खुशी की तलाश कैसे करें?
डेमी लोवाटो: किसी को अपने काम में खुशी खोजने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है, खासकर जब उसका काम मुश्किल हो?
सद्गुरु: कोई काम मुश्किल नहीं होता, अगर आप खुद उसे मुश्किल नहीं बना देते हैं। अगर आप उसे ख़ुशी-ख़ुशी करें तो वही काम उत्साहजनक हो जाएगा, लेकिन अगर आप उसे दुखी होकर करेंगे, तो वह मुश्किल लगेगा। अगर आप आनंदित हैं, तो आप पच्चीस बार तैरकर किसी ताल को आर-पार कर लेंगे। हालाँकि ये आपकी मांसपेशियों के लिए कठिन काम होगा, लेकिन आपके लिए यह कठिन नहीं होगा। आपका काम तभी मुश्किल होता है जब आप वो करते हैं जो आपको पसंद नहीं। मुझे कोई बता रहा था कि सत्तर प्रतिशत अमेरिकी अपने काम से नफरत करते हैं।
अगर आप सप्ताह में पाँच दिन वो काम कर रहे हैं जिससे आप नफरत करते हैं, तो निश्चय ही सप्ताह के अंत में आप नशे में धुत रहेंगे। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। यह जीवन इसके लिए नहीं है कि पहले आप काम को मुश्किल बनाएं और आख़िर में जाकर मज़े करें।
डेमी लोवाटो: हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जो हमें सिखाती है कि हम एक वेतन से दूसरे वेतन तक काम करते रहें, और फिर एक दिन हमें ख़ुशी मिलेगी।
सद्गुरु: ये एक वेतन से दूसरे वेतन के बारे में नहीं है। किंडरगार्टन से ही आपको सिखाया गया है कि आपको दूसरों से आगे रहना है। दूसरे शब्दों में कहें तो आपकी एकमात्र खुशी दूसरों की असफलता में है। अगर हमने इसे नहीं बदला तो मानव जाति कभी खुशी हासिल नहीं कर पाएगी। सबसे बढ़कर, कोई भी इंसान अपने काम में खुशी नहीं पा सकता है, क्योंकि किसी काम में ऐसी कोई चीज़ है ही नहीं। आनंद और पीड़ा दोनों केवल आपके भीतर ही घटित हो सकते हैं।
आपके अनुभव का स्थान आपके भीतर ही है, बाहर नहीं। तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप फर्श साफ करते हैं या आप रॉक स्टार हैं - अगर आप आनंदित हैं, तो आप हर काम खुशी-खुशी कर सकते हैं। काम और गतिविधियाँ आनंदपूर्ण नहीं होतीं, बल्कि कुछ भी आनंदपूर्ण नहीं है - केवल आप आनंदपूर्ण हो सकते हैं। अगर आप आनंदित हैं, तो हर काम जो आप करते हैं, आनंदपूर्ण हो जाएगा।
एलियन से बातचीत
डेमी लोवाटो: आपको योगी, दिव्यदर्शी और दूरदर्शी कहा जाता है। जो लोग नहीं जानते कि दिव्यदर्शी क्या होता है, उनके लिए क्या आप इसे स्पष्ट करेंगे?
सद्गुरु: जिन लोगों ने अपने बोध को लेकर ग़लतियाँ कीं, वे एक ग़लती बन गए। ज्यादातर दुख की वजह यही होती है। लेकिन अगर हर चीज को लेकर आपका बोध सही होने लगे तो लोग आपको दिव्यदर्शी कहेंगे।
डेमी लोवाटो: वाह! तो कोई भी दिव्यदर्शी हो सकता है?
सद्गुरु: बिलकुल।
डेमी लोवाटो: वाह, मुझे ये विचार बहुत पसंद आया।
सद्गुरु: अगर ये संभव नहीं होता तो मैं जरूर कोई एलियन होता!
डेमी लोवाटो: एलियन की बात करें तो, क्या आप एलियन में विश्वास करते हैं?
सद्गुरु: हाँ क्यों नहीं, मैं आपसे बात कर रहा हूँ! [दोनों हँसते हैं]
एक मोटरसाइकिल क्यों?
डेमी लोवाटो: आपका मोटरसाइकिल के साथ जो रिश्ता है, मैं उसके बारे में आपसे ज़रूर जानना चाहूँगी क्योंकि मुझे ये बहुत दिलचस्प लगता है। ऐसा अमूमन होता नहीं है कि आप किसी योगी को मोटरसाइकिल पर देखें। तो आख़िर किस चीज़ ने आपको मोटरसाइकिल की तरफ़ खींचा, और आपने इससे क्या सीखा?
सद्गुरु: यह मोटरसाइकिल की बात नहीं है- यह किसी भी तरह दुनिया का ज्यादा से ज्यादा भ्रमण करने की इच्छा थी। मेरी पहुँच के अंदर मोटरसाइकिल ही थी। यह आज़ादी का मुद्दा नहीं था, मुद्दा थीं वो डोरियाँ, जो बांधती हैं - पैर वही डोरी थे, इसलिए साइकिल आजादी बन गई। जब मैंने मोटर वाली साइकिल देखी, तो मैंने स्वाभाविक रूप से उसको अपना लिया। एक समय मैंने मोटरसाइकिल से भारत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक की यात्रा की है। लेकिन उसके बाद कुछ घटनाएँ घटीं, जब मैं पच्चीस वर्ष का था, मेरी वैयक्तिकता का विस्फोट हो गया, और मैंने सब कुछ पूरी तरह खो दिया।
तीन आयाम क्यों काफ़ी नहीं हैं?
डेमी लोवाटो: मेरा पॉडकास्ट ‘4-डी विद डेमी लोवाटो’ के नाम से जाना जाता है, मेरा ख्याल है मुझे बताने की जरूरत नहीं है कि 4-डी का क्या मतलब है।
सद्गुरु: कोई भी जो ये सोचता है कि, ‘जो मैं नहीं जानता उसका अस्तित्व ही नहीं है,’ वो एक निरा मूर्ख है। हो सकता है आपने चौथे आयाम का अनुभव नहीं किया हो, लेकिन आपको यह तो पता है कि जो आप जानती हैं उसके परे भी कुछ है - ये बहुत महत्वपूर्ण है।
डेमी लोवाटो: हाँ, बिलकुल।
सद्गुरु: वही 4-डी है।
डेमी लोवाटो: आपने बिलकुल सही कहा।
सद्गुरु: जिन्होंने अपनी दृष्टि, गंध, स्वाद, ध्वनि और स्पर्श के परे किसी भी चीज़ का अनुभव नहीं किया है, मैं उनसे कहना चाहूँगा - ये कभी मत सोचिए कि जो आप नहीं जानते, उसका अस्तित्व ही नहीं है। यह अज्ञानता की चरम सीमा है। अज्ञान बुरा नहीं है, जब तक कि आपको इसका अहसास है कि आप अज्ञानी हैं। जब आपको पता होता है कि आप नहीं जानते, तब आपकी बुद्धि लगातार खोजती रहती है। आप इसे रोक नहीं सकते। ये आप सोचकर तय नहीं करते कि मैं जिज्ञासु बनने जा रहा हूँ। जब आपको अहसास हो जाएगा कि आप नहीं जानते, आपके अंदर की हर चीज खोजना शुरू कर देगी।
जिन्होंने अपनी दृष्टि, गंध, स्वाद, ध्वनि और स्पर्श के परे किसी भी चीज़ का अनुभव नहीं किया है, मैं उनसे कहना चाहूँगा - ये कभी मत सोचिए कि जो आप नहीं जानते, उसका अस्तित्व ही नहीं है।
तो, ये अच्छी बात है अगर आप चौथे आयाम में हैं। अगर आप तीसरे आयाम में हैं, तो आपको चौथे आयाम के बारे में जरूर बात करनी चाहिए। अगर आप चौथे आयाम में हैं तो आपको पाँचवे आयाम के बारे में बात जरूर करनी चाहिए। कम से कम आप ये बता रहे हैं कि यहाँ आपकी जानकारी से अधिक कुछ और भी है, और ऐसा करना बहुत जरूरी है।
आप जितना जानते हैं यह उसकी सीमाओं को स्वीकार करने जैसा है, जिससे आपकी जिज्ञासा और बुद्धिमत्ता सो न जाए। आपका शरीर सो सकता है, क्योंकि इसे नींद की जरूरत है, पर आपकी बुद्धिमत्ता, चेतना और जिज्ञासा को सोने की जरूरत नहीं है। दिन में आठ घंटे ही खोजने से फायदा नहीं होने वाला, आपको चौबीस-घंटे खोजने की जरूरत है। आपको सारी जिंदगी खोज करते ही रहना चाहिए, नहीं तो आपका जीवन बहुत छोटा हो जाएगा। अधिकतर लोग तीन आयामों में भी नहीं हैं, वो सिर्फ एक ही आयाम में रह जाते हैं - उनके विचार और भावनाएँ ही उनके लिए सबकुछ हैं।
विदाई संबोधन
डेमी लोवाटो: आख़िर में आप मेरे श्रोताओं को ज्ञान का क्या अंतिम संदेश देना चाहेंगे?
सद्गुरु: मैं अभी कुछ और समय तक जीने वाला हूँ, आप मुझे आखिरी शब्द कहने के लिए क्यों बोल रही हैं?
डेमी लोवाटो: आप ठीक कहते हैं। हम आपको फिर से बुलाएँगे।