
योगिक क्रियाओं में शून्यक और कुम्भक के अद्भुत प्रभाव होते हैं, आइए जानते हैं सद्गुरु से कि इनकी शक्तियाँ मानव अनुभव के विभिन्न पहलुओं को कैसे रूपांतरित कर देती हैं:
प्रश्नकर्ता: योगिक क्रियाओं में शून्यक - साँसों को बाहर छोड़कर साँस को थोड़ी देर रोकना, और कुम्भक - साँस अंदर खींचकर कुछ देर रोकना, के क्या-क्या लाभ हैं?
सद्गुरु: कुम्भक और शून्यक क्या हैं? इन अभ्यासों के कई आयाम हैं। अगर आप किसी डॉक्टर से पूछें तो वे आपकी जांच करके बता देंगे कि ये क्रियाएं आपके तंत्र में ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड के लेन-देन को बेहतर बनाती हैं जिससे आपमें संतुलन आता है और आप अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं। ये सच है, लेकिन इन क्रियाओं को करने के और भी कई लाभ हैं।
श्वसन एक ऐसी क्रिया है जो आपकी वजह से नहीं चल रही है, बल्कि यह आपके बग़ैर भी चलती रहती है। जब मैं कहता हूँ, ‘आपके बगैर,’ तो आपको यह समझना चाहिए कि जब आप विचार और भावनाएं पैदा करते हैं तो उनके अनुसार आपकी साँसों के पैटर्न में बदलाव आते रहते हैं। कई भावनाएं ऐसी भी हैं जो आपकी साँसें रोक देना चाहती हैं।
श्वसन एक ऐसी क्रिया है जो आपकी वजह से नहीं चल रही है, बल्कि यह आपके बग़ैर भी चलती रहती है।
जब लोग डर का अनुभव करते हैं तो उनकी साँसें रुकने लगती हैं, उनका शरीर किसी तरह ग़ायब हो जाना या मर जाना चाहता है। आप वास्तव में मरते नहीं हैं लेकिन आप श्वासहीन हो जाते हैं जो बताता है कि आपका शरीर रुक जाना चाहता है। लेकिन जीने की स्वाभाविक चाहत के कारण आपकी सांसें फिर जल्दी-जल्दी चलने लगती हैं, जैसे कि आप किसी चीज़ में डूब रहें हों।
योग के कई आयाम हैं, लेकिन आप खास तौर पर कुम्भक और शून्यक के बारे में पूछ रहे हैं। कुछ शारीरिक परिवर्तन होते हैं जो आप देख सकते हैं, हालाँकि ऐसे बदलाव आप कुछ विशेष स्थितियों में भी देख सकते हैं। कुछ समय पहले मुझे एक कार को 330-340 किमी प्रति घंटा की रफ़्तार से चलाने का मौका मिला।
एक व्यक्ति जो मेरे पास बैठे थे, बोले ‘सद्गुरु, इस रफ़्तार से चलाते समय भी आप मुस्कुरा रहे हैं और मुझसे बातें कर रहे हैं। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए।’ मैंने कहा, ‘मेरे मुस्कुराने और बातें करने से मेरे गाड़ी चलाने का क्या संबंध?’ उन्होंने कहा, ‘जब मैं गाड़ी तेज़ रफ़्तार से चलाता हूँ तो मेरी धड़कन, पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, सब कुछ बढ़ जाता है और ये अनुभूति मुझे अच्छी लगती है लेकिन आप इससे मज़ा लेते नज़र नहीं आ रहे।’
शून्यक और कुम्भक आपमें संतुलन लाते हैं जिससे बाहरी परिस्थितियां आपके तंत्र को अस्थिर नहीं करतीं।
अगर मेरा ब्लड-प्रेशर नहीं बढ़ता और मैं पसीने से तरबतर होकर घबराता नहीं हूँ, इसका मतलब क्या ये है कि मैं किसी चीज़ का आनंद नहीं लेता? आपकी आनंद लेने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है यदि आपमें संतुलन रहता है। शून्यक और कुम्भक आपमें संतुलन लाते हैं जिससे बाहरी परिस्थितियाँ आपके तंत्र को अस्थिर नहीं करतीं।
लोग अक्सर सोचते हैं कि जीवन की मदहोशी केवल एड्रेनलिन से ही मिल सकती है। एड्रेनलिन दरअसल हस्तक्षेप है। ये आपकी रक्त में तब प्रवेश करता है, जब आपके शरीर को लगता है कि आप किसी खतरनाक स्थिति में हैं। एड्रेनलिन एक तरह से ‘लड़ो या भागो’ की तैयारी करवाता है। मान लीजिए आप किसी जंगल में हैं और एक शेर सामने आ जाए तो आप या तो उससे लड़ेंगे या भाग जाएंगे। लोगों की प्रतिक्रियाएँ यही होती हैं।
एक और उपाय हो सकता है - बुद्धिमानी का, हर इंसान के लिए यही तरीका होना चाहिए। यह विकल्प केवल तभी आपके पास होता है जब आपका शारीरिक तंत्र - जिसमें आपका मन, भावनाएं, ऊर्जा और बाक़ी सब कुछ शामिल है, प्रतिक्रिया नहीं करते बल्कि आप जैसा चाहते हैं वैसा रिस्पांड करते हैं।
कुम्भक आपकी ऊर्जा के साथ-साथ आपकी जीवन-शक्ति, बुद्धिमत्ता और बोध का भी विस्तार करता है।
कुम्भक और शून्यक का एक महत्वपूर्ण आयाम यह है कि ये आपके शरीर के रसायनों के बीच संतुलन लाते हैं जिससे वे प्रतिक्रिया नहीं करते। इसका मतलब कि आप जैसी चाहें वैसी प्रतिक्रिया कर सकते हैं लेकिन बाहरी परिस्थितियों के दबाव में आकर आप कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। आपके तंत्र में एक प्रकार की शीतलता और शांति का समावेश होता है जिससे यह एक ख़ास गति से आगे नहीं जाता। नहीं तो ये शरीर कई तरह से कष्ट झेलता है। जीवन को जीने की क्षमता कम हो जाती है, और इसके परिणाम स्वरुप जीवन भी कम हो जाता है।
कुम्भक और शून्यक के कुछ और आयाम भी हैं। कुम्भक आपकी ऊर्जा के साथ-साथ आपकी जीवन-शक्ति, बुद्धिमत्ता और बोध का भी विस्तार करता है। इन क्रियाओं को कभी बलपूर्वक नहीं करना चाहिए बल्कि इसे करने की क्षमता को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
शून्यक के आध्यात्मिक लाभ ज़्यादा हैं क्योंकि ये धीरे-धीरे हमारे व्यक्तित्व की सीमाओं को मिटा देता है। शून्यक में कुछ क्षण रहने से आपके व्यक्तित्व की सीमाएं धीरे-धीरे स्वयं मिट जाती हैं और आपके जाने बगैर आपमें एक सार्वभौमिकता का बोध आने लगता है।
तो शून्यक और कुम्भक के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और ऊर्जा आधारित पहलू हैं। अगर आप शून्यक के माध्यम से अपनी सीमाएं मिटा दें तो कुम्भक के द्वारा अपनी ऊर्जा को बढ़ाकर एक बहुत बड़ी मौजूदगी तैयार कर सकते हैं। अगर आप किसी स्थान में प्रवेश करेंगे तो लोग आपकी मौजूदगी को महसूस करेंगे। यह उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। लोग जो इतनी बातें करते हैं, यहाँ तक कि आसमान की तरफ़ देखकर अपने भगवान से भी बातें करते रहते हैं, उसका कारण यही है कि वह उसकी उपस्थिति अनुभव नहीं करते।
अगर आप शून्यक के माध्यम से अपनी सीमाएं मिटा दें तो कुम्भक के द्वारा अपनी ऊर्जा को बढ़ाकर एक बहुत बड़ी मौजूदगी तैयार कर सकते हैं।
यह एक ऐसा रूपांतरण है जो हर इंसान में होना चाहिए - आपको प्रार्थना से उपस्थिति की ओर मुड़ना चाहिए। अगर आप इस सृष्टि की मौजूदगी देखें, ये कितनी शक्तिशाली है और सदैव विद्यमान है। आप देखेंगे कि इस मौजूदगी की वजह से ही सारी चीजें घटित हो रही हैं।
यदि आपके पास एक ख़ास तीव्रता मौजूद है तो आप पाएँगे कि ये उस मौजूदगी से अलग नहीं है जिसने पूरी सृष्टि को समेट रखा है। एक बार आपको इसका अनुभव हो जाए तो उसके बाद आप ख़ुद को नहीं पहचानेंगे क्योंकि आप और सम्पूर्ण सृष्टि एक हो जाएँगे।
