घटनाक्रम

आत्मज्ञान के परमानंद में डूबें: सद्‌गुरु ने सिडनी में आध्यात्मिक प्यास जगाई

सद्‌गुरु के साथ 20 जनवरी 2024, को सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित हुआ ‘सोक इन एक्स्टेसी ऑफ इनलाइटेनमेंट’ (आत्मज्ञान के परम आनंद में डूब जाइए) कार्यक्रम इस बात का एक स्पष्ट प्रमाण है कि जब पर्याप्त लोग दूसरों के जीवन को गहराई से छूने के लिए प्रतिबद्ध हों तो बहुत कुछ संभव हो सकता है।

यह सूचना अगस्त के मध्य में व्हाट्सएप पर आई थी। बिना किसी धूमधाम या चेतावनी के, इस साधारण सी सूचना में रूपांतरण की अपार संभावना समाई हुई थी। ‘इंतजार खत्म हुआ, सद्‌गुरु जनवरी 2024 में सिडनी आएंगे। बाकी विवरण जल्द ही साझा किया जाएगा। साथ बने रहिए।’ अगले महीने प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई शहरों में स्वयंसेवकों की बैठकों में कार्यक्रम का विवरण सामने आया।

सितंबर की शुरुआत में सिडनी में एक खचाखच भरा हुआ सामुदायिक हॉल लोगों की उम्मीदों से गूंज रहा था। जब किसी ईशांग ने यह खबर दी कि हमारे शहर को दुनिया के इस पहले आयोजन की मेजबानी के लिए चुना गया है, तो कमरे में खुशी की लहर दौड़ गई। सद्‌गुरु के साथ ‘सोक इन एक्स्टेसी ऑफ इनलाइटेनमेंट’ नामक एक दिवसीय कार्यक्रम की मेजबानी। हमारे लिए यह कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हुआ। लोगों का उत्साह देखने लायक था।

कार्यक्रम के नए पन और सद्‌गुरु के इस दिलचस्प इरादे ने कार्यक्रम के प्रति कौतुहल और बढ़ा दिया कि यह कार्यक्रम एक तार्किक प्रक्रिया के रूप में पेश नहीं होगा, बल्कि त्याग की भावना के साथ पेश होगा जिससे रूपांतरण ज्यादा तेजी से होगा। यह एक ऐसा अवसर होने वाला था जब प्रतिभागी एक जीवित गुरु की मौजूदगी में पूरी तरह डूब जाएँ और चेतना की ऊँची अवस्थाओं का अनुभव हासिल कर सकें। शक्तिशाली ध्यान-प्रक्रियाओं के जरिए परमानंद में बह जाने का यह एक दुर्लभ मौका होने वाला था।

स्वयंसेवकों के रूप में हम इस अनुभव को अधिक से अधिक लोगों के साथ साझा करने के मिशन में लगे थे। हमारा लक्ष्य था - 2019 में आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में आयोजित हुए सद्‌गुरु के कार्यक्रम में एकत्रित 5,000 से अधिक लोगों की मौजूदगी को दोगुना कर सकें। चुनौती बड़ी लग रही थी, लेकिन संकल्प अटल था। बहुत कुछ किया जाना बाकी था और हम वह सब करने के लिए तैयार थे जिससे लक्ष्य पूरा हो सके।

स्वयंसेवकों के अथक प्रयास शुरू हो गए – अपने हर खाली पल को ऑस्ट्रेलिया में सद्‌गुरु आगमन की तैयारी को समर्पित करते हुए। अनगिनत कॉलिंग अभियान शुरू हो गए। शहर के मुख्य केंद्र डांसिंग फ्लैश मॉब से जीवंत हो उठे, और कार्यक्रम के पोस्टर देश भर में दिखाई देने लगे। स्वयंसेवकों ने सामुदायिक कार्यक्रमों में स्टॉल लगाए और महत्वपूर्ण जानकारियाँ लोगों तक पहुंचाईं। इस अनूठे कार्यक्रम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर अवसर का लाभ उठाया गया।

शाम और सप्ताहांत (वीकेंड) में लोगों के घर स्वयंसेवी गतिविधियों के केंद्र में बदल जाते थे। परिवार के लोगों, दोस्तों और सहकर्मियों से बातचीत के साथ-साथ रूपांतरण की मर्मस्पर्शी व्यक्तिगत कहानियाँ सोशल मीडिया पर साझा की गईं। उत्साह बढ़ने के साथ-साथ पंजीकरण संख्या में भी वृद्धि हुई। हमने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नए साधकों की ऑनलाइन दीक्षाएं भी देखीं जो पंजीकरण के आंकड़ों को रिकॉर्ड संख्या में बढ़ाने में मददगार साबित हो रही थीं।

जैसे-जैसे पंजीकरण की समय सीमा नजदीक आने लगी, हमारा लक्ष्य, जो एक समय असंभव लग रहा था, साकार होने लगा। स्वयंसेवकों सहित 8,400 से अधिक लोगों ने सद्‌गुरु के साथ कार्यक्रम का अनुभव लेने के लिए साइन अप किया था। विशेष रूप से इसमें लगभग 500 चीनी भाषी प्रतिभागी भी शामिल थे जो एक समर्पित स्वयंसेवक के लाइव अनुवाद के कारण भाग लेने में सक्षम थे।

‘सोक इन एक्स्टेसी ऑफ इनलाइटेनमेंट’ इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (आईसीसी) सिडनी में अब तक का देखा गया सबसे बड़ा कार्यक्रम बनने वाला था। शहर के प्रतिष्ठित डार्लिंग हार्बर के किनारे, समुद्र तट पर स्थित यह स्थान उन लोगों के लिए एकदम उपयुक्त है जो आनंद की बहती लहर पर सवारी करने के लिए तैयार हैं।

कार्यक्रम शुरू होने से दो दिन पहले आईसीसी में तैयारियां शुरू हो गईं। इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र से स्वयंसेवकों की एक अजेय धारा उमड़ पड़ी थी। वे ऑस्ट्रेलिया के शहरी और ग्रामीण इलाकों, पास के न्यूजीलैंड और चीन, हांगकांग, मलेशिया, नेपाल और फिलीपींस सहित कई अन्य क्षेत्रों से आए थे।

इस बहुसांस्कृतिक सभा में परस्पर वार्तालाप की चुनौतियाँ आनी तो तय थीं, लेकिन एक स्वयंसेवक ने बताया कि कैसे वे भाषा की बाधा के बावजूद एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। उन्होंने सहजता से एक साथ ‘ब्रह्मानंद स्वरूपा’ का जाप किया, जिससे उनमें खुशी के आँसू छलक पड़े।

सेट-अप की हर एक बारीकी का ध्यानपूर्वक खयाल रखा गया था। मंच को सुंदर देशी फूलों से सजाया गया था, और लंच रूम के लिए टेबल रनर पर फूलों के छोटे-छोटे गुच्छों को प्यार से सिल दिया गया था। हॉल में साउंड्स ऑफ़ ईशा की धुनों के साथ सभी ने खुशी और उत्साह के साथ अपने कार्य किए।

आप बक्सों के ढेर खोलते समय सिरों को झूमते हुए, कुशनों को फैलाते हुए पैरों को थिरकते हुए, और नाजुक कपड़ों को इस्त्री करते समय शरीर को लय में झूलते हुए देख सकते थे। उस भावना से प्रेरित होकर एक बार खाली, बेजान हॉल तेजी से जीवंत हो गए, बस उन्ही साधकों की तरह जिन्हें वे जल्द ही अपने भीतर समेटने वाले थे।

शुक्रवार को कार्यक्रम स्थल पर तैयारियों के दौरान स्वयंसेवक उस समय आश्चर्यचकित रह गए जब सद्‌गुरु कुछ देर के लिए वहां रुके और उनके प्रयासों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। स्वयंसेवक जैकब ने बताया, ‘जब वे हमारे बीच आए तो मेरा मन बहुत कोमल, शांत और समदर्शी हो गया। आँसू निकलने लगे। लेकिन जब वे चले गए तो मैं अभिभूत होकर घुटनों के बल गिर पड़ा। हमारे द्वारा बिछाई गई हजारों चटाइयाँ देखकर भी मुझे ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ, यह सोचकर कि कार्यक्रम के बाद हमारा समुदाय हमेशा के लिए बदल जाएगा।’

कार्यक्रम के दिन हम सब के भीतर स्पष्ट उत्साह था और कार्यक्रम स्थल पर शांति की भावना पसरी हुई थी। स्वयंसेवकों ने नमस्कारम में हाथ जोड़कर हॉल में आ रहे हजारों लोगों का गर्मजोशी से स्वागत किया। साउंड्स ऑफ ईशा ने सद्‌गुरु के आगमन का माहौल तैयार कर दिया। इसके बाद उन्होंने ‘सोक इन एक्स्टेसी ऑफ इनलाइटेनमेंट’ कार्यक्रम की पहली सभा का नेतृत्व किया, जो बातचीत, ध्यान और उत्साहपूर्ण नृत्य का एक जीवंत मिश्रण था।

कार्यक्रम के बाद बातचीत से प्रतिभागियों पर सद्‌गुरु की उपस्थिति के गहरे प्रभाव का पता चला। उनमें से एक, ट्रेवर ने साझा किया, ‘मैं इसके लिए बिल्कुल नया हूँ, लेकिन कार्यक्रम के दौरान मैं कृतज्ञता और खुशी के आंसू बहाना नहीं रोक सका।’ अपने अनुभव की विशालता का वर्णन करने की कोशिश करते हुए दूसरे ने कहा, ‘सीधे शब्दों में कहें तो, कार्यक्रम से बाहर निकलते समय मैं पुनर्जन्म होने जैसा महसूस कर रहा था।’

एक ध्यान-सत्र के दौरान सद्‌गुरु ने प्रतिभागियों से अपने जीवन के सबसे अच्छे पल को याद करने के लिए कहा। उस शाम इस बात को याद करते हुए एंड्रिया नाम की एक स्वयंसेविका ने हँसते हुए बताया कि वह थोड़ी देर के लिए तो दुविधा में पड़ गई थी – ‘मेरे जीवन का सबसे अच्छा पल तो यही है, मैंने सोचा, क्या मुझे सचमुच किसी और पल को चुनना है?’

ऐसा महसूस करने वाली वह अकेली नहीं थी। एक दूसरे प्रतिभागी ने कहा, ‘सद्‌गुरु को साक्षात देखने की इच्छा जो शुरू हुई वह आत्म-खोज और परमानंद की चाह में बदल गई। कार्यक्रम का दिन एक दिव्य अनुभव के रूप में सामने आया और इसे मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन बना दिया। उसका असर शब्दों में व्यक्त करने से परे था। कुछ ऐसी भावनाएँ सामने आईं जिन्हें समझना मुश्किल था। आँसू लगातार आँखों से बहे जा रहे थे, मानो मैं अपने अतीत के दबे बोझ से मुक्त हो रहा हूँ। मेरे पास बयान करने के लिए शब्द नहीं थे।

‘कार्यक्रम ने न केवल एक संदेश दिया बल्कि इसने मुझे एक अद्भुत व्यक्तिगत रूपांतरण से गुजरने का मौका दिया। सद्‌गुरु की भौतिक उपस्थिति ने वातावरण में एक अनोखी ऊर्जा पैदा कर दी जिसे स्पष्ट महसूस किया जा सकता था। इस ऊर्जा को महसूस करना एक आशीर्वाद था। यह एक ऐसी ऊर्जा थी जो भीतर गहराई तक प्रवेश करती थी और वर्षों से दबी भावनाओं और अनुभवों को उजागर करती थी। मैं उस गहन बदलाव के लिए आश्चर्यचकित, विनम्र और बेहद आभारी था।’

कार्यक्रम के अंत में, सद्‌गुरु ने प्रतिभागियों को सवाल पूछने का अवसर दिया। एक प्रतिभागी ने अपना हाथ उठाकर एक ऐसा प्रश्न पूछा जो कई लोगों के मन में था लेकिन शायद किसी ने पूछने का साहस नहीं किया, ‘आप ऑस्ट्रेलिया में आश्रम कब खोलने वाले हैं?’ कुछ लोगों ने ठंडी आहें भरी, कुछ लोग चिल्लाने लगें, ‘हाँ,’ और कई लोगों ने तालियाँ बजाकर सवाल के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।

सद्‌गुरु का उत्तर सकारात्मक और व्यावहारिक दोनों था। उन्होंने विश्व स्तर पर मौजूदा केंद्रों को स्थापित करने के लिए आवश्यक संसाधनों की भारी मात्रा पर प्रकाश डाला, जिसमें न केवल पैसों की जरूरत बल्कि सही जमीन, डिजाइन, अनुमोदन, सामग्री और भी बहुत कुछ शामिल है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इच्छाशक्ति और पर्याप्त स्वयंसेवकों की भागीदारी की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि ‘सिर्फ इमारतों से ऐसा नहीं होगा - यह लोग हैं जो इसे बनाते हैं।’

सद्‌गुरु ने कहा कि जो लोग इस बारे में गंभीर हैं वे ईमेल करके विस्तार से बता सकते हैं कि वे किस तरह से योगदान दे सकते हैं।

कई लोगों के लिए, ऑस्ट्रेलिया में ईशा योग केंद्र स्थापित करना एक बड़े सपने जैसा लग सकता है – जिसे हासिल करना मुश्किल, कुछ असंभव, और शायद सच्चाई से बहुत दूर। हालाँकि, जब मैंने हजारों प्रतिभागियों से खचाखच भरे हॉल को देखा, जिनका जीवन बदल गया था, तो मुझे एहसास हुआ कि इस कार्यक्रम का आयोजन भी कुछ महीने पहले एक असंभव कार्य ही लग रहा था जब हमने पहली बार इस दिशा में काम करना शुरू किया था।

सद्‌गुरु ने आंखों में आंसुओं के साथ कार्यक्रम को समाप्त किया और ‘ब्रह्मानंद स्वरूपा’ का मंत्रोच्चारण किया। यह ध्वनि पूरे हॉल में एक आवाज के रूप में गूंज उठी, आईसीसी गलियारों से होते हुए शहर में पहुंची, जहाँ यह डार्लिंग हार्बर के पानी के ऊपर स्थिर हो गई।

दुनिया के इस हिस्से में अधिक से अधिक लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में एक ईशा योग केंद्र की आवश्यकता है। जैसा कि सद्‌गुरु कहते हैं, ‘आइये, इसे कर दिखाएं।’