क्या आपके दिमाग़, शरीर के रसायन और आनंद के बीच कोई संबंध है? आधुनिक खोजों और अपने अंतर्ज्ञान के आधार पर सद्गुरु समझा रहे हैं कि अपने जीवन के रूपांतरण के लिए अपने शरीर के रसायनों पर नियंत्रण कैसे प्राप्त करें।
प्रश्नकर्ता: अपने शरीर के भीतर सबसे अच्छे रसायनों के निर्माण के बारे में आपने बात की। लेकिन हम कैसे इन चमत्कारी रसायनों का विकास अपने शरीर में कर सकते हैं जिससे कि हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण बेहतर हो।
सद्गुरु: कई प्रसिद्ध संस्थाओं, जैसे कि यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, रट्जर्स यूनिवर्सिटी, इंडिआना यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने कई अध्ययन किए हैं। इनमें से एक अध्ययन शाम्भवी महामुद्रा पर केंद्रित था, जो कि 'इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम' में एक बुनियादी अभ्यास के रूप में सिखाया जाता है। साधकों को इसका अभ्यास कम से कम 40-48 दिनों तक करना होता है। इस समयकाल को मंडल कहा जाता है जो एक शारीरिक चक्र पर आधारित होता है जो 40-48 दिनों में पूरा होता है।
अध्ययन से पता चलता है कि शाम्भवी महामुद्रा का कम से कम 1 मंडल तक अभ्यास करने से मस्तिष्क में बनने वाले न्यूरोट्रोफिक फैक्टर (BDNF), आनन्दामाइड्स और बाकी एंडोकेनोबिनोइड्स कई गुना बढ़ जाते हैं। मानव शरीर के भीतर के रसायन धरती पर पाए जाने वाले सभी जीवों में सबसे जटिल हैं।
अगर आप अपने सिस्टम को ठीक तरीक़े से रखना जानते तो आप अपने भीतर चिंता और दुख के रसायन नहीं बल्कि आनंद के रसायन पैदा करते। जब आनंद एक स्वाभाविक चुनाव है तो यह आपके लिए क्यों नहीं हो रहा है? यह केवल इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी रसायन फैक्ट्री के अच्छे सीईओ हैं या ख़राब सीईओ हैं। इन्हें अपने अनुकूल बनाने के लिए एक ख़ास तरह से सँभालने की ज़रूरत है।
अध्ययन से पता चलता है कि शाम्भवी महामुद्रा का कम से कम 1 मंडल तक अभ्यास करने से मस्तिष्क में बनने वाले न्यूरोट्रोफिक फैक्टर (BDNF), आनन्दामाइड्स और बाकी एंडोकेनोबिनोइड्स कई गुना बढ़ जाते हैं।
उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के गाँवों में आज भी घरों में लोग पानी को ताम्बे या पीतल के बर्तनों में रखते हैं जिसे पहले इमली की मदद से अच्छी तरह साफ़ किया जाता है और फिर इस पर विभूति और कुमकुम लगाकर बड़ी श्रद्धा से उसमें पानी रखा जाता है। एक जापानी वैज्ञानिक ने यह सिद्ध किया है कि जल की अपनी स्मृति होती है। आप उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं इस बात से उसकी संरचना पर प्रभाव पड़ता है।
तमिलनाडु में कई मंदिर हैं जहाँ देवी-देवताओं की प्रतिमा पर जो जल चढ़ाया जाता है उस जल को पाने के लिए लोग लंबा इंतज़ार करते हैं। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि इस जल में दैवीय स्मृति होती है। जल के साथ कैसा व्यवहार और कैसे उपयोग करना है, इस विषय पर इस संस्कृति में एक सम्पूर्ण विज्ञान है। ये ज़रूरी है क्योंकि जो पानी आप पीते हैं, वायु जिसमें आप सांस लेते हैं और अन्न जो आप ग्रहण करते हैं, केवल वस्तुमात्र नहीं हैं - ये जीवन निर्माण की सामग्री हैं। आप इन्हीं तत्वों से बने हैं।
अगर आप इनके साथ उचित व्यवहार नहीं करते हैं तो उनकी संरचना बदल जाती है और आपके सिस्टम पर उसका असर पड़ता है। हमने आधुनिकीकरण के दौरान कई ऐसी चीज़ें बनाई हैं जिन्हे अब वापस नहीं लिया जा सकता जिनमें कई तरह की ध्वनियाँ, कंपन और कई ऐसी शक्तियाँ शामिल हैं जिन्हें हमारा शरीर झेलता है।

कम से कम आप अपने घर में और अपने भीतर क्या करते हैं ये आपके हाथ में है। आप पूरी दुनिया नहीं बदल सकते लेकिन आप ख़ुद के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और आपके सिस्टम में क्या जाता है, इसे बदल सकते हैं। भोजन केवल मनोरंजन, स्वाद या पोषण के लिए नहीं है - ये आपके शरीर का हिस्सा बनता है। आपको अपने शरीर के लिए तो बहुत चिंता है लेकिन यही खाना जब किसी बर्तन में होता है तो अक्सर लोग इसके साथ लापरवाही के साथ पेश आते हैं।
जहाँ तक हम इस ब्रह्मांड को जानते हैं, इस पूरे ब्रह्मांड में मानवीय बुद्धि सबसे ज़्यादा क्षमता रखती है, बशर्ते हम इसका इस्तेमाल सचेतन होकर करें।
शरीर के रसायनों को बदलना केवल भोजन से जुड़ा नहीं है, ये आपकी सोच और विचारों से भी जुड़ा है। अपनी सोच और विचारों को एक निश्चित ढंग से रखने से शरीर के रसायन वास्तव में बदल सकते हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हुए शोध के आधार पर वैज्ञानिक साक्ष्य भी यही बताते हैं।
इंसान के रूप में हम इस धरती पर विकास की चोटी पर हैं, बुद्धि और योग्यता के मामले में हम शिखर पर हैं। लेकिन विकास के सबसे ऊँचे पायदान पर पहुँची हमारी योग्यता और बुद्धि ही हमारे लिए समस्या बन गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार जीवन, शरीर और मन के ऐसे मुकाम पर आने के बाद आपको अपना हरेक काम सचेतन होकर करना चाहिए। लेकिन आप आज भी अचेतन होकर रहना चाहते हैं।
धरती के बाकी जीव उतने अचेतन नहीं हैं जितने कि आप हैं। इस धरती के प्रत्येक जीव ने अपनी ज़रूरत के अनुसार अपने लिए सबसे बेहतर भोजन पहचान लिया है, लेकिन सबसे बुद्धिमान प्राणी होकर भी हम अपने आहार को लेकर आज भी विवाद करते हैं।
जहाँ तक हम इस ब्रह्मांड को जानते हैं, इस पूरे ब्रह्मांड में मानवीय बुद्धि सबसे ज़्यादा क्षमता रखती है, बशर्ते हम इसका इस्तेमाल सचेतन होकर करें। इसलिए वर्ष 2024 में हम विश्व स्तर पर एक अभियान शुरू करने जा रहे हैं - 'जागरूक धरती अभियान’।