जहां सेल्फ-हेल्प इन्फ्लुएंसर्स असफलताओं को सामान्य बताते हैं, वहीं सद्गुरु एक अलग दृष्टिकोण देते हैं - हम अक्सर अपने भ्रम में इतने खोए रहते हैं कि अपनी गलतियों को देख भी नहीं पाते, सुधारना तो दूर की बात है। यह अंतर्दृष्टि चुभती तो है – पर यही इसका मकसद है। इसका इरादा मानव क्षमता का मौलिक पुनर्निर्माण है।
प्रश्न: सद्गुरु, अपने इतने ज्ञान और बुद्धि के बावजूद, जब आप कोई गलती करते हैं तो आप उससे कैसे निपटते हैं?
सद्गुरु: मैं उसे सुधार लेता हूं। क्या गलती से निपटने का कोई दूसरा तरीका भी है? अगर आप गलती करते हैं, तो उसे सुधारें। लेकिन यह देखने के लिए कि आपने गलती की है, बहुत स्पष्टता की जरूरत होती है। यही असली समस्या है। अगर आपके पास अपने बारे में कोई धारणा नहीं हैं, तो आप चीजों को वैसी ही देखते हैं, जैसी वे हैं। लेकिन अगर आपके पास अपने बारे में बड़ी-बड़ी धारणाएं हैं, तो आप चीजों को वैसा नहीं देखते जैसी वे हैं। जब आप गलती नहीं देखते, तो सुधार का सवाल ही नहीं उठता।अगर आपके पास ऐसी आंखें हैं जो चीजों को वैसी ही देख सकें जैसी वे हैं, तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर आपके पास सिर्फ़ विचारों, भावनाओं, पूर्वाग्रहों, राय, विचारधारा और विश्वास प्रणालियों का एक बंडल है, तो आप वास्तविकता को जैसा है वैसा नहीं देखते। तब आपके लिए यह महसूस करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है कि आपने गलती की है, सुधारने की तो बात ही छोड़ दीजिए।
एक दिन, एक भारतीय कोबरा दुबई आया। कुछ समय बाद, रेगिस्तान की गर्मी और हर तरफ़ मौजूद भूरे रंग ने उसकी आंखों को प्रभावित करना शुरू कर दिया। वह वहाँ आँखों के डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने कहा, "कोई समस्या नहीं। मैं आपको एक खास चश्मा दूंगा, जो विशेष रूप से कोबरा के लिए बनाया गया है।” आप जानते हैं, कोबरा के फन पर चश्मे जैसे विशिष्ट निशान होते हैं। उन्होंने विशेष चश्मा बनाया और कोबरा को दिया, जिसने उन्हें पहना और चला गया। दो हफ्ते बाद, कोबरा बहुत उदास होकर वापस आया।
Thडॉक्टर ने पूछा, "क्या हुआ? चश्मा काम नहीं किया?" कोबरा ने कहा, "चश्मा बहुत अच्छा काम कर रहा है। लेकिन अब मुझे पता चला कि मैं पिछले दो सालों से बगीचे के पाईप के साथ रह रहा था!" जब आप अपने जीवन में स्पष्टता लाते हैं, तो आप अंततः सब कुछ जैसा है वैसा देख पाते हैं। अगर आपके पास अपने बारे में कोई धारणा नहीं है, तो यह एक बड़ा आशीर्वाद है। लेकिन अगर है, तो आपका भ्रम टूट जाएगा।
कुछ समय पहले, एक युवक मेरे पास आया और बोला, "सद्गुरु, मैं पहले जोश से भरा हुआ था, लेकिन फिर एक लड़की मेरी ज़िंदगी में आई और छह महीने के भीतर मेरा भ्रम टूट गया।" मैंने कहा, "उसे यहां लाइए - हमें उसे पुरस्कार देना चाहिए," क्योंकि भ्रमों से बाहर निकलने में वैसे पूरा जीवन लग सकता है। आपको अपना मन बना लेना चाहिए कि आप भ्रम में रहना चाहते हैं या वास्तविकता में।अगर आपके पास वास्तविकता की सुंदरता और भव्यता को देखने के लिए आँखें नहीं हैं, तो आप अपने मन में अपना खुद का भ्रम बना लेंगे। अगर आपके पास आँखें हैं जो देख सकें, तो हर चीज़ बेहद शानदार है। अगर आप पर्याप्त ध्यान दें, तो हर पत्ता, हर कीड़ा, हर छोटी चीज़ अविश्वसनीय रूप से जटिल और परिष्कृत है। क्या आपने कभी वाकई चींटी को गौर से देखा है? अगर आप भरपूर ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि यह इस धरती पर सबसे अद्भुत डिज़ाइनों में से एक है।
अधिकांश लोगों के साथ एक और समस्या यह है कि वे अपनी सीमाओं और समस्याओं को बताने के लिए ‘इंसान’ शब्द का उपयोग करते हैं। कोई नहीं कहता, "मैं इंसान हूँ!" वे कहते हैं, "मैं सिर्फ इंसान ही तो हूँ।" आप इस धरती पर सबसे विकसित जीव हैं, जिसके पास सबसे महत्वपूर्ण मस्तिष्क है। क्या आपको नहीं कहना चाहिए, "मैं इंसान हूँ - मैं सबसे अद्भुत चीजें करूंगा," इसके बजाय कि "मैं इंसान ही तो हूँ। मैं गलतियां करता हूँ।
यह एक बुरे कर्मचारी का नजरिया है जो अपने काम की परवाह नहीं करता। अगर आप अपने काम के बारे में चिंतित हैं, तो क्या आप अधिक गलतियां करेंगे या अधिक अच्छी चीजें करेंगे? अगर आप वास्तव में अपने काम के बारे में चिंतित हैं, तो आप क्यों बार-बार ग़लतियाँ करेंगे?
हमारे कार्यों की जटिलता के कारण कुछ चीजें गलत हो सकती हैं - क्योंकि हम बहुत सी नई चीजें कर रहे हैं, हम कुछ गलतियां कर सकते हैं। लेकिन "इंसान ही गलती करता है" - हमें ऐसी कहावतों से छुटकारा पाना चाहिए। इसके बजाय, यह होना चाहिए, "मैं इंसान हूँ। मैं सबसे अद्भुत चीजें करता हूँ।"एक चींटी, अपने छोटे से मस्तिष्क के साथ ये जानती है कि सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही काटना है - अपनी या अपने समुदाय की रक्षा के लिए।
अगर एक चींटी में इतनी समझ है, तो क्या आपके पास यह समझने की समझ नहीं होनी चाहिए कि इंसान होने का मतलब है कि आप विकास के शिखर पर हैं, इस धरती पर सबसे अच्छी चीजें करने में सक्षम हैं? हमें इस नजरिए को बदलना होगा कि हम इंसान होने को किस तरह देखते हैं। इंसान इस धरती पर विकास का शिखर है, बुद्धि, क्षमता और योग्यता का शिखर है।