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शिव के गण और गणपती

शिव के साथ गणों की चर्चा हमेशा होती है। कौन थे ये गण? क्या संबंध था गणों का गणपती से?

सद्गुरु : शिव के गणों को लेकर यौगिक गाथाओं में यह कहा गया है कि गण शिव के मित्र थे। ये वे लोग थे जो हमेशा शिव के आस पास रहते थे। हालांकि शिव के साथ उनके शिष्य थे, पत्नी थीं और कई सारे प्रशंसक भी होते थे – लेकिन गण ही हमेशा उनके अन्तरंग थे। गणों का विवरण विकृत प्राणियों के रूप में किया जाता है।


आपको यह समझना चाहिए कि कोई भी उस बच्चे को गजपति नहीं कहता। हम उन्हें हमेशा गणपती कहते हैं। दरअसल शिव ने अपने एक मित्र गण का सिर काट कर इस बच्चे के शरीर पर स्थापित किया था।

ऐसा कहा जाता है कि उनके हाथ पैर हड्डियों के बगैर थे और शरीर के अजीब हिस्सों से बाहर निकले हुए थे – इसलिए उन्हें विकृत या सनकी कहा जाने लगा। असल में बस वे हम लोगों से अलग थे।

आपके मन में ये सवाल उठ सकता है कि वे हम लोगों से इतने अलग कैसे थे? ये जीवन का ऐसा आयाम है जिससे सहमत होना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। शिव को भी हमेशा यक्षस्वरूप बताया गया है। यक्ष का मतलाब है दिव्य प्राणी। दिव्य प्राणी का मतलब है वो जो  किसी और दुनिया से आया हो। लगभग 15,000 साल पहले, शिव मानसरोवर पहुंचे। मानसरोवर तिब्बत में एक झील है। ये टेथीस समुद्र का एक अवशेष है। टेथीस समुद्र को मानव सभ्यताओं की शुरुआत माना जाता है। आज ये झील समुद्र तल से 15,000 फीट की ऊँचाई पर है, पर असल में यह खुद एक समुद्र है जो अब ऊपर उठ कर झील बन गया है।

शिव के मित्र - गण – मनुष्यों की तरह नहीं थे, और ये बताया गया है कि वे कभी भी किसी मानव भाषा का प्रयोग नहीं करते थे। उनकी बातें कर्कश शोर की तरह होती थीं। जब शिव और उनके मित्र बातें करते थे तो वे ऐसी भाषा का प्रयोग करते थे जो किसी को समझ ही नहीं आती थी। इसलिए लोगों ने इसे शोर का नाम दे दिया। लेकिन शिव गणों के सबसे करीब थे।

आपको गणपती के सिर कटने की कथा भी मालूम होगी। जब शिव घर लौटे और इस बच्चे ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो शिव ने बच्चे का सिर काट दिया। जब पार्वती अत्यंत दुखी हो गयी और शिव से बच्चे को सिर प्रदान करने के लिए कहा, तो शिव ने एक अन्य जीव का सिर उस बच्चे को दे दिया। उस अन्य जीव को एक हाथी बताया जाता है। लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि कोई भी उस बच्चे को गजपति नहीं कहता। हम उन्हें हमेशा गणपती कहते हैं। दरअसल शिव ने अपने एक मित्र गण का सिर काट कर इस बच्चे के शरीर पर स्थापित किया था।

गणों के हाथ पैर बिना हड्डियों के होते हैं। हमारी संस्कृति में, बिना हड्डी के अंग को हाथी की सूंड की तरह समझा जाता है, तो कलाकारों ने उन्हें एक हाथी का रूप दे दिया। पर असल में वे गजपति नहीं हैं – वे गणपती हैं। उन्हें एक गण का सिर मिला और शिव ने उन्हें गणों का मुखिया बना दिया।

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