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आदियोगी शिव क्यों रखते हैं अपने पास नंदी और महाशूल?

15 जनवरी 2024 को शिवाभरणम के दौरान सद्‌गुरु ने सद्‌गुरु सन्निधि बेंगलुरु में महाशूल और नंदी की प्राण-प्रतिष्ठा की। इसके गहरे महत्व, इनमें निहित गुण और हम सभी के लिए इनके लाभों के बारे में सद्‌गुरु ने क्या साझा किया, जानने के लिए आगे पढ़ें।

आदियोगी के नए आभूषण

सद्‌गुरु: एक साल पहले आप में से कई लोग योगेश्वर लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए यहाँ आए थे। हम आदियोगी के लिए इस स्थान में अब कुछ आभूषण जोड़ रहे हैं। आप कितने भी अद्भुत क्यों न हों, आपके पास मौजूद कुछ चीज़ों के बिना - शायद एक गाड़ी, एक फोन या एक कंप्यूटर - आप गंभीर रूप से अधूरा महसूस करेंगे। इसलिए हमने सोचा कि हम आदियोगी के साथ भी कुछ आभूषण जोड़ दें।

हमने नंदी के दोनों सींगों और महाशूल के मध्य भाग में प्राण-प्रतिष्ठित लिंगों से इनको सशक्त बनाया है।

ये प्राण-प्रतिष्ठा एक बहुत ही गहन प्रक्रिया रही है जो पिछले चालीस दिनों से चल रही है। ये बहुत अच्छे से संपन्न हुई है। हमने नंदी के दोनों सींगों और महाशूल के मध्य भाग में प्राण-प्रतिष्ठित लिंगों से इनको सशक्त बनाया है।

हम यहाँ नंदी हिल्स के इलाके में हैं। चोल-काल (चोल तमिल शासकों का एक वंश है जो विशाल साम्राज्य खड़ा करने और दक्षिण भारत में अनेक मंदिर बनवाने के लिए प्रसिद्ध है) के दौरान इस पहाड़ी को आनंदगिरि के नाम से जाना जाता था। देश के इस हिस्से में नंदी, जिन्हें आमतौर पर कर्नाटक में बसवा के नाम से जाना जाता है, आध्यात्मिक संस्कृति में एक प्रमुख स्थान रखते हैं। योगनंदेश्वर नंदी हिल्स की चोटी पर है, और भोगनंदेश्वर तराई में है। इस क्षेत्र ने नंदी को स्थापित करने की प्रक्रिया में काफी समय और ऊर्जा खर्च की है।

नंदी का मौन आनंद

नंदी शब्द मूल शब्द आनंद से आया है। नंदी का अर्थ है आनंदमय, आनंद में डूबा हुआ। यह समझना महत्वपूर्ण है कि नंदी को मूल रूप से एक गण माना जाता था, जो आदियोगी का निरंतर साथी था। आदियोगी के साथ उनके संबंधों के बारे में अनगिनत कहानियाँ हैं। कहा जाता है कि नंदी को आदियोगी तक एक विशेष पहुंच का सौभाग्य प्राप्त है।

नंदी कई चीजों का प्रतीक हैं जिनमें से एक है आदियोगी या शिव तक उनकी पहुंच। वह द्वारपाल के रूप में भी सदैव मौजूद रहते हैं और उनके वाहन के रूप में प्रतीक्षा भी करते रहते हैं। यही कारण है कि भारत में और विशेष रूप से दक्षिणी भारत में, यह परंपरा और संस्कृति है कि जब लोग शिव मंदिर में जाते हैं, तो वे जो कुछ भी शिव से कहना चाहते हैं उसे नंदी के बाएं कान में बोलते हैं क्योंकि माना जाता है कि नंदी की शिव तक विशेष पहुंच है।

दरअसल ध्यानमय होने का अर्थ है कि आप अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से ऊपर उठ जाते हैं।

यह एक ऐसी सभ्यता है जहाँ विज्ञान, प्रतीकवाद, संस्कृति, मानवीय भावनाएँ सभी एक साथ गुंथे हुए हैं। एक बैल के पास विशेष पहुंच क्यों होगी? यदि आप उसकी मुद्रा को देखें, तो वह सतर्क है, लेकिन बस इंतजार कर रहा है। लोग मंदिर के अंदर और बाहर आएंगे, लेकिन वह सिर्फ इंतजार कर रहा है, कभी मांग नहीं कर रहा है। सो नहीं रहा है, सुस्त नहीं है, सतर्क है और इंतजार कर रहा है। इसका मतलब यह है कि यदि आप यहाँ सचेत होकर बैठ सकते हैं और केवल प्रतीक्षा कर सकते हैं, किसी विशेष चीज के लिए नहीं, तो कुछ भी होने की जरूरत नहीं है। आप बस इंतजार करना जानते हैं तो आप ध्यानमग्न हो गए हैं।

यदि कोई जीवन एक ही समय में तीव्र और तनावमुक्त हो तो उसकी प्रकृति ध्यानमय हो जाती है। दरअसल ध्यानमय होने का अर्थ है कि आप अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से ऊपर उठ जाते हैं। शरीर और मन के रूप में हमने जो कुछ इकट्ठा किया है, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ बस उसी का परिणाम हैं। ये दोनों प्रक्रियाएँ स्मृति-आधारित हैं। यदि स्मृति न हो तो यह शरीर कार्य नहीं कर सकता, न ही यह मन कार्य कर सकता है।

इस शरीर ने यह रूप इसलिए लिया है क्योंकि इसमें विकासमूलक स्मृति, आनुवांशिक स्मृति और सचेतन और अचेतन स्मृति के अन्य रूप शामिल हैं। हर शरीर की अपनी अलग प्रकृति होती है, क्योंकि उसकी अपनी अलग तरह की स्मृति है। इस स्मृति के लिए दूसरा नाम है कर्म।

यदि आप एक ही समय में सतर्क या तीव्र और तनावमुक्त हो जाते हैं, तो आप ध्यानमय हो जाते हैं और अपने इकट्ठा किए गए भंडार से ऊपर उठ जाते हैं, जो मूलतः आपके कर्म हैं। तब, कर्म के बंधन का, जो बेशक मौजूद रहेगा, आप पर कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।

एक नई संभावना बनना

आप इसे कई तरीकों से अनुभव करते हैं। शराब और नशीली दवाओं के प्रति इतना आकर्षण इसलिए है, क्योंकि कुछ समय के लिए इनका सेवन करने वालों पर ऐसा लगता है कि कर्म का कोई प्रभाव नहीं है । जो लोग अपने विचारों और भावनाओं को संभाल नहीं सकते, जो अपनी यादों से जूझ रहे हैं, वे नशे में धुत्त हो जाते हैं और अचानक, कम से कम कुछ घंटों के लिए, उन्हें कुछ भी महसूस नहीं होता।

यदि आप सतर्क और निश्चिंत हैं, बिना किसी उद्देश्य के प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से आनंदित प्राणी बन जाएंगे।

असल में लालसा वही है - केवल यह तरीका विनाशकारी है। चाहे वह नशे का आदी कोई इंसान हो, कोई शराबी हो, आध्यात्मिक साधक हो, या कोई और, हर कोई एक ही चीज की तलाश कर रहा है - किसी भी तरह शरीर और मन की प्रक्रियाओं से ऊपर उठना। आप इसे उपलब्धि, सफलता, महत्वाकांक्षा की पूर्ति, नशा या ध्यानशीलता कह सकते हैं। बुनियादी रूप से आप जीवन के संचयी प्रभाव से ऊपर उठने और एक नई संभावना बनने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल केवल यह है कि किस तरीके से इसे करने पर आपका जीवन समृद्ध होगा और किस तरीके से करने पर जीवन बर्बाद होगा।

ध्यानमय होने का अर्थ है नंदी जैसा बनना। यदि आप सतर्क और निश्चिंत हैं, बिना किसी उद्देश्य के प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से आनंदित प्राणी बन जाएंगे।

महाशूल का त्रिआयामी सिद्धांत

महाशूल समय के तीन मूलभूत पहलुओं - अतीत, वर्तमान और भविष्य – को दर्शाता है जो हमारे जीवन का दायरा तय करते हैं। अनुभव के तौर पर आपके पास जागरूकता, निद्रा और स्वप्न की तीन अवस्थाएँ हैं। फिर इड़ा (मानव प्रणाली के भीतर बाईं नाड़ी या ऊर्जा-चैनल, जो स्त्री-गुण का प्रतिनिधित्व करती है), पिंगला (दाहिनी नाड़ी या ऊर्जा-चैनल जो पुरुष-गुण का प्रतिनिधित्व करती है) और सुषुम्ना (मानव प्रणाली के भीतर केंद्रीय नाड़ी या ऊर्जा चैनल) हैं।

केंद्र में सत्व है, जिसका अर्थ है उत्साह और समता।

महाशूल का दूसरा पहलू तमस, रजस और सत्व है। जो लोग तमस में हैं वे उन सभी चीज़ों की ओर आकर्षित होते हैं जो नकारात्मक हैं। जो लोग रजस में हैं वे हर सकारात्मक चीज़ की ओर आकर्षित होते हैं और सोचते हैं कि वे धार्मिक हैं। लेकिन जो लोग सोचते हैं कि वे सही काम कर रहे हैं वे कभी-कभी उन लोगों की तुलना में अधिक अत्याचार करते हैं जो जानते हैं कि वे अपराधी हैं। वे युद्ध का कारण बनते हैं और पूरी सभ्यताओं का सफाया कर देते हैं।

तो, तमस और रजस होते हैं, और फिर केंद्र में सत्व है, जिसका अर्थ है उत्साह और समता। आज, विज्ञान और तकनीक के रूप में हमारे पास जो सशक्तिकरण है, उसमें समता सबसे महत्वपूर्ण गुण है, तमस या रजस नहीं। यदि बुद्धि और तकनीक में समभाव नहीं रखा गया तो वे हमें नष्ट कर सकते हैं। तीन के ये सेट एक ही सिद्धांत पर आधारित हैं, जो अलग-अलग तरीकों से प्रकट होते हैं।

महाशूल का केंद्रित फोकस

हम त्रिशूल को केवल उसके केंद्रीय पहलू के लिए प्रतिष्ठित कर रहे हैं। इसीलिए इसे महाशूल कहा जाता है। नंदी सारी जरूरतें पूरी करेंगे, लेकिन महाशूल का एक ही मकसद है। क्योंकि अधिकांश लोगों के लिए अब जीवन-यापन कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए महाशूल का फोकस एक ही बिंदु पर केंद्रित है - आध्यात्मिक विकास। एक बार जब हम हर इंसान में आध्यात्मिकता की लौ जला देंगे तो अद्भुत कार्य करने वाले लोगों का प्रतिशत बढ़ जाएगा

महाशूल का फोकस एक ही बिंदु पर केंद्रित है - आध्यात्मिक विकास।

जब इंसान को भोजन के बारे में चिंता नहीं करनी पड़ती तो उसके लिए सर्वोत्तम संभावनाएं खुल जाती हैं। लेकिन फिर भी जब वे नंदी के कान में बात करेंगे तो वे हर तरह की चीजें मांगेंगे, जैसे नई कार, नया घर, शादी या तलाक। आज आप जो चाहते हैं, हो सकता है कि वह आपको सबसे महत्वपूर्ण चीज लगे। लेकिन अगर आप पीछे मुड़कर देखें तो आपकी पता नहीं कितनी इच्छाएँ अधूरी रह गईं होंगी? मान लीजिए कि वे सभी पूरी हो जाती, तो आपको अंदाजा भी नहीं कि आपकी क्या हालत होती। तो आपको ऐसा क्यों लगता है कि आपकी अभी की इच्छाएँ बिल्कुल ठीक हैं?

ऊपरी तौर पर ऐसा लग सकता है कि अलग-अलग लोगों के लिए जीवन अलग-अलग तरीकों से सामने आता है। लेकिन जब आप थोड़ी दूरी बनाकर देखें तो आप पाएँगे कि जीवन हर किसी के लिए एक तरह से ही घटित होता है। यदि आप किनारे-किनारे चलें तो सफर कई वजहों से आरामदायक या मुश्किल हो सकता है। लेकिन अगर आप थोड़ा और गहराई में उतरें, तो हर किसी के लिए यह शानदार है।

एक ही संकल्प: तृप्ति

बात सिर्फ इतनी है कि आपको किनारे पर नहीं रहना चाहिए। यदि आप इस एक चीज को हल कर लेते हैं, तो बाकी सभी चीजें हल हो जाती हैं। आपके जीवन में केवल एक ही समस्या है - आप खुद। इसे देखने का कूटनीतिक तरीका यह होगा कि आप तो शानदार हैं, असली समस्या आपकी पत्नी या आपके पति हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अस्तित्व में एकमात्र समस्या आप खुद हैं। यदि आप इस एक समस्या का समाधान कर लें तो कोई दूसरी समस्या नहीं रहेगी।

एक ही इच्छा होनी चाहिए - यह जीवन जो आप हैं वह संपूर्ण होना चाहिए।

नंदी की समस्या का समाधान हो गया है। अगर आपकी समस्या का भी समाधान हो गया हो, केवल तभी आप आराम से एक जगह बैठ सकते हैं। अगर आपकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है और आप अपनी आँखें बंद करें तो आपको FOMO होगा – ‘fear of missing out’। हर समय किसी न किसी बात की परेशानी। मानव जाति इतनी ही अशांत है। आपने कितनी चीजें सिर्फ इसलिए कीं क्योंकि आप अकेले नहीं रह सकते - उलझनों और बंधनों के कितने स्तर हैं। मान लीजिए कि आप यहाँ बैठकर आनंदित हो सकते, तो आपके भीतर और दुनिया में कितनी सारी परेशानियाँ होती ही नहीं।

जब आप नंदी के कान में बोलें तो जीवन में केवल तृप्ति की मांग करें। एक ही इच्छा होनी चाहिए - यह जीवन जो आप हैं वह संपूर्ण होना चाहिए।

यदि आपको गरीबी में तृप्ति मिले, तो यही सही। यदि आपको धन-दौलत से तृप्ति मिले, तो वैसा ही हो। यदि आप अकेले रहकर संतुष्ट हो सकें, तो वैसा ही हो। यदि आप शादीशुदा होकर तृप्त रहें, तो वैसा हो। यह तय मत कीजिए कि तृप्ति कैसे मिले। चाहे आप कुछ न करें या सब कुछ करें, आप तृप्त हों। चाहे हर चीज मददगार हो या कुछ भी काम ना आए, लेकिन आपको पूरी तरह तृप्त होना चाहिए।