प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सद्गुरु। आजकल बहुत से डॉक्टर पेट के दिमाग़ के बारे में बात कर रहे हैं कि यह कैसे हमारे सिर में स्थित मस्तिष्क को प्रभावित करने के लिए संकेत भेजता है। मैं सोच रहा था कि क्या हम जिस तरह का भोजन खाते हैं और हमारे खानपान की आदतें भी हमारी भावनात्मक स्थिरता, मानसिक सेहत और अन्य पहलुओं को प्रभावित कर सकती हैं?
सद्गुरु: आजकल की दुनिया में बहुत सारे लोग ठूंसते रहने पर यकीन रखते हैं। बिना किसी भेदभाव के, जो भी सामने आता है वह खा जाते हैं। बहुत सारी किताबें मनुष्य को सर्वभक्षी बताती हैं। इसका मतलब यह है कि हम लगभग सब कुछ खा सकते हैं, जो कि तकनीकी रूप से सही भी है। लेकिन सवाल यह है कि आप ख़ुद को क्या बनाना चाहते हैं? अगर आप इसकी परवाह करते हैं, तो आपको इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि आप क्या, कैसे, कब और कितना खाते हैं।
इंसान का एक बहुत महत्वपूर्ण गुण है कि वह यह भेद कर सकता है और सचेतन रूप से चुनाव कर सकता है - चाहे भोजन का चुनाव हो या कुछ और। लेकिन खाद्य उद्योग सहित सभी कारोबारों की प्रकृति ऐसी है कि वह आपको बांधकर रखना चाहते हैं। आप जितना अधिक अंधाधुंध उपभोग करेंगे उनके व्यवसाय के लिए वह उतना ही बेहतर होगा।
देखिए, केवल आपके पेट का ही दिमाग़ नहीं होता, बल्कि कुछ वैज्ञानिक प्रमाण यह भी बताते हैं कि आपके हृदय में भी एक छोटा सा दिमाग़ होता है। दरअसल शरीर की हर कोशिका में उसका खुद का एक छोटा दिमाग़ होता है। अगर आप उन सभी को एक साथ मिला दें तो यह आपके मस्तिष्क से कहीं ज्यादा बड़ा और ज़्यादा कुशल होगा।
जब मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है तो आज की दुनिया में दो महत्वपूर्ण चिंतनीय विषय हैं। चूँकि लोग थोड़ा लंबा जी रहे हैं, जो कि एक अच्छी बात है कि लोग एक पूरी जिंदगी जी रहे हैं, इससे एक बड़ी समस्या आ रही है - मानसिक क्षमता में गिरावट, डिमेंशिया और अल्जाइमर। ऐसे लोग बिना सॉफ्टवेयर वाले हार्डवेयर की तरह हो जाते हैं। बिना सॉफ्टवेयर के कोई यह नहीं जान पाता कि क्या करना है।
एक और प्रमुख मुद्दा है जो चिंताजनक रूप से बढ़ता जा रहा है- बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से अस्थिर होते जा रहे हैं, 20 साल पहले तक जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। अटलांटा में स्थित ‘सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ (रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र) का कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति तीन में से एक किशोर लड़की अवसाद ग्रस्त (डिप्रेस्ड) है। पिछली पीढ़ियों में, ख़ासकर किशोर लड़कियां यूँ ही हंसमुख और चुलबुली हुआ करतीं थीं। लेकिन अब वे भी अवसाद ग्रस्त हो रही हैं, एक ऐसी उम्र में जब जीवन को जीवंतता के उच्चतम स्तर पर होना चाहिए अवसाद तेजी से आम हो रहा है। हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं और इसके कई कारण हैं।
पिछले कुछ दशकों से हम जिन भी चीजों में शामिल रहे हैं - चाहे वह पेड़ हों, नदियाँ हों, पानी की गुणवत्ता हो, मिट्टी की गुणवत्ता या आपका मानसिक स्वास्थ्य, वे सब सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। अभी लगभग 27,000 जीवों की प्रजातियां हर साल विलुप्त हो रही हैं। अगर सूक्ष्मजीव गायब होते हैं, तो इसका मतलब है जीवन के उस तानेबाने में छेद हो जाना, जो हमारा और दूसरे जीवों के जीवन का निर्माण करता है।
एक निश्चित मात्रा में सूक्ष्म जीवों का जीवन विलुप्त हो जाने पर मनुष्य और कई अन्य प्रजातियां जीवित नहीं रह पाएंगी। मिट्टी में से सूक्ष्म जीवन के गायब होने से स्वास्थ्य संबंधी हर तरह की परेशानियां पैदा होने लगेंगी। सबसे पहली चीज जो आप महसूस करेंगे वह होगी मानसिक अस्थिरता, क्योंकि मानसिक बनावट एक सॉफ्टवेयर की तरह होती है जो सामान्यतः सबसे पहले गड़बड़ और खराब होता है। हार्डवेयर, जो आपका शरीर है, खराब होने में समय लेता है ,क्योंकि यह एक अलग तरीके से बनाया गया है जिसमें कम जटिलता है।
मानसिक स्वास्थ्य और पेट की सेहत सीधे जुड़े हुए हैं। आप किस तरह का भोजन लेते हैं, कैसे खाते हैं और एक दिन में कितनी बार खाते हैं, इन सबका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
कई अलग-अलग पहलू हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप अपने भीतर एक ख़ास स्तर की चेतना, संतुलन और समभाव बनाए रखना चाहते हैं तो यह तय करना महत्वपूर्ण है कि दिन में कब और कितनी बार खाना चाहिए। मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए सबसे अच्छी बात यह होगी कि एक दिन में 8 से 10 घंटे के अंतराल में ही भोजन कर लें। यदि आप उतने समय के भीतर एक या दो बार भोजन कर लेते हैं तो आपके पेट का स्वास्थ्य काफी हद तक नियंत्रित हो जाएगा। फिर अगले 16 घंटों तक के लिए आप पेट को आराम दे दें।
इसके अलावा चूँकि एक दिमाग़ आपके हृदय में भी है, इसलिए इसकी सेहत को अच्छा रखना भी बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे अध्ययन हैं जो दिखाते हैं कि यदि आप चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, जलन या किसी दूसरी अप्रिय भावना के बिना 24 घंटे बिताते हैं, तो आपकी बुद्धि दोगुनी तेज हो सकती है।
आपको क्रोध का आवेग आ सकता है, लेकिन अधिकांश लोगों में हर समय क्रोधित रहने की ऊर्जा नहीं होती। 24 घंटे क्रोधित रहने के लिए आपको योगी बनना होगा। लेकिन आप 24 घंटे तक वैर या द्वेष की भावना बनाए रख सकते हैं। द्वेष का मतलब यह है कि किसी दूसरे व्यक्ति को निशाना बनाकर ख़ुद को चोट पहुंचाना।
मैं द्वेष, ईर्ष्या और इससे जुड़ी भावनाओं की बात इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि आप उन्हें 24 घंटे तक बनाए रख सकते हैं। लेकिन आप लंबे समय तक क्रोध या घृणा को कायम नहीं रख सकते, कुछ समय बाद आप थक जाएंगे। लेकिन यदि आप द्वेष जैसी अप्रिय भावनाओं में उबलते रहेंगे तो 10 वर्षों में आपकी बौद्धिक क्षमता कम से कम 50% कम हो जाएगी।
अपने सिस्टम में सुखद भावना बनाए रखना, आपके मस्तिष्क की सेहत के लिए आवश्यक है। दिमाग़ के कई स्तर होते हैं - एक पेट में, एक हृदय में, एक आपके सिर में और एक शरीर की प्रत्येक कोशिका में। आपको उन सभी का उपयोग करना चाहिए।
यदि आप ऊपर उठना चाहते हैं और अपने भीतर एक महत्वपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं तो आपको अपने मस्तिष्क के हर हिस्से को सक्रिय करने की आवश्यकता है। यह तभी हो सकता है जब आप एक ख़ास तरीक़े से धड़कते हैं। इसके लिए आपको एक सुखद जीवन बनना होगा।
भोजन और मानसिक स्वास्थ्य पर वापस आते हैं। मानसिक रूप से अस्वस्थ होने का मतलब यह नहीं है कि आप इतने बीमार हैं कि आपको दवा की जरूरत है। यदि आप चिड़चिड़े या दुखी हैं तो भी आप मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। यदि आपकी खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि आपके आसपास के सभी लोग आपके मन-मुताबिक हैं या नहीं, तो यह भी मानसिक रूप से अस्वस्थ होने की निशानी है। डॉक्टर को अपने मानक बनाए रहने दीजिए, अपने लिए मानसिक स्वास्थ्य का अपना मानक आपको ख़ुद तय करना होगा।
24 घंटे के भीतर ऐसा एक भी पल नहीं आए जब आप चिड़चिड़े, उत्तेजित, क्रोधित या द्वेष से भरे हों। मानसिक सेहत ऐसी होनी चाहिए। यदि आप अपने सिस्टम को सुखद बनाते हैं तो जीवन स्वाभाविक रूप से विकसित होगा।