इस नए साल की पूर्वसंध्या का उत्सव किसी अन्य नए साल के जश्न से अलग था। सद्गुरु के साथ साल की आखिरी रात आदियोगी की मौजूदगी में बिताने के लिए हजारों लोग आए हुए थे।
सद्गुरु ने समय या काल की हमारी समझ के बारे में बात करते हुए जीवन की चक्रीय प्रकृति और उसके क्षणिक गुण पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे ये चक्र लोगों को या तो कुचल सकता है या उन्हें बोरियत की जाल में फँसा सकता है, जिससे मुक्ति के तरीके खोजने के लिए वे बेचैन होते हैं।
उन्होंने चक्रीय समय, जिसे काल के नाम से जाना जाता है, और उससे परे - महाकाल के बीच के अंतर को भी समझाया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कैलेंडर की शुरुआत को जूलियस सीज़र के युग के साथ जोड़ते हुए बताया कि कैसे इसे मिस्र की प्रणाली से लिया गया और यह भी बताया कि आज के समय में इसका कितना प्रभाव है।
इसके बाद उन्होंने जनवरी महीने के सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला, जिसका नाम दो-मुंह वाले देवता जानूस के नाम पर रखा गया है, जो परिवर्तनकाल और भविष्य की योजना बनाने की अवधि का प्रतीक है। वर्ष 2023 के समाप्ति पर सद्गुरु ने मज़ाकिया ढंग से नए साल पर संकल्प लेने की परंपरा की भी चर्चा की जो अक्सर जल्दी टूट जाते हैं। इसे उन्होंने उस गहरी मानवीय लालसा से जोड़ते हुए समझाया जो ‘कुछ अधिक बनने’ की चाहत होती है।
हमारा जीवन महज दुर्घटनावश घटित न हो - इसके लिए सद्गुरु ने अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं पर नियंत्रण रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने समझाया कि इस तरह के नियंत्रण के बिना हमारे संकल्प निरर्थक होंगे। सद्गुरु ने कहा कि केवल प्रेरित करने वाली सामग्री को देखने या पढ़ने से ज्यादा जरुरी है अभ्यास करना। उन्होंने यह भी कहा कि उनके कई यूट्यूब वीडियो देखने से किसी की सोच बदल सकती है, लेकिन यह योग के अभ्यास करने का विकल्प नहीं है।
केवल 2023 में सद्गुरु के वीडियो लगभग साढ़े चार सौ करोड़ बार देखे गए। लेकिन सद्गुरु ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि अच्छा होगा अगर इन्हें देखने वाले इसे अपने जीवन में अभ्यास के रूप में अपनाएँ भी। जब एक प्रतिभागी ने कहा कि उसके पास अभ्यास के लिए समय नहीं है, तो सद्गुरु ने मजाकिया ढंग से जवाब दिया कि यही समस्या की जड़ है। उन्होंने जीवन की क्षणभंगुर प्रकृति को समझाते हुए कहा, ‘आपके पास वाकई समय नहीं है।’ उन्होंने समझाया कि यह इसीलिए और जरुरी हो जाता है कि अपने शरीर और मन की जिम्मेदारी तत्काल सँभाली जाए।
यदि कोई इनर इंजीनियरिंग जैसे कार्यक्रम में भाग लेने और शांभवी महामुद्रा क्रिया का अभ्यास करने के लिए अधिक समय नहीं दे सकता है, तो उनके लिए सद्गुरु ने ईशा-क्रिया जैसे सरल अभ्यास को लगातार 48 दिनों तक करने की सलाह दी।
हाल ही में दिसंबर में हुए सम्यमा कार्यक्रम के तुरंत बाद - लोगों की आध्यात्मिकता की तीव्र लालसा को देखते हुए, सद्गुरु ने एक और सम्यमा कार्यक्रम आयोजित किया। यह गहन आवासीय कार्यक्रम कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में संपन्न हुआ, जिसमें असाधारण मांग की वजह से आदियोगी आलयम और स्पंदा हॉल में एक साथ सत्र आयोजित किए गए।
आठ दिनों तक प्रतिभागी सद्गुरु के मार्गदर्शन में गहन मौन और ध्यान के अभ्यास में लगे रहे। इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों को अपनी चेतना के विकास और गहन ध्यान के अनुभव का एक अनूठा अवसर मिला। प्रतिभागियों के लिए कर्म-बंधनों को मुक्त करने और उनके सिस्टम को शुद्ध करने के लिए इस कार्यक्रम ने एक साधन के रूप में भी काम किया जिससे जीवन के सूक्ष्म अनुभवों तक उनकी पहुंच का रास्ता आसान हुआ।
इंडिया टुडे की उप-संपादक और एंकर अक्षिता नंदगोपाल, प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया और बहुत पुराने समय से चले आ रहे सनातन धर्म के सिद्धांतों के बारे में व्यापक चर्चा के लिए बेंगलुरु के सद्गुरु सन्निधि में सद्गुरु के साथ बैठीं। सद्गुरु ने प्राण-प्रतिष्ठा के महत्व पर प्रकाश डाला। विभिन्न चरणों में पदार्थ के परिवर्तन और मानव अनुभव के बीच समानताओं को बताते हुए सद्गुरु ने इस बात पर जोर दिया कि प्रतिष्ठित वस्तुओं में मानव शरीर से अधिक समय तक ऊर्जा बनाए रखने की क्षमता होती है।
सद्गुरु ने प्राण-प्रतिष्ठा के लिए मंत्रों और कर्मकांड के बीच अंतर बताया और प्राण प्रतिष्ठा को किसी प्रतिमा में जीवन-ऊर्जा स्थापित करने का एक शक्तिशाली तरीका बताया जिसे लगातार रखरखाव की जरूरत नहीं होती है। उन्होंने मंदिरों की वास्तुकला और निर्माण के बारे में भी बात की और गहन अनुभवों के लिए प्रतिष्ठित स्थायी ढाँचे के निर्माण के महत्व पर जोर दिया।
जब अक्षिता ने अयोध्या में राम मंदिर का विषय उठाया तब सद्गुरु ने भक्ति की अभिव्यक्ति के लिए मंदिरों की भूमिका के बारे में बात की। उन्होंने सनातन धर्म पर भी चर्चा की और सद्गुरु ने स्पष्ट किया कि यह सबको शामिल करने वाला है। उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति में उत्तर-दक्षिण विभाजन की धारणा को खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि धार्मिक रूपांतरणों के बावजूद सनातन धर्म भारतीय जीवन शैली का अभिन्न अंग रहा है।
सद्गुरु ने राम को एक प्रेरक, एक पुरुषोत्तम (पुरुषों में उत्तम – अर्थात सर्वश्रेष्ठ मानव) के रूप में बताया, जो मानव विकास को देवत्व की ओर ले जाने की क्षमता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि वे मूलतः अपनी पहचान ‘राम भक्त’ के रूप में नहीं करते बल्कि खुद को जीवन का भक्त मानते हैं। राम मंदिर के महत्व पर चर्चा करते हुए सद्गुरु ने इसके सांस्कृतिक महत्व पर जोर दिया। उन्होंने उन सुझावों को खारिज कर दिया कि मंदिर में लगने वाले संसाधनों का इस्तेमाल अस्पतालों या स्कूलों के लिए करना बेहतर हो सकता था। उन्होंने कहा कि इस तरह के विकल्पों की वकालत करने वालों को खुद इनका निर्माण करना चाहिए।
अंत में, सद्गुरु ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि वे विदेश में पूर्व नियोजित कारणों की वजह से राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा में उपस्थित नहीं हो पाएँगे, लेकिन उन्होंने भविष्य में कभी अवश्य ही दर्शन करने के अपने इरादे को व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मंदिर की स्थापना भारत की सभ्यता के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा, जो निरंतर भक्ति और शताब्दियों से चले आ रहे संघर्ष के बाद मिली सफलता का प्रतीक होगी।
सद्गुरु सन्निधि बेंगलुरु ने हाल ही में सद्गुरु के साथ आयोजित एक कार्यक्रम के लिए फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) के महिला संगठन, FICCI FLO के सदस्यों का स्वागत किया।
अपने खास अन्दाज में बोलते हुए सद्गुरु ने पिछली पीढ़ियों की तुलना में आज महिलाओं के लिए उपलब्ध अभूतपूर्व अवसरों और संसाधनों पर प्रकाश डाला और इस प्रगति का श्रेय पुरुषों की विकासवादी सोच के बजाय तकनीकी विकास को दिया। उन्होंने चिंता जाहिर की कि आज भी लोगों की प्रमुखता भीतरी खुशहाली के बजाय भौतिक समृद्धि पर अधिक है जिससे समाज में एक असंतुलन पैदा होता है। सद्गुरु ने बाहरी तरक्की के साथ-साथ ‘भीतरी पारिस्थिति’ को भी पोषित करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि लोगों की एक पीढ़ी के रूप में, हम पहले की किसी भी पीढ़ी की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं।’
पर्यावरण से जुड़ी गतिविधियों के संबंध में सद्गुरु ने तमिलनाडु के भविष्य में मरुस्थल में बदलने के बारे में संयुक्त राष्ट्र की भविष्यवाणी पर अपनी प्रतिक्रिया दोहराई। उन्होंने प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स की शुरुआत की जिसके अंतर्गत पर्यावरण में आई गिरावट को दूर करने की एक बड़ी कोशिश के रूप में 9 करोड़ से भी अधिक पेड़ लगाए गए। सद्गुरु ने इस मार्मिक कथन के साथ प्रकृति और मानव जीवन के अंतर्संबंध पर जोर दिया कि ‘हम जो सांस छोड़ते हैं, पेड़ उसे अंदर लेते हैं। पेड़ जो सांस छोड़ते हैं, हम उसे ही अपनी सांस के रूप में लेते हैं।’
अंत में, सद्गुरु ने आध्यात्मिक प्रक्रियाओं का सार बताते हुए कहा कि, इसका उद्देश्य स्पष्टता और जीवन का अधिक गहन अनुभव प्रदान करना है। अंतर्दृष्टि और हास्य से भरी अपनी बातचीत को समाप्त करते हुए, सद्गुरु ने एक अंधे कोबरा साँप के बारे में एक कहानी सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसमें स्पष्ट अंतर्दृष्टि की कमी के खतरे को दर्शाया गया था।
मेलबर्न कन्वेंशन सेंटर जोश और उम्मीद से भर गया जब दर्शक सात विश्व चैंपियन खिताबों के विजेता और सर्फिंग के दिग्गज लेने बीचले और सद्गुरु के बीच एक ओजस्वी बातचीत का इंतजार कर रहे थे।
जीवन के साथ-साथ समंदर की भयंकर लहरों पर सवारी करने के लिए मशहूर लेने बीचली न केवल एक खेल आइकन बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी चैंपियन साबित हुए हैं। सद्गुरु ने अपने गहन ज्ञान का मेल उनकी ऊर्जा से करते हुए हास्य भरे अंदाज में कई विषयों को छुआ और उपस्थित सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उनके संवाद ने धीरे-धीरे जीवन की लहरों को आनंदमय अनुभवों में बदलने की एक मार्मिक कथा का रूप धारण कर लिया। यह बताते हुए कि खुशी बचपन से मिला एक स्वाभाविक गुण है, सद्गुरु ने समझाया कि कैसे खुशी बच्चों के लिए एक सहज अनुभव होता है और दूसरी तरफ बड़ों को खुश होने के लिए कोशिश करनी पड़ती है। इसी के साथ उन्होंने समाज के उस तरीके पर सवाल उठाया जो भीतरी खुशहाली के बजाय दुनिया को जीतने पर जोर देता है।
लेने बीचली ने पेशेवर सर्फिंग के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत विकास के बारे में बताते हुए किसी भी असंतोषजनक प्रदर्शन के लिए बाहरी कारकों को दोष देने की अपनी शुरुआती आदत को साझा किया। उन्होंने बताया कि उन्हें व्यक्तिगत जिम्मेदारी का अहसास हुआ जिसने उन्हें योग और ध्यान की ओर प्रेरित किया। सद्गुरु ने सचेतन पुनर्जन्म या द्विज की अवधारणा पर चर्चा की, जिसमें पुनर्जन्म का चयन करना शामिल है। उन्होंने किसी भी कोशिश में समर्पण के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे ‘किसी चीज के साथ अटूट जुड़ाव’ के रूप में समझाया। उन्होंने जिम्मेदारी के महत्व पर जोर देते हुए इस बात की पुष्टि की कि ‘मेरा जीवन मेरी जिम्मेदारी है।’ इसके बाद बातचीत दर्शकों के सवालों पर केंद्रित हो गई।
प्रश्न-उत्तर सत्र के दौरान दर्शकों की भागीदारी से माहौल और भी उत्साहित हो गया। सद्गुरु ने भविष्य को आकार देने में मानवता की शक्ति के बारे में बताते हुए कहा कि भविष्यवाणियाँ पत्थर की लकीर नहीं होती जिन्हें बदला न जा सके। उन्होंने कहा कि मृत्यु के बारे में जागरूकता कोई निष्ठुर संभावना नहीं है, बल्कि एक साधन है जिससे आप जीवन का आनंद लेने में सक्षम होंगे। चर्चा में मानसिक स्थिति पर चंद्रमा के प्रभाव पर भी बातचीत हुई, जहाँ सद्गुरु ने खगोलीय घटनाओं के महत्व को कम करते हुए व्यक्तिगत जिम्मेदारी को अधिक महत्वपूर्ण बताया।
सत्र का समापन करते हुए, सद्गुरु ने सच्चे रूपांतरण और आत्म-ज्ञान के लिए आंतरिक यात्रा शुरू करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जो उपस्थित लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि थी। प्रतिभागी केवल यादें ही नहीं बल्कि सशक्तिकरण की भावना के साथ गए, जो आनंद के साथ जीवन की लहरों पर सवारी के लिए तैयार थे।
सद्गुरु की पांच साल बाद ऑस्ट्रेलिया वापसी के साथ, उनकी हालिया यात्रा असाधारण रूप से विशेष थी। नीचे सद्गुरु से जुड़ी घटनाओं और गतिविधियों के स्लाइड शो का आनंद लें।
सुबह-सुबह ईशा होम स्कूल के मैदान में उत्सव और एकता का माहौल भर गया, जब आश्रमवासी, स्वयंसेवक, ब्रह्मचारी, और ईशा होम स्कूल और संस्कृति के छात्र, कई अन्य लोगों के साथ - भारत के 75 वें गणतंत्र दिवस का सम्मान करने के लिए इकट्ठा हुए।
जब सद्गुरु ने तिरंगा फहराया, उपस्थित लोगों में हार्दिक गर्व और श्रद्धा की लहर दौड़ गई। हर दिल देश के लिए एक साथ धड़क रहा था।
उसी समय, आदियोगी के सान्निध्य में सद्गुरु सन्निधि बेंगलुरु भी उत्सव में गूंज रहा था। मशहूर थमाटे वादक पद्मश्री नादोजा पिंडिपपनहल्ली मुनिवेंकटप्पा इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।
ईशा योग केंद्र में ‘ब्रांड इनसाइट - डिकोडिंग ब्रांडिंग’ कार्यशाला का समापन हुआ, जिसमें 66 उद्यमियों भाग लिया और नए विचारों का आदान-प्रदान किया। एक उद्देश्यपूर्ण तरीके से ब्रांडिंग के तरीकों और उसके महत्व की पड़ताल की गई।
रणनीतिक सलाहकार अतिका मलिक ने ब्रांड के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि आपका ब्रांड और आपके संगठन का उद्देश्य एक हो। स्टोरीवालाज ब्रांड के अमीन हक ने कहानी कहने में गहराई के महत्व पर जोर देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण ईशा संगठन के स्वामी सुखदा थे, जिन्होंने उद्देश्यपूर्ण ब्रांडिंग पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा करते हुए कहा, ‘सबसे महत्वपूर्ण चीज उद्देश्य है।’ उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि ब्रांड के विकास में सुसंगत और स्पष्ट इरादा आवश्यक है।
ईशा योग केंद्र के स्वयंसेवक खुशी और उत्सव की भावना के साथ अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की लाइव स्ट्रीम देखने के लिए स्पंदा हॉल में एकत्रित हुए।
प्राण-प्रतिष्ठा से पहले की रात, राम मंदिर के ऐतिहासिक प्राण-प्रतिष्ठा के इंतजार में स्वयंसेवक मंत्रोच्चार, ढोल और झांझ के साथ आदियोगी के पास एक भव्य जुलूस में नगर संकीर्तन के लिए एकत्रित हुए।