एक दिन सद्गुरु कुछ व्यक्त करना चाहते थे, और यह 7 कवितायेँ उन्होंने 10 मिनट से भी कम समय में लिखीं थीं।
था मुझे अपने दिल पर बहुत गर्व ,
और था मेरा दिल एक चट्टान
की तरह मजबूत और स्थिर।
फिर वे बिना बुलाए आए,
और मेरे दिल को धड़का दिया
और कर दिया लहुलुहान।
यह धड़कने लगा
हर जीव और पत्थर के लिए।
हैं एक सौ बारह चालें,
इस नश्वर पिण्ड को
मात देने के लिए।
पर मुझे इन चालों में फंसा दिया।
एक दिव्य चालबाज हैं वो,
और फंस गया मैं उनकी चाल में।
अब ऐसी किसी भी चीज के बारे में,
मैं न तो सोच सकाता हूं,
न कुछ कर सकता हूं,
जो मेरा या मेरे लिए है।
सभी मीठे स्वरों को सुनने के बाद,
सभी अद्भुत दृश्यों को देखने के बाद,
सभी सुखद संवेदनाओं की अनुभूति के बाद।
मैंने अपना सारा बोध खो दिया,
उनके लिए जो 'नहीं' हैं,
पर जो अनुपम भी हैं,
और जिनके जैसा कोई दूसरा नहीं।
ना वे प्रेम हैं, ना ही करुणा।
उनसे सांत्वना व आराम न मांगें।
वे खुद पूर्णता हैं!
आइये, उस निराकार के
परम आनंद को जानिए।
तृप्ति का आनंद नहीं,
यह खेल है खुद को मिटाने का।
क्या आप हैं तैयार
एक ऐसे खेल के लिए
जहां से वापसी नहीं हो सकती?
क्या आप होंगे मौजूद
खुद को दफनाने के लिए,
या अपने भव्य दाह-संस्कार के लिए?
आइए देखिए, श्मशान के रखवाले
मेरे शिव, की आतिशबाजियां!
उनपर विश्वास कभी न करें,
जो निश्चल हैं!
उन्होंने मुझे,
अपनी निश्चलता से
अपने अंदर खींच लिया।
मुझे लगा कि वे ही मार्ग हैं,
सावधान, वे अंत हैं!