क्या अात्मविश्वास अहम से पैदा होता है?
यह आम धारणा है कि किसी काम को करने के लिए आत्मविश्वास होना चाहिए। लेकिल सद्गुरु बता रहे हैं कि कोई भी काम आत्मविश्वास से नहीं समझदारी से करनी चाहिए, क्योंकि बिना स्पष्टता के आत्मविश्वास घातक भी हो सकता है।
यह आम धारणा है कि किसी काम को करने के लिए आत्मविश्वास होना चाहिए। लेकिल सद्गुरु बता रहे हैं कि कोई भी काम आत्मविश्वास से नहीं समझदारी से करनी चाहिए, क्योंकि बिना स्पष्टता के आत्मविश्वास घातक भी हो सकता है। आइए जानते हैं विस्तार से -
लोग सोचते हैं कि कुछ करने के लिए उन्हें आत्मविश्वास की जरूरत होती है। लेकिन आत्मविश्वास से भरे हुए आप बेवकूफी भरी चीजें भी कर सकते हैं।
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सिर्फ एक अहं को ही आत्मविश्वास या उसकी कमी महसूस होती है। सबसे पहले गौर करें - आखिर यह अहं है क्या? आपमें अहं इसलिए नहीं आया, क्योंकि आपने कोई काम बहुत शानदार तरीके से किया, या आप अमीर बन गए, या आप खूबसूरत हो गए, या आपने अपने शरीर को बहुत ताकतवर बना लिया। जब आप पहली बार अपनी मां के पेट में लात चलाने लगे थे, तभी अहं का जन्म हो गया था। अपने स्थूल शरीर से खुद की पहचान बनाने की सबसे पहली गलती का मतलब है - अहं का जन्म।
अहं एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया है। इस नन्हें से शरीर से आपकी पहचान बना दी गई। इस छोटे से प्राणी को अपना वजूद बनाए रखना है, इस विशाल जगत में, जिसकी आपको इतनी भी समझ नहीं है कि यह कहां शुरू होता है और कहां खत्म? खुद को बस सुरक्षित बनाए रखने के लिए आपको खुद को एक बड़े इंसान की तरह दिखाना पड़ता है।
अपने जीवन में तरह-तरह के हालातों से निपटने के लिए हमें विभिन्न तरह की पहचान की जरूरत होती है। अगर आप इस मामले में लचीले हैं, तो आप एक पहचान को सुंदरता से दूसरे में बदल सकते हैं। तब आप अपना किरदार भरपूर निभा सकते हैं और आपको कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन अभी समस्या यह है कि आपने इससे इतनी गहरी पहचान बना ली है कि आप विश्वास करने लगे हैं कि आप बस वही पहचान हैं। एक बार जब आप विश्वास करने लगते हैं कि ‘मैं परछाई हूं’ तो आप क्या करेंगे? तब आप धरती पर बस रेंगेंगे। तब आपकी जिंदगी कैसी होगी? अगर फर्श पर कालीन बिछा हो, यानी बाहरी हालात मुलायम घास जैसे हों, तो आप आराम से रेंगेंगे, लेकिन आनन्द में नहीं। मान लीजिए कि राह में कंकड-पत्थर और कांटे आ जाएं, तो आप रोने लगेंगे। आपकी जिंदगी अभी इसी तरह से चल रही है, क्योकि आप धरती पर रेंग रहे हैं।
अभी आपके जीवन का सारा-का-सारा अनुभव बस भौतिक तक ही सीमित है। वह सब कुछ, जो आप अपनी पांच इंद्रियों के जरिए से जानते हैं, सिर्फ भौतिक है। और भौतिक का खुद का कोई उद्देश्य नहीं होता, क्योंकि यह बस फल के छिलके की तरह है।
अगर हम भौतिक की सीमाओं के परे नहीं जाते, अगर हम भौतिक के सीमित वजूद के परे नहीं जाते, तो हम बस एक संघर्ष बनकर रह जाते हैं - कभी आत्मविश्वास और कभी संकोच। अगर हालात अच्छे हो जाते हैं, तो आप आत्मविश्वास से भर जाते हैं, अगर वो बिगड़ जाते हैं, तो आप पीछे हट जाते हैं। आप तो हमेशा से जानते ही हैं, जो भी हालात ठीक चल रहे हों, किसी भी पल, वे बिगड़ सकते हैं। यह सिर्फ हालात बिगड़ने की ही बात नहीं है, जीवन किसी भी क्षण कैसा भी मोड़ ले सकता है। किसी भी क्षण चीजें ऐसी हो सकती हैं, जो आपको पसंद नहीं हो।
अगर दुनिया में सब कुछ आपके खिलाफ चल रहा है, और आप अपने भीतर शांति से, उल्लास से, इस सब से अछूते, बिना प्रभावित हुए जीवन चला पाते हैं, तभी आप जीवन को उसकी पूरी गहराई में जान सकते हैं। वरना तो आप भौतिक के बस एक गुलाम होते हैं।