संस्कृति

देवी के साथ क्यों दिखाते हैं महिषासुर को?

सद्‌गुरु बता रहे हैं कि क्या चीज़ हमें इंसान बनाती है, और साथ ही यह भी कि देवी के उत्सव की नौ रातें, यानी नवरात्रि के लिए, जो हमारे विकास का प्रतीक है, कैसे तैयारी करें।

प्रश्नकर्ता: नमस्कारम्, सद्‌गुरु। कृपया यह स्पष्ट करें कि लिंग भैरवी के सामने महिषासुर की प्रतिमा किस बात की  प्रतीक है?

सद्‌गुरु: महिषासुर की छवि इंसान के पाशविक स्वभाव को दर्शाती है। विकास क्रम की प्रक्रिया में, एक अमीबा, एक केंचुआ, एक झींगुर, एक बैल, और हर प्रकार के पशु जो समय के साथ विकसित हुए, उन सबके गुणों के कुछ अंश अभी भी आपमें हैं। ये सभी बाध्यकारी प्रवृत्तियाँ हैं। यहाँ तक कि आधुनिक नाड़ी विज्ञान स्वीकार करता है कि आपके दिमाग का एक हिस्सा सरीसृपों जैसा है। सरीसृपों जैसे मस्तिष्क का मतलब आपके विकास के उस स्तर से है जब आपका दिमाग़ सहज प्रवृत्तियों के प्रभाव में काम करता है। 

जब मनुष्य सीधा चलने लगा और उसकी रीढ़ सीधी हुई, सरीसृप मस्तिष्क के ऊपर, सेरेब्रल कॉरटेक्स का फूल खिल गया। यही चीज़ आपको मनुष्य बनाती है। यही चीज आपको अस्तित्व की सार्वभौमिकता – यानी सबकुछ एक है –सोचने लायक बनाती है। यही चीज़ आपको वैज्ञानिक या एक आध्यात्मिक साधक बनने देती है। पर अगर आप वापस सरीसृप मस्तिष्क में चले जाएँ तो, आपके पास केवल जीवित रहने की प्रवृत्ति बचेगी।

अगर आप सरीसृप मस्तिष्क से काम करेंगे, तो आप केवल दीवारें ही खड़ी करते रहेंगे।

शिक्षा, आध्यात्मिक प्रक्रिया, और ध्यान जैसी कोशिशें इसीलिए हैं कि सरीसृप मस्तिष्क से हटकर सेरेब्रल कॉरटेक्स की ओर बढ़ सकें, जो कि विकास-क्रम का सबसे नया मोड़ है, जो आपको सबको शामिल करना सिखाता है। अगर आप सरीसृप मस्तिष्क से काम करेंगे, तो आप केवल दीवारें ही खड़ी करते रहेंगे। जब भी आपको अपने आसपास के लोगों से समस्या होती है, उसकी वजह बुनियादी रूप से वे दीवारें होती हैं जो आपको और उनको अलग करती हैं, या जो यह तय करती हैं कि क्या आपका है, और क्या उनका है। अगर आप दिमाग के केवल एक पहलू से काम करें, तो आपका काम चल जाएगा, पर आप अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाएँगे।

योग में ऐसे उपाय हैं, जो एक तरह से सरीसृप मस्तिष्क को खोल देते हैं, ताकि ये सेरेब्रल कॉरटेक्स से संवाद शुरू कर सके और दोनों मिलकर एक मस्तिष्क की तरह काम कर सकें। इस पर कुछ अध्ययन हुए हैं जो बताते हैं कि कुछ विशेष ध्यान के द्वारा ऐसा किया जा सकता है। फूल को खिलना चाहिए। इसीलिए योग संस्कृति में कमल के फूल को दिखाया जाता है, जो मानव तंत्र में चक्रों को दर्शाता है। इसमें सबसे बड़ा फूल सिर में सबसे ऊपर सहस्रार को दर्शाता है।

या तो आप खुद अपना सरीसृप मस्तिष्क खोल लीजिए नहीं तो देवी आपको नीचे ला देंगी।

अगर सेरेब्रल पुष्प खिल जाता है तो, मानवीय बुद्धिमत्ता एक होकर समावेशी रूप में काम करने लगती है। सबको शामिल करना कोई दर्शन नहीं है, यह अस्तित्व की प्रकृति है। कोई दूसरा जीव इसे समझने के क़ाबिल नहीं है। वे सब अपनी सीमाएँ तय करने में व्यस्त हैं। एक कुत्ता सब जगह पेशाब करता है, वो किसी पेशाब से जुड़ी समस्या की वजह से ऐसा नहीं करता, बल्कि अपना इलाक़ा तय करने के लिए ऐसा करता है। इंसान भी यही कर रहे हैं पर कुछ अलग तरीके से। वे भी अपनी सीमा तय कर रहे हैं, और अगर संभव हो तो उसे थोड़ा और आगे बढ़ा रहे हैं।

लिंग भैरवी के पास महिषासुर की प्रतिमा यह दर्शाती है कि पशुता का अंत कर दिया गया है। इसका मतलब आप फूल बन गए हैं। हम देवी के एक ख़ास समय के क़रीब हैं- नवरात्रि, जिसका अर्थ है, ‘नौ रातें’। ये नौ रातें अमावस्या से गिनी जाती हैं। चंद्र-चक्र के पहले नौ दिन स्त्रैण माने जाते हैं। नौवाँ दिन नवमी कहलाता है। पूर्णिमा के पास के डेढ़ दिन तटस्थ माने जाते हैं। बाकी अट्ठारह दिन पुरुषैण स्वभाव के होते हैं। माह का स्त्रैण पक्ष देवी से जुड़ा है। इसीलिए हमारी परंपरा में नवमी तक सभी पूजा देवी को समर्पित होती है।

चंद्र-चक्र के पहले नौ दिन स्त्रैण माने जाते हैं।

साल के बारहों महीने के ये नौ-दिन अलग-अलग देवी को समर्पित होते हैं। अक्टूबर में आने वाली ये नवरात्रि देवी शारदा को समर्पित होती है। यह सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि देवी शारदा ज्ञान की देवी हैं। इंसान के द्वारा किए जा सकने वाले सभी कामों में से, सीखने या कहें विद्या अर्जन को इस परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। दूसरे जीव हमसे अधिक तेज़ दौड़ सकते हैं, वो कई ऐसी चीजें कर सकते हैं जो हम नहीं कर सकते, लेकिन वो हमारी तरह सीख नहीं सकते।

यह समय है इंसान बनने का - आप कुछ भी सीख सकते हैं- अगर आप इच्छुक हैं। इस नवरात्रि पर कुछ नया सीखने के लिए तैयार रहिए। या तो आप खुद अपना सरीसृप मस्तिष्क खोल लीजिए नहीं तो देवी आपको नीचे ला देंगी। इस प्रतीक का दूसरा पहलू यह है कि पुरुषैण प्रकृति सहजवृत्ति के वश में जीता है। कह सकते हैं कि सरीसृप मस्तिष्क एक बंद मुट्ठी की तरह है। जब स्त्रैण गुण का प्रवेश होता है, ये खुल जाता है। जब ये खुलता है तो पुरुषैण या पाशविक स्वभाव उसके चरणों में गिर पड़ता है। देवी और महिषासुर का प्रतीक केवल इतना है- चूँकि वो पूरी शक्ति के साथ उठीं, पाशविकता धराशाई हो गई।