सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि हमारे अहंकार की वजह से जीवन ऊर्जा एक निश्चित स्तर तक बनी रहती है। अहंकार न ऊर्जा को घटने देता है, न उसे बढ़ने देता है - क्योंकि ऊर्जा के बढ़ने या घटने में अहंकार को अपना नाश नज़र आता है।
मन, शरीर और ऊर्जा - हर स्तर पर जकड़न है
योगासन के दौरान आप यह महसूस करते हैं कि शारीरिक स्तर पर आप बहुत जकड़े हुए हैं।
वह व्यक्ति जिसके विचार और भावनाएँ बहुत कट्टर हैं, वह हमेशा यह मानता है कि वह आदर्श-व्यक्ति है, क्योंकि वह देखने, सोचने और महसूस करने के किसी अन्य तरीके को अपने पास फटकने नहीं देता।
मन और भावनाओं की जकडऩ को जानने के लिये आपको थोड़ी और जागरुकता की ज़रूरत है। वह व्यक्ति जिसके विचार और भावनाएँ बहुत कट्टर हैं, वह हमेशा यह मानता है कि वह आदर्श-व्यक्ति है, क्योंकि वह देखने, सोचने और महसूस करने के किसी अन्य तरीके को अपने पास फटकने नहीं देता। जब आप उस आदमी से मिलते हैं तो आप सोचते हैं कि वह बेहद जिद्दी है, लेकिन वह सोचता है कि वह आदर्श-व्यक्ति है। इसी तरह ऊर्जा-स्तर पर भी जकडऩ हो सकती है। जिस व्यक्ति की ऊर्जा बहुत तरल है, पहले ही दिन साधारण योग क्रिया करने से ही उसकी ऊर्जा जाग्रत और रूपांतरित होने लगती है जबकि दूसरे व्यक्ति के साथ लंबे समय तक अभ्यास करने के बाद भी कुछ नहीं होता। यह मात्र इस पर निर्भर है कि ऊर्जाएं कितनी लचीली हैं।
योग में सभी के लिए कोई न कोई तरीका है
इन सभी आयामों की जकडऩ वाकई में अलग-अलग नहीं है, ये सभी एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
अगर आप किसी तरह से अपने शरीर को मोडऩे के लिये तैयार हैं, तो आप पहले ही एक कर्म तोड़ चुके हैं। अगर आपका माथा आपके घुटने को छूता है, तो आप एक शारीरिक कर्म तोड़ चुके हैं।
एक आयाम की जकडऩ दूसरे आयामों में प्रकट होती है। पतंजलि मार्ग में, योग एक ऐसी प्रणाली है जहाँ चाहे आप अत्यन्त मूर्ख ही क्यों न हों, आप अचेतना के चाहे किसी भी स्तर में हों, चाहे आपके कार्मिक बंधन कैसे भी हों; फिर भी आपके लिये कोई न कोई रास्ता है। अगर आप किसी तरह से अपने शरीर को मोडऩे के लिये तैयार हैं, तो आप पहले ही एक कर्म तोड़ चुके हैं। अगर आपका माथा आपके घुटने को छूता है, तो आप एक शारीरिक कर्म तोड़ चुके हैं। यह कोई मज़ाक नहीं है; उस व्यक्ति के लिये जिसने ऐसा पहले कभी नहीं किया, यह एक बड़ी उपलब्धि है। यह मामूली सा बंधन समय के साथ बढ़ सकता था। आज आपके अन्दर थोड़ा लचीलापन है, समय के साथ-साथ यह कम होता जाएगा। एक समय आएगा जब आप शारीरिक और मानसिक स्तर पर पूरी तरह से जकड़े होंगे।
जड़ता जीवन के हर पहलू में आती जाती है
यह सबके साथ घटित हो रहा है। अपने जीवन को देखें; दस या बारह वर्ष की अवस्था में आप शारीरिक और मानसिक रूप से कितने लचीले थे।
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अधिकांश लोगों के लिये जीवन मात्र एक हृास है। वे आगे नहीं बढ़ रहे हैं, वे पीछे की ओर जा रहे हैं।
बीस साल की उम्र में लचीलेपन में बहुत कमी हुई और तीस साल की उम्र तक लचीलापन बहुत हद तक जा चुका है। जैसे-जैसे आप मार्ग पर आगे बढ़ते है; सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक जकडऩ भी आपको बुरी तरह पकड़ लेता है, यह कोई क्रमिक विकास नहीं है। आप क्रमिक रूप से पीछे की ओर जा रहे हैं। अधिकांश लोगों के लिये जीवन मात्र एक हृास है। वे आगे नहीं बढ़ रहे हैं, वे पीछे की ओर जा रहे हैं।
आपका मन मार्ग को जटिल बनाता है
जिस थोड़ी सी पूँजी के साथ वे आए थे उसे वे आगे नहीं बढ़ाते, दुर्भाग्यवश वे पीछे की तरफ जाते हैं। जो भी पैदायशी पूंजी आपके पास थी उसे आपने बढ़ाया नहीं है; बल्कि आपने उसे और कम किया है।
आध्यात्म-मार्ग पर हम जिन जटिलताओं सामना करते हैं ये मार्ग के कारण नहीं होतीं। यह जटिलताएँ मात्र उस गन्दगी के कारण हैं जिसे हम ’मन’ कहते हैं।
मार्ग वाकई में बहुत आसान है, लेकिन आपके व्यक्तित्व के कारण यह बेहद जटिल हो गया हैं। मार्ग अपने आप में जटिल नहीं है। आध्यात्म-मार्ग पर हम जिन जटिलताओं सामना करते हैं ये मार्ग के कारण नहीं होतीं। यह जटिलताएँ मात्र उस गन्दगी के कारण हैं जिसे हम ’मन’ कहते हैं। आपके भीतर कुछ भी सरकता नहीं। एक मृत शरीर की तरह आप जड़ हो जाते हैं। अपने मन की सनक को शान्त करने के लिये आपको गुरु-कृपा की ज़रूरत है। अगर आप अपने ऊपर
गुरु-कृपा होने दें तो फिर मार्ग बहुत आसान हो जाता है, क्योंकि मार्ग ही मंजिल है। अगर अभी आप यहाँ सहज बैठते हैं तो आप अस्तित्व के साथ पूरी तरह से स्पंदित होने लगेंगे।
अहंकार रोकता है ऊर्जा के प्रवाह को
आपने अपनी ऊर्जा को इस हद तक दबा रखा है, आपका मन इस हद तक आपके जीवन पर हावी हो गया है कि उसने जीवन को बहुत दबा रखा है और आपके जीवन में कोई प्रवाह नहीं है, सिर्फ उतना ही घटता है जितना अहंकार को सहारा देने के लिये आवश्यक है।
चूँकि आप अपनी इच्छा को समर्पित करने के लिये राज़ी नहीं हैं; इसीलिए इस साधना के माध्यम से आपकी ऊर्जा को उकसाने के लिये हम आपको धक्का दे रहे हैं। इसीलिये आसन और क्रिया का मार्ग है।
आपके अंदर ऊर्जा की गति केवल वहीं तक है जो आपके अहंकार के लिये सुविधाजनक है; अगर ऊर्जा थोड़ी सी अधिक हो जाए आपका अहंकार विस्फोट कर जाता है। जैसे ही आपके भीतर ऊर्जा पूरी तरह उमड़ पड़ती है, सब कुछ विसर्जित हो जाता है।
अहंकार यह अच्छी तरह जानता है। इसीलिये यह इसे दबा कर रखता है। अगर आपके पास ऊर्जा नहीं है तब भी अहंकार बहुत कमजोर महसूस करता है। जब सारी ऊर्जा खत्म हो जाती है - अहंकार बहुत कमजोर महसूस करता है, और यह उसे पसंद नहीं है। इसलिए यह उतनी ही ऊर्जा को स्वीकार करता है, जितनी इसे मजबूत बनाती है और पोषित करती है। अगर ऊर्जा बहुत अधिक हो जाए तो अहंकार चूर-चूर हो जाएगा।
इसीलिए क्रिया और योग महत्वपूर्ण है
यदि कुण्डलिनी जाग्रत होने लगे तब सब कुछ नष्ट हो जाएगा; कुछ भी नहीं बचेगा। आप सिर्फ अपने चारों तरफ की हर चीज़ के साथ विलय होती एक शक्ति के रूप में रह जाएँगें।
जब यह जाग्रत हो जाती है, यह हर चीज़ को व्यवस्थित कर देती है। यह एक बाढ़ की तरह है; आपकी सदियों पुरानी दुनिया कुछ घंटों के आवेग से बह जाती है।
आपकी अपनी कोई इच्छा नहीं रह जाएगी। चूँकि आप अपनी इच्छा को
समर्पित करने के लिये राज़ी नहीं हैं; इसीलिए इस साधना के माध्यम से आपकी ऊर्जा को उकसाने के लिये हम आपको धक्का दे रहे हैं। इसीलिये आसन और क्रिया का मार्ग है। चूँकि आप खुद इसे करने में समर्थ नहीं हैं, हम सृष्टि को ही खास तरह से सक्रिय कर देते हैं। जब यह जाग्रत हो जाती है, यह हर चीज़ को व्यवस्थित कर देती है। यह एक बाढ़ की तरह है; आपकी सदियों पुरानी दुनिया कुछ घंटों के आवेग से बह जाती है। इसलिये आपकी साधना कहीं पंहुचने के लिए नहीं है। यह मात्र एक तरीका है, बाढ़ लाने की एक विधि है। एक ऐसी भीषण बाढ़ जो आपकी तुच्छ रचनाओं को मिटाकर आपको वैसा बना दे जैसा सृष्टा ने बनाना चाहा था।
संपादक की टिप्पणी:
*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:
21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया
*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:
ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया
नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार