सद्‌गुरु एक्सक्लूसिव

ठहराव से नहीं, प्रवाह से आती है जीवन में दिव्यता


भिखारी की नजर अपने चावल में एक सोने के दाने पर पड़ी, एक दृश्य और सबक जिसे वह कभी नहीं भूलेगा। सद्‌गुरु द्वारा साझा की गई यह प्राचीन कहानी मानवता के देने और बचाने के बीच के शाश्वत संघर्ष को दर्शाती है।

जबकि बाज़ार तेजी से आगे बढ़ने और इकट्ठा करने की आदत को पुरस्कृत करते हैं, वहीं योग आपके धन को मापने का एक अलग मापदंड देता है - जहां आभा, हमारे द्वारा बटोरने से नहीं, बल्कि हमारे देने की हिम्मत से पैदा होती है।

आभा की प्रकृति

सद्‌गुरु: शिव ने स्वयं कहा था कि जब इस धरती पर महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक होगी, तब कलयुग समाप्त होगा। अभी, महिलाएँ स्पष्ट रूप से पुरुषों से अधिक हैं। अगले युग में बेहतर लोगों – ‘देवों’ का उदय होना है। देव शब्द का अर्थ है ‘एक आभावान प्राणी।’कौन आभावान प्राणी बनता है? मूलतः इस धरती पर सभी जीवन सौर-ऊर्जा से संचालित हैं।

कुछ जीव, जो उन्हें मिलता है, उसे रोककर रख लेते हैं, जबकि कुछ जीव उसे फैलाते हैं, बाँटते हैं। अगर आप फैलाना और बाँटना चुनते हैं, तो आप देव बन जाते हैं। अगर आप रोककर रख लेते हैं, तो आप राक्षस बन जाते हैं। आप राक्षस इसलिए नहीं बनते क्योंकि आप कुछ ऐसा करते हैं जिसे बुरा माना जाता है, बल्कि इसलिए क्योंकि आपमें देने की समझ नहीं है।
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अगर आप फैलाना और बाँटना चुनते हैं, तो आप देव बन जाते हैं। अगर आप रोककर रख लेते हैं, तो आप राक्षस बन जाते हैं।

जरूरी नहीं कि देना भौतिक चीज़ों के बारे में हो, इसका मतलब है कि आपकी जीवन प्रक्रिया ही देने वाली है। आपके पास जो भी है, जब भी और जहां भी जरूरत हो, आप देते हैं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कहां, क्या और कितना देना है - ऐसी गणनाएं सब कुछ नष्ट कर देती हैं। अगर आप जो कुछ भी हैं, उसमें देने का भाव रखते हैं, तो आप देव बन जाते हैं।

भिखारी के लिए सबक

एक भिखारी था। एक दिन उसने दिन भर में कुछ किलो चावल इकट्ठा किए थे। भारत में, भिखारियों को पैसे के बजाय अनाज देना एक आम प्रथा है। उसने अपने थैले में काफी चावल इकट्ठा कर लिए थे। फिर उसने एक सुंदर रथ आते देखा और सोचा, ‘ओह एक अमीर आदमी आ रहा है, जाकर भीख मांगूं तो शायद, अगर वह उदार हुआ तो वह एक सोने का सिक्का या ऐसा कुछ कीमती चीज दे सकता है।’

वह उसके पास भीख मांगने गया। रथ से वास्तव में एक आभावान प्राणी उतरा, एक शानदार दिखने वाला व्यक्ति। लेकिन जब भिखारी भीख मांगने ही वाला था, उसके पहले ही इस आदमी ने भिखारी के सामने अपने हाथ फैला दिए और कहा, "भिक्षां देहि" - वह भीख मांग रहा था! भिखारी ने सोचा, ‘हे भगवान,’ क्योंकि परंपरा के अनुसार, अगर कोई आपसे कुछ मांगता है, तो आपको उससे इन्कार नहीं करना चाहिए, आपको उन्हें कुछ देना ही चाहिए क्योंकि वे पहले से ही नीचे हैं।

भिखारी ने उसकी ओर देखा और कहा, "आप अमीर लगते हैं, लेकिन आप भीख मांग रहे हैं, और मेरी परंपरा और संस्कृति के अनुसार, मैं ना नहीं कह सकता," और उसने उसे चावल का एक दाना दिया। वह आदमी इसे लेकर चला गया। बाद में घर पर, अपने चावल को रखते समय, उसने देखा कि चावल का एक दाना सोने का हो गया था। वह रोया, यह सोचते हुए कि अगर उसने उस आदमी को सारा चावल दिया होता, तो उसके पास सोने का एक बैग होता। जीवन ऐसा ही है।

जीवन का स्वाभाविक प्रवाह

इसी तरह, अगर आप हमेशा इस बारे में सोच रहे हैं कि आप क्या पा सकते हैं, तो आप अंत में एक पत्थर भी नहीं पा सकेंगे। अगर आप अपने जीवन को ‘मैं क्या पा सकता हूँ’ से ‘मैं क्या दे सकता हूँ’ में बदल देते हैं, अगर आपके जीवन का हर क्षण देने की प्रक्रिया बन जाता है, तो आप एक देव बन जाते हैं। यह देने के रवैये के बारे में नहीं है - इसका मतलब है जीवन को देने की प्रक्रिया के रूप में होने देना क्योंकि यही जीवन की प्रकृति है। जब आप इसे रोक लेते हैं, जीवन ठहर जाता है। केवल अगर यह बहता रहता है तो यह एक सुंदर अनुभव होता है।

जीवन मात्रा में नहीं बल्कि अनुभव की तीव्रता में है।

एक ठहरा हुआ जीवन एक दुखद जीवन है। आपके पास सब कुछ हो सकता है और फिर भी आपके अनुभव में कुछ भी नहीं हो सकता। जीवन मात्रा में नहीं बल्कि अनुभव की तीव्रता में है। आपके पास कितना है, यह आपके जीवन को बड़ा या छोटा नहीं बनाता, आप कितनी तीव्रता से जीवन का अनुभव करते हैं, वह बनाता है।

एक देव जानबूझकर किए गए दान के कार्यों से नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से देने की प्रक्रिया बनकर आभावान होता है। रोके रखने का कोई भाव उसमें नहीं है। आपने जीवन को ध्यान से देखा है और समझा है कि इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे आप दे सकते हैं क्योंकि यहां कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे आप लाए हैं। सब कुछ धरती से लिया गया है। अगर आप ठहरे नहीं रहते, तो आप स्वाभाविक रूप से एक आभावान जीवन बन जाते हैं। एक आभावान जीवन को देव कहा जाता है।

गणनाओं से परे

जब हम बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं, भले ही यह निजी तौर पर आसान होगा, यह आपको देवों में बदलने के लिए है - ठहराव की प्रक्रिया से आभा की प्रक्रिया में। आप एक दर्पण की तरह बन जाते हैं, सब कुछ प्रतिबिंबित करते हुए। अगर आप खुद से पूछते हैं, ‘अगर मैं सब कुछ दे दूँ तो मेरा क्या होगा?’ - पूरी दुनिया आपकी हो जाएगी।प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया और ऐसे ऊर्जा स्थानों में होने से आपका जीवन ठहराव से आभा में बदल जाता है।

लेने-देने की ये तुच्छ गणनाएँ छोड़ दीजिए। अगर आप अपना जीवन अपने आसपास के सभी लोगों को दे देते हैं, तो हर कोई आपकी देखभाल करेगा। मेरी अच्छी देखभाल की जाती है। मेरे पिता चिंता करते थे, ‘इस लड़के का क्या होगा? यह आजीविका के लिए क्या करेगा?’ मैंने कहा, ‘आप क्यों परेशान होते हैं? अगर मैं दुनिया में अपनी आजीविका नहीं कमा सका, तो मैं जंगल में चला जाऊँगा।" मुझे पता है कि वहां कैसे रहना है।

अगर आप खुद से पूछते हैं, ‘अगर मैं सब कुछ दे दूँ तो मेरा क्या होगा?’ - पूरी दुनिया आपकी हो जाएगी।

जीवन की रोजमर्रा की प्रक्रिया को पूरी तरह से गलत समझा गया है। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक अपने जीवन को देखिए - आपके पास कितने क्षण उल्लास के हैं, और कितने क्षण हिसाब-किताब के? यह दिखाता है कि आप एक ठहरा हुआ जीवन हैं या एक आभामय जीवन।

उल्लास में जीना

मैं खुशहाली, धन, या आराम के खिलाफ नहीं हूँ - लेकिन मैं ठहराव के खिलाफ हूँ, क्योंकि अगर आप ठहर जाते हैं, तो आप मर भी सकते हैं। जीवित रहकर भी ठहरे रहने का मतलब है कि आप खुद को यातना दे रहे हैं। बिना किसी उत्साह के भाव के दिन भर अपने शरीर को घसीटना, खिलते हुए जीवन के बजाय एक ठहरे हुए तालाब की तरह महसूस करना, अस्तित्व में होने का सबसे यातनापूर्ण तरीका है।

जीवित रहकर भी ठहरे रहने का मतलब है कि आप खुद को यातना दे रहे हैं।

आप कह सकते हैं, ‘लेकिन मैंने निवेश किया है।’ आप उन्हें कहाँ ले जाएंगे? अगर आप कल मर जाते हैं तो क्या होगा? यह मेरी इच्छा नहीं है। अगर आप एक आभावान जीवन हैं तो आपको निश्चित रूप से लंबा जीवन जीना चाहिए। लेकिन अगर आप आधे जीवन हैं, तो यह यातना है। पूर्ण जीवन का अर्थ है उल्लास, मृत्यु का अर्थ है समभाव, आधा जीवन यातनापूर्ण है।

प्राण-प्रतिष्ठा की रूपांतरणकारी शक्ति

जिन लोगों ने इन स्थितियों को देखा है, अगर उन्होंने किसी तरह से आपको छुआ है, तो आपको जाकर, जिस भी तरीके से आप कर सकते हैं, आप एक देव यानी एक आभावान प्राणी बनकर दुनिया को ‘रूपांतरित’ कर दीजिए।

प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया आपको अपने से परे कुछ शक्तिशाली और जबरदस्त अनुभव करने का अवसर देती है, जिसे अगर आपको खुद अर्जित करना पड़े तो जीवन भर की साधना लगेगी। अब यह मुफ्त में बँट रहा है। अगर आप इसे लेते हैं, तो आपको भी बाँटना चाहिए। प्राण-प्रतिष्ठाओं में शामिल होकर आपको एक अधिक आभावान जीवन बनना चाहिए।