मिलान में सद्गुरु के साथ हुआ ‘मीट, मिंगल एंड मेडिटेट’ कार्यक्रम इस बात का विश्वास दिलाता है कि आध्यात्मिकता की चिंगारी, बिना किसी सामाजिक या सांस्कृतिक भेदभाव के हर किसी को छू सकती है, अगर लोग इसे छूने दें।
सद्गुरु के उत्साहवर्धक आह्वान पर इटली और यूरोप से करीब 300 स्वयंसेवक सक्रिय हो गए। जैसे मधुमक्खियों का झुण्ड झुंड नया छत्ता बनाने के लिए संगठित तरीक़े से भिनभिनाते हुए भागने लगता है ठीक उसी तरह हम लोगों ने भी पूरे उत्साह से एकजुट होकर एक दूसरे के साथ ताल मिलाकर एक लक्ष्य के लिए तैयारियाँ शुरू कर दीं।
इस कार्यक्रम से पहले के कुछ हफ़्ते तेज़ी से बीत गए - कई बैठकें, फ़ोन कॉल्स और संदेशों में इस बात पर चर्चा करते हुए कि कार्यक्रम का स्थल कहाँ होना चाहिए, प्रतिभागियों को सबसे बेहतरीन अनुभव कैसे हो, ज़रूरी सामान क्या हैं और उन्हें कहाँ से मंगाया जाए और ऐसी ही कई चीजें जिन्हें व्यवस्थित करना था। यह दौर काफ़ी व्यस्तताओं और ऐसी घटनाओं से भरा था जो हम में से अधिकांश के लिए नई थीं। जैसे कि चार्लोट - एक हठ-योग शिक्षक ने, जो हमारे साथ स्वयंसेवा कर रहे थे, बताया,‘ऐसा लग रहा था कि विचारों की एक पहेली है, जो पूरी तरह से उलझी हुई लग रही थी, लेकिन कृपा से धीरे-धीरे सुलझते हुए आकार लेती जा रही थी।’
तारीख पक्की होने के कुछ घंटे पहले ये चहल-पहल बढ़ने लगी। जब हरेक इंसान अपनी सीमाओं से ऊपर उठकर अपनी पूरी ऊर्जा लगाकर सारी व्यवस्थाओं - भोजन तैयार करने, मंच सजाने, साइनबोर्ड लगाने आदि – में लग गया था। मैंने अनुभव किया कि हमारी दृष्टि अब एक होकर एक ही लक्ष्य की ओर देख रही थी और हम सब मिलकर एक प्राणी की तरह काम करने के लिए तैयार थे।
इस कार्यक्रम का लक्ष्य था कि लोगों को सचेतन जीवन की संभावना के लिए प्रेरित किया जा सके, लेकिन सद्गुरु की मौजूदगी ने जिज्ञासुओं के साथ साधकों को भी आकर्षित किया। रविवार की सुबह 4200 से भी अधिक प्रतिभागी कार्यक्रम स्थल के बाहर कतार बनाकर खड़े हो गए थे। समर्पित कार्यकर्ताओं और अधीर जिज्ञासुओं से लेकर इटैलियन संगीत और मनोरंजन की दुनिया की हस्तियां भी, धीरे-धीरे एलियांज क्लाउड में प्रवेश करने लगीं। इन विशिष्ट लोगों का स्वागत स्वयंसेवकों के मुस्कुराते चेहरों और समर्पित नज़रों ने किया।
चेक-इन की प्रक्रिया मधुर संगीत की तरह चल रही थी। कुछ स्वयंसेवक साइनबोर्ड लिए हुए लोगों की कतारों को आगे का रास्ता दिखा रहे थे, कुछ कलाई पर पट्टे बांध रहे थे और आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे, कुछ लोग प्रतिभागियों को उनके स्थान तक पहुंचा रहे थे। मैं इस सारी प्रक्रिया का संचालन करते हुए दस दरवाज़ों में से एक से दूसरे की तरफ़ आ-जा रहा था। सचमुच ऐसा लग रहा था मानो लोग सर्दी की गुनगुनी धूप में मनोहर और सुखद नृत्य में तल्लीन होकर एक-दूसरे के साथ मृदुता से हंस-बोल रहे हैं। वातावरण में कहीं कोई तकरार नहीं थी। चेक-इन के मनोरम नृत्य के ख़त्म होने के बाद हम सभी उस दैवीय अलाव के आसपास इस बात का अनुमान लगाते हुए बैठ गए कि आगे क्या होने वाला है।
साउंड्स ऑफ़ ईशा के प्रतिभाशाली संगीतकारों और ईशा संस्कृति डांसर्स द्वारा दिए गए सुंदर सांस्कृतिक प्रदर्शन से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। शुरुआत में सद्गुरु पहली पंक्ति में कुछ प्रतिभागियों के समीप बैठे थे और अपने सामने मंच पर सुंदर अभिव्यक्ति देख उसमें डूबे हुए थे। उनकी बेटी राधे, अद्भुत सौंदर्य के साथ मंच पर नृत्य की मुद्राओं में लहरा रहीं थीं और सबकी प्रशंसा बटोर रहीं थीं।
जब मंच पर जाने का समय आया तो सद्गुरु मंच पर कुछ ऐसी फुर्तीली छलांग के साथ पहुंचे जिसने वहां मौजूद सब लोगों को आश्चर्य में डाल दिया और एक आनंद की लहर दौड़ गई। हर कोई उस अद्भुत संभावना को पहचान रहा था जो हम लोगों के लिए उस क्षण खुलने वाली थी। जैसे ही उन्होंने बोलना शुरू किया, उस स्थान की ऊर्जा अचानक बहुत तीक्ष्ण और तीव्र हो गई। मैंने चारों ओर देखा तो मुझे सारे चेहरे सद्गुरु की ओर केंद्रित दिखे, कान सुनने के लिए खड़े थे, हृदय खुले थे और ग्रहण करने के लिए तत्पर थे।
सद्गुरु के शब्द बहुत ही स्पष्ट, आसानी से समझ में आने वाले, तार्किक और साथ ही बहुमूल्य, शक्तिशाली और गहरे थे। बीच-बीच में कुछ हंसी मजाक और चुटकुले उनके भाषण की गंभीरता में हल्केपन का स्पर्श दे रहे थे। हर बार प्रतिभागी भावनाओं से ओत-प्रोत हो जाते, कभी-कभी हंसी के फव्वारों तो कभी तालियों में उनकी ख़ुशी फूट पड़ती थी। मुझे उनकी यह बात ख़ास तौर पर छू गई जब उन्होंने सबको याद दिलाया कि सुबह उठकर ख़ुद को जीवित पाना, और अब तक जीवित रहना ही अपने आप में मुस्कुराने के लिए एक पर्याप्त कारण है - ये सचमुच एक चमत्कार है। उन्होंने कहा कि, ‘यह जो हर पल आगे बढ़ रही है वह घड़ी नहीं है। यह जीवन है जो धीरे-धीरे निकलता जा रहा है। हम कितना अद्भुत जीवन बनेंगे, हम ख़ुद को और अपने आसपास के लोगों को कितने अद्भुत अनुभव से गुज़रने का मौका देंगे, बस यही सबकुछ है।’
जब सद्गुरु अंग्रेज़ी में बोल रहे थे, एक स्वयंसेवक – क्रिस्टीन, ने भाषा के अंतर को मिटाने का चुनौतीपूर्ण कार्य सँभाला। उन्होंने सद्गुरु के भाषण का लाइव अनुवाद किया और यह सुनिश्चित किया कि उनकी गहन अंतर्दृष्टि बिना किसी रुकावट के इटैलियन भाषा जानने वाले प्रतिभागियों तक पहुंचे। आम तौर पर यह कार्यभार हर आधे घंटे के बाद कोई दूसरा स्वयंसेवक उठाता है, लेकिन क्रिस्टीन ने लगातार 5 घंटे तक लाइव अनुवाद के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया।
क्रिस्टीन ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परिस्थिति कैसी है, मेरी तरफ से हमेशा ‘हाँ’ ही है। चाहे मुझे 5 घंटे तक लाइव अनुवाद क्यों न करना पड़े। मैं अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए हर परिस्थिति के लिए ख़ुद को तैयार करता हूँ और उसके बाद मैं सद्गुरु से प्रार्थना करता हूँ कि मुझ पर कृपाकर अपने कंधे पर बैठा लें जिससे मेरे शब्द उनके शब्दों की नक़ल बन सकें और मैं उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकूं चाहे, कितनी भी दूर क्यों न जाना हो। मुझे पता नहीं कि ये कैसे सम्भव होता है, लेकिन तब एक अलग आयाम खुल जाता है जिसे लगता है कोई बहुत शक्तिशाली ताक़त नियंत्रित कर रही है जो असंभव चीज़ों को संभव और सहज बना देती है। इसके लिए मैं कोई तार्किक व्याख्या नहीं दे सकता लेकिन मैंने इसे बार-बार अनुभव किया है। इन सरल लेकिन जीवन को रूपांतरित कर देने वाले साधनों तक सबकी पहुंच होनी चाहिए और मैं इस लक्ष्य के लिए पूरी तरह से समर्पित हूँ।’
एक पल का विराम लेते हुए क्रिस्टीन ने उस क्षण को याद किया और बताया जब सद्गुरु के साथ उनका व्यक्तिगत तौर पर आमना-सामना हुआ था:‘मैं बरामदे में सद्गुरु से कुछ कदम की दूरी पर पीछे-पीछे संकोच भाव से चल रहा था जब वे अचानक रुक गए। बहुत नजदीक न हो जाऊँ, इस डर से मैं उसी जगह थम गया। एकाएक वे पीछे मुड़े और मुझे हक्का-बक्का खड़ा देखकर अपने जाने-माने अंदाज़ में ठहाके लगाने लगे।’
कार्यक्रम में एक ब्रेक के बाद सद्गुरु ने घोषणा की कि वे जल्द ही हम सबको एक आसान सी ध्यान प्रक्रिया करवाएंगे और उन्होंने ये स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया का हमारे ऊपर प्रभाव कितना होगा, यह इस पर निर्भर करेगा कि हम कितने खुले भाव से और किस गहराई से उसमें शामिल होते हैं।: ‘जीवन तभी घटित होता है जब हम शामिल होते हैं। जब हम शामिल नहीं होते हैं तब कोई जीवन नहीं है।’ प्रक्रिया से अधिक जुड़ पाने के लिए उन्होंने हमें अपनी आँखें 30 सेकंड बंद करने के लिए कहा और कहा कि कल्पना कीजिए आपको रास्ते में अचानक वो व्यक्ति मिल जाए जिससे आप बेहद प्यार करते हैं तो आपके चेहरे पर कैसी मुस्कुराहट आएगी। इसके बाद उन्होंने कहा ‘बस वही मुस्कान अपने चेहरे पर लाइए। अब आपके बगल में जो बैठा है उसे देखिए और इसी तरह मुस्कुराते रहिए।’
जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, मैंने हज़ारों लोगों को एक दूसरे की तरफ विशुद्ध प्रेम से मुस्कुराते देखा। कुछ लोग तो अपने मुख-मंडल पर आई अद्भुत मुस्कराहट से हैरान थे और उन्होंने इसके इतनी सहज और स्वाभाविक तरह से होने की उम्मीद भी नहीं की थी, इसलिए वे आनंद और विमूढ़ अवस्था में अविश्वास के साथ चारों तरफ देख रहे थे। जब ध्यान प्रक्रिया शुरू हुई, मैंने आँखें मूँद लीं और अचानक मैंने अपने शरीर में फ़ैल रही प्रचंड ऊर्जा को महसूस किया। इतनी प्रचुर ऊर्जा जिसे मैं अपने शरीर में सीमित रखने में संघर्ष कर रहा था - ऐसा लग रहा था मानो मैं जल्दी ही हज़ारों टुकड़ों में फट जाऊंगा।
मुझे यकीन है कि ये अनुभव हम में से हरेक के लिए बहुत ही अलग और आतंरिक रहा होगा लेकिन सद्गुरु ने जो तीव्रता हम तक पहुंचाई थी वो सबको स्पष्ट थी। केवल मैं ही नहीं, बल्कि मेरे आसपास कई लोग अपने अंदर हो रहे इस अद्भुत और अनजान अनुभव से अभिभूत अपने आँसु और सिसकियों को रोक नहीं पा रहे थे। जब हमने अपनी आँखें खोलीं, हमने उस स्थान को चमकते जीवन से भरपूर पाया। कुछ लोग अपने आंसू पोंछ रहे थे। साफ़ नजर आ रहा था कि उस अनुभव की तीव्रता उन्हें झकझोर गई थी। कुछ लोगों के मुख-मंडल प्रसन्नता, शांति और तनाव मुक्ति से चमक रहे थे।
सद्गुरु मंच पर थे, स्थिर और मुस्कुराते हुए, लेकिन उसके बाद से, कम से कम मेरे अनुभव में, ऐसा लग रहा था मानो वे हर जगह मौजूद थे। मैंने उन्हें अपने आसपास के लोगों के चेहरों में देखा, अपनी हर सांस में उन्हें सुना, कुछ ऐसा अनुभव कि मेरी शारीरिक सीमाएं जैसे समाप्त हो गई थीं, जैसे कि सब कुछ मेरा ही हिस्सा था - उनका हिस्सा था। उस प्रक्रिया के लिए ख़ुद को पूरी तरह से खोल देने वालों ने, उस क्षण में जो पाया वो आज भी हमारे अंदर उसी चेतना के साथ गूँज रहा है। उस कार्यक्रम के पश्चात प्रतिभागियों द्वारा भेजे गए कई दिल को छू जाने वाले संदेशों में से एक को पढ़कर इसका अनुमान लगाया जा सकता है: ‘एक सुंदर अनुभव, मैं एक प्रेम में पड़े युवा की भांति हमेशा मुस्कुराता रहता हूँ... आज सुबह घर के सामने लगे बगीचे को देखकर मेरी आँखें आंसुओं से भर गईं। ये बहुत सुंदर है।’
अभी जो हुआ था, जिसने हम सबको झकझोर दिया था और प्रसन्नता से ओत-प्रोत कर दिया था, उसके पश्चात हमें सद्गुरु से कुछ प्रश्न पूछने का अवसर मिला। वे खड़े हो गए और मंच पर एक छोर से दूसरी ओर चहलक़दमी करते हुए स्पष्ट, विस्तृत और कई बार मजाकिया ढंग से जवाब देने लगे। कमरे की ऊर्जा दोबारा बदल गयी, सब कुछ बहुत गतिशील हो गया। एक व्यक्ति ने, शायद आज के समय की धधकती हुई भू-राजनैतिक परिस्थिति से चिंतित होकर पूछा, ‘क्या हम इस धरती पर कभी शांति की जीत देख पाएंगे?’ सद्गुरु ने जो जवाब दिया वो इतना स्पष्ट और सारगर्भित था कि बहुत समय तक तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती रही।: ‘आपको क्या चाहिए - एक योजना या एक भविष्यवाणी? अगर हम एक भविष्यवाणी करते हैं तो इसका मतलब हुआ कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि आप उसको बदलने के लिए क्या करते हैं, क्योंकि बस वही होने वाला है। यह जीवन की सच्चाई नहीं है। मनुष्य का भाग्य उसके अपने हाथों में है। इसलिए मेरे पास एक योजना है।’
कार्यक्रम की समाप्ति पर साउंड्स ऑफ़ ईशा के एक अद्भुत संगीत के बीच सद्गुरु प्रतिभागियों के बीच से गुज़रे। लोग उनके आसपास गहरी भावनाओं के साथ खड़े हो गये। उत्सव और अंतरंगता का एक ज़बरदस्त वातावरण हमारे आसपास स्थापित हो चुका था। सद्गुरु की असीम करुणा और अद्भुत मौजूदगी से प्रभावित और रूपांतरित हो चुके लोग अपने-अपने स्थानों पर अलै-अलै की लय पर तालियां बजाते हुए नाच रहे थे।
उस क्षण के महान उल्लास का वर्णन करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं। वो चुम्बकीय लहरें जो हम में से हरेक में उठीं, हम सबको उनकी तरफ खींचकर ले गईं, और हमें जीवंतता के एक गुंजायमान अनुभव से भर दिया। सद्गुरु के जाने के बाद भी कुछ समय तक संगीत चलता रहा, और संगीत के समाप्त होने के बाद भी मेरे अंतर्मन की गहराईयों में कहीं वो गुंजन बाकी रहा। एक विशुद्ध जीवन के उल्लास की चिंगारी की तरह, जो आज भी मेरे अंदर जल रही है, जब मैं एक जिद्दी और मंदबुद्धि की भांति अवर्णनीय का वर्णन करने की कोशिश में ये शब्द लिख रहा हूँ।
—जियोर्जियो ट्रेब्बी, ईशा स्वयंसेवक, इटली