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बोध का मार्ग: कैसे जानें कि कौन है आपका असली गुरु?

आप सद्‌गुरु को सोशल मीडिया पर देखते होंगे। हो सकता है आपने इनर इंजीनियरिंग और शायद कुछ आगे के कार्यक्रम भी किए हों। लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि सद्‌गुरु ही वास्तव में आपके गुरु हैं और उनके गुरु होने के क्या मायने हैं? इस विषय पर और जानने के लिए आगे पढ़ें।

प्रश्नकर्ता: हम कैसे ये जानें कि आप ही वास्तव में हमारे गुरु हैं?

सद्‌गुरु: एक बार हम आप पर काम करना शुरू कर देंगे तो आप शायद ऐसा कहना नहीं चाहेंगे। हो सकता है कि आप वास्तव में अपने आसपास के लोगों से कुछ समय के लिए नफरत करने लगें। इसे प्रेम में बदलने में थोड़ा समय लगेगा। शुरूआत में आप चाहे जो भी कर लें, ये तकलीफ़ ही देता है।

इससे लाभ पाने में कुछ समय लगता है लेकिन जब आपको लाभ मिलने लगेगा तो आप दोबारा हमसे प्रेम करने लगेंगे। तब तक हम प्रतीक्षा करेंगे। और हाँ, अपने गुरु को चुनने की कोशिश न करें – बस मौजूद रहें। अगर आपको वाक़ई कुछ मूल्यवान चीज प्राप्त हो जाए, तो ये अपने आप घटित हो जाएगा। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो भी कोई समस्या नहीं है। मैं वैसे भी किसी का गुरु बनने का इच्छुक नहीं हूँ।

आपके विकास और ज्ञानप्राप्ति के लिए जी.पी.एस. (GPS)

अगर आप इच्छुक हैं तो मैं आपकी सहायता करूँगा। अगर आप ख़ुद इसे करना चाहें तो भी ठीक है। समस्या केवल यह है कि जब आप एक अनजान इलाक़े में चलना शुरू करते हैं तो हो सकता है आप पूरी दुनिया घूम लें, लेकिन अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच पाएँ। तो यह एक तरह से जी.पी.एस. इस्तेमाल करने जैसा है, जिसमें आप सही दिशा में बढ़ने के लिए एक आवाज़ द्वारा दिए जा रहे निर्देशों का पालन करते हैं। तो आप ख़ुद एक जी.पी.एस. (जो कि यहाँ के मामले में 'गुरु पोजिशनिंग सिस्टम' है) के लिए तैयार हैं। तो ‘गुरु-शॉपिंग’ के लिए मत जाइए। अगर आपको कुछ स्पर्श कर जाता है, तो आपके पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं रहेगा। अगर कुछ भी आपको नहीं छूता हो तो आपको यहाँ समय बर्बाद करने की कोई ज़रूरत नहीं है।

गुरु कोई व्यक्ति नहीं है जिसे आप देखते हैं। व्यक्ति के तौर पर कुछ लोगों को मैं बहुत ख़राब लग सकता हूँ, क्योंकि मैं हमेशा उन्हें किसी न किसी बात पर टोकता रहता हूँ। गुरु कोई व्यक्ति नहीं है, लेकिन सौभाग्य से ये चीज हमेशा किसी एक व्यक्ति के जरिए ही घटित होता है। अगर कोई पक्षी आपको योग सिखाए तो आप उसे समझ नहीं पाएंगे, चाहे वह अपने सबसे ऊँचे स्तर के ज्ञान से ही क्यों न सिखाए।

गुरु कोई व्यक्ति नहीं है जिसे आप देखते हैं।

सौभाग्य की बात है कि ये आपके जैसे ही एक प्राणी के जरिए हो रहा है। अगर ये किसी पत्थर, सांप या पक्षी के ज़रिए घटित होता तो आप इसे जान ही नहीं पाते। ऐसा पहले भी हो चुका है और आज भी होता है लेकिन लोग उसे जानने से पूरी तरह चूक जाते हैं।

अगर एक कोबरा गुरु के रूप में आपको कुछ सिखाने के लिए आए तो आप उसे समझ नहीं पाएंगे। इसके घटित होने का सबसे अच्छा तरीक़ा यही है कि यह आपके जैसे ही किसी प्राणी के जरिए घटित हो। उस व्यक्ति में खो मत जाइए और न ही उस व्यक्ति के ज़रिए जो हो रहा है उसका प्रतिरोध कीजिए। गुरु कोई वस्तु नहीं है जिसे आप घर ले जाएं।

‘गुरु’ का वास्तविक अर्थ

‘गुरु’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘गु’ का मतलब अंधकार और ‘रु’ का मतलब वह जो अंधकार को दूर करे। आपकी नज़र इस तरह से बनी है कि जब तक प्रकाश न हो आपको कुछ दिखता नहीं है। यह कुछ ऐसा है जैसे जब आप समुद्र में होते हैं तो लाइटहाउस होता है जो आपको रास्ता दिखाता है कि आपको किधर जाना है।

दरअसल पूर्वी सभ्यता में अगर आपको कोई रोशनी दिखाता है तो उन्हें ‘गुरु’ कहा जाता है। मुझे ‘सद्‌गुरु’ मेरे ज्ञान की वजह से नहीं कहा जाता, मुझे जो पता है वो किसी ग्रंथ, परंपरा या ऐसी किसी चीज पर आधारित नहीं है। मुझे केवल इस जीवन के बारे में पता है जो मैं स्वयं हूँ, इसके आदि से लेकर अन्त तक के बारे में।

‘गुरु’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘गु’ का मतलब अंधकार और ‘रु’ का मतलब वह जो अंधकार को दूर करे।

मैं केवल इस एक जीवन के बारे में जानता हूँ और यहाँ का प्रत्येक जीवन इसी तरह बना हुआ है। इसलिए सबको ये लगता है कि मैं उनके बारे में ही बात कर रहा हूँ, उनकी समस्याओं के बारे में, उनके समाधान के बारे में। लेकिन दरअसल मैं केवल इस जीवन के बारे में बात कर रहा हूँ और इस बारे में कि हम इसके साथ क्या कर सकते हैं।

अगर वो आयाम जो अंधकार को दूर करता है, आपको कहीं न कहीं छूकर गया है तो वह ख़ुद ही आपका हिस्सा बन जाएगा। आपको अपने साथ मुझे शारीरिक रूप से रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर आप ख़ुद को उस आयाम से स्पर्श होने देने की इजाज़त देते हैं तो ये हमेशा आपके साथ रहेगा और कोई उसे आपसे अलग नहीं कर सकता। वह आपकी सबसे बड़ी ‘समस्या' रहेगी - आप मुझसे छुटकारा नहीं पा सकते, चाहे आप कही भी जाएँ।

गुरु कैसे आपको अपने भीतर देखने में सहायता करते हैं

गुरु की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि लोगों को केवल वही नहीं दिखता जो ठीक उनकी आँखों के सामने होता है बल्कि उनके अपने भीतर क्या चल रहा है वो ये भी नहीं देख पाते। वे केवल इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि उन्होंने ख़ुद को कहीं और लगा रखा है। लोग जीवन यापन के साधनों के अलग-अलग स्तरों पर हमेशा निवेश करते रहते हैं जो आगे सामाजिक प्रक्रियाओं से और भी जटिल हो जाते हैं।

गुरु यहाँ एक नया दर्शन या नया धर्म बनाने के लिए नहीं है। आध्यात्मिक प्रक्रिया जीवन के गहरे आयामों के लिए है। गुरु एक द्वार की तरह है। यदि आप किसी द्वार को दूर से देखें और उसमें से गुजरना चाहें, तो वह द्वार ख़ुद एक लक्ष्य की तरह लगता है। तो अगर आप दूर हैं तो गुरु ही आपका लक्ष्य है।

गुरु एक द्वार की तरह है।

आपको कुछ करना नहीं है, आपको कहीं जाना नहीं है - आप पहले से ही वहाँ मौजूद हैं। आपको बस थोड़ा स्थिर होना है। आपको जागरूक होकर सांस लेना सीखना है और अपने हृदय को जागरूकता के साथ धड़कने देना है। शरीर का प्रत्येक कम्पन सचेतन होना चाहिए। आखिरकार जो चेतना आपके जीवन का स्रोत है, उसे आपके जीवन का सामने का हिस्सा होना चाहिए।  

गुरु की भूमिका काफी साधारण है, लेकिन बहुत ज़रूरी है - आपको वो दिखाने के लिए जो हमेशा से यहाँ है। हो सकता है कुछ लोग उस दिशा में थोड़ा बेहतर चल रहे हों, और उन्हें जल्दी परिणाम मिले। बाकी लोग गुरु से सीखने की कोशिश करते हैं जिसमे पूरा जीवनकाल लग सकता है। अगर मैं लम्बे समय तक जीवित रहूँ और अपना सबसे बेहतर दूँ, हफ्ते में सातों दिन काम करके, तो मैंने जो पाया है उसका मात्र 2 प्रतिशत ही साझा कर पाऊँगा। लेकिन अगर उतना भी कर पाऊँ तो बहुत बड़ी बात होगी। ज्ञान प्राप्ति एक बहुत लम्बी प्रक्रिया है। 

गुरु के पास कैसे जाएं: सीखने के लिए, अपनाने के लिए या उसमें लीन हो जाने के लिए

कुछ लोग गुरु के करीब जाकर उनके गले लग जाते हैं। परिणामस्वरूप वे आनंद का अनुभव करते हैं। अपनी भौतिक परिस्थितियों के बावज़ूद ख़ुशी और आनंद के साथ जीवन जीते हैं क्योंकि उन्होंने कृपा को छू लिया है। एक दूसरा तरीक़ा होता है - गुरु में लीन हो जाना, जो एक गहरे स्तर पर है। अगर आपका हृदय आपके गुरु के लिए धड़कता है, आपकी सांसों में आपके गुरु का स्पर्श है, या गुरु ही आपको अपनी मुक्ति का द्वार प्रतीत होता है तो आप उसमे लीन हो सकते हैं।  

गुरु आपकी साँस हो सकता है, धड़कन हो सकता है या आपकी मुक्ति हो सकता है, चुनाव आपका है।  

तो गुरु के पास कैसे पहुंचा जाए? आप दूर से उनके सामने सिर झुका सकते हैं, उन्हें गले लगाकर अपना सकते हैं या उनमें विलीन हो सकते हैं। ये आपका चुनाव है, लेकिन आप जो भी विकल्प चुनेंगे, मैं आपके साथ हूँ।