यह इंसान, जो एक बंधुआ मजदूर था, बचपन से ही शिव को लेकर उसमें बहुत अधिक उत्साह और जोश था। बस पच्चीस किलोमीटर दूर एक प्रसिद्ध शिव-मंदिर था और उसे लगता था कि शिव उसे बुला रहे हैं। मगर अपने जीवन पर उसका अधिकार नहीं था, इसलिए वो मंदिर तक नहीं जा पा रहा था। उसने कई बार अपने जमींदार से प्रार्थना की, ‘सिर्फ एक दिन के लिए मुझे जाने दीजिए, मैं मंदिर जाकर वापस लौट आऊंगा।’ जमींदार हमेशा कहता, ‘आज निराई करनी है। कल खाद डालना है। परसों कोई और काम है, तुम्हें जमीन जोतना है। नहीं, तुम एक भी दिन बर्बाद नहीं कर सकते।’
आईये, सद्गुरु से सुनते हैं इस भोले-भाले इंसान की कहानी, जिसने शिव के प्रति अपने कौतुहल को कभी मरने नहीं दिया।