क्या आपने कभी डेजा वू की वह अजीब सी अनुभूति महसूस की है, जैसे कि आपने किसी पल को पहले भी जिया हो? सद्गुरु इसे आपके तंत्र में कहीं गहरे अंकित स्मृति से जोड़ते हुए इस रोचक घटना की व्याख्या करते हैं। वे एक अभ्यास बताते हैं जिससे डेजा वू का इस्तेमाल करके एक सचेतन कर्म का ककून बनाया जा सकता है जो आपके कार्मिक बोझ को हल्का करने में मदद कर सकता है। आइए जानते हैं कि इस साधन का इस्तेमाल अपनी साधना को अधिक सहज बनाने और जीवन में हल्के होकर यात्रा करने के लिए कैसे करें?
प्रश्न: नमस्कारम सद्गुरु! मुझे अक्सर डेजा वू का अनुभव होता है, खासकर जब मैं मौन में होता हूँ। क्या आप बता सकते हैं कि यह क्यों होता है?
सद्गुरु: डेजा वू एक ऐसी घटना है जिसकी कई लोग इस रूप में व्याख्या करते हैं कि उन्होंने कुछ पहले देखा या अनुभव किया है, अक्सर पिछले जन्मों में। यह समझना महत्वपूर्ण है कि डेजा वू का अर्थ जरूरी नहीं कि यह बाहरी दुनिया में किसी भौतिक या वास्तविक स्थिति से हो। यह एक आंतरिक स्थिति भी हो सकती है, कर्म के अर्थ में, जिसका अर्थ मूल रूप से स्मृति है।
सभी भौतिक रूप, चाहे वे परमाणु के स्तर के हों या ब्रह्मांडीय, सभी स्मृति का परिणाम हैं। स्मृति के बिना किसी भी प्रकार की दोहराव वाली प्रक्रिया नहीं होगी।
ये बल परमाणुओं, ब्रह्मांडीय अंतरिक्ष, अमीबा, मनुष्यों और हर जीवन में एक ही तरह से व्यवहार करते हैं, जिसका अर्थ है कि एक खास स्मृति है जो चीजों में दोहराव लाती है। यह दोहराव हमें स्थिरता देता है, लेकिन यह ठहराव भी पैदा कर सकता है।
जब कोई चीज आपके जाने बिना एक चक्र में चल रही होती है, तो आपको लग सकता है कि आप एक यात्रा कर रहे हैं। लेकिन अगर आपको एहसास हो जाए कि आप चक्कर लगा रहे हैं, तो आप ठहरा हुआ महसूस करते हैं। स्थिति वही है, लेकिन आपकी धारणा बदल जाती है। चक्कर लगाने का मतलब है गतिशील ठहराव।
आपके मनोवैज्ञानिक और शारीरिक ढाँचे के भीतर घटित होने वाले सभी अनुभव और स्मृतियाँ दोहराव वाली होती हैं। कुछ दोहराव तब होते हैं जब उसी प्रकार की पहले की घटना अस्पष्ट स्मृति में धुंधली हो जाती है। जब वही चीज फिर से होती है और पहले की घटना आपकी स्मृति में अभी भी स्पष्ट है, तो ऐसा लगता है जैसे वही चीज दो बार हुई हो।
चक्कर लगाने का मतलब है गतिशील ठहराव।
जब शारीरिक योग-अभ्यासों की बात आती है, तो हम शरीर में एक मजबूत डेजा वू बनाना चाहते हैं। जब आप सूर्य क्रिया करने के लिए अपनी आंखें बंद करें तो इसे बस हो जाना चाहिए क्योंकि आपने उस स्मृति को अपने तंत्र में इतना मजबूत बना लिया है कि ऐसा लगता है जैसे आप इसे पिछले जीवनकाल से जानते हैं और यहाँ यह बिना किसी प्रयास के हो रहा है। साधना इस डेजा वू को बनाने का एक तरीका है ताकि आप बहुत अधिक नया कार्मिक बोझ न बढ़ाएँ। इसे आपकी जागरूकता में लाने में कई जन्म लग सकते हैं।
साधना एक तरह से अपने सचेतन कर्म के जरिए अपनी सुरक्षा के लिए एक ककून बनाना है, ताकि बाहरी चीजें आपको छू न सकें और जमा न हों। ककून इतना मजबूत होना चाहिए कि साधारण चीजें, जैसे पानी पीना, ऐसा लगे जैसे आपने उन्हें कई जन्मों से किया हो।
यदि आप बहुत सारी बाहरी चीजें जमा कर लेते हैं तो आप लंबी यात्रा नहीं कर पाएँगे। यही कर्म है - आप चेतना के शिखर पर चढ़ने के लिए प्रयास करने के बजाय अपने आराम क्षेत्र के भीतर रहना पसंद करते हैं।
साधना एक तरह से अपने सचेतन कर्म के जरिए अपनी सुरक्षा के लिए एक ककून बनाना है, ताकि बाहरी चीजें आपको छू न सकें और जमा न हों।
ये सभी साधन बस यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि आप नया सामान न इकट्ठा करें और सचेतन रूप से पुराने सामान को फेंक दें। कुछ ऐसा मान लीजिए जैसे स्वर्ग के द्वार भव्य और मोतियों से सजे नहीं हैं बल्कि एक संकरा रास्ता है। केवल वे लोग जिनके पास सामान नहीं है, उसमें से गुजर सकते हैं, क्योंकि यदि आप अपने सामान के साथ प्रवेश करने की कोशिश करेंगे तो आप फंस जाएंगे। आप भारी बोझ उठाकर संकरी जगहों से नहीं गुजर सकते या खड़ी चढ़ाई पर नहीं चढ़ सकते। इसलिए हल्के होकर यात्रा करना महत्वपूर्ण है।
मैं चाहता हूँ कि आप अपनी सुबह की साधना के दौरान इसे आजमाएं। जब आप गुरु पूजा या सूर्य क्रिया करें, तो कल्पना करें कि आप इसे कई जन्मों से कर रहे हैं। लक्ष्य है इसे डेजा वू जैसा बनाना। एक तरह से या तो आप अपनी नींद में जागरूक रहना सीखें या दिन भर सोते रहें। दोनों अच्छे हैं। नहीं तो आप खुद को थका देते हैं।
यदि आप दिन भर सोते रहना सीखते हैं, तो आप बस सब कुछ करते हैं क्योंकि यही आप हजारों जन्मों से करते आ रहे हैं। आपके शरीर की हर गति और आपके मन का हर कार्य लाखों बार अनुभव किया जा चुका है। यदि आप सचेतन प्रयास करें तो आप हर चीज को डेजा वू में बदल सकते हैं। आप दिन भर सोते हुए भी हर काम कुशलतापूर्वक करेंगे।
जागरूकता अच्छी है – बेफिक्री की स्थिति में होना उससे बेहतर है।
आप पूछ सकते हैं, ‘यह क्या सद्गुरु? इतने सालों से मैंने जागरूक रहने की कोशिश की है, और अब आप मुझे सोने के लिए कह रहे हैं?’ जागरूकता अच्छी है – बेफिक्री की स्थिति में होना उससे बेहतर है। लेकिन इसके लिए बहुत अधिक की आवश्यकता होती है। यदि आप जागरूक नहीं रह सकते, तो बेफिक्री आपकी पहुंच से बाहर हो सकती है।
कम से कम सुबह के अभ्यासों के दौरान यह कल्पना करके इस डेजा वू को लाने की कोशिश करें मानो आप इस साधना को कई जन्मों से कर रहे हैं। विचार यह है कि अगर आप नींद में भी हैं तब भी अपनी गुरु पूजा, सूर्य क्रिया और जाप ठीक से कर सकें। यदि आप ऐसा कर पाते हैं, तो यह चमत्कार करेगा।