विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों के परे भी एक विशाल विज्ञान है – योगिक विज्ञान, जो जीवन की गहरी समझ से आता है। यहाँ सद्गुरु, योगिक दृष्टिकोण से जीवन के एक मूल आयाम – ‘नाद’ (यानी ध्वनि) के बारे में बता रहे हैं।
सद्गुरु: करीब 6000 साल पहले एक योगी ने बताया कि एक ऐसी ध्वनि है जो शून्य (अंतरिक्ष) से गुजरती है और जब तक आप उस ध्वनि को सुन नहीं लेते, आपका जीवन सम्पूर्ण नहीं है। कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने इस बात का ये कहते हुए मजाक उड़ाया था कि ‘इस योगी को कुछ बुनियादी स्कूली ज्ञान की जरूरत है, क्योंकि ध्वनि निर्वात (जहाँ हवा भी नहीं होती) से गुज़र नहीं सकती। ध्वनि को दूरी तय करने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।’
अब भौतिक शास्त्रियों ने इस विषय पर अपना मत पूरी तरह से बदल लिया है। जब उस योगी ने ध्वनि के शून्य से गुज़रने की बात कही तो ये अज्ञानतावश नहीं था। योगिक विज्ञान में हम 4 तरह की ध्वनियों की बात करते हैं।
पहले प्रकार की ध्वनि को ‘वैखरी’ कहते हैं। ये वो ध्वनि है जो मैं बोलता हूँ और आप सुनते हैं – यानी भौतिक ध्वनि। ध्वनि का दूसरा रूप मध्यमा है, जिसका मतलब है ‘मध्य में’। अगर मैं ‘चॉकलेट’ कहूँ या आपको कुछ चॉकलेट जैसा दिखाऊँ और आपका मन कहे, ‘ओह चॉकलेट’, तो ये केवल विचार नहीं है - ये एक ध्वनि है जो आपके मन के किसी आयाम से आती है। ये महज़ एक कल्पना नहीं है - ये एक आवाज़ है जिसे आप सुनते हैं, विचारों का कंपन।
ध्वनि के तीसरे आयाम को ‘पस्यंति’ कहा जाता है। पस्यंति किसी विशेष ध्वनि को गढ़ने का आपके मन का गुण है। मैंने आपको कुछ नहीं दिखाया, मैंने ‘चॉकलेट’ नहीं कहा, बिना किसी बाहरी सहयोग के आपके मन के किसी गहरे कोने से ‘चॉकलेट’ शब्द निकलकर आता है। ये मेरे कुछ कहने की प्रतिक्रिया या परावर्तन नहीं है। आपका मन अंदर से इसकी रचना कर सकता है।
ध्वनि के चौथे आयाम को परावाक् कहा जाता है। वाक् का मतलब है वाणी, परा मतलब दैवीय या सृष्टि का स्रोत। ये सृष्टिकर्ता की आवाज़ सुनने जैसा है। मैं उन मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की बात नहीं कर रहा हूँ जो भगवान को अपनी सहूलियत के हिसाब से सुनने की कल्पना कर लेते हैं। मैं उस स्पंदन की बात कर रहा हूँ जो सृष्टि और स्रष्टा का आधार है।
ईश्वर या आध्यात्मिक क्रियाओं और ध्वनियों को सुनने के नाम पर बहुत सारी निरर्थक चीज़ें हुई हैं। लेकिन उन सबमें एक महत्त्वपूर्ण बात कही गई है, ‘सृष्टि के शुरुआत में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ही ईश्वर था।’ शब्द ध्वनि की मानवीय व्याख्या है।
जब मैं बात कर रहा हूँ तो मैं शब्द उगल रहा हूँ या कुछ आवाज़ें निकल रहा हूँ? मैं केवल आवाज़ें निकाल रहा हूँ। आप उन आवाज़ों का शब्दों के रूप में अर्थ निकाल रहे हैं। इस ब्रह्मांड में कहीं भी शब्द नहीं हैं, केवल ध्वनि हैं। क्योंकि हम अलग-अलग चीज़ों को पहचानने के लिए अलग-अलग आवाज़ों का इस्तेमाल करना चाहते हैं, इसलिए हम उन्हें शब्द कहते हैं। नहीं तो ये केवल ध्वनियाँ हैं। इसलिए जब उन्होंने कहा, ‘शब्द’ तब वे उस नाद के बारे में बात कर रहे थे जो आपके सभी प्रकार के काल्पनिक ईश्वरीय रूपों से बड़ा है। यही वो नाद है जिसके बारे में वे योगी बता रहे थे जब उन्होंने कहा कि अगर किसी ने ये नाद सुन लिया हो तो उसका जीवन सम्पूर्ण है।
वह नाद जो निःशब्दता का आधार है, बिलकुल स्थिर चेतना, उसी को परावाक् कहा जाता है। अगर हम आपको जीवन के कई आयामों, सृष्टि, अस्तित्व, ज्ञान, कई प्रकार के अनुभव और अभिव्यक्तियों के बारे में समझाना शुरू करें तो इस कहानी का कोई अंत नहीं होगा क्योंकि ब्रह्मांड अंतहीन है। लेकिन अगर आप इस एक ध्वनि को सुन लें जो अनादि है, तो आप ये सब प्राप्त कर लेंगे।
जब अनादि को सुन लिया जाता है तो उसके बाद इस अंतहीन विस्तार में और कोई संघर्ष नहीं रह जाता, और कोई कहानी नहीं रह जाती। सब कुछ आपको एक बार में ही मिल जाता है।