पहलगाम, कश्मीर में यह कायराना आतंकी हमला एक नया अध्याय है जो बताता है कि निर्दोष लोगों की सुरक्षा और राष्ट्र की सामान्य सुरक्षा के बारे में हमें क्या करना चाहिए।
आतंकवाद का मकसद युद्ध नहीं बल्कि समाज को भय से पंगु बनाना है। उनका लक्ष्य लोगों के बीच दहशत फैलाना, समाज को बांटना, देश के आर्थिक विकास को पटरी से उतारना, हर स्तर पर संघर्ष, हिंसा और अराजकता पैदा करना है - दूसरे शब्दों में, देश को एक विफल राज्य में बदल देना है।
सभी तरह की हिंसा में, विशेष रूप से धार्मिक रूप से प्रेरित आतंकवाद सबसे खतरनाक है। आप उस व्यक्ति से तर्क कर सकते हैं जो किसी दूसरी चीज के लिए लड़ रहा है, लेकिन जब कोई व्यक्ति मानता है कि वह अपने भगवान के लिए लड़ रहा है, तो उससे कोई तर्क नहीं हो सकता। जब लोग पैसे, संपत्ति या किसी दूसरी चीज के लिए लड़ रहे होते हैं, तो उनसे बातचीत करना संभव होता है क्योंकि वे जीवन-गामी होते हैं, लेकिन जो लोग सोचते हैं कि वे भगवान के लिए लड़ रहे हैं या भगवान का काम कर रहे हैं, वे ख़ुद मरने और हम सभी को अपने साथ ले जाने के लिए बहुत बेचैन होते हैं।
हजार सालों से भी अधिक समय तक हुए बाहरी आक्रमणों, विदेशी कब्जे और चरम गरीबी के बाद, यह राष्ट्र अब आर्थिक ख़ुशहाली की दहलीज पर है। यह अवसर मुफ्त में नहीं आया है, बल्कि हमसे पहले की पीढ़ियों के लोगों के दर्द, पीड़ा और बलिदान से आया है। इसलिए उनके प्रयासों को सफल बनाना और उनके सपनों को साकार करना हमारा कर्तव्य है। यह स्पष्ट है कि कुछ ऐसे तत्व हैं जो इस राष्ट्र को सशक्त नहीं देखना चाहते। अब समय आ गया है कि हम इन राष्ट्र-विरोधी तत्वों के दुष्ट इरादों को हराएं।
ऐसे लोग भी हैं जो राष्ट्रीयता के विचार के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं, और उनके साथ नरमी से व्यवहार नहीं किया जा सकता। यदि हम इस राष्ट्र की संप्रभुता को संरक्षित और पोषित करना चाहते हैं, तो इन तत्वों के साथ, जो बेतरतीब ढंग से मारने और इस प्रक्रिया में मरने के लिए भी तैयार हैं, जिनके विश्वास राष्ट्र-राज्य के मूल सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, लोहे से मजबूत हाथों और दृढ़ इस्पाती संकल्प के साथ निपटा जाना चाहिए। कोई भी जो गली में किसी को भी गोली मारने के इरादे से बंदूक या बम लेकर घूमता है, - निर्दोष लोग, महिलाओं और बच्चों को - उससे निर्णायक रूप से निपटने की जरूरत है।
अगर हम यहां एक राष्ट्र के रूप में मौजूद रहना चाहते हैं, तो हमें देश की संप्रभुता को बनाए रखने के मूल सिद्धांतों को सीखना होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जो कोई भी समाज और राष्ट्र के सामान्य कामकाज को खतरा पैदा करता है, उसे खत्म किया जाना चाहिए। दीर्घकालिक समाधान अलग हैं, लेकिन इस ‘भगवान के लिए लड़ने’ को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए - इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह समाज के किस वर्ग से आता है।
ये आतंकवादी हमेशा राजनीतिक मोहरे या किसी और के हाथों में उपकरण नहीं होते। ऐसे तत्वों का समर्थन करने वाली शक्तियां हमेशा मौजूद रहती हैं, लेकिन जब कोई कहता है, "चलो अपने भगवान के लिए लड़ें और लोगों को मारें," - चाहे आप इसमें सीधे भाग लें या न लें - जब तक आप मानते हैं कि आपका तरीका ही एकमात्र तरीका है, आप इसका हिस्सा बन जाते हैं। हम अभी भी इस तथ्य का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं कि हमारे बीच राष्ट्र के भीतर ऐसे लोग हैं जिनके ऐसे विश्वास और इरादे हैं। कहीं न कहीं, हम सोचते हैं कि सीमा के बाहर से आने वाली ताकतें ही तार खींच रही हैं। लेकिन बाहर से मदद तभी आ रही है क्योंकि यहां के लोगों के ऐसे इरादे हैं।
इन परिस्थितियों के लिए बड़े, दीर्घकालिक समाधान हैं। हमें राष्ट्र की अखंडता और विभिन्न सामाजिक, जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों के बीच मजबूत बंधन को पोषित करना चाहिए। हमें शिक्षा, आर्थिक अवसरों, धन और खुशहाली के अधिक समान वितरण को सभी स्तरों पर लाना चाहिए। सामाजिक-आर्थिक विकास हर किसी तक पहुंचना चाहिए ताकि युवा आतंकवाद की दिशा में न जाएं। समय के साथ इन सभी पहलुओं का ध्यान रखना होगा, लेकिन तत्काल उद्देश्यों के लिए, इन आतंकवादी गतिविधियों को मजबूती से खत्म किया जाना चाहिए। इस अराजकता को समाप्त करना होगा।
बड़ी तस्वीर के रूप में देखें तो देश और दुनिया के लिए हमें व्यक्तियों और समाज के संस्थानों में अधिक समावेशिता लाने की जरूरत है। समावेशिता न केवल आध्यात्मिक प्रक्रियाओं की बुनियादी प्रकृति है, बल्कि जीवन का आधार और लक्ष्य भी है।
ऐसे समय में, हर नागरिक को यह महसूस करना होगा कि राष्ट्र के भीतर, "आप बनाम मैं" नहीं हो सकता। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे धार्मिक विश्वास क्या हैं, हमारे राजनीतिक संबंध क्या हैं - हम एक भारत हैं, और केवल एक इकाई के रूप में ही हम आगे बढ़ सकते हैं और बदलाव ला सकते हैं। हम अभी उस दहलीज पर हैं कि अगर हम अगले दस वर्षों में सही काम करते हैं, तो एक शानदार भारत होगा। आइए इसे हकीकत बनाएं।
—सद्गुरु