क्या गुरु के पास रहने से आपका आभा-मण्डल (ऑरा) साफ हो सकता है? सद्गुरु कहते हैं कि किसी गुप्त शॉर्टकट की तलाश मत कीजिए। आध्यात्मिक प्रक्रिया हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं अधिक व्यावहारिक और व्यक्तिगत हो सकती है।
प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, क्या आपकी उपस्थिति में रहकर और आपके आभा-मण्डल (ऑरा) के संपर्क में आकर हमारा ऑरा साफ हो सकता है?
सद्गुरु: क्या आपने महा कुंभ मेले में जाकर डुबकी नहीं लगाई? क्या आप मेरे चारों ओर प्रभामंडल देखते हैं? जब आप बहुत बेताबी से कुछ देखना चाहते हैं, तो आपका मन उसे बना सकता है और आपको दिखा सकता है। हालांकि आज के समाज में यह समझ नहीं हो सकती, लेकिन आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके जीवन में सबसे व्यावहारिक चीज है जो आप कर सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, आध्यात्मिकता को चीजों को देखने के एक नज़रिए के रूप में जाना जाता है। जब आप उन चीजों को देखना शुरू करते हैं जो मौजूद नहीं हैं, तो यह एक समस्या है।
यहां तक कि बेजान वस्तुओं का भी अपना ऑरा होता है। हर वस्तु का अपना ऑरा होता है - उसके चारों ओर प्रकाश और ऊर्जा के क्षेत्र के रूप में। आप कहीं जाकर अधिक ऑरा नहीं पा सकते। अगर आप अपने शरीर, मन, भावनाओं और ऊर्जा को कंपन के एक खास स्तर पर रखते हैं, तो आपके चारों ओर प्रकाश और ऊर्जा का एक क्षेत्र होगा। उसे देखने, मापने या किसी दूसरे के ऑरा से तुलना करने की कोशिश मत कीजिए।
जब आप सुबह उठते हैं, तो देखिए कि क्या आपका शरीर, मन और भावनाएं आज उल्लासपूर्ण हैं। हो सकता है आप अभी अपनी ऊर्जा के बारे में जागरूक नहीं हों, लेकिन आप कम से कम इन तीन पहलुओं के बारे में सचेतन हो सकते हैं। जीवन उल्लास है, मृत्यु जड़ता है। हर दिन, आपको देखना चाहिए कि आप किस दिशा में बढ़ रहे हैं। क्या आप पहले से अधिक उल्लासपूर्ण हो रहे हैं, या अधिक जड़?
अगर आप गलत विचार पैदा करते हैं, तो आप जड़ता की ओर बढ़ेंगे। अगर आप दूसरी तरह के विचार पैदा करते हैं, तो आप गतिशीलता और उल्लास की ओर बढ़ेंगे। अगर आप इस जीवन को उल्लासपूर्ण बनाए रखते हैं, तो आपका ऑरा ठीक रहेगा। ऐसे कई दूसरे पहलू हैं जिन्हें मापा जा सकता है, जैसे आपका शरीर कैसा है, आपका मन कैसा है, आपकी भावनाएं कैसी हैं, आपकी ऊर्जाएं कैसी हैं। बेहतर होगा कि इन पहलुओं पर भरोसा किया जाए बजाए लोगों का ऑरा देखने के।
जगह का और लोगों का निश्चित रूप से आप पर प्रभाव पड़ता है, लेकिन सबसे अच्छा होगा कि आप खुद को ऐसा बनाएं कि अगर आप नरक में भी जाएं, तो आप साफ-सुथरे बाहर आ जाएं। यह महत्वपूर्ण है। नहीं तो आप जहां जा सकते हैं, उसे सीमित कर देंगे। मैं कहीं भी जा सकता हूं और ठीक रह सकता हूं। आपको भी ऐसा ही बनना चाहिए – धरती पर सबसे बुरी जगह जाने पर भी आप ठीक रहने में सक्षम हों। आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ है कि बाहरी प्रभाव यह तय नहीं करते कि आप कैसे होंगे। आप तय करते हैं कि आप कैसे होंगे। आपको ऐसा ही होना चाहिए।
आप कभी भी सौ प्रतिशत यह तय नहीं कर सकते कि आपके आसपास क्या होगा, और आपके जीवन में एक भी व्यक्ति कभी भी बिल्कुल वैसा नहीं होगा जैसा आप चाहते हैं कि वो हो। यही कारण है कि आजकल इतने सारे लोग कुत्ते पाल रहे हैं - वे उनसे यह उम्मीद करते हैं कि वे बिल्कुल वैसे ही होंगे जैसा वे चाहते हैं। यहां तक कि कुत्ते भी अपनी ही चीजें करते हैं, लेकिन आमतौर पर आप उनसे अपनी इच्छानुसार चीजें करवाने में अधिक सफल होते हैं।
इस दुनिया में कोई भी सौ प्रतिशत आपके तरीके से नहीं होता। कम से कम आपको खुद वैसा होना चाहिए जैसा आप चाहते हैं। आपके पास खुद को अपनी इच्छानुसार बनाने का सौभाग्य है। अगर आप अपने तरीके से हों, तो क्या आप खुद को आनंदित रखेंगे या दुखी? आप आनंदित रहें, अपने ऑरा की चिंता न करें - यह बेहतरीन होगा।