योग और ज्ञान

क्रोध को समाप्त कर आनंद में कैसे जिएं?

सद्‌गुरु बताते हैं एक अनोखे दृष्टिकोण के बारे में जिसकी मदद से क्रोध और द्वेष जैसी नकारात्मक भावनाओं से निपटा जा सके। वे अपने आत्म-ज्ञान के क्षणों को याद करते हुए पूरी दुनिया के साथ अपने परमानंद को साझा करने के अपने इरादों के बारे में भी बताते हैं।  

सद्‌गुरु: कई लोग मुझसे पूछते हैं कि क्रोध को काबू में कैसे किया जाए या फिर संभाला कैसे जाए। क्रोध मतलब आप काबू से बाहर चले गए हैं। ‘मैं आपे से बाहर हूँ – मुझे कैसे संभाला जाए?’ ये बड़ा ही अजीब सवाल है।  

इतना क्रोध क्यों? 

धार्मिक लोग क्रोधित होते हैं क्योंकि कोई उनके भगवान का अपमान कर रहा है, और निश्चित रूप से उन्हें लगता है कि भगवान उनके क्रोध का समर्थन करते हैं। जो लोग सोचते हैं कि वे किसी से प्यार करते हैं वे हमेशा उस व्यक्ति के प्रति अपनी परवाह की वजह से क्रोधित होते हैं। माता-पिता अपने बच्चों से क्रोधित होते हैं क्योंकि उनके बच्चे सफलता की सीढ़ियां नहीं चढ़ रहे। शिक्षक अपने छात्रों से नाराज़ रहते हैं, क्योंकि उन्होंने 35 सालों में जो सीखा, उसे छात्र 12 महीनों में नहीं सीख पा रहे।  

लगता है कि हरेक इंसान किसी न किसी से नाराज़ है। आपका ग़ुस्सा असल में किसी व्यक्ति-विशेष के प्रति नहीं है, आप अपने ग़ुस्से के लिए किसी को बहाना बना रहे हैं। आप इसे क्रोध, दुःख या चिंता का नाम दे सकते हैं, किन्तु वास्तव में आपकी बुद्धि आपके ख़िलाफ़ काम कर रही है। ये कुछ ऐसा है जैसे आपका हाथ आपके काबू से बाहर होकर आपको ही मारने लगे।

आपको क्रोध के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है। आपको ख़ुद के लिए कुछ करने की जरूरत है।

अगर आपका हाथ आपको ही मारने लग जाए तो सब समझ जाएँगे कि आपका दिमाग काबू से बाहर हो गया है। लेकिन अगर आप कुछ ऐसा ही अपने विचार और भावनाओं के साथ करें तो आप इसे क्रोध, दुःख, द्वेष और घृणा कहते हैं। ये सारे ऐसे ज़हर हैं जो आप ख़ुद पीते हैं और उम्मीद करते हैं कि दूसरा इंसान मरेगा। सौभाग्य से ऐसा होता नहीं है। अगर आप ज़हर पीते हैं तो आप ही मरते हैं, सृष्टि बहुत न्यायसंगत है।  

जब आप क्रोधित होते हैं तो वास्तव में क्या हो रहा होता है?

तो सवाल है कि आप क्या कर सकते हैं? आपको क्रोध के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है। आपको ख़ुद के लिए कुछ करने की जरूरत है। जब आप वास्तव में क्रोधित होते हैं तो अक्सर आप उस व्यक्ति से ज्यादा पीड़ा में होते हैं जिस पर आप क्रोधित हैं। आप ख़ुद को दुख क्यों देते हैं।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके विचार और भावनाएँ आपसे निर्देश नहीं लेते। उनका अपना ही कुछ चल रहा होता है। दूसरे शब्दों में आपका अस्तित्व संयोगवश है। जब आपका अस्तित्व संयोगवश होता है तो क्रोध, दुख, चिंता और पागलपन का होना सामान्य बात है। अंग्रेजी में एक वाक्य है जो क्रोधित होने पर अक्सर बोला जाता है – ‘ आइ एम मैड ऐट यू।’ तो आप पागल किसी भी वजह से हो सकते हैं लेकिन अहम बात ये है कि आप बस पागल हैं।  

क्रोध का मूल कारण

अक्सर लोग सोचते हैं कि उनके क्रोध का कारण कोई ख़ास इंसान है, चाहे वह उनके ऑफ़िस में हो या घर में या फिर कोई राह चलता आदमी। लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। अगर आप अकेले हों फिर भी आपको क्रोध के लिए कुछ न कुछ तो मिल ही जाएगा- चाहे वह हो या न हो, क्रोध की वजह चाहे आपके पास किसी चीज़ का नहीं होना हो, या किसी ख़ास चीज़ का होना हो। 

तो दरअसल आपका क्रोध किसी के बारे में नहीं है, आपका क्रोध आपके काबू से बाहर हो जाने की वजह से है। आपके पास जो सबसे बड़ी क्षमताएँ हैं – वे हैं याद्दाश्त, कल्पना शक्ति और आपकी अभिव्यक्ति की क्षमता जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। अगर दुनिया में जो कुछ भी है उन सबको उसके वास्तविक रूप में आपको समझना हो तो कई लाख वर्ष लग जाएंगे। अगर आप एक पत्ते या एक चींटी को सम्पूर्ण रूप से समझना चाहते हैं तो एक पूरा जीवन लग जाएगा। लेकिन भावना बुद्धि का ही एक ऐसा आयाम है जिससे आप जीवन को केवल अपने में समावेश करने मात्र से समझ सकते हैं।

आपका क्रोध किसी के बारे में नहीं है, आपका क्रोध आपके काबू से बाहर हो जाने की वजह से है।

आप किसी को ख़ुद में शामिल करके उसे समझ सकते हैं - आपको उसे समझने के लिये काटने या चीरने-फाड़ने की जरूरत नहीं है। आप चीर-फाड़ से वास्तव में किसी को समझ नहीं सकते, जो कुछ सांसारिक बातें समझ भी आएंगी वो वास्तविक ज्ञान नहीं हैं। भावना बुद्धि का वो आयाम है जिससे आप जीवन को एक रोचक और अद्भुत ढंग से बड़े ही गहन और विस्तृत रूप में समझ सकते हैं । ये भावना जिसे बहुत मधुर और अद्भुत होना चाहिए था, जिसे आपके अंदर से प्रेम और उल्लास के रूप में प्रवाहित होना चाहिए था, दुर्भाग्य से आपके अंदर थोड़ी दूषित हो गई है।  

आपकी दूषित भावनाएं ही क्रोध, चिंता और द्वेष के रूप में सामने आती हैं। आप अपनी भावनाओं को अपने सीमित ज्ञान से प्रभावित करने की कोशिश करते हैं जिसकी वजह से ये दूषित हो जाती हैं। आप अपनी बुद्धि को कितना ही महान क्यों न समझ लें, ये बड़ा ही सीमित यंत्र है। अगर आप सृष्टि की विशालता को देखें और अपनी बुद्धि की क्षमता को देखें तो आपको पता चलेगा कि सब कुछ समझने के लिए ये कितनी तुच्छ है।

कैसे हुई परमानन्द की प्राप्ति 

ऐसा मेरे साथ हुआ। मैं एक बहुत ही स्मार्ट नवयुवक था। कम से कम मैं तो यही समझता था, और मेरे दोस्त, आसपास के लोग, यहाँ तक कि मेरे शिक्षक भी मेरे बारे में ऐसा ही सोचते थे। हालाँकि मैंने शिक्षा संबंधी आयामों को कभी महत्व नहीं दिया, फिर भी मेरे शिक्षक मुझे काफी होशियार समझते थे। मैं एक बहुत ही ढीठ युवक था और बहुत अच्छा कर रहा था, सफल भी हो रहा था। जीवन में मैं जो चाहता था वो सब हो रहा था। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं थी। एक दिन मैं किसी पहाड़ी पर गया, वहाँ बैठा और मेरे भीतर कुछ विस्फ़ोट सा हुआ। अचानक, मैं जीवन को कुछ अलग ही तरीके से जानने लगा - जीवन का एक बिलकुल ही नया आयाम खुल गया था। मैं परमानन्द से सराबोर था। जीवन में पहली बार मुझे लगा कि मैं एक निरा मूर्ख हूँ क्योंकि अब तक मैं जो कुछ भी जानता-समझता था, सब कचरा बन गया था। मैं जीवन को इस तरह अनुभव करने लगा और जानने लगा जैसा पहले कभी नहीं किया था।  उसके बाद से जो एक चीज़ मैं कर रहा हूँ वो ये कि किसी भी तरह अपने इस अनुभव को जितने लोगों तक हो सके पहुँचा सकूँ।  

मुझे ये समझ में आया कि अगर अपने विचारों और भावनाओं के साथ खिलवाड़ किए बिना मैं केवल यहाँ बैठा रहूँ तो मैं परमानन्द में रह सकता हूँ और अपने जीवन को अनुभव करने की अपनी क्षमता को असीम कर सकता हूँ। तो बस मैं बैठ गया और मैंने योजना बनाई। उस दिन विश्व की जनसँख्या 560 करोड़ थी। मैंने सोचा कि ढाई साल की अवधि में मैं प्रत्येक व्यक्ति को आनंदमय और उल्लसित बना सकता हूँ।  

आज मैं यहाँ हूँ, 39 वर्षों के बाद, हफ्ते के 7 दिन, साल के 365 दिन काम करने के बाद। लोग कहते हैं कि हमने 100 करोड़ को अब तक स्पर्श कर लिया है लेकिन विश्व की जनसँख्या करीब-करीब 800 करोड़ तक पहुँच चुकी है। मैं जानता हूँ कि मैं असफल रहकर मरूँगा लेकिन वह एक आनंदमय असफलता होगी। मेरी कामना है कि आप परमानन्द प्राप्त करें। यही आपके जीवन की सबसे बड़ी सफलता होगी।