जीवन के रहस्य

सद्‌गुरु के साथ 7% साझेदारी: बदल सकता है आपका जीवन

कुरुक्षेत्र युद्ध से ठीक पहले पांडवों को जब कृष्ण और उनकी शक्तिशाली सेना के बीच चुनाव का विकल्प मिला तो उन्होंने कृष्ण को चुना, जो भक्ति और कृपा की शक्ति को दर्शाता है। इस प्राचीन ज्ञान से प्रेरणा लेकर सद्‌गुरु ईशांग 7% के विचार को स्पष्ट करते हैं। यह एक ऐसी साझेदारी है जहाँ व्यक्ति भरपूर कृपा पाने के लिए अपने संसाधनों का 7% समर्पित करते हैं। सद्‌गुरु बताते हैं कि यह कृपा भौतिक जीवन के लिए एक लूब्रिकेंट का कार्य करता है, जो आपकी सांसारिक कोशिशों को आसान बना सकता है, जिससे आप परम कल्याण पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि यह अनूठी साझेदारी कैसे विकसित हो सकती है।

प्रश्नकर्ता: मैंने सद्‌गुरु के साथ एक ईशांग 7% साझेदारी के बारे में सुना है। यह किस बारे में है? क्या आप इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?

कृष्ण या उनकी सेना

सद्‌गुरु: महाभारत में एक सुंदर घटना घटी थी। जैसे-जैसे कुरुक्षेत्र का युद्ध नजदीक आ रहा था, दोनों विरोधी पक्ष - कौरव और पांडव, समर्थन जुटाने के लिए सभी राजाओं के पास जा रहे थे। यह जीवन और मृत्यु का मामला था। हर हथियारबंद आदमी एक मददगार था, इसलिए जितने हो सकें, वे उतने पाने की कोशिश कर रहे थे। दोनों पक्षों ने शक्तिशाली सेनाएं इकट्ठी कर ली थीं।

यह साझेदारी महज खोखले शब्द नहीं हैं।

कृष्ण, हालांकि राजा नहीं थे, लेकिन उनके पास 10,000 से अधिक अच्छी तरह प्रशिक्षित यादवों की सेना थी जो कई अभियानों में शामिल रहे थे। एक दोपहर कृष्ण सोने का नाटक कर रहे थे, जैसा कि वे अक्सर करते थे, क्योंकि वे भविष्य जानते थे लेकिन खेल खेलना चाहते थे।

कौरवों में सबसे बड़े, दुर्योधन ने उनके कमरे में प्रवेश किया और देखा कि कृष्ण अपने चेहरे पर एक कोमल मुस्कान लिए सो रहे हैं। वह इंतजार करने के लिए बैठ गया लेकिन फिर उसने देखा कि कृष्ण के पैर उसकी तरफ हैं। दुर्योधन अपने मन में सोच रहा था, ‘यह तो कोई राजा भी नहीं है, बस एक गोपालक हैं। मैं एक महान सम्राट हूँ। मैं उनके पैरों के पास क्यों बैठा हूँ?’ वह धीरे से उठा और कृष्ण के सिर के पास बैठ गया।

थोड़ी ही देर में युधिष्ठिर भी आए। कृष्ण के भक्त होने के नाते वे कृष्ण के पैरों के पास बैठ गए, इसे एक आशीर्वाद के रूप में देखते हुए। कुछ समय बाद जागने का नाटक करते हुए कृष्ण ने अपनी आंखें खोलीं। उन्होंने सीधे युधिष्ठिर की ओर देखा, जो उनके पैरों के पास बैठे थे, और बोले, ‘अरे युधिष्ठिर, आप आ गए!’ इससे पहले कि वे आगे बात कर पाते, दुर्योधन ने अपनी उपस्थिति जताई। कृष्ण ने कहा, ‘ओह, दुर्योधन, तुम भी? आप दोनों यहाँ किसलिए आए हैं?’

दोनों ने कहा कि वे होने वाले युद्ध में कृष्ण की मदद मांगने आए हैं। कृष्ण ने एक विकल्प दिया – ‘आप में से एक मेरी सेना ले सकता है, और दूसरा मुझे ले सकता है, लेकिन मैं लड़ूंगा नहीं। मैं बस आपके साथ रहूँगा। और चूंकि मेरी नजर पहले युधिष्ठिर पर पड़ी, तो उन्हें पहले चुनने का अवसर मिलेगा।’ दुर्योधन ने विरोध किया, ‘मैं यहाँ पहले आया था! आपको मुझे पहला अवसर देना चाहिए।’ कृष्ण ने मना कर दिया और युधिष्ठिर को चुनने के लिए कहा।

युधिष्ठिर ने कहा, ‘भगवन, हम बस आपको अपने साथ चाहते हैं। मुझे सेना की परवाह नहीं है।’ दुर्योधन बहुत खुश हुआ। वह सोचता था कि पांडव तो मूर्ख हैं, लेकिन उसने कभी कल्पना नहीं की थी कि वे इतने मूर्ख होंगे कि 10,000 प्रशिक्षित सैनिकों के खिलाफ एक आदमी को चुनेंगे। और यह एक आदमी भी ऐसा, जो लड़ेगा नहीं। यह एक मूर्खतापूर्ण चयन लग रहा था - लेकिन उस चुनाव ने युद्ध का परिणाम तय कर दिया।

शिव: ऐसा निष्क्रिय साझेदार जो सब कुछ बदल देता है

मैंने शिव को अपना साझेदार बनाया है। वह व्यक्ति कुछ नहीं करता है, मैं ही हूँ जो सारा काम कर रहा हूँ। वह कुछ नहीं करते, लेकिन जीवन आनंदित और सुंदर हो गया है, क्योंकि हर क्षण वह मेरे साझेदार हैं। यह एक सही साझेदारी करने का समय है, क्योंकि मुझे लगता है कि अगर आपका कारोबार, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक और अन्य गतिविधियां अधिक आसानी और कृपा के साथ होती हैं, तो आप अपनी परम ख़ुशहाली के लिए अधिक समय निकल पाएँगे।

वैसे मैं हमेशा कृपा का इस्तेमाल केवल आध्यात्मिक कल्याण के लिए करने का पक्षधर रहा हूँ, लेकिन फिर भी मैं सभी स्तरों पर खुद को प्रस्तुत करना शुरू कर रहा हूँ, क्योंकि लोग जीवन-यापन की प्रक्रिया में ही बहुत अधिक उलझे हुए हैं। मुझे लगता है कि अगर हम एक विशेष स्तर की कृपा के साथ आपकी आर्थिक, सामाजिक और अन्य गतिविधियों को आसान और सुगम बना देते हैं, तो आप अपने परम कल्याण पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित कर पाएँगे।

ईशांग 7%: परम कल्याण के लिए भौतिक कृपा

यह साझेदारी महज खोखले शब्द नहीं हैं। गौतम बुद्ध ने 100 प्रतिशत साझेदारी की मांग की थी, यह कहते हुए कि ‘चाहे आप कुछ भी कर रहे हों, सब कुछ - अपना घर, अपना पैसा और अपना परिवार – मुझे समर्पित कर दें। मैं आपको वह दूंगा जिसकी आपको जरूरत है।’

अगर आपके पास अपने भौतिक कामों से अधिक समय और ऊर्जा बच जाती है, तो मुझे लगता है कि आप उसे अपनी परम ख़ुशहाली पर खर्च कर सकेंगे।

मेरा प्रस्ताव यह है कि साल के 365 दिनों में से आपको 25 दिन, 13 घंटे, 12 मिनट और 12 सेकंड - ठीक एक वर्ष का 7 प्रतिशत - इस साझेदारी के लिए समर्पित करना चाहिए। आपके कारोबार, आपकी कमाई और आपके स्पेस का सात प्रतिशत मेरा होना चाहिए। मैं गौतम बुद्ध की तरह नहीं हूँ, जो 100 प्रतिशत की मांग कर रहे हैं, लेकिन मैं कुछ ऐसा हूँ कि अगर आप मुझे 7 प्रतिशत स्पेस देते हैं, तो मैं किसी भी तरह से बाकी 93 प्रतिशत को भी घेर लूंगा।

हम यह अवसर इसलिए प्रदान कर रहे हैं ताकि आप अपने जीवन के भौतिक पहलुओं को कृपा के साथ संभाल सकें। अगर आपके पास अपने भौतिक कामों से अधिक समय और ऊर्जा बच जाती है, तो मुझे लगता है कि आप उसे अपनी परम ख़ुशहाली पर खर्च कर सकेंगे। यही कारण है कि हम ईशांग 7% की भेंट कर रहे हैं।