सद्गुरु: शिव एक तरह के घुमते-फिरते रहने वाले पति थे। वह लगातार कई-कई सालों तक घूमते रहते थे, वे कहीं भी चले जाते थे। उन दिनों कोई सेल फोन और ईमेल नहीं हुआ करते थे, इसलिए जब वह जाते थे तो पार्वती का उनके कोई संपर्क नहीं रहता था। और वह काफी अकेलापन महसूस करती थीं। साथ ही, शिव की प्रकृति को देखते हुए, उन्हें मानव मूल का नहीं, यक्ष स्वरूपी माना जाता था – इसलिए पार्वती उनके बच्चे को जन्म नहीं दे सकती थी।
तो अपने अकेलेपन और इच्छा के कारण और मातृत्व भाव की वजह से, उन्होंने एक शिशु को बनाने और उसमें प्राण फूँकने का फैसला किया। उन्होंने अपनी एक चीज़ ली, अपने शरीर पर लगे चंदन के लेप को तेल के साथ मिलाकर एक शिशु का रूप दिया और उसमें जीवन डाल दिया। यह भले ही दूर की कौड़ी लगे, लेकिन आजकल विज्ञान में भी इस तरह की चर्चा होती है। अगर कोई आपसे एक एपिथेलियल सेल ले ले, तो किसी दिन हम उससे आपका कुछ बना सकते हैं। पार्वती ने उसमें प्राण फूँक दिए और एक बच्चे ने जन्म ले लिया।
कुछ साल बाद, जब वह लड़का करीब दस साल का था, तब शिव अपने गणों के साथ लौटे। पार्वती स्नान कर रही थीं और उन्होंने उस छोटे बच्चे से कहा, ‘ध्यान रखना कि कोई इस तरफ न आने पाए।’ लड़के ने कभी शिव को देखा नहीं था, तो जब वह आए, लड़के ने उन्हें रोक दिया। शिव दूसरे ही मूड में थे – रुकने के लिए तैयार नहीं थे – तो उन्होंने अपनी तलवार निकाली और लड़के का सिर काट दिया, फिर पार्वती के पास आए।
जब पार्वती ने उनके हाथ में खून लगी तलवार देखी, तो वह समझ गईं कि क्या हुआ। उन्होंने लड़के को सिर विहीन वहाँ पड़े देखा तो उनका गुस्सा भड़क गया। शिव ने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘कोई बात नहीं। वह तुम्हारा असली पुत्र नहीं है। आखिरकार तुमने उसे बनाया और मैंने नष्ट कर दिया। इसमें क्या परेशानी है?’ लेकिन वह सुनने के मूड में नहीं थीं।
बात को सुलझाने के लिए, शिव ने अपने एक गण का सिर लिया और लड़के की धड़ पर लगा दिया। गणेश चतुर्थी वह दिन होता है, जब उनके सिर को दोबारा लगाया गया था। शिव ने गणों के सरदार का सिर लेकर इस लड़के पर लगाया था, इसलिए वह बोले, ‘अब से, तुम गणपति हो। तुम गणों के सरदार हो।’ बाद में जाकर, कैलेंडर कलाकार इस दूसरी तरह के प्राणी को नहीं समझ पाए और उन्होंने एक हाथी का चेहरा बना दिया। कथाओं में बताया जाता है कि कैसे गणों के अंगों में हड्डियाँ नहीं होती थीं। इस संस्कृति में, हड्डियों के बिना किसी अंग का अर्थ हाथी की सूँड़ से लगाया जाता है, इसलिए कलाकारों ने हाथी का सिर बना दिया। आपको मानसरोवर के किनारे कोई हाथी नहीं मिलेगा क्योंकि वह इलाका उनके लिए सही नहीं है। वहाँ एक हाथी के लायक हरियाली नहीं है। शिव हाथियों को काटने नहीं गए होंगे। इसलिए, गणेश के कई नाम हैं – गणेश, गणपति, विनायक – लेकिन उनका नाम गजपति नहीं है।
गण शिव के साथी थे। हम नहीं जानते कि वे कहाँ से आए थे, लेकिन आम तौर पर कहानियों में उन्हें ऐसे प्राणियों के रूप में दिखाया जाता है जो इस लोक के नहीं थे। उस जीवन की बनावट इस जीवन से बहुत अलग है, जिसे हम जानते हैं।
आजकल, आधुनिक बायोलॉजी साफ-साफ कहती है कि एक कोशिका वाले जानवर से जीवन के सभी जटिल रूपों और मनुष्य की रचना हुई। लेकिन जीवन की मूलभूत प्रकृति वही है – उसमें बदलाव नहीं हुआ है। वह सिर्फ और जटिल होती जाती है। लेकिन गणों के जीवन का बनावट हमारे जैसी नहीं थी। वे धरती पर नहीं बने थे। और उनके अंग बिना हड्डियों के थे।
अगर आप अपने शरीर को अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करना चाहें, अगर आप आसन करते हैं, तो आप सोचते हैं कि काश आपके शरीर में हड्डियाँ न होतीं। मैंने 11 साल की उम्र से योग करना शुरू कर दिया था, इसलिए जब मैंने 25 साल की उम्र में हठयोग सिखाया, तो लोगों ने मुझे देखकर कहा, ‘अरे तुम्हारे शरीर में तो हड्डियाँ ही नहीं हैं। तुम हड्डी रहित हो।’ यह हर योगी का सपना होता है, कि एक दिन उसके अंगों में हड्डियाँ नहीं होंगे ताकि वह जो चाहे, वह आसन कर सके।
हज़ारों सालों से गणेश चतुर्थी मनाई जा रही है और गणपति सबसे लोकप्रिय और भारत से सबसे ज्यादा बाहर जाने वाले देवता बन गए हैं। वह बहुत लचीले हैं। वह कई रूप और मुद्राएँ अपना सकते हैं। वह शिक्षा के देवता भी हैं। वह एक बड़े विद्वान थे। गणपति को हमेशा एक किताब और कलम के साथ दिखाया जाता है, जो उनकी विद्वता को दर्शाता है। उनकी विद्वता और बुद्धि, आम इंसानों की क्षमता से परे थी।
और उन्हें भोजन बहुत पसंद था। आम तौर पर अगर किसी को विद्वान दिखना है, तो वह दुबला-पतला होना पसंद करता है। लेकिन यह खाते-पीते, गोल-मटोल विद्वान थे। इस दिन आम तौर पर लोग मानते हैं कि आपको बस अच्छा खाना चाहिए। लोगों ने सिर्फ उनका मोटा पेट देखा, लेकिन नए सिर में उससे बड़े दिमाग को नज़रअंदाज कर दिया। वह सबसे महत्वपूर्ण है। उनका पेट बाद में मोटा हुआ। शायद इतने बड़े सिर के साथ, उनका चलने का मन नहीं करता था! लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि उनकी बुद्धि बढ़ती रही। तो यह दिन सिर्फ खाने का नहीं है। इस दिन आपको अपनी बुद्धि को बढ़ाना चाहिए, पेट को नहीं।
सभी योग अभ्यास एक तरह से इसी बारे में हैं, कि आपकी बुद्धि को एक जगह अटका हुआ नहीं होना चाहिए। ऐसे हज़ारों उदाहरण हैं, जहाँ लोगों ने सरल आध्यात्मिक अभ्यासों से कई अलग-अलग रूपों में अपनी बुद्धि को बढ़ाया। चिंता मत कीजिए, आपकी सूँड़ नहीं निकल आएगी, लेकिन आप बुद्धि को और बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं।
मानवता ने हमेशा अच्छे लोग पैदा करने की दिशा में काम करने की बड़ी गलती की है। हमें अच्छे लोगों की जरूरत नहीं है, हमें समझदार लोगों की जरूरत है। अगर आपके पास समझदारी है, तो आप सही चीज़ करेंगे। लोग मूर्खतापूर्ण चीज़ें इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास समझदारी नहीं होती।
चालाकी कोई बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमानी का मतलब चतुर होना नहीं है। अगर आप वाकई बुद्धिमान हैं, तो आप 100 प्रतिशत अस्तित्व के तालमेल में होंगे क्योंकि बुद्धिमान होने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। बुद्धिमानी का चिह्न यह है कि आप अपने आस-पास की हर चीज़ के साथ पूरी तरह तालमेल में हैं, आप अपने अंदर और बाहर कम से कम विचलन के साथ जीवन जी रहे हैं।
गणेश चतुर्थी कम से कम, अपनी बुद्धिमानी को बढ़ाने की कोशिश शुरू करने का दिन है। अगर आप सुबह में आसन करते हुए बिना हड्डियों के हाथ-पैरों के लिए मेहनत करें, तो ऐसा हो सकता है!
संपादक की टिप्पणी: इस वीडियो में सद्गुरु को गणेश चतुर्थी के बारे में बताते हुए देखें।