, तब धन-संपत्ति एक भद्दी चीज़ हो जाती है। ऐसा कई बार हुआ है कि धनवान लोगों ने दुनिया में सबसे बुरी संस्कृति का निर्माण कर दिया। ये बहुत आवश्यक है कि पहले सरस्वती आएं फिर शक्ति और फिर धन।

यदि आप दुनिया में पहले स्थान पर होना चाहते हैं, तो इसका सीधा अर्थ ये है, कि आप बाक़ी हर किसी की असफलता से ख़ुश होते हैं।

लोग हमेशा अपनी तुलना किसी दूसरे से करते रहते हैं, और वे अपने पड़ोसी से थोड़ा ज्यादा पाना चाहते हैं। यदि किसी के पास 10 रुपए हैं, तो आप 20 रुपए पाना चाहेंगे। यदि उनके पास 100 है, तो आप 200 पाना चाहेंगे। यदि उनके पास 200 करोड़ है, तो आप 400 करोड़ पाना चाहेंगे। ये धन की मात्रा की बात नहीं है, ये आस-पास के लोगों से तुलना की बात है। यदि आप एक गाँव में हों जहां कोई 100 रु प्रति दिन कमा रहा हो, तो आप 200 रुपए कमाकर ख़ुद को धनवान मानेंगे। लेकिन यदि आप मुंबई में हों तो आपके मानक बदल जाएंगे।

दुर्भाग्य से आपके दिमाग को इस तरह सिखाया गया है, कि वो हमेशा किसी और से बेहतर होना चाहता है। यदि आप दुनिया में पहले स्थान पर होना चाहते हैं, तो इसका सीधा अर्थ ये है, कि आप बाक़ी हर किसी की असफलता से ख़ुश होते हैं। इसे बदलना होगा। जब हम दूसरों की असफलता से खुश होते हैं, तब आप इसे बेहतर होना नहीं कह सकते। ये एक तरह की बीमारी है।

तुलना विकास को खत्म कर देती है 

यह आवश्यक है कि एक इंसान के तौर पर हम जो कुछ भी करें, उसे सबसे बेहतर संभव तरीके से करें और उसे अपनी कुशलता, क्षमता और संसाधनों का उपयोग करके सबसे अधिक ऊंचाई पर ले जाएँ। यदि हम इस पर ध्यान देते हैं, तो हम न केवल अपनी बल्कि अपने आस-पास हर किसी की ख़ुशहाली सुनिश्चित करेंगे।

एक आम का पेड़ यह कामना नहीं करता कि वह नारियल पैदा कर सके। वह बस एक सम्पूर्ण आम का पेड़ बनना चाहता है। दुनिया में हर एक जीवन एक सम्पूर्ण जीवन बनना चाह रहा है। वैसे ही एक मनुष्य भी सम्पूर्ण मनुष्य बनना चाह रहा है। लेकिन अभी क्योंकि बहुत सारे मनुष्यों ने अपने भीतर उस पूर्णता का अनुभव नहीं किया है तो वो हमेशा स्वयं की तुलना किसी दूसरे से कर रहे हैं, और किसी और से बेहतर बनना चाह रहे हैं।

किसी और से बेहतर होने का अर्थ है किसी से ऊपर होना। यानी एक तरीके से आप हर किसी को खुद से कम देखना चाहते हैं। ये एक अच्छी चाहत नहीं है। आवश्यक ये है कि आप एक जीवन के तौर पर पूर्ण अभिव्यक्ति प्राप्त करें। आपकी कुशलता, क्षमता और ज्ञान को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त होना चाहिए, किसी से तुलना करने की कोई आवश्यकता नहीं है।