जिंदगी के हर पल को बनाएं जीवंत
सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि जीवन और मृत्यु में यही अंतर है कि मृत्यु को आपकी सहायता की जरूरत नहीं पड़ती। मृत्यु जब होती है तो पूरी होती है, लेकिन जीवन को ज्यादा से ज्यादा जीवंत बनाना आपके ही ऊपर है।
प्रश्नकर्ता : कहा जाता है कि जीवन एक लीला है, फिर इसे एक ‘लीला’ की तरह खेल-खेल में कैसे जिएं?
सद्गुरु : देखिए, अभी इस समय हवा चल रही है, इसे आप दो तरह से महसूस कर सकते हैं। आप सोच सकते हैं कि हवा आपके बालों के साथ खेल रही है या फिर यह आपके बालों को बिगाड़ रही है। यह आपके ऊपर है कि आप इसे कैसे लेते हैं। वैसे देखा जाए तो यह दोनों ही काम कर रही है तो यह आप पर है कि आप इसे कैसे अनुभव करते हैं। एक तरीका है - ‘अरे वाह! मंद हवा का मेरे बालों से खेलना कितना अच्छा लग रहा है।’ या फिर - ‘यह हवा मेरे बाल खराब कर रही है, अब मैं कैसा दिखूंगा?’ आप कुछ भी सोच सकते हैं। ऐसा ही जिंदगी के हर पहलू के साथ होता है। मैं जीवन को एक खेल की तरह जीता हूं, इसलिए हल्की-फुल्की मिसाल दे रहा हूं, वर्ना इसके लिए मैं बहुत गंभीर उदाहरण भी दे सकता था।
अधूरी जिन्दगी जीने से बचना होगा
अपनी जिंदगी के हर पहलू और हर पल को आप या तो खेल-खेल में जी सकते हैं या फिर गंभीर रहकर। आखिर गंभीर होने से क्या मतलब है? मान लीजिए कि कोई आपसे आकर कहता है कि उसकी दादी की हालत गंभीर है, तो आप क्या सोचेंगे? यही न कि वह मरने वाली हैं।
Subscribe
जीवन को आपकी मदद की जरूरत होती है, मौत को नहीं
इसलिए जिंदगी को बेहतर से बेहतर बनाने की जरूरत है और इसका कोई अंत नहीं है। मौत खुद बहुत क्षमतावान है। इसमें आपके करने जैसा कुछ नहीं है। आपको बस जागरूक रहना है कि आप एक दिन मरेंगे। आपको नश्वरता का बोध होना काफी है।
तो आनंदित रहने और न रहने के बीच क्या आपके पास कोई विकल्प है? यह हवा जो आपके साथ खेल रही है, इसे बहुत ज्यादा गंभीर न बनाएं। सांस लेने और सांस छोडऩे की प्रक्रिया पर जरा गौर करें - यह एक तरह से छेडऩा है। आप न तो सांस को रोक कर रख सकते और न ही सांस लिए बिना रह सकते हैं। अगर यह आपके साथ गंभीर हो गई, और आपके भीतर ही रह गई, बाहर नहीं निकली, तो आप दुनिया से चल बसेंगे। तो यह समझें कि सब कुछ एक खेल है। जब हम खेल कहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि किसी तरह से काम चला लेंगे। आप जीवन के किसी अन्य पहलू को किसी तरह चला सकते हैं, लेकिन आप किसी तरह से खेल नहीं खेल सकते। खेल के लिए पूरी तरह से शामिल हो कर खेलना पड़ता है। आप बेमन से पढ़ाई कर सकते हैं। आप बेमन से अपने काम पर जा सकते हैं और ऐसा बहुत से लोग करते भी हैं। लेकिन पूरी तरह से शामिल हुए बिना खेल नहीं खेल सकते।
जीवन में शामिल होना है, पर नतीजा मायने नहीं रखता
कुछ समय पहले की बात है, शंकरन पिल्लै तिरुपुर में होजरी की एक फैक्ट्री चला रहा था। एक दिन एक आदमी उसकी फैक्ट्री में आया और बोला, ‘यहां कितने लोग काम करते हैं?’ इस पर उसने कहा, ‘बीस में से कोई एक।’ तो आप बेमन से काम पर जा सकते हैं।
खेल खत्म होगा, पर अभी से खेलना मत छोड़ें
लेकिन हर दिन हमें आपको याद दिलाना पड़ता है कि यह एक खेल है, परेशान न हों, यह एक दिन ख़त्म हो जाएगा। आपका खेल ख़त्म होने की घंटी भी कभी बजेगी। क्या आपको लगता है कि आपके लिए खेल ख़त्म होने की घंटी नहीं बजेगी? जरूर बजेगी।
कुछ समय पहले एक कार्यक्रम के सिलसिले में मैं कोयंबटूर में था। वहां एक लडक़ी मिली, जो बेहद खुशमिजाज और उत्साह से भरी एक उन्नीस साल की युवती थी। उसके बाद मैंने उसे करीब एक साल के बाद दोबारा देखा। तब वह बहुत उदास और मुरझाई हुई लगी, जैसे कोई जीवन ही न बचा हो। मैंने उससे पूछा, ‘अरे, तुम्हें क्या हुआ?’ उसने कहा, ‘घर वालों ने मेरी शादी करवा दी।’ मुझे पता नहीं था कि शादी इंसान के साथ ऐसा भी करती है। जबकि कुछ लोग शादी के बाद जीवंत हो जाते हैं और कुछ लोग इसके बाद हवा निकले गुब्बारे की तरह फुस्स हो जाते हैं। सवाल यह नहीं है कि आपकी जिंदगी में क्या हो रहा है, बल्कि सवाल यह है कि आप इसके साथ क्या कर रहे हैं? तो अगर आप खुद खुशमिजाज खिलाड़ी हैं, तो हर चीज खूबसूरत होगी, वर्ना आपके साथ होने वाली हर घटना भयावह बन सकती है।