भावना

मुश्किल हालातों में भी अपना संतुलन कैसे बनाए रखें?

मानवीय भावनाओं की गहराईयों में उतरती एक दिलचस्प बातचीत जिसमें लुइस होवेस, जो कि एक पूर्व खिलाड़ी और लोकप्रिय पॉडकास्ट ‘द स्कूल ऑफ़ ग्रेटनेस’ के मेजबान हैं, सद्‌गुरु को क्रोध के विषय पर चर्चा के लिए आमंत्रित करते हैं। वह गहराई और स्पष्टता के साथ अपनी व्यक्तिगत यात्रा को याद करते हैं कि कैसे एक ऐसा युवा, जिसमें अन्याय के प्रति क्रोध भड़कता रहता था, एक जागरूक प्रतिक्रिया की कला को आत्मसात करने वाला इंसान बना। इस दिलचस्प बातचीत में इस विक्षुब्ध दुनिया में जागरूकता के साथ जीने के महत्व के बारे में ही नहीं, बल्कि नकारात्मक भावनाओं के जाल से निकलकर जीवन जीने की कला के बारे में बात की जा रही है।

लुइस हॉवेस: आखिरी बार कब आपने नाराजगी या ग़ुस्सा महसूस किया था और क्या आपने उसे व्यक्त भी किया था?

सद्‌गुरु: मैं बस अभी आपके ऊपर ग़ुस्सा होने का सोच ही रहा था। (दोनों हंसते हैं)

लुइस हॉवेस: बिल्कुल, इसे बाहर लाइए। मुझे अच्छा लगेगा।

सद्‌गुरु: बात ये है कि मैंने किसी को ये अधिकार नहीं दिया है कि वे मुझे खुश, नाखुश, क्रोधित या दुखी कर सकें। ऐसा नहीं है कि मैं ये सब करने में अक्षम हूँ, मैं चाहूँ तो यह सब कर सकता हूँ, लेकिन ये अधिकार मैंने किसी दूसरे को नहीं दिया है। वे मेरे साथ कोई हरकत करके मुझे क्रोधित नहीं कर सकते।

लुइस हॉवेस: क्या बचपन में आपने इसका अनुभव किया था यानी ये अधिकार किसी को दिया था? क्या आपने ये सब अपनी रूपांतरण की यात्रा के दौरान सीखा?

मैंने किसी को ये अधिकार नहीं दिया है कि वे मुझे खुश, नाखुश, क्रोधित या दुखी कर सकें। - सद्‌गुरु

सद्‌गुरु: 11 या 12 की उम्र से लेकर 24 की उम्र तक मैं हमेशा क्रोधित रहता था, लगभग दिन के 24 घंटे। न्याय-अन्याय की अपनी समझ से मैं हमेशा ग़ुस्से में रहता था। अगर आप न्याय-अन्याय के तराजू में सब कुछ तोलने लगें तो दुनिया में करीब-करीब सब कुछ अन्याय ही नजर आने लगता है, एक छोटी सी चीज भी। कुछ भी अन्यायपूर्ण देखकर मुझे ग़ुस्सा आ जाता था और मैं जहाँ भी देखता था, चाहे वो घर हो, स्कूल हो, सड़क पर, समाज में, देश में, दुनिया में – हर जगह अन्याय ही दिखता था, तो मैं हमेशा क्रोधित रहता था।

लुइस हॉवेस: अच्छा। मुझे लगता है कि अमेरिका और पूरी दुनिया में भी काफी लोग ऐसे हैं जो कई बातों को लेकर क्रोधित रहते हैं क्योंकि वहाँ भी बहुत अन्याय है। तो आप कब बदले, और कब आपको महसूस हुआ कि अब यह आपके लिए काम नहीं करता?

सद्‌गुरु: केवल मेरे लिए ही नहीं बल्कि ये किसी के लिए भी काम नहीं करता।

लुइस हॉवेस: ये सही है। पर आपको इस बात का एहसास कब हुआ?

सद्‌गुरु: लोग सोचते हैं कि क्रोध किसी तरह का गुण है और इसे ‘उचित गुण’ का नाम देते हैं। इसके लिए चाहिए कि कुछ भीषण घटित हो जिससे वे सक्रिय हो सकें। इनके हृदय में पर्याप्त प्रेम नहीं है जो उन्हें सक्रिय होने के लिए प्रेरित कर सके। क्रोध से उपजा हुआ इस तरह का कार्य कभी-कभी तो फल दे देता है। लेकिन यदि हमें वास्तविक फल चाहिए जो सबके लिए लाभदायक हो तो हमें उस समय क्रियाशील होना होगा जब सब कुछ ठीक हो। लेकिन जब सब कुछ ठीक और सुविधाजनक हो तो लोग सुस्त होने लगते हैं। जब आप क्रोध से खुद को सक्रिय करते हैं तो आप इसे लंबे समय तक नहीं बनाए रख सकते।

यदि आप इसे लंबे समय तक बनाए रखें तो आप खुद को और अपने आसपास की हर चीज को बर्बाद कर देंगे। यदि आप कभी-कभी क्रोधित होते हों तो आप अपने को शक्तिशाली महसूस करेंगे और लगेगा कि एक तरह से सही कर रहे हैं। आपको पूरे जीवन सही काम करते रहना चाहिए। तब आपके जीवन के अंत तक सब कुछ तो बदला नहीं होगा लेकिन आप जरुर बदल गए होंगे।

जब आप क्रोध से खुद को सक्रिय करते हैं तो आप इसे लंबे समय तक नहीं बनाए रख सकते। – सद्‌गुरु

लुइस हॉवेस: जब हालात सामान्य और अनुकूल हों, तब हम लोगों को कैसे जगा सकते हैं जिससे वे प्रेमपूर्वक कार्य करते हुए बदलाव ला सकें?

सद्‌गुरु: आप दुनिया में इनर इंजीनीयरिंग के नाम से जो देख रहे हैं वह एक प्रकार से धर्म से जिम्मेदारी की तरफ ले जाने का अभियान है। दरअसल धर्म का अर्थ यह मान लिया जाता है कि जिम्मेदारी वहाँ कहीं ऊपर है। वो ऊपर किधर है - कोई नहीं जानता, आपको केवल इस बात पर भरोसा करना होता है। जब आप कैलिफोर्निया में होते हैं और मैं तमिलनाडु में होता हूँ, और अगर हम ऊपर देखें तो हमारा ऊपर अलग-अलग दिशाओं में होगा। जब ये धरती गोल है और लगातार घूम रही है तो ब्रह्मांड में कौन सी दिशा ऊपर की ओर है? क्या कहीं ब्रह्मांड में लिखा हुआ है कि ये दिशा ऊपर की ओर जाती है? ऐसा कुछ नहीं है।

जिम्मेदारी वहाँ ऊपर नहीं है। इसे यहाँ होना चाहिए। हमें समझना चाहिए कि अगर हम एक खूबसूरत दुनिया में रहना चाहते  हैं तो केवल हम ही हैं जो इसे ऐसा बना सकते हैं। बाहर से कोई शक्ति आकर ये काम नहीं करने वाली है। ये केवल तभी संभव है जब हम इसे समझें और खुद को धर्म से जिम्मेदारी की ओर मोड़ें। भगवान का विचार इसलिए आया क्योंकि हमारे पास सृष्टि के रहस्य के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है।

आपके और मेरे इस धरती पर आने से पहले से ही ये विशाल सृष्टि मौजूद है। ये सब कैसे इस धरती पर आया, इतना जटिल, इतना शानदार - इसे किसने बनाया? एक साधारण सा, बचकाना जबाब ये हो सकता है कि किसी बड़े से आदमी ने ये सब किया होगा। क्योंकि वह यहाँ कहीं नजर नहीं आता, लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि वह वहाँ कहीं ऊपर होगा। अब बेशक एक और बहस चल रही है कि वो एक औरत क्यों नहीं हो सकती? भारत में हमने इस मुद्दे को सुलझा लिया है। हमारे यहाँ पुरुष भगवान, स्त्री भगवान, सर्प भगवान, गाय भगवान, हाथी भगवान, और भी रूप में भगवान हैं। हमें नहीं पता भविष्य में कौन किस बात का दावा करे - तो हमने कहा, कण-कण भगवान है।

भगवान का विचार इसलिए आया क्योंकि हमारे पास सृष्टि के रहस्य के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है। – सद्‌गुरु

अगर आप भगवान के बारे में अपनी धारणा का इस्तेमाल अपने भीतर की कुछ मानसिक प्रक्रियाओं को शांत करने के लिए करते हैं तो ठीक है। सांत्वना एक बात है और जीवन के लिए समाधान दूसरी बात है। वे लोग जो गरीबी, भुखमरी, युद्ध जैसी कठोर परिस्थितियों में हैं जो उन पर थोपी गई हैं, उनके लिए सांत्वना ठीक है। हम जैसे बाकी लोग जिनके पेट भरे हुए हैं, उन्हें समाधान की बातें करनी चाहिए।

जीवन बहुत छोटा है। हमें समझना चाहिए कि स्वस्थ, संतुलित और प्रसन्न रहना सामान्य बात है। जब आप 5 साल के थे तो दुखी थे कि प्रसन्न? कोई आपको परेशान करके आपकी खुशी छीन लेता था, नहीं तो आप खुशी से उछल रहे होते थे। किसी को आपको दुखी करने के लिए कोशिश करनी पड़ती थी। आज आपको खुश करने के लिए किसी को कोशिश करनी पड़ती है। पूरा समीकरण उल्टा हो चुका है। हुआ क्या है – बस आप बड़े हो चुके हैं। आपके बड़े होने के साथ-साथ आपके जीवन को और अधिक खूबसूरत होना चाहिए था।

बाकी सारे जीव, जैसे जब एक छोटा पौधा एक पेड़ बन जाता है - तो ये बढ़ने के साथ-साथ बेहतर स्थिति में होता है। केवल इंसान ही है जो ये कहता है कि बचपन कितना अद्भुत था, और बड़ा होना बहुत दुखद है। बढ़ना अद्भुत बात होनी चाहिए, आपका बुढ़ापा सबसे अद्भुत समय होना चाहिए।

मन की यही प्रकृति है कि अगर आप किसी विचार को रोकना चाहें, तो केवल वही आते हैं। – सद्‌गुरु

एक समाज, एक संस्कृति, और एक पीढ़ी के तौर पर हमने उस जीवन को उतना महत्व नहीं दिया जो हम हैं। दूर की आकाश गंगाओं के बारे में तो कोई बच्चा भी जानकारी दे देगा क्योंकि ये सब उनके फोन पर मौजूद है, लेकिन वे अपने बारे में कुछ नहीं जानते। आप कैसे काम करते हैं इसकी मैकेनिक्स के बारे में आपको बुनियादी जानकारी भी नहीं है। उदाहरण के लिए मैं आपको एक छोटा सा काम कहता हूँ करने के लिए - अगले 10 सेकंड बंदर के बारे में मत सोचिए। जब आप बंदर के बारे में नहीं सोचने की कोशिश करते हैं तो केवल बंदर ही आपके दिमाग में आते हैं।

मन की यही प्रकृति है कि अगर आप किसी विचार को रोकना चाहें, तो केवल वही आते हैं। ऐसे मन के साथ यदि कोई आपको बताए कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है और यह कि आपको बुरी बातों के बारे में नहीं सोचना चाहिए, तो ऐसे विचारों को रोकने में आपका सारा समय निकल जाएगा। ज्यादातर लोगों ने मन के काम करने के बुनियादी तरीके को ही नहीं समझा है। मन में कोई घटाना या विभाजन नहीं होता है, केवल जोड़ और गुणा होता है। वहाँ रोकने के लिए ब्रेक जैसा कुछ नहीं है, वहाँ तीनों पैडल केवल एक्सेलरेटर के ही हैं। लेकिन हाँ, आप खुद को इससे दूर कर सकते हैं। एक बार आपने खुद को अपनी मानसिक गतिविधियों से दूर कर लिया तो शरीर के रसायन नाटकीय ढंग से बदल जाते हैं।