सद्‌गुरुएक साधक ने सद्‌गुरु से प्रश्न किया कि अंगमर्दन को अगले स्तर पर ले जाने के लिए क्या करना चाहिए। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि अंगमर्दन मांसपेशियों के बजाए अस्थि बंधनों या लिगामेंट को शक्तिशाली बनाता है..

प्रश्न : सद्‌गुरु, मैं साढ़े तीन महीने से अंगमर्दन का अभ्यास कर रहा हूं और अब उसे अगले स्तर पर ले जाना चाहता हूं। इसका क्या तरीका है?

अंगमर्दन - शरीर के अस्थि-बंध या लिगामेंट्स के लिए है

सद्‌गुरु : अगर आप अंगमर्दन को अगले चरण तक ले जाना चाहते हैं, तो आपके शरीर को बहुत लचीला होना चाहिए, वरना आपको नुकसान हो सकता है। अंगमर्दन मांसपेशियों के बजाय शरीर के अस्थि - बंध या लिगामेंट्स और नसों को अधिक मजबूत बनाता है। यह भार उठाने जैसा नहीं है। भार उठाने से मांसपेशियां बनती हैं। अगर आप अंगमर्दन करेंगे, तो अस्थि - बंध या लिगामेंट्स और नसों पर बोझ पड़ेगा, अस्थिपंजर और मांसपेशियों को एक साथ थामकर रखने वाले ‘बैंड’ सबसे अधिक खिंचते हैं। इसीलिए अंगमर्दन आपको अलग तरह की शक्ति और लचीलापन देता है।

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लिगामेंट टूटने पर ठीक होने में मुश्किल होती है

अगर आप अपनी मांसपेशियों को एक खास सीमा से आगे और मजबूत बनाना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको बहुत सारी नींद की जरूरत होगी।

अस्थि - बंध या लिगामेंट्स के टूटने पर ठीक होने में और मुश्किल होती है, क्योंकि वही पूरे अस्थि पंजर को एक साथ जोड़े रखता है।
शरीर को बहुत सी अनावश्यक मेहनत करनी होगी। अगर आपकी मांसपेशियां बहुत बड़ी हो गयीं, तो आप आंखें बंद करके आराम से नहीं बैठ सकते। अगर आप मजबूती और लचीलापन चाहते हैं, तो शरीर की बुनियादी बनावट को मजबूत करना होगा। अंगमर्दन यही करता है। अगर आप अचानक से ज्यादा स्ट्रेच करते हैं और आपके शरीर में टूट-फूट हो जाती है तो वह आसानी से ठीक नहीं होती। टूटी हुई हड्डी छह सप्ताह में ठीक होती है। अस्थि - बंध या लिगामेंट्स के टूटने पर ठीक होने में और मुश्किल होती है, क्योंकि वही पूरे अस्थि पंजर को एक साथ जोड़े रखता है। इसे मजबूत बनाने में समय लगता है। कम से कम तीस महीने के रोजाना अभ्यास के बाद कुछ लोगों के शरीर अंगमर्दन के अगले स्तर के अभ्यासों के लिए तैयार होते हैं। अगले स्तर के अभ्यासों में और अधिक स्ट्रेचिंग शामिल है, जो सामान्य जीवन के लिए जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए, इसकी जरूरत उन लोगों को ही होगी जो बिना रस्सी के पहाड़ पर चढऩा चाहते हैं।

इसी वजह से बॉक्सर्स को बीमारियाँ झेलनी पड़ी हैं

जब मैं छोटा था तो मैं किसी भी चीज पर चढ़ जाता था। पकडऩे के लिए आधे इंच की जगह भी मेरे लिए काफी थी। शरीर का पूरा भार इस छोटी सी जगह पर होता था। पारंपरिक मार्शल आर्ट जैसे कलरिपयट्टु में भी इसी तरह की मजबूती की जरूरत होती है, ताकि आप शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना लड़ सकें। बॉक्सरों और अमेरिकी फूटबाल खिलाडिय़ों को अपने जीवन में बाद के दौर में अक्सर न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जूझना पड़ता है, जैसे मुहम्मद अली के साथ हुआ था। जीतने की जबरदस्त इच्छा के कारण ऐसे लोग काफी समय तक कामयाब तो रहते हैं, मगर उनके शरीर को नुकसान झेलना पड़ता है। मेरा मकसद उनके बारे में राय कायम करना नहीं है - वे अपने तरीके से महान हैं। बस उन्होने अपने सिर पर बहुत ज्यादा पिटाई खाई है। यही नहीं, लगातार किसी चीज को घूंसा मारने से भी हमारे अपने सिस्टम पर असर पड़ता है। मांसपेशियां बेशक मजबूत हों, पर शरीर की बुनियादी बनावट को मजबूत बनाना एक अलग चीज है।

जीवन की बुनियादी बनावट की मजबूती

आप भारत और नेपाल के हिमालय के इलाकों में ऐसी औरतों को देख सकते हैं, जो मुश्किल से साढ़े चार से पांच फीट लंबी, कमजोर और कुपोषित दिखती हैं, उनका वजन पैंतालीस किलो से भी कम होता है, मगर वे पैंसठ से सत्तर किलो तक की लकडिय़ां या दूसरी चीजें ढो लेती हैं।

ऐसा लचीलापन बचपन से ही बनता है। ये सिर्फ  ऐरोबिक क्षमताएं नहीं हैं, जीवन की उनकी बुनियादी बनावट ही मजबूत है।
शुरू से ही पहाड़ों में रहने के कारण वे बोझ उठाकर पहाड़ की ढलानों पर चढ़ती-उतरती रहती हैं, इसलिए उनका शरीर इतना मजबूत हो जाता है। आप उन शेरपा लडक़ों को देखिए जो हमारे साथ कैलाश यात्रा पर जाते हैं। एक बार जब हम 17,800 फीट की ऊंचाई पर थोरोंग ला दर्रेपर चढ़ाई कर रहे थे, तो हमारे लोग हर कदम पर हवा की कमी से हांफ  रहे थे। मैं अधिकतर लोगों से काफी बेहतर हालत में था, मगर हमारे साथ चल रहे ये शेरपा लोग सारा सामान, गैस सिलेंडर, खाना बनाने का सामान, आदि लेकर चल रहे थे। वहां पहुंचने पर हम सब बैठ गए और खुश हो रहे थे कि हमारा हार्ट फेल नहीं हुआ। हम अपनी सांस और धडक़न के स्थिर होने का इंतजार कर रहे थे। मगर ये लडक़े बोझ नीचे फेंकने के साथ तुरंत इतनी ऊंचाई पर मजे में इधर-उधर भागने, एक-दूसरे को पकडऩे, उछलने, लडऩे और लुढकने लगे – बस मज़े के लिए, वो भी इतनी ऊंचाई पर। ऐसा लचीलापन बचपन से ही बनता है। ये सिर्फ  ऐरोबिक क्षमताएं नहीं हैं, जीवन की उनकी बुनियादी बनावट ही मजबूत है।

एक अलग तरह की मजबूती

इसी तरह, अंगमर्दन एक अलग तरह की मजबूती देता है। इसका मकसद मांसपेशियां बनाना नहीं, बल्कि अस्थि - बंध या लिगामेंट्स को मजबूत बनाना है। उन्हें मजबूत बनाने के बाद वे आपको जीवनभर ठीक जगह पर रखेंगे। हम जो सामान्य अंगमर्दन सिखाते हैं, वह इस मकसद को सही तरह से पूरा करता है। अगर आप अभ्यास को और तीव्र बनाना चाहते हैं, तो आप इसे दो बार कर सकते हैं। कुछ लोगों को लग सकता है कि वे अंगमर्दन को अगले स्तर पर ले जाने के लिए पर्याप्त फिट हैं, लेकिन अगर आप अधिक करीब से देखें, तो आधुनिक सभ्यता का अभिशाप यह है कि लोगों का शेप बिगड़ रहा है। फिर भी एक समय आने पर हम अंगमर्दन के अगले स्तर को भी सिखाएंगे, मगर सिर्फ तभी जब लोग अपने सिस्टम को तैयार करने के लिए पर्याप्त रूप से समर्पित होंगे।